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प्रेम राग

इंदु मजलदान

प्रकाशक : नेशनल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :107
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3776
आईएसबीएन :81-214-0694-3

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प्रस्तुत है हंगारी साहित्य की प्रणय कविताएं।

Prem Raag

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


हंगारी प्रेम कविता का इतिहास वहां के लोक गीतों से ही प्रारम्भ हो जाता है। ये गीत किस समय किसके द्वारा लिखे गये, कोई नहीं जानता; पर जब से लोक साहित्य शुरू हुआ तभी से इनका भी आरंभ हुआ। संगीत इन प्रेम गीतों का एक अभिन्न अंग है। अवश्य ही विरह से उपजे होंगे ये गीत क्योंकि अधिकतर गीतों में सितारों, पक्षियों आदि के माध्यम से प्रेम संदेश भेजने का वर्णन है। दर्द इन गीतों की मूल अभिव्यक्ति है।

हंगारी साहित्य का सर्वप्रथम सुरक्षित अंश एक प्रेम गीत ही है, जैसे ईसा मसीह के प्रति मारिया का प्रेम गीत। हंगारी लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। उसके प्रेम गीतों में प्राचीन शमन परंपरा ही प्रतिबिंबित है। इन प्रेम गीतों में प्रकृति के साथ अद्भुत सादृश्य दिखायी देता है।

हंगारी प्रेम कविता की अगली कड़ी हमें वहाँ के लोक बैलैंड में मिलती है। इसका प्रारम्भ बारहवीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। इस समय के गीत बहुत सीमा तक वहाँ की सामाजिक परिस्थिति दर्शाते हैं। अधिकतर सभी बैलैंड दुखांत है। जहाँ तक प्रेम का प्रश्न है तो यह गीत केवल प्रेमी युगलों की प्रेम गाथा का वर्णन ही करते हैं। प्रेम की भावना या उससे जुड़े कुछ सवालों का कोई निदान इनमें नहीं मिलता।

इस संग्रह में प्रस्तुत प्रणय कविताएं हंगारी साहित्य के विकास का ईमानदारी से प्रतिनिधित्व करती हैं। वे दर्शाती हैं कि जीवन की विविधता की भांति वे भी शैलियों, दृष्टिकोणों और अनुभूतियों में कितनी विविध हैं। इनमें से प्रत्येक गीत, प्रत्येक कविता जहाँ एक ओर बिल्कुल अनोखे तत्त्व को प्रतिबिंबित करते हैं, वहीं वह अपने में एक सार्वभौम तत्त्व को भी रेखांकित करती है। हम इनमें से प्रत्येक कविता में कुछ ऐसा पाते हैं जो हमारे बेहद निकट है।
 
निस्संदेह ये कविताएं अनुभव के माध्यम से हमारी अपनी जिंदगी को, लोगों को और स्वयं खुद को समझने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगी।

भूमिका


हमारी रोज़ाना की ज़िंदगी का एक बेहद सामान्य-सा अनुभव भी हमें अलौकिक दिव्यता की झलक दिखला सकता है। प्रेम एक ऐसा ही आभास, एक ऐसा ही चमत्कार है। एक ओर जहां वह सौंदर्य का अंश है, इस सांसारिक जगत का हिस्सा है, वहीं उसकी कुछ विशिष्टाताएं उसे किसी अन्य लोक भी दर्शाती हैं। वह एक ऐसा लोक है जिसे काल, दिगंत, यहां तक कि कार्य-कारण या तार्किकता से भी नाप पाना कठिन है।

प्रेम क्या है ? क्या वह किसी प्रणय निवेदन में छिपा है ? जैसे कोई लड़का किसी लड़की से कहे कि ‘मैं तुम्हें एक मास, एक वर्ष से प्यार कर रहा हूँ,’ तो क्या यह प्रेम होगा ? या कोई कहे कि ‘मैं तुम्हें नयी दिल्ली में प्रेम करता हूँ, तो क्या इसे प्रेम कहेंगे ? क्या प्रेम को सामाजिक अथवा भौतिक ज़रूरतों द्वारा सीमित या नियमित किया जा सकता है ?

