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खौफनाक जासूसो के कारनामे

दिनेश सिंह

प्रकाशक : स्वास्तिक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4067
आईएसबीएन :81-89354-11-6

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कुछ ऐसे जासूसों की रोमांचक दास्तान जिनके कारनामे सारी दुनिया को हैरत में डाल देते हैं

Khaufnak Jajuso Ke Karname

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

एक जमाना था जब जान पर खेल कर दुश्मनों के बारे में सब कुछ पता लगाने को आतुर जासूस पूरे देश में रहकर अपना जलवा बिखेरते थे। उनके बारे में शायद ही कभी पता चल पाता था। वे जानते थे कि वे जो कुछ कर रहे हैं उसकी एक ही सजा है मौत। फिर भी वे हँसते-खेलते इस काम में जुट जाते थे और उसे बहुत खूबी से अंजाम देते थे। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में एक से बढ़कर एक जासूस सामने आये जिनके कारनामे पढ़कर आज भी लोग दांतो तले उँगली दबा लेते हैं। पेश है ऐसे कुछ जासूसों की रोमांचक दास्तान जिनके कारनामें ने सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया था।
आज की दुनिया में जासूसों की ज्यादा चर्चा नहीं होती क्योंकि आज टेक्नोलॉजी इतनी तरक्की कर गई है कि शायद इसकी जरूरत न पड़े। जो काम किसी समय हुनरमंद जासूस अपनी जान पर खेल कर किया करते थे वह सैटेलाइट और दूसरी तरह की इलेक्ट्रॉनिक मशीनें करने लगी हैं। लेकिन एक वह भी जमाना था जब जान पर खेल कर दुश्मनों के बारे में सब कुछ पता लगाने को आतुर जासूस दूसरे देश में रह कर अपने जलवे बिखेरते थे। उनके बारे में शायद ही कभी पता चल पाता था। वे जानते थे कि वे जो कुछ कर रहे हैं उसकी एक ही सजा है-मौत। फिर भी वे हंसते-गाते इस काम में जुट जाते थे। और उसे बहुत खूबी से अंजाम देते थे पहले और दूसरे विश्व युद्ध में एक से बढ़ कर एक जासूस सामने आए जिनके कारनामे पढ़ कर आज भी लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। पेश है ऐसे कुछ जासूसों की रोमांचक दास्तान। जिनके कारनामों ने सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया था।

जासूस चौकड़ी


इन्हें कैम्ब्रिज फोर कहा जाता था। ये सभी ब्रिटेन के नागरिक थे लेकिन रूस के लिए अपने ही देश के खिलाफ जासूसी करते थे। ये कई सालों तक चुपचाप बिना किसी को भनक दिए अपने कारनामों को अंजाम देते रहे मोन्सी बर्जेस, ऐंथनी एफ ब्लंट, क्लोन, रसेल उर्फ किम फिल्बी।
बर्जेस जहाँ बीबीसी का ब्रॉडकास्टर था वहीं ब्रिटिश फॉरेन ऑफिस, लंदन में उप विदेश मंत्री का सचिव भी था। ब्लंट फ्रेंच भाषा का शिक्षक था, कला का इतिहासकार था और क्वीन एलिजाबेथ का आर्ट एडवाइजर भी था।

मैक्लीन लंदन में फॉरेन ऑफिस का सचिव था। रसेल यानी किम फिल्बी पत्रकार था। ये सभी एम-15 या एम-16 से जुड़े थे। एम-15 ब्रिटेन की जासूसी विरोधी संस्था थी। वह अमेरिका की एफबीआई के बराबर और उसी की तरह की संस्था है जबकि एम-16 ब्रिटेन की जासूसी सेवा। इसे एसआईएस भी कहा जाता है। यह सीआईए के बराबर संस्था मानी जाती है।

