महान व्यक्तित्व >> माता जीजाबाई माता जीजाबाईएस. के. अग्रवाल
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प्रस्तुत है माता जीजाबाई का जीवन परिचय....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
माता जीजाबाई
किसी भी व्यक्ति के जीवन में माँ का स्थान कितना ऊँचा होता है, इसका
अनुमान इतने से ही लगाया जा सकता है कि जहां एक ओर माँ को
‘प्रथम
गुरु’ कहा गया है, वहीं दूसरी ओर उसके ‘पाँव के नीचे
स्वर्ग’ बताया गया है। इन कथनों में कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं
है,
क्योंकि प्रमाण के रूप में भारत के इतिहास में ऐसी एक नहीं बल्कि अनेक
माताओं के नाम लिखे जा सकते हैं।
ऐसा ही एक नाम है वीर माता जीजाबाई का। उनके नाम से भारत भर में भला ऐसा कौन होगा, जो परिचित न हो। वे छत्रपति शिवाजी महाराज की जननी होने के साथ-साथ उनकी मित्र, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत भी थीं। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा हुआ था।
जीवन भर पग-पग पर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया और अपने ‘पुत्र ‘शिवा’ को वे संस्कार दिए, जिनके कारण वह बालक आगे चलकर हिंदू समाज का संरक्षक एवं गौरव बना- ‘छात्रपति शिवाजी महाराज’ के रूप में।
जीजाबाई का जन्म सन् 1596 में सिंदखेड़ नामक गाँव में हुआ था। यह स्थान वर्तमान में महाराष्ट्र के विदर्भ प्रांत में बुलढाणा जिले के मेहकर जनपद के अन्तर्गत आता है। उनके पिता का नाम लखुजी जाधव तथा माता का नाम महालसाबाई था। लखुजी जाधव वीर मराठा कीर्ति के गुणों से सम्पन्न थे। वे अत्यंत पराक्रमी होने के साथ-साथ अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी थे। उन्हें अपने कुल पर बड़ा अभिमान था।
ऐसा ही एक नाम है वीर माता जीजाबाई का। उनके नाम से भारत भर में भला ऐसा कौन होगा, जो परिचित न हो। वे छत्रपति शिवाजी महाराज की जननी होने के साथ-साथ उनकी मित्र, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत भी थीं। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा हुआ था।
जीवन भर पग-पग पर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया और अपने ‘पुत्र ‘शिवा’ को वे संस्कार दिए, जिनके कारण वह बालक आगे चलकर हिंदू समाज का संरक्षक एवं गौरव बना- ‘छात्रपति शिवाजी महाराज’ के रूप में।
जीजाबाई का जन्म सन् 1596 में सिंदखेड़ नामक गाँव में हुआ था। यह स्थान वर्तमान में महाराष्ट्र के विदर्भ प्रांत में बुलढाणा जिले के मेहकर जनपद के अन्तर्गत आता है। उनके पिता का नाम लखुजी जाधव तथा माता का नाम महालसाबाई था। लखुजी जाधव वीर मराठा कीर्ति के गुणों से सम्पन्न थे। वे अत्यंत पराक्रमी होने के साथ-साथ अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी थे। उन्हें अपने कुल पर बड़ा अभिमान था।
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