यहां तक कि भाषा भी, जो संसार का वर्णन और विश्लेषण करने का उत्कृष्ट माध्यम है, प्रेम के सार-तत्त्व को पकड़ने में दीन-हीन सिद्ध होती है। केवल सत्य के लिए लालायित कला, संगीत और काव्य ही इस अनुभव को कुछ अंशो तक व्यक्त कर सकते हैं।

राधा-कृष्ण जैसे दिव्य प्रणय-युगल की अनुभूतियों, भक्ति के अनुभवों और तांत्रिक आत्म-समर्पण के प्रति गहरे संवेदनशील और सचेत भारतीय जन संभवतः इस तथ्य से अवगत नहीं होंगे कि यूरोपीय संस्कृति में भी ठीक इसी प्रकार की एक धारा प्रवाहित है। यहां हम केवल शमनिज़्म की रोम-रोम में स्फूर्ति भर देने वाली, परिवर्तनकारी सार्वभौम आत्मा और क्रिश्चियैनिटी के ओल्ड टेस्टामेंट के प्रार्थना गीतों से लेकर सेंट पाल के प्रेम विषयक प्रवचनों के प्रणय समर्पणों एवं मध्ययुगीन देवगीतों के ‘गोपनीय प्रेम’ की ही चर्चा करें।

वस्तुतः हंगारी साहित्य का सर्वप्रथम सुरक्षित अंश एक प्रेम गीत ही है, जैसा ईशा मसीह के प्रति मारिया का प्रेम गीत। हंगारी लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। उसके प्रेम गीतों में प्राचीन शमन परंपरा ही प्रतिबिंबित है; इन प्रेम गीतों में प्रकृति के साथ अद्भुत सादृश्य दिखायी देता है, जैसे प्रकृति में नव जीवन का संचार करती सुहानी रुत, साथी को पसंद करते हुए पक्षी और प्रियतम के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए फूल।

मैं इन गीतों की, विशेषकर संग्रह में संकलित रचनाओं की विषय वस्तु आदि के संबंध में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं अनुभव करता। वे हंगारी साहित्य के विकास का ईमानदारी से प्रतिनिधित्व करती हैं। वे दर्शाती हैं कि जीवन की विविधता की भांति वे भी शैलियों, दृष्टिकोणों और अनुभूतियों में कितनी विविध हैं। इनमें से प्रत्येक गीत, प्रत्येक कविता जहां एक ओर बिलकुल अनोखे तत्त्व को प्रतिबिंबित करती है,

 वहीं वह अपने में एक सार्वभौम तत्त्व को भी रेखांकित करती है। हम इनमें से प्रत्येक कविता में ऐसा कुछ पाते हैं जो हमारे बेहद निकट है। हम स्वयं अपने में भी वह कुछ खोज सकते हैं, जो सदैव हममें मौजूद था, केवल हम ही उसे जान न पाये, उस पर ध्यान न दे सके। हमारी इस शती की कविता मानवीय अंतःकरण में, मानवीय मनोजगत में बहुत गहरे उतरी है। हमारी आत्मा की गहनतम परतों के बारे में फ़्रॉयड़ और युंग ने जो खोजें की हैं,

उससे कवि स्वयं बेहद प्रभावित थे।
मैं स्वीकार करूं कि ये कविताएं अनुभव के माध्यम से हमारी जिंदगी को, लोगों को और स्वयं खुद को समझने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं। मैं प्रत्येक व्यक्ति से आग्रह करूंगा कि वह ऑत्तिला रचित ‘महिमा गीत’ कविता को ज़रूर पढ़े। मैं सोचता हूँ कि साहित्य में इस जैसी रचना शायद अन्यत्र नहीं है।

अंत में मैं इन्दु मज़लदान को धन्यवाद दूं, जिन्होंने हंगारी कविता के मर्म को आत्मसात किया है। उन्होंने मूल हंगारी भाषा में ही ये सारी कविताएं पढ़ी हैं और वे उसकी समृद्ध विषय-वस्तु, शैलियों और रूपों को हिन्दी में प्रस्तुत करने में निश्चय ही सफल हुई हैं। यही नहीं, इन कविताओं की संगीतमयता को भी अभिव्यक्त करने में उन्होंने सफलता पायी है। आशा है, वे भविष्य में हंगारी साहित्य को इतनी ही कुशलता एवं सफलता के साथ हिंदी में प्रस्तुत करने के कार्य को जारी रखेंगी।

गेज़ा बैत्लैनफ़ॉल्वी

आप सबसे....


