लोगों की राय

बाल एवं युवा साहित्य >> अरेबियन नाइट्स की कहानियां

अरेबियन नाइट्स की कहानियां

अनिल कुमार

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3956
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

414 पाठक हैं

रहस्य,रोमांच,तिलिस्म,जादू भरे किस्सों का अनूठा संकलन...

Rajani

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


'अरेबियन नाइट्स' की कथाएं मूलतः फारसी भाषा में 'आलिफ लैला' शीर्षक से रची गयी थी। यह संसार की महानतम् रचनाओं में से एक है, विशेषकर बाल-साहित्य के क्षेत्र में। अधिकतर रचनाएं प्राचीन भारत, ईरान तथा अरब देशओं की पौराणिक कथाओं का संग्रह है। कहानियाँ अति कल्पनाशील, तिलस्मी तथा जादुई घटनाओं से भरी हुई हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में 'अरेबियन नाइट्स की उन्हीं चुनिंदा कहानियों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है जिन्हें आज भी पाठक बड़ी रुचि से पढ़ते हैं। वे हैं - सिन्ध बाद की सात समुद्री यात्राएं, आलादीन और जादुई चिराग, अली बाबा और चालीस चोर, बोलने वाली चिड़ियाँ, ख़जूर की गुठला, मुरगे की सीख, परी का कोप, सुराही का जिन्न आदि।
सभी कहानियाँ सरल तथा सुरुचिपूर्ण भाषआ में लिखी गयी है। पाठक प्रौढ़ हो या बालक, प्रस्तुत कथाएं मनोरंजन के साथ-साथ उनमें नैतिक तथा सामाजिक मूल्यों की भावनाएं भी उत्पन्न करती हैं।

(1)

अलादीन और जादुई चिराग

बगदाद में एक प्रांत में मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह बहुत गरीब था। उसका एक बेटा था जिसका नाम अलादीन था। अलादीन बहुत लापरवाह और आलसी था। इसलिए मुस्तफा दरजी को हमेशा अपने बेटे की चिन्ता लगी रहती थी। इसी चिन्ता में घुलते-घुलते एक दिन मुस्तफा के प्राण पखेरू उड़ गए। पिता के मरने के बाद अलादीन की मां को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। वह लोगों के घरों में कामकाज करके किसी तरह अपना और अलादीन का पेट पालती। वह अकसर अलादीन को समझाती, मगर अलादीन पहले की तरह ही लापरवाह था। न उसे पिता के मरने का कोई गम दिखाई देता था, न मां कि चिंता थी। कामकाज भी वह कुछ नहीं करता था। उसे तो बस यार दोस्तों के साथ खेलना ही भाता था।
एक दिन अलादीन अपने दोस्तों के साथ मैदान में खेल रहा था। तभी एक अपरिचित व्यक्ति उधर आ निकला। देखने पर वह काफी सम्पन्न दिखाई देता था। उसने अलादीन को अपने पास बुलाकर कहा, ‘‘बेटे अलादीन, मैं तुम्हारा चाचा हूं। मैं अपने भाई की मौत की खबर सुनकर यहां आया हूं। वाह, तेरी शक्ल-सूरत तो हू-ब-हू मेरे भाई से मिलती-जुलती है ! इसीलिए तो मैंने तुझे देखते ही पहचान लिया।’’

अलादीन न तो अपने किसी चाचा को जानता-पहचानता था और न ही आज तक उसने अपनी मां से किसी ऐसे शख्स का जिक्र ही सुना था। फिर भी वह उसे अपने घर ले गया और अपनी मां को सारी बात बताई। मां पहले तो चौंकी, मगर फिर दिमाग पर जोर देकर सोचने लगी और अपने पति की बातें याद करते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी के एक भाई थे तो सही ! पर वे बहुत पहले ही गुजर चुके हैं।’’
‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं भाभी जान !’’ अजनबी ने कहा, ‘‘मैं वही हूं। मैं मरा नहीं था जिन्दा हूं। चिन्ता मत करो। भाई न रहा तो क्या हुआ अब तुम लोगों की सार-संभाल की जिम्मेदारी मेरी रही।’’
अजनबी की ऐसी बातें सुनकर अलादीन की मां को भरोसा हो गया कि वह सचमुच अलादीन का चाचा ही है। मन-ही-मन वह बहुत खुश हुई। उसने खाना बनाया। तीनों ने साथ बैठ कर भोजन किया।
बाद में अजनबी अलादीन को अपने साथ बाजार घुमाने ले गया। उसने अलादीन के लिए सुन्दर-सुन्दर कपड़े, मिठाइयां और कुछ खिलौने खरीदे। अब अलादीन के मन की रही-सही हिचक भी जाती रही। उसे विश्वास हो गया कि वह उसका चाचा ही है।

