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नारी विमर्श >> चल खुसरो घर आपने (सजिल्द)

चल खुसरो घर आपने (सजिल्द)

शिवानी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :131
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3751
आईएसबीएन :9788183612876

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अन्य सभी उपन्यासों की भाँति शिवानी का यह उपन्यास भी पाठक को मंत्र-मुग्ध कर देने में समर्थ है


"मैं ही हूँ कुमुद जोशी, आइए!" बुद्धिमती कुमुद का अन्तर्बोध उसे एक पल में चौकन्नी कर गया था-"आप बैठें," उसने बड़ी संयत विनम्रता से कुर्सी खींच दी। 'आई एम सॉरी!' वह प्रौढ़ पुलिस अधिकारी हाथ के बैटन के दोनों सिरे पकड़ किसी बाजीगर के डंडे की भाँति सहलाने लगा-

"आई एम एफ्रेड-आई हैव एन अनप्लेजेंट न्यूज..."

कुमुद के आश्चर्यजनक स्थैर्य को देखकर, वह अधिकारी दंग रह गया था। न जिज्ञासा, न कुतूहल, न भयमिश्रित आशंका, न हिस्टिरिकल रोना-धोना-

"माताजी!" उसने बड़े आदर से अम्मा को सम्बोधित किया था-"आप जरा दूसरे कमरे में चली जाएँगी? मुझे इनसे एकान्त में कुछ कहना है।"

"नहीं आपको जो कुछ कहना है, इन्हीं के सामने निःसंकोच कहिए," कुमुद ने ही फिर उठकर दूसरे कमरे में जा रही अम्मा को रोककर बिठा दिया था।

“उमा जोशी, आपकी सगी छोटी बहन है?"

“जी हाँ, आज वह अभी तक घर नहीं लौटी, हम परेशान हैं–पाँच बजे वह म्यूजिक कालेज गई थी। सात बजे लौट आती थी, आज अभी तक नहीं आई।"

"वह आपकी सगी बहन है क्या?"

"जी हाँ, कहा तो आपसे, हम दोनों सगी बहनें हैं..."

कुमुद का स्वर खीझकर, सामान्य-सा ऊँचा भी हो गया था।

अम्मा ने ही कुहनी के आघात से धीमे स्वर में सचेत किया-"आस्ते बोल बेटी, अभी पड़ोसी यहाँ जुट जाएँगे।"

“मैं इसलिए पूछा रहा हूँ मैडम कि उमा जोशी ने पुलिस में बयान दिया है, वह अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान है--आपके पिताजी?"

“मेरे पिता नहीं हैं, पाँच वर्ष पूर्व उनकी मृत्यु हो चुकी है।"

"और तो यहाँ भी गलत बयान दे गई छोकरी!" पुलिस अधिकारी का उमा के लिए उस अशिष्ट सम्बोधन ने कुमुद के दिमाग का पारा फिर चढ़ा दिया- “जी?"

'उसने ऐसे कहा, जैसे थप्पड़ मार रही हो। उसने अपने बयान में कहा है कि उसके पिता रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं, महानगर में उनकी अपनी कोठी है, उसका नाम छाया बनर्जी है।

कुमुद की छाती से जैसे किसी ने भारी शिला को उठाकर दूर पटक दिया-वह क्रोध से काँपती खड़ी हो गई-"तब? तब आप छाया बनर्जी के परिवार को ढूँढ़ने इतनी रात को हमारे घर में कैसे घुस आए?"

“आप शान्त होकर बैठ जाइए, मैडम! अभी हमें बहुत जानकारी आपको देनी है और बहुत जानकारी आपसे लेनी है..."

“मतलब?"

“मतलब यह है कि हमने एक ही घंटे में पता लगा लिया है कि छाया बनर्जी कौन है, कहाँ रहती है, आदि-आदि।"

"कैसे?" अविश्वास एवं अपमान से कुमुद अपनी देह का थर-थर काँपना रोक नहीं पा रही थी।

“यह समझने में आपका भी समय नष्ट होगा, मेरा भी। असलियत उगलवाने के हमारे अपने तरीके हैं मैडम, अब आपको हमारे साथ चलना होगा।"

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