‘प्रेम की कोई भाषा नहीं होती।’ यह उक्ति बिलकुल सही है। विश्व की हर भाषा, हर संस्कृति, हर प्रदेश, हर जाति में इस ‘ढाई आखर’ का स्वरूप एक-सा ही दिखता है। प्रेम के भिन्न-भिन्न रूप हैं–कभी इसमें पीड़ा है, कभी उल्लास, कभी उदासी है, कभी जोश। प्रेमी भी भांति-भांति के हैं–कोई मां के रूप में प्रेमिका को चाहता है, कोई पुजारी बनकर आराध्या के रूप में उसे देखता है, कोई दुःख में डूबा दिखायी देता है,

कोई कायर प्रेम में हार मानकर पलायन कर जाने की सोचता है और कोई प्रेम में असफल हो चिंतन में डूब जाता है। और प्रेम के ये सभी रंग हर भाषा में समान ही दिखायी पड़ते हैं।

प्रेम का सीधा संबंध मनुष्य की कोमल अनुभूति से है। मानव जितना अधिक संवेदनशाल होगा उतने ही विविध प्रकार के रंग उसके प्रेम-प्रदर्शन में प्रतीत होंगे। हंगारी प्रेम काव्य को पढ़ते समय यह धारणा और पुष्ट होती है।

हंगारी लोग आमतौर पर बहुत भावुक हैं और संगीत एवं कविता के अगाध प्रेम उनकी विशेष रुचियों में एक है। यह मेरा अपना अनुभव है। हंगारी भाषा के पठन-कार्यक्रम के अंतगर्त मुझे हंगरी में पढ़ने और रहने का अवसर मिला। इससे वहां के समाज को, वहां के लोगों को निकटता से देखने-समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं स्वयं भी साहित्य में रुचि रखती हूं। अतः स्वाभाविक था, मन में इस भावुक समाज में उपजी कविता को समझने की उत्सुकता का जागना।

एक दिन अचानक व्याकरण पढ़ाते-पढ़ाते क्लास में अध्यापिका ने एक लोक गीत गाकर सुनाया। यह एक प्रेम गीत था; शब्द तो उस समय सब समझ में नहीं आये पर स्वर और संगीत बड़ा परिचित-सा लगा।
मानो अपने ही देश के किसी पहाड़ी प्रदेश का हो।

इस भाषा में ऐसा मधुर संगीत निहित है, जो किसी भी विदेशी को सहज ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। इस विषय में एक रोचक वृत्तांत पुराने हंगारी ‘क्रॉनिकल’ (जिन्हें Legenda के नाम से जाना जाता है) में मिलता है। बारहवीं सदी में इटली के बिशप (St. Gellert) ईसाई मत का प्रचार करने हंगरी आये थे। वे वहां की भाषा से एकदम अनभिज्ञ थे। एक बार उन्हें एक गाँव में रात बितानी पड़ी। प्रातः जब वह बाहर निकले, तो उनके कानों में अनाज कूटती एक स्त्री के गाने का मधुर स्वर पड़ा। बिशप अपने साथी से बोले, ‘सुन रहे हो तुम, कितना माधुर्य है इस भाषा में।’     
 
और भाषा के इसी माधुर्य ने मुझे भी बाध्य किया कि मैं इस भाषा के साहित्य को निकटता से देखूं और समझूं। इस प्रयास में हंगरी में मेरी दुभाषिया पोल्गार यूडित (Polgar Judit) और मेरी अध्यापिका नॉद्य आग्नैश (Nagy Agnes) ने मेरी बहुत मदद की। आज दोनों ही मेरी अच्छी मित्र हैं।