कैम्ब्रिज फोर के जासूसों ने एक से एक खतरनाक काम किए और उनके कारनामों पर कई फिल्में भी बनी हैं। लेकिन उन्होंने क्या किया वह जितना जाना जा सका है, उससे कहीं ज्यादा आज भी अंधेरे में है। उनका व्यक्तित्व दोहरा था। एक तरफ तो वे सामान्य से लोग होते थे और दूसरी तरफ सधे हुए जासूस, जो जान लेने और देने को तैयार रहते थे।
इन चारों को केजीबी ने अपनी सेवा में ले लिया। इनमें से दो, ब्लंट और बर्जेस एक मार्क्सवादी संस्था से जुड़े हुए थे। ब्लंट ने कई जासूस भी बहाल किए थे। उनकी निगाहें ब्रिटेन की राजनीति से निराश लोगों पर रहती थी और वे उन्हें अपने संगठन में जगह देते थे।

एंथनी ब्लंट लंबा, खूबसूरत, स्वाभिमानी और कुछ ठंडा व्यवहार वाला समर्पित कम्युनिस्ट था। उसके दादा एंग्लिकन बिशप थे। वह होमो सेक्सुअल भी था और उसके और बर्जेस के बीच शारीरिक संबंध भी थे। उसने युद्ध के दौरान एम-15 के लिए काम किया। युद्ध के बाद वह कोटआल्ड इंस्टिटयूट ऑफ आर्ट का डायरेक्टर बन गया। इसके बाद वह शाही परिवार का कला सलाहकार बन गया। 1956 में उसे सर की उपाधि दी गई। 1979 में उससे यह उपाधि छीन ली गई। मार्गरेट थैचर ने सरेआम उस पर रूसी जासूस होने का आरोप लगाया था। 1983 में उसकी मौत हो गई।
गाइ बर्जिस शानदार व्यक्तित्व वाला जबर्दस्त जासूस था जिसकी मुस्कान बड़ी मोहक थी, लेकिन वह अव्वल दर्जे का शराबी था। उसके बारे में कुछ भी जान पाना असंभव था। उसके पिता नौसेना में थे लेकिन वह अपने पिता के कदमों पर कभी नहीं चला। उसमें जासूसों का कोई भी लक्षण नहीं था।

उसके बहुत सारे शक्तिशाली दोस्त और प्रशंसक थे जिन्होंने उसे जासूसी करने में अनजाने में मदद दी। उसके बारे में लोग जानते थे कि वह बहुत ही तीव्र बुद्धि का था।
डोनाल्ड मैक्लिन भी ब्लंट की तरह लंबा, खूबसूरत व्यक्ति था, लेकिन वह बाकी जसूसों में अलग था। उसके पिता पार्लियामेंट के सदस्य थे और शिक्षा मंत्री भी रह चुके थे। वह भी कुछ हद तक होमो सेक्सुअल था लेकिन महिलाओं से भी वह मित्रता रखता था। शराब पीने में उसका कोई सानी नहीं था और कई बार तो वह इतनी पी जाता था कि उसे कुछ भी होश नहीं रहता था।

हैरल्ड एड्रियन रसेल यानी फिल्बी, जिसे किम के नाम से जाना जाता था, देखने में तो सुंदर था लेकिन उसका रवैया दोस्ताना नहीं था और उसका व्यवहार चालाकी भरा होता था। कहा जाता है कि वह गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर था। फिल्बी एक जासूस के तौर पर इतना बुद्धिमान था कि वह अपने काम की चीजों को तुरंत जान जाता था। उसकी छठी इंद्रिय हमेशा जाग्रत रहती थी। उसे एक ब्रिटिश कम्युनिस्ट ने रूसियों का जासूस बनाया था। फिल्बी का दावा था कि उसने ही बर्जिस और मैक्लिन को रूस के लिए जासूसी करने के लिए उकसाया था। हालांकि इस बात पर विवाद रहा है और यह कहना मुश्किल है कि किस ने किसे रिक्रूट किया था।

