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घरेलू नुस्खों का खजाना

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3625
आईएसबीएन :81-7182-814-0

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छोटी-बड़ी बीमारी का घरेलू, आयुर्वेदिक, जड़ी-बूटियों द्वारा, बायोकैमिक व होमयोपैथिक उपचार

Gharelu Nuskhey Ka Khajana

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


घरेलू नुस्खों का खजाना एक ऐसी पुस्तक है जिसके द्वारा छोटी-बड़ी बीमारी का घरेलू, आयुर्वेदिक, जड़ी-बूटियों द्वारा, बायोकैमिक व होमयोपैथिक उपचार जान सकते हैं। ये सारे उपचार हानिरहित हैं और प्रत्येक सामान्य व्यक्ति इन्हें अपना सकता है।

घर-घर में स्वदेशी चिकित्सा को बढ़ावा देना ही हमारा उद्देश्य हैं, किन्तु ध्यान रहे, हम पाठक को चिकित्सक नहीं बना रहे हैं। बस आपको हर छोटी-बड़ी बीमारी के लिए बार-बार न भागना पड़े, यही हमारा उद्देश्य है।
यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं कि अनेक परिस्थितियों में ऐलोपैथिक चिकित्सा व शल्य क्रिया की आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा सकता। पाठकों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए।
‘घरेलू नुस्खों का खजाना’ आपके घर-आंगन में आयोग्य रूपी खुशबू भर दे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
सादर

डॉ. राजीव शर्मा
आयोग्य ज्योति
320,322, टीचर्स (उ.प्र.)
Ph : (05732)-21793, 25398

बायोकैमिक होमियोपैथिक औषधियों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बिन्दु—
बायोकैमिक दवाएं, होमियोपैथिक चिकित्सा का ही भाग है।
जिन दवाओं के आगे ‘x’ लगा है, वे बायोकैमिक हैं और जहाँ ‘x’ नहीं लगा वे होमियोपैथिक हैं।
बड़ों के लिए बायोकैमिक दवा की 4-5 गोलियां, एक बार की खुराक के लिए पर्याप्त होती हैं। छोटों के लिए 2-3 व एक साल तक के बच्चों के लिए 1-2 गोलियाँ पर्याप्त रहती हैं।
होमियोपैथिक दवाओं की 3-5 बूंद दवा, एक बार की खुराक के लिए पर्याप्त होती है, बड़ों के लिए। बच्चों के लिए इसकी आधी खुराक ही पर्याप्त है।

मूल अर्क वाली दवाओं की 10-15 बूंद एक बार में लें। बच्चों को इसकी आधी खुराक दें।
होमियोपैथिक/बायोकैमिक दवाएं सीलबंद व किसी अच्छी कम्पनी जैसे एस.बी.एल, विलमर श्वेवे (इंडिया) या रालसन आदि की खरीदें।
बायोकैमिक दवाएं हाथ से ली जा सकती हैं किन्तु होमियोपैथिक औषधियां डॉक्टर से, ड्रापर से आधा चम्मच पानी में मिलाकर लें या सीधे मुंह में लें।
दवा खाने के आधा घंटा पहले व बाद में कुछ भी न खायें।
साफ पानी से कुल्ला कर ही दवा लें।
प्रायः 200 शक्ति की दवा सप्ताह में एक बार व 1000 शक्ति की पन्द्रह दिन में एक बार लेनी चाहिए। 30 शक्ति की दवा रोजाना, लाभ मिलने तक ले सकते हैं। लाभ होते ही दवा लेना बंद कर दें।

लेखक परिचय


डॉ. राजीव शर्मा देश के प्रतिष्ठित होमियोपैथी, योग, प्राकृतिक व वैकल्पिक चिकित्सा परामर्शदाता हैं।
लगभग सौ पुस्तकें लिख चुके, ‘‘साहित्य श्री’’ की उपाधि से विभूषित राजीव शर्मा विगत दस वर्षों से स्तम्भ लेखक के रूप में सक्रिय हैं। लगभग सभी राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आपके 1000 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। चिकित्सकीय लेखन के क्षेत्र में डॉ. राजीव शर्मा ने जनपद बुलन्दशहर का नाम रोशन किया है। आपको ‘साहित्य श्री’ व अन्य कई उपाधियों से विभूषित किया जा चुका है।
होमियोपैथी, योग, एक्यूप्रैशर, चुम्बक व प्राकृतिक चिकित्सा परामर्शदाता डॉ, राजीव शर्मा भारतीय जीवन बीमा निगम के मेडिकल ऑफिसर हैं, ‘रॉलसन रेमेडीज’ दिल्ली के सलाहकार हैं और विश्व के 20 से भी अधिक देशों में प्रसारित ‘‘एशियन होमियोपैथिक जर्नल’ के सम्पादक मंडल के सदस्य हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर ‘‘नशा मुक्ति व एड्स जागृति कार्यक्रम’ से जुड़े डॉ. राजीव शर्मा की आकाशवाणी से भी अनेकों वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
शीघ्र ही डॉ. राजीव शर्मा का एक काव्य संग्रह व दो उपन्यास भी प्रकाशित होने वाले हैं।

