भाषा एवं साहित्य >> घाघ और भड्डरी की कहावतें घाघ और भड्डरी की कहावतेंदेवनारायण द्विवेदी
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घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।
जबही तबही इंडै करै, ताल नहाय ओस में परै।
दैव न मारै आपै मरै।।
जो पुरुष कभी-कभी दण्ड बैठक करता है, ताल में स्नान करता और ओस में सोता
है उसे ईश्वर नहीं मारता। वह तो स्वयं ही मरने की तैयारी कर रहा है।
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