फिर भी यह सच है कि चारों एक दूसरे को जानते थे। फिल्बी के पिता जॉन फिल्बी को अरब का बहुत ज्ञान था। उसके पिता कभी-कभी ब्रिटेन के लिए जासूसी करते थे। वह सऊदी अरब के बादशाह सौद के सलाहकार भी थे। वह थोड़े सनकी भी थे। किम अपने पिता की बहुत प्रशंसा करता था। ब्लंट और बर्जेस के विपरीत किम फिल्बी औरतों और मर्दों सभी से संबंध रखता था। उसने चार शादियाँ कीं और कई महिलाओं से भी संबंध बनाया। उसकी पहली और आखिरी बीवी, जो रूसी नागरिक थी, के अलावा उसकी अन्य बीवियों को कभी यह पता नहीं चला कि उनका पति एक खतरनाक जासूस है। वे दोनों तो उसके जाल में इस कदर फंस गई थीं कि अपने पतियों को छोड़ कर उसके साथ शादी को विवश हो गई थीं। फिल्बी की मौत 1988 में हुई और उसे ऑर्डर ऑफ लेनिन का सम्मान दिया गया। उसकी याद में रूस ने एक डाक टिकट भी जारी किया था।
 
इन चारों जासूसों के अलावा कैम्ब्रिज में कुछ और जासूसों की नियुक्ति की गई थी। इनमें एक था जॉन केयरनक्रॉस। उसने काफी बड़ी जिम्मेदारियां निभाई। लेकिन जासूसों की इस शानदार कतार को खड़ा करने में एनकेवीडी यानी केजीबी के अफसरों का बड़ा योगदान रहा।
उन्होंने बड़े धैर्य से इन जासूसों को तैयार किया। उन्होंने इसके लिए उन्हें पूरा वक्त दिया ताकि वे आसानी से और किसी को शक हुए बगैर ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी में शामिल हो सकें।

कैम्ब्रिज फोर के ये जासूस काफी समय तक रूस के लिए जासूसी करते रहे और पकड़े जाने के पहले ही रूस भाग गए। लेकिन फिल्बी बीस साल से भी ज्यादा यानी 1940 से 1963 तक केजीबी के लिए जासूसी करता रहा। इसके बाद वह भी रूस भाग गया और वहाँ पर केजीबी के लिए मरते दम तक काम करता रहा। उसकी मौत 1988 में हुई। इस तरह से उसने आधी सदी तक केजीबी के लिए काम किया। इसी तरह ब्लंट ने भी लगभग तीस सालों तक जासूसी की। 1964 में पकड़े जाने के बाद उसने माफी मांग ली। उसे सजा-ए-मौत इसलिए नहीं मिली कि उसने केजीबी के बहुत से रहस्य उगल दिए।

फिल्बी खुशकिस्मत रहा कि वह कभी पकड़ा नहीं गया। उसने एक बार किसी को बताया कि कई मौकों पर तो मुझे लगा कि मैं पकड़ा जाऊंगा और मेरे जीवन का अंत हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कई बार रूस छोड़कर इंग्लैंड बस गए रूसी जासूसों ने कहा भी कि ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसियों में रूसी जासूस काम कर रहे हैं लेकिन फिल्बी इन बातों का जबर्दस्त खंडन करता रहा। कई बार उसने इस तरह के आरोपों की खुद जांच भी की।
एक बार तो फिल्बी की ही इस बात के लिए ड्यूटी लगाई गई कि वह रूस छोड़कर भागे एक जासूस बोल्कोव से मिलकर पता लगाए कि आखिर वह कौन है जो ब्रिटिश एजेंसियों की गुप्त सूचना रूस को दे रहा है ।

फिल्बी उस जासूस से मिलने किसी अरब देश को गया भी लेकिन उसका पता नहीं चला। वोल्कोव खुद गायब हो गया। लोगों का मानना है कि फिल्बी का कभी पता नहीं चलता, अगर बर्जेस मैक्लीन के साथ रूस ना भाग जाता। उसके भागने से उस पर उंगलियां उठने लगीं।
कुछ लेखकों का कहना है कि फिल्बी इसलिए बचता रहा कि वह एमआई 16 में सबसे बड़े ओहदे पर पहुंच गया।
इन जासूसों ने 1930 से अपने काम शुरू किए और धीमे-धीमे रूस को महत्त्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराने लगे। वे ऐसे काम करते थे जिससे ब्रिटेन को फायदा होते तो दिखे लेकिन रूस को ज्यादा लाभ हो। केजीबी में एक तबका ऐसा था जो यह ध्यान रखता था कि ये लोग कहीं डबल एजेंट तो नहीं बन रहे हैं।

