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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान

आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :41
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 372
आईएसबीएन :00-000-00

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लोगो की आकृति देखकर उनका स्वभाव पहचानना मनोरंजक तो होता ही है, परंतु इससे अधिक यह अनुभव आपको अन्य लोगों से सही व्यवहार करने में काम आता है।



आकृति देखकर मनुष्य की पहचान


चेहरा, आन्तरिक स्थिति का दर्पण है



अपने रोजमर्रा के जीवन में व्यक्ति जितने लोगों के सम्पर्क में आता है उनकी आकृति देखकर वह इसका बहुत कुछ अन्दाज लगा लेता है कि इनमें से कौन किस ढंग का है, उसका स्वभाव चाल-चलन और चरित्र कैसा है ? यह अन्दाज बहुत अंशों में सही उतरता है। यद्यपि कभी-कभी बनावट के चकाचौंध में धोखा भी हो जाता है पर अधिकांश में शकल सूरत देखकर यह जान लिया जाता है कि यह आदमी किस मिट्टी से बना है। मनुष्यों को पहचानने की कला में जो जितना ही प्रवीण होता है वह अपने व्यवसाय में उतना ही अधिक निश्चिन्त रहता है, जैसे आदमी से तैसी ही आशा रखने का मार्ग मिल जाय तो ठगे जाने का भय कम रहता है और लाभदायक सुविधाएँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

बहुत पूर्वकाल से इस विद्या की खोज जारी है, अनेक अन्वेषकों ने इस दिशा में बहुत खोज की है और गोता लगाने पर जो रतन उन्हें मिले हैं उनको सर्व साधारण के सामने प्रकट किया है। महाभारत एवं वेद पुराण और कादम्बरी आदि ग्रन्थों से यह पता चलता है कि इस विद्या से भारतवासी पुराने समय से परिचित हैं। वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड में कथा है कि जब त्रिजटा राक्षसी ने सीता को राम की मृत्यु हो जाने का झुंठा संवाद सुनाया तो सीता ने उत्तर दिया-"हे त्रिजटा ! मेरे पाँवों में पद्यों के चिन्ह हैं जिन से पति के साथ राज्याभिषेक होना प्रकट होता है, मेरे केश पतले समानाकार तथा काले हैं, भौंहें खुली हुई, जंघाएँ रोम रहित तथा गोल, दाँत जुडे हुए उज्ज्वल है इसलिए पण्डितों ने मुझे शुभ लक्षण वाली सौभाग्य शालिनी कहा है, रामजी के न होने से यह सब लक्षण मिथ्या हो जायेंगे ?' इस कथन से विदित होता है कि त्रेता में आकृति विज्ञान की जानकारी स्त्रियों को भी थी।

आर्यों से यह विद्या चीन, तिब्बत, ईरान, मिश्र, यूनान आदि में फैली पीछे, अन्य देशों में भी इसका प्रचार हुआ। ईसा के २५० वर्ष पूर्व टालेमी के दरबार में एक मेलाम्पस नामक विद्वान रहा करता था, उसने इस विषय पर एक अच्छी पुस्तक लिखी थी। वर्तमान समय में यूरोप अमेरिका के वैज्ञानिक रत एवं पसीने की कुछ बूंदों का रासायनिक विश्रेषण करके मनुष्य के स्वभाव तथा चरित्र के बारे में बहुत कुछ रहस्योद्घाटन करने में सफल हो रहे हैं। शेरो (Cheiro) प्रभृति विद्वानों ने तो नये सिरे से इस सम्बन्ध में गहरा अनुसंधान करके अपने जो अनुभव प्रकाशित किये हैं उनसे एक प्रकार की हलचल मच गई है। आकृति देखकर मनुष्य को पहचान करने की विद्या अब इतनी सर्वागपूर्ण होती जा रही है कि लोगों का भीतरी परिचय कुछ ही क्षण में प्राप्त कर लेना आश्चर्यजनक रीति से सरल एवं सम्भव होने लगा है।

प्रकृति ने थोड़ा-बहुत इस विद्या का ज्ञान हर मनुष्य को दिया है। प्रायः देखा जाता है कि छोटे बच्चे भी लोगों की शकल सूरत देखकर कुछ धारणा बनाते हैं और उसी के अनुसार बर्ताव करते हैं। साधारणतया हर मनुष्य किसी दूसरे पर दृष्टि डालकर यह अन्दाज लगाता है कि विश्वास करने योग्य है या इससे बचकर दूर रहना चाहिए। भले ही आप न जानें कि यह विद्या हमें आती है पर प्राकृतिक नियमों के अनुसार मनुष्य को जो मानसिक शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं उनमें मनुष्य को पहचानने की विद्या भी एक है। यह सहज ज्ञान ( इंस्टिक्ट ) हर एक के हिस्से में आया है, यह दूसरी बात है कि किसी के पास उसकी मात्रा कम हो किसी के पास अधिक। जिस प्रकार व्यायाम से बल, पढ़ने से विद्या और प्रयल से बुद्धि बढ़ती है, उसी प्रकार अभ्यास से इस ज्ञान की भी उन्नति हो सकती है और उसके आधार पर बहुत कुछ वास्तविकता की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

अब हम इस प्रसंग पर आते हैं कि किस प्रकार आकृति देखकर दूसरों की पहिचान की जा सकती है। आप किसी व्यक्ति के चेहरे की बनावट पर, नेत्रों में झलकने वाले भावों पर, पहनाव-उढ़ाव पर, तौर-तरीके पर बहुत गंभीरतापूर्वक इस इच्छा के साथ दृष्टि डालिए कि यह व्यक्ति किस स्वभाव का है। यदि मन एकाग्र और स्थिर होगा तो आप देखेंगे कि आपके मन में एक प्रकार की धारणा जमती है। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति के ऊपर दृष्टिपात कीजिए और उस चित्र में धारणा जमने दीजिए। इन दोनों धारणाओं का मुकाबिला करिए और देखिए कि किन-किन लक्षणों के कारण कौन-कौन से संस्कार जमे हैं। तुलनात्मक रीति
उनके लक्षणों पर विचार कीजिए और मन पर जो छाप पड़ती है उसका विश्लेषण कीजिए यह अन्वेषण और अभ्यास यदि आप कुछ दिन लगातार जारी रक्खें तो इस विद्या के संबंध में बहुत कुछ जानकारी अपने आप प्राप्त होती जायगी और अनुभव बढ़ता जायगा।

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    अनुक्रम

  1. चेहरा, आन्तरिक स्थिति का दर्पण है
  2. आकृति विज्ञान का यही आधार है
  3. बाल
  4. नेत्र
  5. भौंहें
  6. नाक
  7. दाँत
  8. होंठ
  9. गर्दन
  10. कान
  11. मस्तक
  12. गाल
  13. कंधे
  14. पीठ
  15. छाती
  16. पेट
  17. बाहें
  18. रहन-सहन

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