सामाजिक >> जमीन जमीनभीमसेन त्यागी
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गाँवों के जीवन में तेजी से आये बदलाव का चित्रण भीमसेन त्यागी के इस उपन्यास ‘जमीन’ में।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हिन्दी कथाकार भीमसेन त्यागी के उपन्यास ‘जमीन’ में गाँवों के जीवन में तेजी से आये बदलाव का चित्रण है। समय की आँधी में गाँव का बाह्य ही नहीं, अन्तर भी बदलता जा रहा है। सामन्ती वैमनस्य लोकतान्त्रिक सत्ता-संघर्ष में परिवर्तित हो रहा है। निर्धन किसान भूमिहीन हो रहा है और भूमिहीन की यातनाएं बढ़ रही हैं। स्वराज्य ने सुराज का जो सपना दिखाया था, वह खण्ड-खण्ड हो गया है। लेखक ने जो देखा और महसूस किया, अपने गाँव के संदरभ में उसे इस उपन्यास के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। उपन्यास में स्वाधीनता के पश्चात् नेहरू युग तक के विकास क्रम के स्वप्न-काल की कथा है।
जमीन का कोई एक नायक नहीं है। यदि है भी तो वह है स्वयं इसका समय या फिर गाँव - गणेशपुर।
गंगा-यमुना के बीच का यह गाँव ग्रामीण भारत का प्रितिनिधि है। समूचे ग्राम में जीवन की आत्मा गणेशपुर में धड़कती है।
‘जमीन’ में लोक-संस्कृति का रस-रंग है, बोली-वानी है। धूल-भरे चेहरे स्मृति से उझक-उझक आते हैं। इन माटी के मूर्तों के छोटे-छोटे सपने हैं। बड़े-बड़े गम हैं और गमों से जूझती अदम्य जिजीविषा है।
आशा है, पाठकों को यह उपन्यास रोचक ही नहीं, बहुत कुछ सोचने-समझने को भी प्रेरित करेगा।
जमीन का कोई एक नायक नहीं है। यदि है भी तो वह है स्वयं इसका समय या फिर गाँव - गणेशपुर।
गंगा-यमुना के बीच का यह गाँव ग्रामीण भारत का प्रितिनिधि है। समूचे ग्राम में जीवन की आत्मा गणेशपुर में धड़कती है।
‘जमीन’ में लोक-संस्कृति का रस-रंग है, बोली-वानी है। धूल-भरे चेहरे स्मृति से उझक-उझक आते हैं। इन माटी के मूर्तों के छोटे-छोटे सपने हैं। बड़े-बड़े गम हैं और गमों से जूझती अदम्य जिजीविषा है।
आशा है, पाठकों को यह उपन्यास रोचक ही नहीं, बहुत कुछ सोचने-समझने को भी प्रेरित करेगा।
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