प्रस्तुत संग्रह का श्रेय दिल्ली के हंगारी सूचना व सांस्कृतिक केंद्र (यू.एच.सी.सी.) के वर्तमान निदेशक डॉ. गेज़ा बैत्लैनफ़ॉल्वी (Dr. Geza Bethlenfalvy) को जाता है। इस संकलन के लिए कविताओं का चयन उनका ही है। देहली विश्वविद्यालय से अनेक वर्ष से जुड़ी हंगरी भाषा की प्राध्यापिका डॉ.मॉर्गित कवैश (Dr. Margit Koves) ने कविताओं के अनुवाद में सहायता प्रदान की। मैं सांस्कृतिक केंद्र के भूतपूर्व निदेशक डॉ. लाज़ार इमरै (Dr. Lazar Imre) की भी

 आभारी हूं जिन्होंने मुझे हंगरी में अपने सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से पुस्तकें उपलब्ध कराने में सहयोग दिया। पांडुलिपि से लेकर पुस्तक के प्रकाशन तक का सफ़र तय करने के लिए संजीव सहाय, मुख्य कार्यक्रम निदेशक (एच.आई.सी.सी.) का तहे-दिल से शुक्रिया। इन सबके अतिरिक्त मैं ऋणी हूं उन अनेक हंगारी मित्रों की जिन्होंने प्रवास में मुझे न केवल प्यार और दुलार ही दिया बल्कि वास्तविक हंगारी जीवन और भावों का निकटता से अवलोकन कराया।

यह संग्रह कदापि संभव न हो पाता यदि इसको पूरा करने में मुझे अपने पति श्री कुलदीप नारायण (जो स्वयं दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं) और मेरे पुत्र गौरव का पूरा सहयोग प्राप्त न होता। कुलदीप ने अनुवादित कविताओं को समय-समय पर न सिर्फ़ धैर्य से सुना बल्कि अपने बहुमूल्य सुझाव भी दिये। कहना ग़लत न होगा कि मेरी प्रेरणा के वही स्रोत रहे हैं। गौरव ने इस कार्य के बीच मुझे अपनी हर चिंता से मुक्त रखा और धैर्य से मेरी व्यस्तता को झेला। पिता-पुत्र दोनों की मैं आभारी हूं।

मैं यू तो अंग्रेज़ी भाषा के साहित्य के पठन-पाठन से जुड़ी हूं पर अनुवाद मैंने हिंदी में किया है। इसके दो कारण हैं–पहला तो यह कि हिन्दी मेरी मातृभाषा होने के कारण मेरे मस्तिष्क में नहीं मेरे हृदय में उपजती है और दूसरा यह कि हंगारी भाषा में विचारों की अभिव्यक्ति की शैली, उसका संगीत अंग्रेज़ी की उपेक्षा हिन्दी के अधिक निकट है। मैंने अंग्रेज़ी में कई हंगारी कविताओं के अनुवाद काफ़ी नीरस और मूल से काफी भिन्न पाये। केवल शब्दों का सही अनुवाद ही तो कवि की भावनाओं को ईमानदारी से नहीं दर्शा सकता ! यह संग्रह भारतीय पाठकों को हंगारी कविता में प्रस्तुत प्रेम के विभिन्न रूपों की एक झलक दिखाने की प्रयास मात्र है।

मैं न एक कवियत्री हूं न एक पेशेवर अनुवादिका। स्वाभाविक है कि अनुवाद में कई त्रुटियां रही होंगी। पर मूल भाषा से सीधा अनुवाद होने के कारण भावों की सच्चाई और लय-माधुर्य ज्यों के त्यों प्रस्तुत कर सकूं, इसका ध्यान मैंने अवश्य रखा है। मैंने कुछ कविताओं के अनुवाद बुदापैशत यूनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ रहे छात्रों के सम्मुख सुनाये थे। उन्होंने काफ़ी उत्साहवर्द्धन किया। इसलिए आपके सम्मुख उन्हें प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूं।