1
मस्तिष्क व स्नायु संस्थान के रोग
स्नायविक—निर्बलता (Neurasthenia)


 कारण—अजीर्ण, शुक्र-क्षय चिंतन, पौष्टिक पदार्थों की कमी, अत्यधिक शारीरिक श्रम आदि इस रोगे के मुख्य कारण हैं।
लक्षण—स्मरण शक्ति का घट जाना, सिर में चक्कर आना, आंखों के आगे उठने-बैठने में अंधेरा छा जाये, अपच, अनिन्द्रा, हृदय-स्पंदन, रक्ताल्पता आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं।

उपचार
घरेलू आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों द्वारा-


1.    बेर की गुठलियों को पांच ग्राम मगज को समान भाग गुण के साथ मिलाकर खाने से शुक्र-पुष्टि होकर शरीर बलवान बनता है। कुछ दिनों तक नियमित यह प्रयोग करें।
2.    3 से 8 वर्ष तक के बच्चों को नियमित गाय का दूध पिलाएँ। साथ में मक्खन व मिश्री मिलाकर खिलायें।
3.    अश्वगन्ध 100 ग्राम, सतावर 100 ग्राम, बाहीपत्र 100 ग्राम, इसबगोल की भूसी 100 ग्राम, तालमिश्री 400 ग्राम—इन सबको कपड़छन चूर्ण बनाकर एक काँच की शीशी में भरकर रख लें। सुबह-शाम दूध या पानी के साथ 10 ग्राम मात्रा में लें। 21 दिन तक लेने के बाद ही मस्तिष्क एवं शरीर में संचार का अनुभव होगा।
4.    8 से 16 वर्ष तक के किशोरों को घी और मिश्री मिलाकर दूध पिलाना चाहिए। गाय के थनों से निकला हुआ गर्म-गर्म दूध पीने से खूब ताकत मिलती है। इस उम्र में हल्का व्यायाम भी करना चाहिए।
5.    रोज सुबह एक सेब दांत से काटकर खायें। तीन हिस्सा मक्खन, और एक हिस्सा शहद मिलाकर लें और शाम के दूध में पाँच मुनक्के उबालकर पियें। सवा महीने में दुबलापन दूर हो जाएगा।

बायोकैमिक होमियोपैथिक औषधियों द्वारा—

काली-फास 3x—इसकी मुख्य औषध है। मानसिक कार्य अधिक करने के पश्चात् मस्तिष्क का दुर्बल होना, उत्साहहीनता आदि लक्षणों में उपयोगी रहती है।
कल्केरिया-फास 12x—यदि रोग लम्बी अवधि तक किसी अन्य रोग से पीड़ित होने के और पौष्टिक पदार्थ के अभाव से उत्पन्न हुआ हो तो यह औषधि अवश्य नीरोग कर देगी।
तथा अधिक दिनों तक किसी रोग के बने रहने के कारण मेरुदण्ड की रक्तल्पता में इसके प्रयोग से बहुत लाभ होता है।
नैटाम-फास 3x—अजीर्ण और अम्लयुक्त रक्ताल्पता में यह दवा विशेष लाभदायक है, चलने-फिरने, से थक जाना आदि लक्षणों में इससे विशेष फायदा होते देखा गया है।
नैटम-म्योर—3x—मलेरिया ज्वर के पश्चात् अथवा क्विनाइन के अधिक प्रयोग के उपरान्त यह रोग होने पर इसकी विशेष उपयोगिता है।
बहुत अधिक शुक्र-क्षय के कारण रक्ताल्पता में कल्केरिया फास 6 के पर्याय क्रम से इसे देना चाहिए।
नैटम-सल्फ 3x—रक्त में जलीय अंश का बढ़ना तथा शोध में विशेष लाभप्रद है।
साइलीशिया 12—पर्याप्त पौष्टिक भोजन न मिलने पर बालकों की रक्ताल्पता, विशेषकर गण्डमाला से पीड़ित बच्चों के लिए साइलीशिय़ा बहुत लाभ करती है।
एनाकार्डियम 30 एक प्रमुख औषधि है।