एक दिन अजनबी चाचा अलादीन को अपने साथ सैर करने के लिए घर से लेकर निकला। इस पर अलादीन की मां को भी कोई आपत्ति न हुई। वह तो स्वयं चाहती थी कि अलादीन का चाचा उसे समझा-बुझाकर रास्ते पर लाए। टहलते-टहलते वे दोनों एक जंगल में जा पहुंचे। चाचा ने अलादीन से कहा, ‘‘अलादीन बेटे, मैं तुम्हें जादू का एक खेल दिखाना चाहता हूं। जाओ, कुछ सूखी हुई लकड़ियों ले आओ।’’
जादू का नाम सुनकर अलादीन बहुत खुश हुआ और फौरन ही लकड़ियां लेने के लिए दौड़ पड़ा। कुछ ही देर में अलादीन जंगल से सूखी-सूखी लकड़ियां ले आया। चाचा ने लकड़ियां जमा कर उनमें आग लगा दी। उसके बाद उसने अलादीन से कहा, ‘‘बेटा, अब मैं जादू का खेल दिखाने जा रहा हूँ। मैं जो-जो कहूं, तुम वैसे-वैसे करते जाओ। डरना मत। मैं जो भी कर रहा हूं, तुम्हारे और तुम्हारी मां के भले के लिए ही कर रहा हूं। अगर तुमने मेरे कहे अनुसार किया तो तुम्हारी मां और तुम्हें ढेर सारा धन हासिल होगा।’ अजनबी ने जेब से एक पुड़िया निकाली और उसमें से चुटकी भर राख लेकर एक मंत्र बड़बड़ाते हुए उसे आग में झोंक दिया। देखते-ही-देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। धरती कांपने लगी। फिर अचानक एक तेज आवाज के साथ धरती फट गई। अलादीन को धरती के भीतर एक गुफा दिखाई पड़ी। गुफा में जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं।

अब अजनबी जादूगर ने अलादीन से कहा, ‘‘बेटे, अब तू इन सीढ़ियों से होकर सीधे गुफा में चला जा। वहां पहुंचने पर तुम्हें तीन कमरे दिखाई देंगे। पहले कमरे में चांदी के, दूसरे कमरे में सोने के और तीसरे कमरे में हीरे-मोती के गहने रखे हुए हैं। इनमें से तुम जितना धन चाहो, उतना ला सकते हो। तीसरे कमरे के कोने में तुम्हें पीतल का जलता हुआ एक चिराग दिखाई देगा। इस चिराग को तुम बुझा देना और उसका तेल नीचे गिरा देना। यह चिराग मेरे लिए लेते आना।’’
लेकिन अलादीन तो वह नजारा देखते ही बुरी तरह डर गया था। उसकी रुह तो उस मंजर को देखते ही कांप रही थी। इसीलिए वह गुफा में जाने से हिचकिचा रहा था। जादूगर से भी यह बात छिपी न रही। उसने अलादीन को एक अंगूठी देकर उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटे, तुम डर रहे हो, मगर डरने वाली कोई बात नहीं है। बेशुमार धन पाने के लिए थोड़ा खतरा तो उठाना ही पड़ता है, फिर भी तुम यह अंगूठी लो। इससे तुम्हारा डर एकदम जाता रहेगा। यह अंगूठी तुम्हारी रक्षा करेगी। संकट के समय इसे अपने गाल पर रगड़ लेना। संकट छू-मंतर हो जाएगा।’’

अलादीन ने अंगूठी लेकर पहन ली। अंगूठी पहनते ही अलादीन में गजब की हिम्मत आ गई। वह धड़ाधड़ सीढ़ियां उतरता हुए गुफा में एकदम नीचे पहुंच गया। वहाँ वैसे ही तीन कमरे थे, जैसे उसके अजनबी चाचा ने बताए थे। वहाँ की अपार संपत्ति देखकर उसकी आंखें चौंधिया गईं। उसने जल्दी-जल्दी सोने की मोहरें और हीरे-मोती के गहने एक बड़े-से थैले में भर लिए। इसके बाद उसने गुफा के तीसरे कमरे में जाकर देखा तो वहां सचमुच पीतल का एक सुंदर चिराग जल रहा था।
अलादीन सीधे चिराग के पास पहुंचा। उसने फूंक मारकर चिराग बुझा दिया, बत्ती निकाल कर दूर फेंक दी और तेल जमीन पर गिरा दिया। फिर चिराग और धन-दौलत से भरा थैला लेकर वह कमरे से बाहर आकर सीढ़ियां चढ़ने लगा। चढ़ाई लंबी और एकदम खड़ी थी, उतरते समय तो उसे खास महसूस नहीं हुआ मगर अब सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते वह हांफने लगा। गुफा से बाहर आने में अब केवल कुछ ही सीढ़ियां चढ़नी बाकी रह गई थीं। लेकिन अलादीन के पांव अब बिलकुल जवाब दे चुके थे। वह बुरी तरह थक गया था। उसने चेहरा उठाकर देखा, गुफा के मुंह पर बैठा अजनबी अब उसे साफ दिखाई दे रहा था। हांफते-हांफते अलादीन ने उससे कहा-‘‘चाचा, मुझसे अब और सीढ़ियां नहीं चढ़ी जातीं। आप मुझे यहां से किसी तरह बाहर आने में मदद कीजिए।’’

