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दिव्या

बृजलाल हांडा

प्रकाशक : सावित्री प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4059
आईएसबीएन :0000

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एक श्रेष्ठ उपन्यास....

Divya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1

रिमांड होम के नये भवन का उद्घाटन करने हेतु अधीक्षिका द्वारा उसे मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। फूल-मालाएँ पहनाने की रस्म पूरी होने के पश्चात् अधीक्षिका ने माईक अपने हाथ में पकड़ लिया। सर्वप्रथम उसने मुख्य अतिथि की स्तुति में दो शब्द कहे। कहने भर के लिए वे दो शब्द थे। उसके उद्बोधन को सुनकर उसे स्वयं आत्मग्लानि होने लगी थी। इस दुनिया में किताबों में वर्णित आदर्श पुरुष या स्त्री का होना संभव नहीं है। कोई-न-कोई कमजोरी हर मानव के भीतर अवश्य विद्यमान होती है चाहे वह कितना ही महान् क्यों न हो। जब अधीक्षिका ने स्तुति-गान समाप्त किया तो उसने चैन की साँस ली।

मंच से वह उस स्थान पर गई जहाँ दरवाजे पर रिबन लगा था। उसके द्वारा रिबन काटते ही फोटोग्राफरों के कैमरे चमक उठे। वीडियो शूटिंग की भी व्यवस्था थी। नया भवन वास्तव में बहुत सुंदर बना था। चमचमाता फर्श तथा आयल पेंट से पुती हुई दीवारें। परंतु हर भवन का निर्माण मानव के लिए किया जाता है। भवन के अच्छे होने से ही उसमें रहने वाला इंसान अच्छा नहीं हो जाता। झोंपड़ी में रहने वाला इंसान उस झोंपड़ी को भी गरिमा प्रदान कर देता है।
‘‘मिसेज राय, मैं आपके रिमांड होम में रहने वाली लड़कियों से मिलना चाहती हूँ।’’
उसका यह संबोधन सुनकर राय मैडम के गाल लज्जा के आवरण से गुलाबी हो उठे। जमीन की ओर नजरें गड़ाते हुए धीमे स्वर में वह बोली, ‘‘मुझे मिसेज नहीं बल्कि मिस ही कहिए।’’

उसकी यह बात सुनकर वह चौंकी। आश्चर्य से उसने मैडम राय को नख से शिख तक देखा। माँग में सिंदूर को छोड़कर बाकी सभी श्रृंगार उसने किसी विवाहित महिला की तरह किया हुआ था।
‘‘आई एम सॉरी, मिस राय। क्या आपने अभी तक शादी नहीं की है ?’’
राय मैडम ने कनखियों की निगाह उसकी ओर देखा। देखने-सुनने में वह कालेज की छोकरी की भाँति दिखाती थी। किताबी पढ़ाई के बाद ये छोकरियाँ परीक्षा पास कर लेती हैं। जिले की हाकिम बनने पर इन्हें सुरखाब के पर लग जाते हैं। अपने सामने किसी को भी कुछ नहीं समझतीं। जीवन में उसने न जाने ऐसी कितनी छोकरियों को देखा है। उसकी आँखों में आँखें डालते हुए वह बोली, ‘‘राय मेरा ससुराल का नहीं बल्कि मायके का सर नेम है।’’
‘‘आई एम सॉरी....।’’

‘‘इसमें सॉरी फील करने वाली कोई बात नहीं है, मैडम। मुझे यह कहते हुए लज्जा की अनुभूति नहीं होती कि मेरी शादी एक बार नहीं बल्कि दो दो बार हुई।’’
‘‘क्या शादी का संबंध दोनों बार ही टूट गया ?’’
‘‘संबंधों को जीवन भर विवश होकर खींचना क्या बुद्धिमानी है ?’’
‘‘छोटी-मोटी तकरार तो हर पति-पत्नी में होती रहती है। सामंजस्य ही जीवन का मर्म है।’’
‘‘सामंजस्य की पहल दोनों ओर से होनी चाहिए। यह कहाँ का इंसाफ है कि हर बार औरत ही मर्दों के आगे झुके ?’’
इस अप्रिय वार्तालाप को वह आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी। विषयांतर करते हुए वह बोली, ‘‘इस रिमांड होम में प्रशिक्षण की क्या व्यवस्था है ?’’

