भाषा एवं साहित्य >> घाघ और भड्डरी की कहावतें घाघ और भड्डरी की कहावतेंदेवनारायण द्विवेदी
|
96 पाठक हैं |
घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।
जन्मकाल में लग्न मुहूर्त देखना
पड़िवा मूल पंचमी भरनी। छठ के आद्रा नौमी रोहनी।
अष्टमी हस्त में जो रहियो।।
सप्तमी मयारे मितउरे भाई, छहो शुन्य पड़ा है आई।।
जन्मे सो जीवे नहीं, बसे तो उज्जर होय।।
कुऔं पोखर जौ खनै, सुन्नै वारि पराय।।
आठे चौथ चतुर्दश जानी, रवि गुरु मंगलवार बखानी।।
तीन उत्तरा पड़े जो जहिया, तो आन के जनभल कहिया।।
आदि न हस्ता, गुरु पुष जोग, बुधानुराधा शनि रोहिणी च।।
सोमे च श्रवणे भृगु रेवती च, भौमे च अश्विनी अमृत सिद्धि योगः।।
रवि गुरु मंगल एकै रेखा, कृत्तिका भरनी और असलेखा।।
दुरत सप्तमी आठे जीया, तामे भई विष काँउर धीया।।
आप मरे की माता खाये, धन छीजै जो पर घर जाये।।
जे चमाइन नरकटिया करे, जेठे पुत्र वहू का मरै।।
जौन नाउन सउरी कमाय, बरिस दिना रोजी से जाय।।
ब्रह्मा बिसनु उतरि के आवै, भौरी देत राँड़ हो जावै।।
|
लोगों की राय
No reviews for this book