संकलन में प्राचीनतम प्रेम गीतों से लेकर बीसवीं सदी तक के कवियों की कविताएं हैं। प्रत्येक कवि का एक छोटा-सा जीवन-चरित्र भी वर्णित है। क्रमानुसार कविताएं प्रस्तुत हैं ताकि हंगारी प्रेम कविता के विभिन्न रूपों के साथ-साथ उसके विकास का भी अंदाजा आपको लग सके।

इन प्रेम गीतों में आप भांति-भांति के प्रेमियों के दर्शन कर सकेंगे–कोई मां के रूप में प्रेमिका को चाहता है, कोई आराध्य के रूप में, कोई केवल वासनासक्त है और कोई प्रेम को अध्यात्म के समकक्ष बिठाता हुआ। कुछ महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताएं अवश्य छूट गयी हैं, इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।

इन्दु मज़लदान

हंगारी प्रेम कविता


हंगारी प्रेम कविता का इतिहास वहां के लोक गीतों  से ही प्रारंभ हो जाता है। यह गीत किस समय किस के द्वारा लिखे गये, कोई नहीं जानता, पर जब से लोक साहित्य शुरू हुआ तभी से इनका भी आरंभ हुआ। संगीत इन प्रेम गीतों का एक अभिन्न अंग है। अवश्य ही विरह से उपजे होंगे यह गीत क्योंकि अधिकतर गीतों में सितारों, पक्षियों आदि के माध्यम से प्रेम संदेशा भेजने का वर्णन है। दर्द इन गीतों की मूल अभिव्यक्ति है। जिसका प्रधान कारण है, उस समय के हंगरी की राजनीतिक परिस्थितियां जिनके फलस्वरूप युवक अधिकतर लड़ाई के मैदान पर रहते थे और प्रेमिकाएं अपने प्रेमियों की प्रतीक्षा में दिन बसर किया करती थीं।

इन गीतों की भाषा बहुत सरल है क्योंकि ये किसी एक कवि की कृतियां तो हैं नहीं; ये तो वहां के जनमानस की कोमल अनुभूतियों को प्रकट करने का एक सामान्य प्रयास है अधिकतर गीत एक ही विचार शब्दों की पुनरावृत्ति से प्रकट करते हैं। प्रतीक के रूप में पक्षी, सितारे, फूल आग, मौसम आदि का प्रयोग अधिक दिखता है क्योंकि यही साधारण व्यक्ति के जीवन से जुड़े तत्त्व हैं।

हंगारी प्रेम कविता की अगली कड़ी में हमें वहां के लोक बैलैड में मिलती है। इनका प्रारंभ बारहवीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। इस समय के गीत बहुत सीमा तक वहां की सामाजिक परस्थिति दर्शाते हैं। यह सामंतवाद का युग था। अधिकतर बैलैड गीतों में सामाजिक असमानताओं की झलक दिखती है–यह नाटकीय ढंग से दिखाते हैं कि पैसा प्यार को दूर कर देता है, अमीर गरीब के बीच खाई पैदा कर देता है इत्यादि। इन गीतों में कोई फ़ालतू विवरण वार्तालाप में विघ्न नहीं डालता। अधिकतर सभी बैलैड दुखांत हैं। जहां तक प्रेम का प्रश्न है तो यह गीत केवल प्रेमी युगलों की प्रेम गाथा का वर्णन करते हैं प्रेम की भावना या उससे जुड़े कुछ सवालों का कोई निदान इनमें नहीं मिलता।

कवि इन गीतों में मात्र कहानी को नाटकीय अंदाज में प्रस्तुत करते हैं। उनकी अपनी अनुभूतियों के लिए कविताओं में कोई स्थान नहीं है। इसलिए प्रेम गीत होते हुए भी यह प्रेम से अधिक सामाजिक परिवेश पर प्रकाश डालते हैं।

सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक लैटिन ही हंगारी साहित्य की भाषा रही। उसके बाद ही हंगारी भाषा का प्रयोग आरंभ हुआ। फिर भी संगीत से कविता जुड़ी रही। कविताएं गाने के लिए ही लिखी जाती थीं। फलतः कभी-कभी कविता में अटपटापन भी आ जाता था। घिसे-पिटे मुहावरों, और एक ही तरह के शब्दों के प्रयोग ने कविता को बिलकुल बेजान बना दिया। वह साहित्यिक न होकर लोक शैली से ही जुड़ी रही।