ब्लंट ने एक कला इतिहासकार के रूप में काम शुरू किया और जल्दी ही उसका नाम हो गया। मैक्लीन विदेश सेवा का अफसर बन गया। बर्जेस और फिल्बी ने जानबूझकर नाजियों का समर्थन करना शुरू किया ताकि रूस के प्रति उनकी वफादारी पर किसी को शक न हो। फिल्बी ने लंदन टाइम्स में रिपोर्टर के तौर पर काम करना शुरू किया। उसे ऑस्ट्रिया में रह रहे कम्युनिस्टों और फासिस्ट विरोधी सोशलिस्टों को वहां से बचाकर निकालने का काम सौंपा गया था। वहां पर ही उसकी मुलाकात लिट्जी फ्रीडमैन से हुई जो दरअसल एक सोवियत एजेंट थी। दोनों इश्क कर बैठे और शादी कर ली।
जब 1939 में जंग शुरू हुई तो मैक्लीन और फिल्बी दोनों ही इंग्लैंड लौट आए। उसी समय हिटलर-स्टालिन संधि की घोषणा हुई। लेकिन इन चारों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। और उनकी रूस के प्रति वफादारी बरकरार रही। उनका मानना था कि स्टालिन ने एक योजना के तहत ही हिटलर का साथ दिया है।

1940 और 1945 के दौरान इस चौकड़ी ने धमाल मचाया और ब्रिटेन और अमेरिका को खासा नुकसान पहुंचाया। बर्जेस और ब्लंट ने ब्रिटेन के फौज़ी खुफिया दस्तावेज चुपचाप रूस भिजवा दिए। मैक्लीन तो स्टालिन का खास आदमी बन गया था। वह अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और चर्चिल की बातचीत और उनकी नीतियों के बारे में स्टालिन को सूचनाएं देता था।
उसने ही ऐटम बम के विकास के बारे में स्टालिन को सूचनाएं दी थीं। उसकी सूचनाओं के कारण ही न केवल रूस ने ऐटम बम बना लिया बल्कि अमेरिका के टक्कर के हथियार भी तैयार कर लिए।
फिल्बी ने दूसरे विश्व युद्ध में नाजी सीक्रेट कोड का पता लगाकर रूस को सौंप दिया। इससे रूसियों को भी युद्ध में इस्तेमाल की जाने वाली कूट भाषा का ज्ञान हो गया। इसके अलावा विश्व युद्ध खत्म होने पर भी वह रूसियों की मदद करता रहा।

अमेरिका का देशद्रोही जासूस


अमेरिका के इतिहास में जिसे सबसे शातिर देशद्रोही माना जाता है उस जासूस का नाम था एल्ड्रिक हेजन एमिस। एमिस पर जासूसी करने की खब्त सवार थी। कहा जा सकता है कि जासूसी करना उसके जीवन का शगल भी था और मकसद भी। जब वह स्मार्ट, चतुर और युवा था तब पढ़ने लिखने का भी शौकीन था। हफ्ते में दो या तीन किताबें पढ़ जाना उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था।

नौ वर्ष तक वह रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के लिए भेदिए (मोल) की तरह काम करता रहा। 1985 में एमिस ने अमेरिका खुफिया एजेंसी सीआईए के उन 25 जासूसों की लिस्ट नाम पते सहित केजीबी को दे दी जो रूस में सक्रिय थे। केजीबी ने उन सभी 24 व्यक्तियों और एक महिला को हिरासत में ले लिया। इनमें से 10 को व्याशा में सजा दी गई जो वहां की खतरनाक सजाओं में मानी जाती है। दसों जासूसों को घुटनों के बल दीवार की तरफ मुंह करके बैठा दिया गया। लार्ज केलिबर हैंडगन से सभी के सिर में पीछे से गोली मार दी गई ताकि किसी का चेहरा पहचाना न जा सके।
एमिस ने अपने एक खास दोस्त और जासूस की भी जानकारी केजीबी को दी थी। वह सोवियत डिप्लोमेट था। एमिस ने उसकी सीक्रेट बातें एक नहीं बल्कि दो बार बताई थीं। इस तरह एमिस ने अमेरिका की खुफिया एजेंसी को कई बार छला था। एमिस ने समय समय पर केजीबी को सीआईए की कई गुप्त योजनाओं की जानकारी भी दी थी।
सीआईए के कई ऑफिसर की जान का खतरा बने एमिस को इन जानकारियों के बदले केजीबी से दो मिलियन अमेरिकी डॉलर जितनी रकम मिली थी।