अलादीन के हाथ में चिराग देखकर अजनबी की आंखों में चमक आ गई। उसने कहा, ‘‘ला बेटे ला, पहले यह चिराग मुझे दे। फिर मैं तुझे बाहर निकालूंगा।’’
यह सुनते ही अलादीन के दिमाग में खटका सा हुआ। उसने सोचा कि चाचा को मेरी नहीं चिराग की ज्यादा फिक्र है। अतः उसने अजनबी पर विश्वास करना ठीक नहीं समझा। इसलीए उसने कहा, ‘‘नहीं चाचा, मैं बाहर आने पर ही यह चिराग आपको दूंगा। पहले आप ऊपर आने में मेरी मदद करो।’
‘‘अरे बेटा, पहले चिराग तो दे। बाहर तो मैं तुझे निकाल ही लूंगा।’’
‘‘नहीं, पहले आप मुझे बाहर निकालिए।’’
‘‘अलादीन जिद मत करो।’’ अजनबी ने उसे धमकाया। मगर अलादीन किसी भी सूरत में चिराग देने को राजी न हुआ। जब अजनबी ने उसे इस तरह हठधर्मी करते देखा तो गुस्से के मारे उसका चेहरा तमतमा उठा। वास्तव में वह अलादीन का चाचा नहीं था, बल्कि एक मक्कार जादूगर था।
उसका मकसद सिर्फ जादुई चिराग हथियाना था। लेकिन समस्या यह थी कि वह गुफा में पैर नहीं रख सकता था। इसलिए उसने अलादीन का चाचा होने का ढोंग किया था। ताकि भोले-भाले अलादीन के माध्यम से वह किसी तरह जादुई चिराग को हथिया सके।

जादूगर ने गुस्से में आकर एक मंत्र पढ़ा और चुटकी भर राख पर फूंक मार कर उसे आग में झोंक दिया।
देखते-ही-देखते चारों ओर धुएं के काले-काले बादल छा गए और गुफा का द्वार खटाक से बंद हो गया। जादूगर ने अपना सामान उठाया और पैर पटकते हुए वहां से चलता बना।
अलादीन गुफा के भीतर बन्द हो गया। कौन निकालेगा मुझे यहां से बाहर ? किसी को क्या मालूम कि मैं यहां बंद हूं। अब मेरी मां का क्या होगा ? यह खयाल मन में आते ही वह और जोर-जोर से रोने लगा। उसकी आंखों से गंगा-जमुना बहने लगीं तो हाथ उठाकर उसने अपने गाल पोंछे। उसके हाथ की अंगूठी ने उसके गाल से रगड़ खाई, तो एकाएक चमत्कार हुआ। अलादीन के सामने एक जिन आकर खड़ा हो गया। जिन ने अलादीन से कहा, ‘‘मैं इस अंगूठी का जिन हूं। मेरे आका, मैं आपका गुलाम हूं। हुकुम कीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ ?’’
यह देखकर अलादीन बुरी तरह घबरा गया और घबराहट में ही उसके मुँह से निकला-‘‘मुझे मेरी माँ के पास ले चलो।’’
जिन ने अलादीन को तुरंत उसकी मां के पास पहुंचा दिया। बेटे को सामने खड़ा देख मां की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने अलादीन को गले से लगा लिया। अलादीन अपनी मां से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगा। फिर जब उसका रोना कुछ कम हुआ उसने अपनी मां को सारी बात बताई और अपने साथ लाई सारी सम्पत्ति भी मां को सौंप दी।