‘‘सिलाई तथा कढ़ाई के अलावा अन्य कई प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हर लड़की के भीतर पुरुषों से टक्कर लेने की मानसिकता बनाने का प्रयास किया जाता है।’’
‘‘टकराहट से जीवन में बिखराव आता है, मिस राय।’’
‘‘कच्चे धागे से बँधे रहने के स्थान पर यह बिखराव अच्छा है।’’
‘‘मिस राय, अपने-अपने अस्तित्व में हर पुरुष तथा स्त्री आधे-अधूरे हैं। दोनों के मिलन से ही उत्पत्ति होती है जिससे सृष्टि की निरंतरता बनी रहती है।’’
‘‘इस रिमांड होम में रहने वाली सारी की सारी लड़कियाँ भी तो नर तथा नारी के मिलन का परिणाम हैं। क्या इन लड़कियों का प्रारब्ध देखकर भी आप इस मिलन की पक्षधर हैं ?’’
‘‘खोट मिलन में नहीं बल्कि संस्कारों में होती है।’’

‘‘और संस्कार किससे उपजते हैं ?’’ उसका यह प्रश्न सुनकर पलभर के लिए वह हतप्रभ रह गई। उसके इस प्रश्न का त्वरित उत्तर उसे नहीं सूझा। कुछ देर सोचने के पश्चात् वह बोली, ‘‘संस्कार हमें विरासत में घर में भी मिलते हैं और बाहर भी।’’
‘‘क्या कोई युवती अपना अहित चाहते हुए नर्क के रसातल में अपने आप को स्वयं धकेलना चाहती है ?’’
‘‘मैं तुम्हारे प्रश्न में छिपे मंतव्य को समझ रही हूँ, मिस राय। परंतु असफलता में, चाहे उसका स्वरूप कैसा भी क्यों न हो, कहीं न कहीं हम स्वयं भी तो दोषी होते हैं।’’
दोनों के बीच होने वाले इस वार्तालाप को सुनने के लिए वहाँ काफी लड़कियाँ एकत्रित हो गई थीं।
‘‘मैडम, हॉल में रिफ्रेशमेंट की व्यवस्था है। वहाँ इत्मीनान से आप इन लड़कियों से बातें कर सकती हैं।’’
सभी लड़कियाँ जमीन पर बिछी दरी पर बैठ गईं। उन्हें संबोधित करते हुए मिस राय बोली, ‘‘ये मैडम जिले की बड़ी हाकिम हैं। ये आप लोगों से कुछ प्रश्न पूछना चाहती हैं।’’ यह कहकर मिस राय अपनी कुर्सी पर बैठ गई।
‘‘आप लोगों में से कौन-कौन सी लड़कियाँ शादी कर अपना घर बसाना चाहती हैं ?’’

उसका यह प्रश्न सुनकर अधिकांश युवतियों के चेहरे पर मुस्कान छा गई। परंतु उत्तर किसी ने भी नहीं दिया।
‘‘तुम लोग उत्तर क्यों नहीं दे रही हो ? अपने मन की बात साफ-साफ क्यों नहीं कह देतीं ?’’ मिस राय बोली। इस पर भी किसी युवती ने कोई उत्तर नहीं दिया।
‘‘तुम्हारे मौन का क्या यह अर्थ समझा जाए कि तुममें से कोई भी लड़की शादी नहीं करना चाहती ?’’ मिस राय बोली।
‘‘अपने मन की बात कहने के लिए आप स्वतंत्र हैं। हमारे मन की बात कहने या समझने वाली आप कौन होती हैं।’’ अपने स्थान पर खड़े होकर एक युवती बोली। उसका सारा बदन क्रोध से काँप रहा था। उसका स्वर भरा था। आग्नेय दृष्टि से उस युवती की ओर घूरते हुए मिस राय बोली, ‘‘अंजली, क्या तुम्हें यह भी मालूम नहीं कि अपने से बड़ों से किस प्रकार से बात की जाती है !’’
‘‘मैडम, मन में धधकता हुआ ज्वालामुखी का लावा जब फूटता है तो शालीनता की सीमाएँ स्वतः ही चरमरा उठती हैं।’’
‘‘तुम किस ज्वालामुखी के लावे की बात कर रही हो ?’’