सोलहवीं शताब्दी के अंत में हंगारी साहित्य जगत में पदार्पण हुआ बालिंत बॉलॉशी का जो उत्तरी हंगरी के एक अमीर परिवार में जन्में थे। दुर्भाग्य से राजनीतिक और व्यक्तिगत कारणों से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अपने विवाह का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा और ऐसे में उन्होंने एक बड़े सरकारी अफ़सर की पत्नी औन्ना से प्रेम हो गया। औन्ना बा,-बच्चेदार युवती थी, उम्र में भी बालिंत से काफ़ी बड़ी।

इन दोनों के प्रेम ने जन्म दिया हंगारी साहित्य की पहली प्रेम गीत श्रृंखला को जिसे ‘यूलिया कविताएं’ के नाम से जाना जाता है। इसमे पहली बार हमें झलक मिलती है एक हाड़-मांस की प्रेमिका की जो हंसती है, बोलती है, रूठती है, सुंदर है मगर क्रूर भी, शालीन है मगर चंचल भी। इन कविताओं का प्रेमी हाथ बांधे अपनी प्रेमिका के ‘हां’ का इंतज़ार करता रहता है। यूरोप में इस काल में ऐसे ही प्रेम का अधिक वर्णन मिलता है, जिसमें प्रेमिका को एक देवी बनाकर ऊँचे स्थान पर बिठा प्रेमी उसके सामने प्रेम की याचना करता दिखता है। (अंग्रेज़ी साहित्य में इसी काल में स्पैंसर के प्रेम गीतों में भी कुछ यही झलक देखने को मिलती है)।

बालिंत बॉलाशी के पश्चात् लगभग 150 वर्ष तक हंगारी साहित्य से प्रेम गीत प्रायः लुप्त ही हो गये। ये वर्ष हंगरी में राजनीतिक उथल-पुथल के वर्ष थे। देश को एक ओर तुर्कियों ने आ दबोचा था और दूसरी ओर ऑस्ट्रिया के हाब्सबुर्ग साम्राज्य ने। हंगरी के पूर्वी क्षेत्र ट्रांस सिल्वेनिया में ही सिमटकर रह गया था हंगारी शासन। हंगरी इस प्रकार तीन भागों में बंट गया था। स्पष्ट है, अत्याचार से पीड़ित जनमानस के हृदय से कैसे उपजते प्रेम गीत !

कालांतर में राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं। अठारहवीं शताब्दी में फिर से साहित्य में सुनायी देने लगे प्रेम कविता के स्वर। मिहाय चोकोनॉई पहले कवि थे, जिन्होंने इस विषय पर लिखना शुरू किया। अपने विचार नये ढंग से प्रस्तुत करते मिहाय चोकोनॉई इस काल के एक महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। आपने यूरोपियन साहित्य का अच्छा अध्ययन किया था। उन्होंने अपने इस ज्ञान का उपयोग हंगारी कविता के लिए किया। पर इसके साथ-साथ वे हंगारी लोक शैली, लोक कहानियों को भी सम्यक रूप से अपने साहित्य से जोड़े रहे।

उन्हें विश्व की कई भाषाओं का ज्ञान था और वे एरिओस्टो, टैसो, हाफ़िज, वॉल्टेयर आदि सभी महान कवियों की रचनाओं से भली-भांति परिचित थे। इनकी प्रारंभिक प्रेम कविताओं की नायिका इनके साहित्यिक गुरु यानोश फ़ल्दी की पतनी थी, जिनसे इन्हें मोह हो गया था। बाद में यह यूलिया वॉयदॉ नामक युवती के प्रेम जाल में फंसे और प्रेम में विफल होने पर यूलिया (जिसे इन्होंने लिल्लॉ के नाम से प्रस्तुत किया है) को नायिका बना कर कई प्रेम कविताएं लिख डालीं। दुःख-दर्द ने इनके गीतों को दार्शनिक बनाया।