खजाना देखकर अलादीन की मां की आंखें चौंधियां गईं। वह बहुत खुश हुई। वह अलादीन से बोली, ‘‘बेटे, तुम बहुत थके हुए हो। अब तुम आराम करो। मैं तुम्हारे लिए खाना बनाकर लाती हूं।’’
अलादीन हंस पड़ा, ‘‘अरे मां, अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब हमारा सारा काम मेरा सेवक करेगा।’’
इतना कहकर अलादीन अपनी अंगूठी को गाल से रगड़ने लगा। अंगूठी का जिन हाजिर हुआ-‘‘क्या हुक्म है, मेरे आका ?’’
‘‘हमारे लिए स्वादिष्ट भोजन हाजिर करो।’’ अलादीन ने आदेश दिया।
पलक छपकते ही जिन ने सोने की दो थालियों में स्वादिष्ट भोजन हाजिर कर दिया।
अलादीन और उसकी मां ने छककर भोजन किया।
अब अलादीन अपनी मां के साथ सुख से दिन गुजारने लगा। अब उन्हें किसी किस्म की कोई चिन्ता नहीं थी। उनकी हर आवश्यकता जिन पलक झपकते ही पूरी कर देता था।

इसी बीच एक दिन सुलतान की बेटी पालकी में सवार होकर सैर करने जा रही थी। अचानक अलादीन की उस पर नजर पड़ी। अलादीन उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उसने मन-ही-मन शहजादी से शादी करने की ठान ली।
उधर, अलादीन की मां भी उसकी शादी का सपना देखने लगी थी। उसने एक दिन उससे कहा, ‘‘बेटा ! अब मेरा इस घर में अकेले मन नहीं लगता, इसलिए तू भी शादी कर ले। देख, तेरी उम्र के कई लड़कों की शादी हो चुकी है।’’
तब उसने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, मैं सुलतान की बेटी से शादी करना चाहता हूं। तू सुलतान के पास जाकर शहजादी के साथ मेरी शादी की बात चला।’’ यह सुनते ही अलादीन की मां कांप उठी और फटी-फटी आंखों से उसका चेहरा देखने लगी। साथ ही उसके मन में खयाल उठा-‘ऐसा कैसे हो सकता है ? कहां सुलतान की बेटी और कहां अदना अलादीन !’
उसने अलादीन को समझाया-‘‘बेटा ! कुछ होश की दवा कर। कहां सुलतान और कहां हम ?’’
‘‘तुम चाहे कुछ भी कहो मां, मगर मैं शादी करूंगा तो शहजादी से वरना नहीं करूंगा।’’
अलादीन जिद पर उतर आया।
अंत में मां को ही हार माननी पड़ी। उसने सोने के थाल में कीमती उपहार लिए और सुलतान से मिलने चल दी।
उधर, सुलतान का वजीर भी शहजादी से अपने बेटे की शादी का सपना देख रहा था।
उसने अलादीन की मां का इरादा भांप लिया। उसने महल के दरबानों से कहकर अलादीन की मां को सुलतान से मिलने से रोक दिया। हार कर मां उपहार का थाल लिए वापस लौट आई।

अलादीन इस बात से बहुत दुखी हुआ। आखिरकार उसने अंगूठी के जिन की मदद ली। जिन ने पलक झपकते अलादीन की मां को थाल सहित सुलतान के पास पहुंचा दिया।
उसकी मां ने सुलतान से सारी बात कह सुनाई। वैसे तो सुलतान अपनी बेटी की शादी किसी शहजादे से ही करना चाहता था। फिर भी, उसने अलादीन की मां का बहुमूल्य तोहफा स्वीकार कर लिया। सुलतान ने अलादीन की मां से कहा, ‘‘मैं अपनी बेटी की शादी तुम्हारे बेटे से करने के लिए एक शर्त पर तैयार हूं। यदि तुम्हारा बेटा सात दिन के अंदर एक शानदार महल बनवा दे, तो मैं शहजादी की शादी उसके साथ कर सकता हूं।’’
‘‘मुझे आपकी शर्त मंजूर है, जहांपनाह।’’ अलादीन की मां ने उठते हुए कहा-‘‘अब मुझे इजाजत दें।’’
सुलतान ने उन्हें विदा कर दिया।
घर पहुंचकर उसने अलादीन को सुलतान की शर्त बताई।

मां की बात सुनकर अलादीन बहुत खुश हुआ। उसने अंगूठी अपने गाल से लगा कर रगड़ी। अंगूठी का जिन तुरंत हाजिर हुआ। अलादीन ने उसे सुलतान के महल के सामने ही एक आलीशान महल बनाने का आदेश दिया।
जिन ने कुछ ही क्षणों में एक भव्य महल बनाकर तैयार कर दिया। यह राजमहल सुलतान के महल से भी सुंदर और विशाल था। उस महल के चारों ओर एक हरा-भरा और खूबसूरत बगीचा भी था।
सुलतान व शहजादी यह शानदार राजमहल देखकर चकित रह गए। अब सुलतान को यकीन हो गया कि उसकी बेटी अलादीन के साथ सुखपूर्वक रह सकेगी। उसने काजी को बुलवाया और खूब धूमधाम से अलादीन के साथ शहजादी की शादी करवा दी।
अलादीन अब नए महल में शहजादी और अपनी मां के साथ आनंदपूर्वक रहने लगा। उसने अपने घर का जरूरी सामान भी महल में मंगलवा लिया। उस सामान में गुफा से लाया हुआ पीतल का वह चिराग भी था। अलादीन ने पुराने सामान के साथ उस चिराग को महल के एक कमरे में रखवा दिया। उसके लिए तो उसकी उंगली में पड़ी अंगूठी ही सबसे कीमती थी जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखता था।