‘‘जो आपने हमारे मन में भर रखा है।’’
‘‘यह तुम क्या कह रही हो ?’’
‘‘मैं ठीक कह रही हूँ, मैडम। आपसे एक सीधा-सच्चा प्रश्न पूछना चाहती हूँ। दो बार की असफल शादियों के उपरांत क्या आप आजीवन अब तीसरी बार शादी नहीं करेंगी ?’’
उस प्रश्न का कोई अधिकारपूर्ण उत्तर तत्काल मिस राय नहीं दे सकी।
अंजली नाम की वह युवती मुखर हो उठी थी। विद्रूप हँसी हँसते हुए वह बोली, ‘‘एक प्रश्न मैं बड़ी मैडम से पूछना चाहती हूँ। वे अभी कुँवारी लगती हैं। क्या उन्होंने भी जीवनभर शादी न करने का संकल्प किया है ?’’ उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वह युवती हॉल से बाहर चली गई। अंजली की इस धृष्टता ने मिस राय को परेशानी में डाल दिया था।

 आयोजन की समाप्ति के उपरांत उसे पाठ पढ़ाने का उसने मन ही मन दृढ़ संकल्प किया। बिगड़ी बात को सँभालने की गरज से वह बोली, ‘‘मैडम इस छोकरी को हिस्टिरिया का दौरा पड़ जाता है। किससे क्या बात करनी चाहिए, इसे होश नहीं रहता। मेरी आपसे प्रार्थना है कि इसकी बातों का आप बुरा नहीं मानेंगी।’’
‘‘मिस राय, मेरे विचार में इस युवती ने कोई अप्रासंगिक बात नहीं कही है।’’
‘‘यह आप क्या कह रहीं हैं, मैडम ?’’
‘‘जिन प्रश्नों के उत्तर हम दूसरों से पूछते हैं, उसके उत्तर हमें स्वयं भी तो मालूम होने चाहिए।’’
‘‘कौन से प्रश्न, मैडम ?’’
‘‘अंजली ने मुझसे और तुमसे एक प्रश्न पूछा है। मैं उसके प्रश्न का उत्तर अवश्य दूंगी। इसके लिए अंजली का यहाँ होना जरूरी है।’’
‘‘वह उद्दंड किस्म की बदतमीज छोकरी है। शिष्टाचार नाम की कोई चीज उसके शब्दकोश में नहीं है। फिर कोई उल्टी-सीधी बात कह सकती है।’’

‘‘मिस राय, इस बात की तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो। अगर मैं अंजली के प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाई तो अपराध-बोध का भाव सदा मेरे हृदय में बना रहेगा।’’
मिस राय का इशारा पाकर एक युवती हॉल से बाहर चली गई। थोड़ी देर बाद जब वह वापिस लौटी तो अंजली भी उसके साथ थी। मैडम ने गौर से अंजली की ओर देखा। उसकी आँखें सूजी हुई थीं। गालों पर आँसुओं के धब्बे स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।
‘‘अंजली, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मैं दूँगी। क्या तुम आगे आकर मेरे निकट बैठ सकती हो ?’’
उसकी आज्ञा का अनुसरण करते हुए आगे आकर सिर झुकाकर वह जमीन पर बैठ गई।
‘‘अंजली, मैंने आजीवन कुँवारी रहने का कोई संकल्प नहीं किया है। समय आने पर मैं अवश्य शादी करूँगी।’’
यह कहकर मैडम चुप हो गई।
अपने स्थान पर खड़े होकर वह बोली, ‘‘राय मैडम का क्या कहना है ?’’