इसी दार्शनिक तत्त्व को प्रयोग में लाते दिखायी देते हैं, उन्नीसवीं शताब्दी में यानोश वॉयदा। अपने प्रारंभिक वर्षों में यानोश राजनीतिक साहित्य का सृजन करते रहे पर राजनीति से निराश होकर वे दार्शनिक चिंतन से प्रभावित हुए। इसका प्रभाव इनके प्रेम गीतों में भी अवलोकित होता है। प्रेम इनकी कविताओं में एक क्षणिक सुख के अनुभव से बढ़कर एक सार्वभौमिक सुख प्रदान करने वाला अनुभव बन जाता है। ‘अंतिम गीत गीना को’ में इनकी कविता के मूल तत्व की झलक बख़ूबी देखने को मिलती है कविता प्रेम की है मगर बात दर्शन की है। कवि प्रेम एवं प्रेमिका से हटकर दार्शनिक प्रश्नों के फेरे में उलझ गया है।

उन्नीसवीं शताब्दी में कोई नामी कवियों ने प्रेम के विषय में लिखा है। इस काल के प्रमुख कवियों में उल्लेखनीय नाम हैं मिहाय वरशमॉर्ती, शांदोर पैतोफ़ी, और शताब्दी के अंत में ऐंद्रै ऑदी।
वरशमॉर्ती की अधिक विख्यात कविताएं तो देशभक्ति की हैं पर प्रेम के वेग के बारे में भी उन्होंने काफ़ी लिखा। लौरा नामक युवती के प्रेम ने उनसे बहुत अच्छी कविताएं लिखवायी। इनमें एक परस्पर विभिन्नता लिये भावों की अभिव्यक्ति दिखायी देती है। प्रधान भाव प्रेमिका को पाने की चाहत ही है

 पर इन कविताओं का कवि घुटने टेक कर प्रेम याचना नहीं करता वरन् कभी-कभी इस बात का एहसास दिलाता है प्रेमिका को कि उसकी चाहत से ही प्रेमिका का अस्तित्व है। लौरा से (जो उम्र में इनसे काफ़ी छोटी थी) विवाह हो जाने पर इन्होंने उपहार के रूप में अपने गीत उसे भेंट किये जिनमें अभिलाषा का स्थान जीवन के यथार्थ के ज्ञान ने ले लिया था।

शांदोर पैतौफ़ी हंगरी के सबसे अधिक विश्व विख्यात कवि हुए। वे शायद भगवान को भी बहुत प्रिय थे इसलिए उन्हें वे सब चीज़ें मिली जो एक कवि के लिए आवश्यक हैं–योग्यता, सही ऐतिहासिक परिस्थिति और एक स्पष्ट प्रारब्ध। केवल छब्बीस वर्ष की अल्पायु में वे अपने पीछे इतना ख़जाना छोड़ गये जो न केवल मात्रा में बल्कि गुण और उत्तमता के आधार पर भी विश्व के साहित्य का अध्ययन करते समय छोड़ा नहीं जा सकता।

यह समय हंगारी साहित्य में एक नया मोड़ लाया था। पुरानी साहित्यिक एवं लोक शैली को एक नये ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास उस समय हो रहा था। चोकोनॉई, कलची फैरेंत्स, और वरशमॉर्ती मिहाय पहले भी यह प्रयोग कर चुके थे पर इसको चरम-सीमा तक पहुंचाया शांदोर पैतोफ़ी ने। देशभक्ति इनके जीवन का एक अभिन्न अंग थी। इनकी बहुत-सी कविताएं देश-प्रेम को जनमानस में जागृत करने के लिए लिखी गयीं।

जहां तक प्रेम कविता का प्रश्न है तो इनके गीतों की सबसे विशेष बात यह है कि उनकी प्रेरणा को स्रोत प्रेमिका नहीं, पत्नी है। पैतौफ़ी ने प्रेम गीत अपनी पत्नी यूलिया सैंद्रे के लिए लिखे। इनके आलोचकों ने इसके लिए इनकी आलोचना भी की पर इन गीतों में जो वास्तविकता है, जो सरलता, जो भाव हैं वे अन्यत्र देखने को नहीं मिलते। पैतौफ़ी मातृ-भूमि के लिए जंग के मैदान पर भी लड़ने पहुंचे जहां से वे कभी न लौटे।