अलादीन की गणना अब शहर के सबसे धनवान लोगों में होती थी। उसकी संपत्ति की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना था कि अलादीन के पास सुलतान से अधिक सम्पत्ति है। ऐसी बातें हवा की तरह उड़ती हैं। अलादीन की संपन्नता की भनक उस निर्दयी जादूगर के कानों में भी पड़ी। अब तक वह यही समझ रहा था कि अलादीन गुफा में पड़ा-पड़ा कब का मर-खप चुका होगा। पर अब उसे विश्वास हो गया कि अलादीन जिन्दा है।
एक दिन वह फेरी वाले के वेश में अलादीन के शहर में आ पहुंचा। संयोग से उस दिन अलादीन शिकार पर गया हुआ था। महल के पास से गुजरते हुए उसने आवाज लगाई, ‘‘ले लो भाई, चिराग ले लो...पुराने चिराग के बदले, नया चिराग ले लो...ले लो, नया चिराग ले लो...’’
फेरी वाले की आवाज अलादीन के मां के भी कानों में पड़ी। एकाएक उसे कबाड़खाने में पड़े पीतल के उस पुराने चिराग का खयाल आया। जिसे पाने के लिए दुष्ट जादूगर ने उसे मौत की गुफा में बंद कर दिया था। वह उस चिराग को मनहूस समझती थी जिसके कारण उसके बेटे की जान खतरे में पड़ी थी। उसने सोचा कि उस मनहूस चिराग से निजात पाने का यह अच्छा मौका है। अलादीन की मां और शहजादी दोनों को यह मालूम नहीं था कि यह चिराग जादुई है। इसलिए उन्होंने उस फेरी वाले को वह चिराग देकर बदले में नया चिराग ले लिया।

चिराग हाथ में आते ही जादूगर की आंखें इस प्रकार चमकने लगीं जैसे उसे संसार भर की दौलत मिल गई हो।
फिर क्या था ! उसने उसी समय अपना बहुरूप उतार फेंका और चिराग को जमीन पर घिसा। तुरंत एक जिन उससे सामने हाजिर हो गया। जादूगर ने जिन को आदेश दिया, ‘‘इस महल को इसी दम अफ्रीका ले चलो।’’
चिराग के जिन्न के लिए तो यह मामूली काम था। उसने पलक झपकते ही महल को अपने दोनों हाथों पर उठा लिया। फिर एक जोरदार छलांग लगाई और देखते-ही-देखते वह उस महल को लेकर अफ्रीका पहुंच गया।
जब अलादीन शिकार से वापस आया, तो अपने महल को गायब देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह बहुत दुखी हुआ, पर करता क्या ? उधर सुलतान को जब इस घटना के बारे में पता चला, तो वह आग-बबूला हो उठा। उसने अलादीन को बुलाकर धमकाया, ‘‘अलादीन, तुमने मुझे धोखा दिया है। तुम्हारी पोल अब खुल चुकी है। अगर तुम सात दिन के भीतर शहजादी सहित महल को वापस नहीं ला सके, तो तुम्हें फांसी दे दी जाएगी।’’
अलादीन को यह समझते देर नहीं लगी कि यह काम उसी जादूगर का है, जिसने उसे गुफा में बंद कर दिया था। एकाएक उसे अंगूठी के जिन की याद आई। पिछले काफी दिन से उसने उसे तलब नहीं किया था। उसने फौरन अंगूठी को गाल पर रगड़ा। देखते-ही-देखते अंगूठी का जिन हाजिर हो गया। अलादीन ने उसे आदेश दिया, ‘‘मेरा महल जहां भी हो, उसे अभी खोज कर वापस ले आओ।’’