उसकी ढीठता देखकर मिस राय सकते में आ गई। अगर आज मैडम यहाँ नहीं होतीं तो कोड़े मार-मारकर वह उसे मजा चखा देती। उसके प्रश्न का उत्तर देने के स्थान पर वह बोली, ‘‘इस प्रकार के वार्तालाप से अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिलता है। प्यार की भाषा का इस प्रकार की युवतियों पर कोई असर नहीं होता। बिना भय के प्रीति नहीं होती।’’
‘‘मिस राय, अनुशासन से आप क्या समझती हैं ?’’
‘‘अनुशासन का अर्थ अपने आप में स्पष्ट है, मैडम। अनुशासन भंग करने पर ही तो ये युवतियाँ दिग्भ्रमित हुई हैं। पथ से विचलित होने पर ही तो इन्हें इस रिमांड होम में रखा गया है।’’
‘‘रिमांड होम में इन युवतियों को रखने का क्या प्रयोजन है, मिस राय ?’’
‘‘इनके भीतर अच्छे संस्कार भरना।’’
‘क्या जीवन के नकारात्मक पक्ष की बातें कर ही इनके भीतर अच्छे संस्कार भरे जा सकते हैं ?’’

‘‘मैं तो इन्हें जीवन के यथार्थ से अवगत कराती हूँ।’’
‘‘एक उपमा के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास करती हूँ। नदी और समुद्र में क्या अंतर होता है, मिस राय ? समुद्र का विस्तार अंतहीन होता है, परंतु नदी तट की सीमाओं से बँधी रहती है। बरसात के मौसम में कभी-कभी बाढ़ आ जाने पर उच्छृंखल होकर नदी तट की सीमाओं का उल्लंघन कर तबाही का तांडव नृत्य करती है। बाढ़ के उतर जाने पर वह पुनः अपने असली रूप में आ जाती है। बाढ़ के कारण उच्छृंखलता नदी का धर्म नहीं बल्कि अपवाद है। अपवाद की बात कर नदी के प्रति वितृष्णा भरा भाव पैदा करना क्या उचित है ?’’
‘‘उचित-अनुचित का निर्णय सदैव तर्क के आधार पर नहीं किया जा सकता। जिसने एक बार तूफान की त्रासदी भोगी हो वह तूफान से सदैव भयभीत रहता है। तूफान घरों को ही नहीं, इंसानो को भी जड़ से उखाड़ देता है, मैडम।’’
‘‘तुम्हारा यह कहना सही है, मिस राय। क्या मैं तुमसे एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछ सकती हूँ ?’’
‘‘हाँ।’’

‘‘क्यों तुम्हारी कोई बहिन है ?’’
‘‘हाँ, मुझसे बड़ी है।’’
‘‘क्या उसने शादी की है ?’’
‘‘उसके दो बच्चे हैं।’’
‘‘अपने घर संसार में वह सुखी है या दुःखी ?’’
‘दिखने को तो सुखी लगती है। असली बात कौन जान सकता है ?’’
‘तुम्हारे सामने जीवन के दो पहलू हैं। एक पक्ष सकारात्मक है जिसमें तुम्हारी बहिन अपन गृहस्थी में सुखी है। दूसरा नकारात्मक पक्ष तुम्हारा अपना है। दो बार शादी करने के पश्चात् भी तुम्हें दुःख ही मिला। क्या इस अंतर पर तुमने कभी विचार करने का प्रयास किया ?’’

