महान व्यक्तित्व >> क्रांतिकारी मंगल पाण्डे क्रांतिकारी मंगल पाण्डेकविता गर्ग
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एक सच्चे देशभक्त और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे के जीवन पर रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रकाश डाला गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
क्रान्तिवीर मंगल पांडे
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके इतिहास के पृष्ठों को अगर पलटा जाए तो
आकाश के नक्षतों के समान अनगिनत नाम सामने आने लगते हैं। ऐसे नाम जिनका
जीवन, जिनका कर्म केवल एक ही उद्देश्य को समर्पित रहा-अपने देश को
पराधीनता के अपमान से मुक्ति दिलाकर उसका स्वर्णिम गौरव वापस दिलाना।
‘मंगल पांडे’ नाम ऐसे ही एक नरसिंह का है, जो मात्र
एक ही
सिंहनाद से इतिहास में अपना नाम अमर कर गये। वे सन् 1857 की क्रान्ति का
बिगुल बजाने वाले वीर सिपाही थे।
मंगल पांडे की जन्मतिथि, वाल्यावस्था और पारिवारिक स्थिति के बारे में ठीक-ठीक विस्तार पूर्वक नहीं पता चल पाया। केवल इतनी जानकारी उपलब्ध है कि वे उत्तर-प्रदेश के मेरठ के बलिया नगवा गांव में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में जनमे थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी संभवतः सामान्य स्तर तक ही हो पाई थी परंतु उनकी व्यावहारिक बुद्धि ब़ड़ी ही कुसाग्र थी। साहस और वीरता की भावनाएँ उनमें कूट-कूट कर भरी थीं।
किसी भी गलत बात या अन्याय को वे सहन नहीं कर पाते थे और उनका कड़ा विरोध करते। उनकी पारिवारिक निर्धनता भी उनकी दंबगता के आड़े नहीं आ पाती थी। धीरे-धीरे जब उनके परिवार पर ऋण का भार बहुत अधिक हो गया। तो उसे चुकाने का दायित्व मंगल के कंधों पर आ पड़ा। वे अपने उग्र स्वभाव को भँली भाँति जानते थे। साथ ही उनकी यह भी इच्छा थी कि उन्हें कोई ऐसा कार्य मिल जाए जिससे कि वह ऋण के भार से मुक्ति मिलने के साथ-साथ उन्हें साहस तथा वीरतापूर्ण कार्य करने का अवसर मिले। अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में तत्काल अंग्रेज सरकार की सेना में नौकरी कर ली।
मंगल पांडे की जन्मतिथि, वाल्यावस्था और पारिवारिक स्थिति के बारे में ठीक-ठीक विस्तार पूर्वक नहीं पता चल पाया। केवल इतनी जानकारी उपलब्ध है कि वे उत्तर-प्रदेश के मेरठ के बलिया नगवा गांव में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में जनमे थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी संभवतः सामान्य स्तर तक ही हो पाई थी परंतु उनकी व्यावहारिक बुद्धि ब़ड़ी ही कुसाग्र थी। साहस और वीरता की भावनाएँ उनमें कूट-कूट कर भरी थीं।
किसी भी गलत बात या अन्याय को वे सहन नहीं कर पाते थे और उनका कड़ा विरोध करते। उनकी पारिवारिक निर्धनता भी उनकी दंबगता के आड़े नहीं आ पाती थी। धीरे-धीरे जब उनके परिवार पर ऋण का भार बहुत अधिक हो गया। तो उसे चुकाने का दायित्व मंगल के कंधों पर आ पड़ा। वे अपने उग्र स्वभाव को भँली भाँति जानते थे। साथ ही उनकी यह भी इच्छा थी कि उन्हें कोई ऐसा कार्य मिल जाए जिससे कि वह ऋण के भार से मुक्ति मिलने के साथ-साथ उन्हें साहस तथा वीरतापूर्ण कार्य करने का अवसर मिले। अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में तत्काल अंग्रेज सरकार की सेना में नौकरी कर ली।
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