जिन ने जवाब दिया, ‘‘क्षमा करें मेरे आका ! मैं यह काम नहीं कर सकता। यह शरारत जादुई चिराग के जिन की है। वह मुझसे ज्यादा ताकतवर है, मेरे आका मैं उसका सामना नहीं कर सकता।’’
‘‘तो फिर तुम मुझे मेरी मां और शहजादी के पास ले चलो।’’ अलादीन ने जिन से कहा।
‘‘हां, यह काम मैं कर सकता हूं।’’ जिन ने कहा।
जिन ने अलादीन को क्षण भर में अफ्रीका स्थित उसके महल में पहुंचा दिया।
अलादीन ने जादूगर की नजर बचाकर अपनी मां और शहजादी से भेंट की। वे एक दूसरे को देखकर बहुत खुश हुए। फिर अलादीन और शहजादी ने मिलकर जादूगर को सबक सिखाने की एक योजना बनाई।
शाम के समय जब जादूगर राजमहल में आया तो अलादीन परदे के पीछे छिप गया। शहजादी ने बहुत उत्साह से जादूगर का स्वागत किया। उसने उससे मीठी-मीठी बातें की। फिर उसने जादूगर को अपने हाथ से स्वादिष्ट पेय बनाकर दिया। जादूगर अब बहुत खुश था। शहजादी के हाथों का बना शरबत उसे बहुत पसंद आया। वह गटागट दो-तीन गिलास शरबत पी गया। उसे इस बात की भनक तक न लगी कि शहजादी ने शरबत में जहर मिला रखा है। यही अलादीन और शहजादी की योजना थी।

कुछ ही देर बाद जादूगर को चक्कर आने लगे। उसकी आंखें उलटने लगीं। वह बेचैन हो उठा और गश खाकर धरती पर गिर पड़ा। देखतेंही-देखते उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
अलादीन ने जादूगर की जेब से जादुई चिराग निकाला और बिना एक पल गंवाए उसे हथेली पर रगड़ा।
तुरंत चिराग का जिन्न हाजिर हुआ और सिर झुकाकर बोला-‘‘क्या हुक्म है मेरे आका ?’’
‘‘इस महल को फौरन इसके मूल स्थान पर लेकर चलो।’’ अलादीन ने आदेश दिया।
‘‘जो हुक्म।’’
और फिर, पलक झपकने भर की देरी में वह महल बगदाद स्थित अपने मूल स्थान पर खड़ा था। बगदाद का सुलतान उस समय झरोखे में ही खड़ा था। उसने महल को अपने स्थान पर आते देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
उसने अल्लाह का शुक्रिया अदा किया कि उसका दामाद और बेटी सकुशल वापस लौट आए। फिर वह स्वयं जाकर उन लोगों से मिला।
अलादीन और शहजादी भी अपनी खोई हुई खुशियां पाकर फूल न समा रहे थे।
इस प्रकार अलादीन के दिन एक बार फिर सुखपूर्वक व्यतीत होने लगे।
इसके कुछ वर्षों बाद सुलतान ने अलादीन की नए सुलतान के रुप में ताजपोशी कर दी। अलादीन अपने जिनों की मदद से राज्य व प्रजा की भलाई के कार्य करने लगा। देखते-ही-देखते उसकी प्रजा में खुशहाली छा गई। इस प्रकार अलादीन ने कई वर्ष तक बगदाद पर शासन किया।

(2)

मुर्गे की सीख

एक बड़ा, व्यापारी था, गांव में जिसके पास बहुत से मकान, पालतू पशु और कारखाने थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों, मकानों और पशुशालाओं आदि का मुआयना करने के लिए गांव में गया।
उसने अपनी एक पशुशाला भी देखी जहां एक गधा और एक बैल बंधे हुए थे। उसने देखा कि व्यापारी पशु-पक्षियों की बोली समझता था, इसलिए वह चुपचाप खड़ा होकर दोनों की बातें सुनने लगा।
बैल गधे से कह रहा था-‘‘तू बड़ा ही भाग्यशाली है जो मालिक तेरा इतना ख्याल रखता है खाने को दोनों समय जौ और पीने के लिए साफ पानी मिलता है। इतने आदर-सत्कार के बदले तुझसे केवल यह काम लिया जाता है कि कभी मालिक तेरी पीठ पर बैठकर कुछ दूर सफर कर लेता है। और तू जितना भाग्यवान है, मैं उतना ही अभागा हूं। मैं सवेरा होते ही पीठ पर हल लादकर जाता हूं। वहां दिन भर हलवाहे मुझे हल में जोतकर चलाते हैं।’’