जासूसी के इतिहास में यह अब तक की सबसे अधिक धन राशि थी, जो किसी जासूस को गुप्त भेद देने के एवज में मिली थी।
फरवरी 1994 को एमिस को सीआईए ने हिरासत में ले लिया। जांच के बाद एमिस पर लगाए गए आरोपों के मद्देनजर वह भेदियों की कैटेगरी में सबसे ऊपर था। एमिस के पकड़े जाने के बाद कांग्रेस ने सीआईए की खूब छीछालेदर की।
एमिस को अपनी सालाना तनख्वाह से कहीं अधिक पैसा तो एक बार की इनफॉरमेशन से ही मिल जाया करती थी। आय से अधिक खर्चे के कारण ही वह शक के दायरे में आया। सीआईए ने एमिस पर नजर रखनी शुरू कर दी। आखिरकार उसे पकड़ ही लिया गया।

सीआईए ने एमिस को जासूसी के लिए ठोक-बजा कर तैयार किया था लेकिन पैसों के लालच ने एमिस को इतना गिरा दिया कि उसने अपने ही साथियों की मुखबिरी करके उन्हें मरवा डाला और अपने ही देश के भेद गैर मुल्क को बेच दिए।
एफबीआई के एक अधिकारी ने तो यहां तक कहा था कि एमिस ने देश ही नहीं बल्कि लोगों के साथ भी विश्वासघात किया था। उसे तो कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
एमिस कहता था कि जासूसी उसके खून में है। उसके पिता कार्लटन एमिस अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम करते थे।
1950 के दौरान वे वर्मा में सीआईए के जासूस नियुक्त थे। कॉलेजन के प्रोफेसर के रूप में वहाँ लोकल कल्चर का अध्ययन करते थे।

एमिस ने उस वक्त अपने पिता का कोई हुनर नहीं सीखा, लेकिन जब इनका परिवार वाशिंगटन डी.सी. लौट आया।
तब 1957 की गर्मियों में 16 वर्ष के एमिस को उसके पिता कार्लटन ने कहा कि उनकी एजेंसी ने अपने कर्मचारियों के बच्चों के लिए समर जॉब निकाली हैं जाकर उसे ज्वाइन करे और अपने लिए अतिरिक्त आय का इंतजाम करे। सीआईए की सीक्रेट ट्रेनिंग फैकल्टी में रिक एमिस को समर जॉब के तौर पर जासूसी की मामूली ट्रेनिंग दी गई। रिक एमिस को जासूसी का शौक यहीं से चढ़ा।

रिक एमिस की मां हाई स्कूल में टीचर थीं। स्कूल से गोल (बंक) होने के लिए रिक अपनी उस जासूसी कला का इस्तेमाल भी करने लगा जो उसने समर जॉब के दौरान सीखी थी और अपने पिता को देख-देखकर उसे मांझा था। स्कूल में वह रोजाना रिक ट्रेंच कोट पहनता था। उसने अपनी सीक्रेट भाषा और गुप्त रास्ता भी बना लिया था जिसे स्कूल आने जाने के दौरान इस्तेमाल में लाता था। वह स्कूल में होने वाले नाटकों में भी हिस्सा लेता था।
रिक अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ डेट को भी एक मिशन की तरह इस्तेमाल करता था और इसके लिए भी उसने सीक्रेट कोड बनाए हुए थे। उसके एक कॉलेज साथी के अनुसार एक बार रिक ने उसे बताया था कि कभी भी अपनी सही पहचान किसी को न बताओ, अपनी सही फीलिंग किसी के आगे जाहिर न होने दो। सभी को अपने बारे में भ्रम में जीने दो।
ग्रेजुएशन के बाद एमिस ने शिकागो यूनिवर्सिटी में एडमीशन ले लिया। यहां उसका समय ड्रामा क्लबों और नाटकों में भाग लेते हुए बीता।

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