‘‘इसमें विचार करने वाली कोई बात नहीं है। मेरी बहिन दब्बू किस्म की है। पति की किसी भी बात का प्रतिरोध करने की उसमें क्षमता नहीं है। कोई भी शोषित चाहे पुरुष हो या नारी, कभी भी सुखी नहीं हो सकता।’’
‘‘यह व्यक्तिगत धारणा का विषय हो सकता है, मिस राय। मैं रिमांड होम की इन युवतियों से एक सरल प्रश्न पूछना चाहती हूँ कि क्या तुम्हारी बहिन की तरह वे घर गृहस्थी बसाकर प्रकृति की निरंतरता को बनाए नहीं रखना चाहतीं ?’’
‘‘मैडम, चाहने भर ही से सुख नहीं मिल जाता। इसका हश्र मेरी तरह भी हो सकता है।’’
‘‘होने को इनका हश्र भी तुम्हारी तरह हो सकता है। तुम्हारी बहिन की तरह ये सुखी भी तो हो सकती हैं।’’
‘‘इसका निर्णय कौन करेगा ?’’
‘‘परिणति।’’
‘‘उसे किसने देखा है ?’’
‘‘वह स्वयं ही सामने आ जाती है।’’
‘‘परंतु उसका पूर्वानुमान तो कोई भी नहीं लगा सकता।’’

‘‘किसी भी लड़ाई में हार-जीत की संभवनाएँ बनी रहती हैं। संभावित हार की कल्पना कर क्या कोई फौजी युद्ध लड़ना बंद कर देता है ?’’
‘‘हम लड़ाई के मैदान की नहीं बल्कि जीवन की बात कर रहे हैं।’’
‘‘मानव जीवन भी लड़ाई के मैदान की तरह है। कभी-कभी हमें अनपेक्षित स्थितियों का सामना करना पड़ता है। नाटकीयता से भरी इन स्थितियों का पूर्वानुमान किसी को भी नहीं होता। इस संभावित कठिनाइयों की परिकल्पना से भयभीत होकर कोई भी व्यक्ति न तो सुखी हो सकता है और न ही संघर्ष में विजयी।’’
‘आप कहना क्या चाहती हैं ?’’
‘‘मैं चाहती हूँ कि जीवन में विषम परिस्थितियों का सामना करने का आत्मबल इन युवतियों में हो।’’
‘‘वह आत्मबल किस तरह पैदा किया जा सकता है ?’’

‘‘इन युवतियों को जीवन के सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों पहलुओं से हमें अवगत कराना है। इस दुनिया में एक भी ऐसा प्राणी नहीं है, जिसे अपने हिस्से की धूप-छाँव नहीं सहनी पड़ती हो।’’
‘‘आप कहना क्या चाहती हैं ?’’
‘‘हर व्यक्ति को अपने हिस्से का दुःख भोगना ही पड़ता है। दुःख से पलायन नहीं बल्कि उसका सामना करने पर ही सुख प्राप्त किया जा सकता है।’’
‘‘ये कागजी बातें हैं, मैडम। कहना आसान होता है पर करना कठिन।’’
‘‘मिस राय, इस गूढ़ विषय पर हम आपस में फिर कभी चर्चा करेंगे। मुझे एक ही बात कहनी है कि कोई किसी का दुःख मिटा नहीं सकता। दुःख सहने में उस  व्यक्ति की मदद कर सकता है।’’
‘‘शाब्दिक उलझाव को छोड़ दिया जाए तो बात एक ही है।’

‘‘दोनों में बहुत अंतर है। मिस राय, मैं चाहती हूँ कि पुरुषों से टकराव या घृणा वाली मानसिकता की भावना का प्रादुर्भाव तुम इन युवतियों के हृदय में मत करो।’’
वहाँ उपस्थित लड़कियों को उन दोनों की इन गूढ़ बातों में कोई रस नहीं मिल रहा था। मिठाई खाने के उपरांत चाय पीकर धीरे-धीरे वे लड़कियाँ एक-एक कर वहाँ से खिसक लीं।
‘‘मिस राय, मैं अंजली नाम की उस युवती से बात करना चाहती हूँ।’’
‘‘मैं उसे यहाँ बुला देती हूँ।’’
‘‘मैं उससे अकेले में बात करना चाहती हूँ।’’
मिस राय के चेहरे की भाव भंगिमा से स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था कि मैडम का यह सुझाव उसे पसंद नहीं आया था। परंतु उसके आदेश की अवहेलना करने का साहस वह जुटा नहीं पाई। एक तो वह आज के इस आयोजन की मुख्य अतिथि थी और उस पर जिले की हाकिम। उसकी कलम में उसका अहित करने की सामर्थ्य थी। मन मसोसकर उसे उसकी आज्ञा का पालन करना पड़ा।
ऑफिस के कमरे में अंजली नाम की उस लड़की को अपने सामने रखी कुर्सी पर बैठाते हुए उसने उससे पूछा ‘‘क्या मैं तुमसे पूछ सकती हूँ कि तुम्हें रिमांड होम में क्यों आना पड़ा ?’’