स्मरण शक्ति की कमी


कारण—अत्यधिक मानसिक परिश्रम व मानसिक थकान, पाचन संस्थान की गड़बड़ी, शारीरिक दुर्बलता, मानसिक दुर्बलता, टायफाइड, पैदाइशी दिमागी कमजोरी, लम्बी बीमारी के बाद याद्दश्त में कमी आना, रक्तहीनता आदि कारणों से स्मरण शक्ति कम हो जाती है।
लक्षण—एक बात को भूल जाना, याद करने पर भी याद न आना, पढ़ा हुआ भूल जाना परिचित व्यक्ति न पहचान पाना आदि इस रोग के लक्षण हैं।

उपचार
घरेलू आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों द्वारा


1.    सौंफ और मिश्री का समभाग चूर्ण मिलाकर दो चम्मच दोनों समय भोजन के बाद लेते रहने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है। एक मास या दो मास लें।
2.    दिमागी कमजोरी, गुर्दे की खराबी, स्मरण शक्ति की कमी में भोजन से पहले एक मीठा सेब बिना छीले-खाना चाहिए।
3.    मानसिक कमजोरी, स्मरण शक्ति की कमी या दिमाग में गर्मी हो तो चुकन्दर का रस एक कप की मात्रा में दिन में दो बार लेना चाहिए।
4.    खरबूजे के साथ खरबूजे के बीज भी खाने चाहिए, क्योंकि बीज स्मरण शक्ति बढ़ाने व शरीर का पोषण करने में समर्थ हैं।
5.    मस्तिष्क में तरावट न ताजगी लाने और स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए काली मिर्च का प्रयोग ब्राह्मी की पत्तियों के साथ मिलाकर किया जाता है। सौ ग्राम घी में 3 से 5 ग्राम की बाह्मी की पत्तियों को उबालकर उसमें पिसी हुई कालीमिर्च तथा देसी बूरा मिलाकर चटनी बनाकर चाटने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

6.    आधा किलोग्राम दूध में पीपल के चार-पाँच ताजा पत्तों को अच्छी तरह उबालकर दूध को छान लें। अब इसमें मिश्री मिलाकर सेवन करें। नित्य प्रति इस दूध के सेवन से दिमागी कमजोरी दूर होती है तथा स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
7.    मस्तिष्क की कमजोरी दूर करने एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने में काली मिर्च लाभप्रद है। 25 ग्राम मक्खन में 5-6 कालीमिर्च मिलाकर नित्य चाटने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
8.    पक्का कद्दू खाने से स्मृति शक्ति बढ़ती है।
9.    अगर बसन्त के मौसम में 5 पके फल पीपल के रोज खायें तो याद्दाश्त अगले मौसम तक के लिए दुरुस्त हो जाएगी।
10.    यदि आपकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं है तो शहद में तैयार मुरब्बा खाएं।
11.    स्मरण शक्ति, और बुद्धि बढ़ाने के लिए रुद्राक्ष, बच, शंख और स्वर्ण को एक साथ पत्थर पर घिसकर प्रायः—सायं एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ चाटना चाहिए।
12.    6 किलो त्रिफला चूर्ण को भांगरे के रस में 7 दिन तक घोट कर रख लें। प्रतिदिन 20 ग्राम चूर्ण शहद व घृत की मात्रा में मिलाकर सेवन करना चाहिये। इस मात्रा के पचने पर दूध, भात का भोजन करना चाहिए। बाल काले भंवरे के समान हो जाते हैं। शरीर स्निग्ध, सुन्दर-पुष्ट हो जाता है। मेधा, बुद्धि व स्मरण शक्ति की वृद्धि होती है।

13.    शहद का हमेशा सेवन करने वालों की याददाश्त कमजोर नहीं होती।
14.    लीची, सेब खाएं। दो अखरोट रोज खायें। अखऱोट खाने वाले व्यक्ति की याद्दाश्त अच्छी रहती है।
सर्दी के मौसम में सवेरे अखरोट का निशास्ता या पेय बनाकर पीना चाहिए। इससे दिमाग बहुत अच्छा होता है, नींद बहुत सुखद आती है। कब्ज भी दूर होता ही है तथा चेहरे की कान्ति में चार चाँद लग जाते हैं, इसके साथ यह वीर्य-पुष्टिकर एवं वृद्धि करने वाला योग भी है।
निशास्ता के घटक द्रव्य—घी एक चम्मच, काली मिर्च 7 नग, अखरोट 1 पूरा, गेहूँ 10 दाने, बादाम 2 नग, मुनक्का 5 नग, छोटी इलायची 2., दूध-पानी 1-1 कप, शक्कर या मिश्री स्वादानुसार।
विधि-: सबसे पहले मुनक्का, गेहूँ के दाने, कालीमिर्च अखरोट, बादाम आदि को रात को पानी में भिगो दें, सवेरे उन्हें निकालकर पीसें, इसमें मुनक्का के बीज निकालकर पीसें फिर एक कप दूध, 1 कप पानी मिलाकर घी गर्म करके उसका छाँक लगा दें, इसमें छोटी इलायची, शक्कर मिश्री आदि मिलाकर 1-2 बार अच्छी तरह उबाल लें फिर इसे स्वाद लेकर गर्म-गर्म नाश्ते में पिएं। यह बहुत ही गुणकारी है।
तिल के लड्डू रोजाना खाने से मानसिक दुर्बलता व तनाव में कम होता है।
बायोकैमिक होमियोपैथिक औषधियां-
एनाकाडर्यिम 30 काली फस 6 कुछ दिन लेनी चाहिए।

