महान व्यक्तित्व >> वीर शिवाजी वीर शिवाजीकपिल
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हिन्दू स्वराज्य के संस्थापक वीर शिवाजी का जीवन परिचय....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
छत्रपति शिवाजी
हिन्दू स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी का जन्म 16 अप्रैल, 1627 को
शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का
नाम जीजाबाई था।
भारत में उस समय मुस्लिम शहंशाहों के नाम की तूती बोलती थी। हिन्दू योद्धा उनके लिए अपने ही भाइयों का खून बहा रहे थे और मुसलिम शासकों को खुश करने में लगे हुए थे। खून हिन्दुओं का बहता था, राज मुसलमान करते थे।
शिवाजी के जन्म के समय उनके पिता शाहजी भोंसले बागी मुगल सरदार दरिया खाँ रोहिल्ला से युद्ध करने के लिए दक्षिण में गए हुए थे, इसलिए वे पुत्र के जन्म की खुशियों में शामिल होने के लिए तुरंत शिवनेरी नहीं आ सके।
बाद में रोहिल्ला का वध करने के बाद वे गाजे-बाजे के साथ अपने पुत्र को देखने शिवनेरी पहुँचे। अपने सुंदर और तेजस्वी पुत्र को देखकर उन्हें बेहद खुशी हुई, लेकिन वे ज्यादा दिनों तक पुत्र के पास नहीं रह सके। मुगल बादशाह शाहजहाँ के बुलाने पर वे दक्षिण की ओर चले गए।
शिवाजी का बचपन पिता के प्यार से वंचित रह गया। माता जीजाबाई ने अकेले ही अपने बेटे का लालन-पालन किया। उनके साथ उनके श्वसुर भी रहते थे। वे अपने पोते को बहुत प्यार करते थे। वे शिवाजी को भगवान् शिव का अवतार मानते थे। उन तीनों की देखभाल के लिए शिवनेरी महाराज ने विशेष सुविधाएँ प्रदान कर रखी थीं;
किन्तु पति से अलग रहने की पीड़ा जीजा बाई को सताती रहती थी। वे अपना पूरा समय अपने बेटे के पालन-पोषण में लगाती थीं। अपने बेटे को अच्छे संस्कारों में ढालते हुए वे सुनहरे भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती थीं।
भारत में उस समय मुस्लिम शहंशाहों के नाम की तूती बोलती थी। हिन्दू योद्धा उनके लिए अपने ही भाइयों का खून बहा रहे थे और मुसलिम शासकों को खुश करने में लगे हुए थे। खून हिन्दुओं का बहता था, राज मुसलमान करते थे।
शिवाजी के जन्म के समय उनके पिता शाहजी भोंसले बागी मुगल सरदार दरिया खाँ रोहिल्ला से युद्ध करने के लिए दक्षिण में गए हुए थे, इसलिए वे पुत्र के जन्म की खुशियों में शामिल होने के लिए तुरंत शिवनेरी नहीं आ सके।
बाद में रोहिल्ला का वध करने के बाद वे गाजे-बाजे के साथ अपने पुत्र को देखने शिवनेरी पहुँचे। अपने सुंदर और तेजस्वी पुत्र को देखकर उन्हें बेहद खुशी हुई, लेकिन वे ज्यादा दिनों तक पुत्र के पास नहीं रह सके। मुगल बादशाह शाहजहाँ के बुलाने पर वे दक्षिण की ओर चले गए।
शिवाजी का बचपन पिता के प्यार से वंचित रह गया। माता जीजाबाई ने अकेले ही अपने बेटे का लालन-पालन किया। उनके साथ उनके श्वसुर भी रहते थे। वे अपने पोते को बहुत प्यार करते थे। वे शिवाजी को भगवान् शिव का अवतार मानते थे। उन तीनों की देखभाल के लिए शिवनेरी महाराज ने विशेष सुविधाएँ प्रदान कर रखी थीं;
किन्तु पति से अलग रहने की पीड़ा जीजा बाई को सताती रहती थी। वे अपना पूरा समय अपने बेटे के पालन-पोषण में लगाती थीं। अपने बेटे को अच्छे संस्कारों में ढालते हुए वे सुनहरे भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती थीं।
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