‘‘अपने गुनाह के कारण।’’
‘‘तुमने क्या गुनाह किया था ?’’
‘‘हर अपराधी अपने को बेकसूर कहता है। मैं भी इसका अपवाद नहीं हूँ।’’
‘‘मैं मान लेती हूँ कि तुम निरपराध हो। चाहे झूठा ही सही, तुम पर कोई-न-कोई आरोप तो लगाया गया होगा।’’
‘‘वह सब मेरी हिस्ट्री शीट में दर्ज है, मैडम। यह बात तो आप अच्छी तरह जानती हैं कि रिमांड होम में अच्छे रिकार्ड वाली कोई लड़की नहीं आती।’’
‘‘हमारी व्यवस्था की यही सबसे बड़ी खराबी है, अंजली। दुश्चरित्र व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठित होकर जीते हैं और बेगुनाहों को उनके दुष्कर्मों का बोझ अपने कंधों पर उठाए हुए जीना पड़ता है।’’
‘‘मैडम, इन सब बातों से मेरा कोई भला नहीं होने वाला है। न मुझे किसी की सहानुभूति की कोई आवश्यकता है। सच कहूँ तो मुझे यहाँ रहने का भी कोई दुःख नहीं है।’’
‘‘क्या यह बात तुम सच्चे से कह रही हो ?’’
‘‘हाँ।’’

‘‘उन प्रश्नों को पूछने के पीछे तुम्हारा क्या मंतव्य था ?’’
‘‘मैं मिस, राय को उनकी अपूर्णता का बोध कराना चाहती थी।’’
‘‘किस प्रकार की अपूर्णता का ?’’
‘‘क्या आप जानती हैं कि इस रिमांड होम में पुरुषों की परछाईं देखना भी वर्जित है ?’’
‘‘तुम कहना क्या चाहती हो, अंजली ?’’
‘‘मिस राय को एक ने नहीं बल्कि दो-दो पुरुषों ने धोखा दिया। धोखा खाने की तिलमिलाहट के कारण वह सारी मर्द जाति को धोखेबाज तथा दुष्ट समझती हैं। वह स्वयं भले ही अपने मन के भीतर इस धारणा को पालें, परंतु रिमांड होम की समस्त युवतियों को इस मानसिकता पर आचरण करने पर विवश करती हैं।’’
‘‘वह किस तरह ?’’

‘‘यहाँ रहने वाली किसी भी युवती से उसका कोई भी पुरुष संबंधी भेंट नहीं कर सकता। यहाँ का कोई भी कर्मचारी पुरुष नहीं है। इतिहास में पढ़ रखा था कि कट्टरपंथी औरंगजेब ने संगीत तथा नृत्य पर प्रतिबंध लगा दिया था, परंतु मिस राय ने यहाँ की लड़कियों पर किसी पुरुष का मुँह देखने पर प्रतिबंध लगा रखा है।’’
‘‘तुम्हारे रोष का क्या यही कारण है ?
‘‘वह कारण इससे भी कहीं बड़ा है।’’
‘‘वह कौन-सा कारण है, अंजली ?’’
‘‘स्त्री जाति के प्रति अविश्वास-भरी भावना का। सभी महिलाएँ दुश्चरित्र नहीं होतीं। मिसराय को धोखा पुरुषों ने दिया परंतु सजा वह महिलाओं को दे रही हैं। यह कैसा इंसाफ है ?’’
 




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