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नारी विमर्श >> पूतोंवाली

पूतोंवाली

शिवानी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3741
आईएसबीएन :81-8361-070-6

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एक स्त्री की विडम्बना-भरी जीवनगाथा....

Putonvali

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


‘पूतोंवाली’ एक ऐसी स्त्री की विडम्बना-भरी जीवनगाथा है, जो पाँच-पाँच सुयोग्य-मेधावी बेटों की माँ होकर भी अंत तक निपूती रही। शहरी चकाचौंध और सम्पन्नता की ठसक भरे जीवन के मद में अपने सरल लेकिन उत्कट स्वाभिमानी पिता और स्निग्ध, वात्सल्यमयी माँ के दधीचि जैसे उत्सर्ग भरे जीवन की अवहेलना करनेवाले बेटों का ठंडा व्यवहार आज के जीवन में घर-घर की कहानी बन चला है। पूतोंवाली क्षय होते पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों के पक्ष में एक मार्मिक गुहार है।

‘कैंजा’ यानी सौतेली माँ। एक ऐसा ओहदा जिसकी मर्यादा प्राणपण से निभाने के बाद भी निष्कलुष मना नन्दी उसका पारम्परिक कलुष नहीं उतार पाती। बेटा रोहित समाज की कानाफूसी से विह्वल हो विद्रोही बनता जाता है। उसके फेंके पत्थरों से सिर्फ शीशा ही नहीं टूटता,नन्दी का ह्रदय भी विदीर्ण हो जाता है। एक ऐसी युवती की मार्मिक कथा, जो जन्मदायिनी माँ न होते हुए भी अपने सौतेले बेटे से सच्चा प्रेम करने की भूल कर बैठती है।...‘‘आँधी की ही भाँति वह मुझे अपने साथ उड़ा ले गई थी,और जब लौटी तो उसका घातक विष मेरे सर्वांग में व्याप चुका था। कौन थी यह रहस्यमयी प्रतिवेशिनी जो नियति के लिखे को झुठलाने अकेली उस भुतही कोठी में आन बसी थी।

‘विषकन्या’ में शिवानी की जादुई कलम ने उकेरी है दो यकसाँ जुड़वाँ बहनों की मार्मिक कहानी और उनमें से एक के ईर्ष्या से सुलगते जीवन की केन्द्रिय विडम्बना, जो स्पर्शमात्र से किसी के जीवन में हलाहल घोल देती है।...सावित्री के दोनों बेटे विदेश चले जाते हैं। एक यात्रा के दौरान ट्रेन में मिला लावारिस बच्चा ही अन्तिम दिनों में उसके साथ रहता है। सावित्री अपनी सारी सम्पत्ति इसी तीसरे बेटे के नाम कर जाती है, परन्तु भाभियों का यह ताना सुनकर कि उसने धन पाने के लिए माँ की सेवा की,तीसरा बेटा गंगा वसीयतनामे को फाड़कर भाइयों के मुँह पर फेंक देता है। लोकप्रिय लेखिका की कलम से निकली एक और मार्मिक कथा।

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