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कविता संग्रह >> वंशीवट सूना है

वंशीवट सूना है

गोपालदास नीरज

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4036
आईएसबीएन :81-7043-264-2

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प्रस्तुत है नीरज की श्रेष्ठ कवितायें...

Vanshivat soona hai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


‘यश भारती’ पुरस्कार से सम्मानित तथा कवियों में सूरज के सातवें घोड़े के समान सबसे आगे-आगे चलने वाले कवि पद्मश्री गोपालदास ‘नीरज’ जिनकी कविताओं में रूबाइयाँ, गीत, मुक्तक और विचार भी हैं। उनके गीत जेठ की दुपहरी में तपकर खिले गुलाब के समान सुगन्धित और मोहकर होते हैं।

किसके लिए ?
1


किसके लिए ? किसके लिए ?
धारण करूँ अब ये पीताम्बर किसके लिए ?
राधा-
वसन्त-शाय्यानी-सखी
बृज में कहीं खो गई
वंशी
अधर-प्रिया
यमुना कछारों में सो गई
रास फिर रचाए ये नटनागर किसके लिए।
धारण करूँ अब ये पीताम्बर किसके लिए।
रस की मची धूम जहाँ
उड़े वहाँ धूल
आँसू में डूब गए
माला के फूल
थाहूँ फिर सपनों का रत्नाकर किसके लिए
धारण करूँ अब ये पीताम्बर किसके लिए।
वंशीवट सूना
है अकेला गोपाल
काल-कौर बने सब
गोपी ग्वाल-बाल
भोगूँ फिर दिन का ये चौथा पहर किसके लिए
धारण करूँ अब ये पीताम्बर किसके लिए।

आँसू जब सम्मानित होंगे
2


आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा।
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।।

मान-पत्र मैं नहीं लिख सका
राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आश़िक रहा जनम से
सुन्दरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये
केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला
मुझको शाप दिया जाएगा।
आँसू जब सम्मानित होंगे।
खिलने को तैयार नहीं थी
तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे
उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया
आँख भरी तो झूमके गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से
क्या इस तरह जिया जाएगा।
आँसू जब सम्मानित होंगे।
काज़ल और कटाक्षों पर तो
रीझ रही थी दुनियाँ सारी
मैंने किन्तु बरसने वाली
आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए अब सतरंगी
तार तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो
ज्यादा नहीं सिया जाएगा।
आँसू जब सम्मानित होंगे।
जब भी कोई सपना टूटा
मेरी आँख वहाँ बरसी है
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई
मछली पानी को तरसी है,
गीत दर्द का पहला बेटा
दुख है उसका खेल खिलौना
कविता तब मीरा होगी
जब हँसकर ज़हर पिया जाएगा।
आँसू जब सम्मानित होंगे।

अपनी बानी प्रेम की बानी
3


अपनी बानी प्रेम की बानी
घर समझे न गली समझे
या इसे नन्द-लला समझे जी,
या इसे बृज की लली समझे !

हिन्दी नहीं यह, उर्दू नहीं यह।
है यह पिया की क़सम,
इसकी सियाही आँखों का पानी,
दर्द की इसकी क़लम,
लागे-किसी को मिसरी-सी मीठी
कोई नमक की डली समझे !
अपनी बानी प्रेम की बानी......



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