उनका गीत ‘सितम्बर के अंत में’ भविष्यवाणी-सी कर गया, जब इस गीत में व्यक्त उनकी आशंका कि उसकी पत्नी उन्हें मृत्यु के बाद कहीं भुला तो नहीं देगी, सत्य हो गयी। उनकी मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही यूलिया ने दूसरा विवाह कर लिया। हंगरी वासी आज भी इस कवि की याद अपने दिल से निकाल नहीं पाते।

शताब्दी के अन्त में ऐंद्रै ऑदी ने अपने प्रेम गीतों से हंगारी साहित्यिक जगत में खलबली-सी मचा दी। वे स्वयं तो एक ऐसे परिवार से थे जो हॉब्सबुर्ग साम्राज्य का विरोध करने की वजह से निर्धन हो चुका था परंतु जब वे एक पत्रकार बनकर नौद्यवारौद नामक शहर में काम कर रहे थे तो इनकी जान-पहचान औदेल नामक एक संभ्रांत अमीर महिला से हुई जिसके साथ यह पेरिस चले गये। एक ओर हंगरी में अपने प्रदेश (पूर्वी क्षेत्र) की निर्धनता, दूसरी ओर पेरिस की रंगीन जिंदगी, दोनों के विरोधाभास ने ऑदी को झिंझोड़ डाला। इनके प्रेम गीतों में प्यार का स्थान वासना ने ले लिया या यूं कहिए कि वासना या शारीरिक प्रेम इनकी दृष्टि में प्रेम की अंतिम चोटी बन गया।

इनकी कविताओं में शब्द प्रतीक और शैली सभी उत्तेजना दर्शाते हैं। इनके अंतर्द्वंद्व की झलक ‘चील मिलन जंगल में’ नामक कविता में देखने को मिलती है जिसमें दो वृद्ध चीलों का एक दूसरे को प्रेम में आहत करने का विवरण बहुत वेग का आभास दिलाता है।

ऐंद्रै ऑदी के पश्चात्, बल्कि उनके साथ-साथ हंगारी कविता के विप्लवकारी पुररुत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान मिहाय बॉबीच का भी है। वे दो विश्वयुद्धों के बीच हंगरी के सार्वाधिक प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं। जहां एक ओर ऑदी विप्लवकारी सामाजिक आकांक्षाओं की बात करते हैं,

वहीं बॉबीच शुद्ध साहित्यिक एवं सांस्कृतिक धारणाओं की। इन्होंने कई तरह के छंदों का प्रयोग किया। कविता एक साहित्यिक विधा के रूप में फिर से पनपी। कई जगह छंद पर अधिक ध्यान देने के कारण इनकी कविताओं का विचार पक्ष कमज़ोर होता भी दीखता है। बॉबीच ने अनुवाद का काम भी बहुत उत्तमता से किया। इनके सौफोक्लीस, शेक्सपियर और दांते की कृतियों के अनुवाद उल्लेखनीय हैं।

ऐंद्रै ऑदी और मिहाय बॉबीच इस युग के दो महत्त्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। ऑदी समाज से अपने को जोड़े रहे और बॉबीस मानवतावाद से। पहले में विप्लवकारी प्रस्तुतिकरण और दूसरे में कला और विधा का ख़याल महत्त्व रखता है। द्यूला यूहास और आरपाद तोत दोनों ही ऑदी के विचारों के अधिक क़रीब के कवि हैं। द्यूला यूहास अपने निजी भावों को प्रस्तुत करने में समर्थ रहे।

उनकी शुरूआत की अधिकतर कविताएं उनकी आत्मकथा का ही हिस्सा रहीं, पर बाद में उनका अनुभव का क्षेत्र बढ़ता गया। वे अपनी प्रेम कविता में भूतकाल को पुकारते नज़र आते हैं ख़ासतौर पर अपने प्रेम कविता संग्रह ‘औन्ना’ में। ‘कैसी थी’ इसी तरह की कविताओं का उदाहरण प्रस्तुत करती है

     

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