गधे ने यह सुनकर कहा-‘‘ऐ भाई ! तेरी बातों से लगता है कि सचमुच तुझे बड़ा कष्ट है। किन्तु सच तो यह है कि तू यदि मेहनत करते-करते मर भी जाए, तो भी ये लोग तेरी दशा पर तरस नहीं खाएंगे। अतः तू एक काम कर फिर तुझसे इतना काम नहीं लिया जाएगा और सुख से रहेगा।’’
‘‘ऐसा क्या करूं मित्र ?’’ उत्सुकता से बैल ने पूछा।
बैल के पूछने पर गधे ने कहा-‘‘तू झूठ-मूठ का बीमार पड़ जा। एक शाम को दाना-भूसा मत खा और अपने स्थान पर इस प्रकार लेट जा कि अब मरा कि तब मरा।’’
दूसरे दिन सुबह जब हलवाहा बैल को लेने के लिए पशुशाला में पहुंचा तो उसने देखा कि रात की लगाई सानी ज्यों-की-त्यों रखी है और बैल धरती पर पड़ा हांफ रहा है। उसकी आंखें बंद है और उसका पेट फूला हुआ है। हलवाहे ने समझा कि बैल बीमार हो गया है। यही सोचकर उसने उसे हल में न जोता। उसने व्यापारी को बैल की बीमारी की सूचना दी। व्यापारी यह सुकर जान गया कि बैल ने गधे की शिक्षा पर अमल करके स्वयं को रोगी दिखाया है।
उसने हलवाहे से कहा, ‘‘आज गधे को हल में जोत लो।’’
तब हलवाहे ने गधे को हल में जोतकर उससे सारा दिन काम लिया।
इधर, बैल दिन, भर बड़े आराम से रहा। वह नांद की सारी सानी खा गया और गधे को दुआएं देता रहा। जब गधा गिरता-पड़ता खेत से आया तो बैल ने कहा, ‘‘भाई तुम्हारे उपदेश के कारण मुझे बड़ा सुख मिला।’’
गधा थकान के कारण उत्तर न दे सका और आकर अपने स्थान पर गिर पड़ा। वह मन-ही-मन अपने को धिक्कारने लगा, ‘अभागे, तूने बैल को आराम पहुंचाने के लिए अपनी सुख-सुविधा में व्यधान डाल दिया।’

दूसरे दिन व्यापारी रात्रि भोजन के पश्चात अपनी पत्नी के साथ गधे की प्रतिक्रिया जानने के लिए पशुशाला में जा बैठा और पशुओं की बातें सुनने लगा। गधे ने बैल से पूछा-‘‘सुबह जब हलवाहा तुम्हारे लिए दाना-घास लाएगा, तो तुम क्या करोगे ?’’
‘‘जैसा तुमने कहा वैसा ही करूंगा।’’ बैल ने उत्तर दिया।
इस पर गधे ने कहा-‘‘नहीं, ऐसा मत करना, वरना जान से जाओगे। शाम को लौटते समय हमारा स्वामी तुम्हारे हलवाहे से कह रहा था कि कल किसी कसाई और चर्मकार को बुला लाना और बैल जो बीमार हो गया है, उसका मांस और खाल बेच डालना। मैंने जो सुना था वह मित्रता के नाते बता दिया। अब तेरी इसी में भलाई है कि सुबह तेरे आगे चारा डाला जाए तो तू उसे जल्दी से उठकर खा लेना और स्वस्थ बन जाना, फिर हमारा स्वामी तुझे स्वस्थ देखकर तुझे मारने का इरादा छोड़ देगा।’’
यह बात सुनकर बैल भयभीत हो गया-‘‘भाई, ईश्वर तुझे सदा सुखी रखे। तेरे कारण मेरे प्राण बच गए। अब मैं वही करूंगा जैसा तूने कहा है।’’
गधे और बैल की बातें सुनकर व्यापारी ठहाका लगाकर हंस पड़ा। उसकी स्त्री को इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ। वह पूछने लगी कि तुम अकारण ही क्यों हंस पड़े ?

व्यापारी ने कहा-‘‘यह बात बताने की नहीं है, मैं सिर्फ यह कह सकता हूं कि मैं बैल और गधे की बातें सुनकर हंसा हूं।’’
स्त्री ने कहा, ‘‘मुझे भी वह विद्या सिखाओ, जिससे तुम पशुओं की बोली समझ लेते हो।’’
इस पर व्यापारी ने इन्कार कर दिया।
स्त्री बोली-‘‘आखिर तुम मुझे यह क्यों नहीं सिखाते ?’’
व्यापारी बोला-‘‘अगर मैंने तुम्हें यह विद्या सिखाई तो मैं जीवित नहीं रहूंगा।’’
स्त्री ने कहा-‘‘तुम झूठ बोले रहे हो। क्या वह आदमी, जिसने तुम्हें यह विद्या सिखाई थी, सिखाने के बाद मर गया था ? तुम कैसे मर जाओगे ? कुछ भी हो, मैं तुमसे यह विद्या सीखकर ही रहूंगी। अगर तुम मुझे नहीं सिखाओगे, तो मैं प्राण त्याग दूंगी।’’
यह कहकर वह व्यापारी की स्त्री घर में आ गई और अपनी कोठरी का दरवाजा बंद करके रात भर चिल्लाती रही और गाली-गलौज करती रही।
व्यापारी रात को तो किसी तरह सो गया, लेकिन दूसरे दिन भी वही हाल देखा तो उसने स्त्री को समझाया, ‘‘तू बेकार जिद्द करती है। यह विद्या तेरे सीखने योग्य नहीं है।’’

स्त्री ने कहा, ‘‘जब तक तुम मुझे यह भेद नहीं बताओगे, मैं खाना-पीना छोड़े रहूंगी और इसी प्रकार चिल्लाती रहूंगी।’’
इस पर व्यापारी तनिक क्रोधित हो उठा और बोला-‘‘अरी मूर्ख ! यदि मैं तेरी बात मान लूंगा तो तू विधवा हो जाएगी। मैं मर जाऊंगा।’’
स्त्री ने कहा-‘‘तुम जियो या मरो मेरी बला से, लेकिन मैं तुमसे यह सीखकर ही रहूंगी कि पशुओं की बोली कैसे समझी जाती है।’’
व्यापारी ने जब देखा कि वह महामूर्खा अपना हठ छोड़ ही नहीं रही है, तो उसने अपने और ससुराल के रिश्तेदारों को बुलाया ताकि वे उस स्त्री को अनुचित हठ छोड़ने के लिए समझाएं। उन लोगों ने भी उस मूर्ख स्त्री को हर प्रकार समझाया, लेकिन वह अपनी जिद्द से न हटी। उसे इस बात की बिलकुल चिन्ता न थी कि उसका पति मर जाएगा।
छोटे बच्चे मां की दशा देखकर रोने लगे। व्यापारी की समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अपनी स्त्री को कैसे समझाए कि इस विद्या को सीखने का हठ ठीक नहीं है। वह अजीब दुविधा में था ‘अगर मैं बताता हूं, तो मेरी जान जाती है और नहीं बताता तो मेरी स्त्री रो-रोकर मर जाएगी।’

इसी उधेड़बुन में वह अपने घर के बाहर जा बैठा। तभी उसने देखा कि उसका कुत्ता, उसके मुर्गे को मुर्गियों के साथ विहार करते देखकर गुर्राने लगा है।
कुत्ते ने मुर्गे से कहा-‘‘तुझे लज्जा नहीं आती कि आज के जैसे दुखदायी दिन भी तू मौज-मजा कर रहा है।’’
मुर्गे ने कहा-‘‘आज ऐसी क्या बात हो गई कि मैं आनन्द न करूं ?’’
कुत्ता बोला-‘‘आज हमारे स्वामी अति चिन्तातुर है। उसकी स्त्री की मति मारी गई है और वह उससे ऐसे भेद को पूछ रही है जिसे बताने से हमारा मालिक तुरंत ही मर जाएगा। लेकिन अब यदि वह उसे वह भेद नहीं बताएगा तो उसकी स्त्री रो-रोकर मर जाएगी। इसी से सारे लोग दुखी हैं और तेरे अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो मौज-मजे की बात भी सोचे।’’
मुर्गा बोला-‘‘हमारा स्वामी मूर्ख है, जो एक ऐसी स्त्री का पति है जो उसके अधीन नहीं है। मेरी तो पचास मुर्गियां हैं और सब मेरे अधीन हैं। अगर स्वामी मेरे बताए अनुसार काम करे, तो उसका दुख अभी दूर हो जाएगा।’’
कुत्ते ने पूछा-‘‘वह क्या करे कि उस मूर्ख स्त्री की समझ वापस आ जाए ?’’

मुर्गे ने कहा-‘‘हमारे स्वामी को चाहिए कि एक मजबूत डंडा लेकर उस कोठरी में जाए जहां उसकी स्त्री चीख और चिल्ला रही है। दरवाजा अंदर से बंद कर ले और स्त्री की जमकर पिटाई करे। कुछ देर बाद उसकी स्त्री अपना हठ छोड़ देगी।’’
मुर्गे की बात सुनकर व्यापारी में जैसे नई चेतना आ गई। वह उठा और एक मोटा डंडा लेकर उस कोठरी में जा पहुंचा जिसमें बैठी उसकी स्त्री चीख-चिल्ला रही थी। दरवाजा अंदर से बंद करके व्यापारी ने स्त्री पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। कुछ देर चीख-पुकार करने पर भी जब स्त्री ने देखा कि डंडे पड़ते ही जा रहे हैं, तो वह घबरा उठी। वह पति के पैरों पर गिरकर कहने लगी-‘‘अब हाथ रोक लो, अब मैं कभी ऐसी जिद्द नहीं करूंगी।’’
इस पर व्यापारी ने हाथ रोक लिया और मुर्गे को मन-ही-मन धन्यवाद दिया जिसके सुझाव से उसकी पत्नी सीधे रास्ते पर आ गई थी।

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book