चक्कर आना


कारण : चक्कर आना सामान्यतया मस्तिष्क में अस्थाई कम रक्तपूर्ति के कारण होता है। रक्तचाप में अचानक कमी के कारण भी यह स्थिति पैदा हो सकती है। अजीर्ण रक्ताल्पता।
बहुमैथुन, मासिक धर्म की खराबी आदि इस रोग के कारण है।
लक्षण—यह एक क्षणिक अवस्था है जो कमजोर व्यक्तियों में और भीड़ भरे स्थानों पर, जैसे परेड़-ग्राउंड या तंग छोटे कमरों या अधिक देर तक एक ही स्थिति में खड़े रहने से हो सकती है। आंखों के आगे अंधेरा, चारों ओर की वस्तुओं का घूमता हुआ दिखाई देना, चक्कर खाकर गिर पड़ना, बेहोशी आदि इसके लक्ष्ण हैं।

उपचार
घरेलू आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों द्वारा


1.    गर्मी से चक्कर आना, उल्टी, दिल धड़कने लगता हो तो कोरी हांडी में सौ ग्राम धनिया कूटकर डाल दें, आधा किलो पानी डाल दें। एक घण्टा पड़ा रहने दें। फिर इसमें से आधा कप पानी छानकर पांच बताशे डालकर हर तीन घण्टे में पिलायें। तेज गर्मी के प्रभाव से उत्पन्न सभी रोगों में लाभ होगा।
2.    दो चम्मच शक्कर और दो चम्मच सूखा धनिया मिलाकर चबाने से लाभ होता है।
3.    हींग, कपूरवटी, चक्कर तथा पतले दस्त में कार्य करती है। इसको बनाने की विधि आसान है। हींग और कपूर बराबर मात्रा में लेकर शहद में घोंटकर छोटी मटर जैसी गोलियां बना लें। इसको उपरोक्त तकलीफों में दो से चार गोली सुबह-शाम जल से दें।
4.    तुलसी के पत्तों के रस में शहद या शक्कर मिलाकर चाटने से चक्कर आना बन्द होता है।
5.    सिर चकराने पर आधा गिलास पानी में दो लौंग उबालकर उस पानी को पीने से लाभ मिलता है।
6.    खरबूजे के बीज को पीसकर घी में भूनकर अल्प मात्रा में सुबह-शाम खाने से उन्माद, तन्द्रा, चक्कर आना तथा आलस्य आदि में बहुत लाभ होता है।

7.    सोंठ 6 ग्राम और धमासा 10 ग्राम को एक पाव पानी में ओटावें। 150 ग्राम रह जावे तक पी लें। इससे चक्कर आना बंद हो जाता है।
8.    आँवला 10 ग्राम, काली मिर्च 3 ग्राम 1 बताशे और दस ग्राम पीस लें। 14 तक लेने से चक्कर मिट जाता है।
9.    कालारस सुबह शाम एक-एक ग्राम नागर बेल के पान में खाने से चक्कर अवश्य मिट जाता है।
10.    गेहूँ का आटा 40 ग्राम, घी 40 ग्राम और गुड़ 40 ग्राम इनमें से सुबह 4 बजे आटे को थोड़े घी में भूनकर और उसमें घी और गुण को चाशनी मिलाकर कसार बनाकर खा लें। फिर जाए। 7 दिन तक खाने से भंवल और आधा शीशी का दर्द अवश्य जाता है।
11.    20 ग्राम मुन्नका घी में सेंक कर सेंधा नमक डालकर खाने से चक्कर आना बन्द हो जाता है।
12.    12 ग्राम काली मिर्च कूटकर घी में तलें। काली मिर्च निकाल लें। और इसी घी में गेहूँ का आटा सेंक कर गुड़ या शक्कर  डालकर हलुआ बना कर उसमें तली हुई काली मिर्च डालकर सुबह शाम भोजन से पहले खायें। चक्कर आना बन्द हो जाएगा।
बायोकैमिक होमियोपैथिक औषधियों द्वारा-
बेलाडोना 200 तीसरे दिन व ब्रायोनिया 30 तथा जेलसीमियम 30 कुछ दिन लें। लाभ न मिले तो योग्य, अनुभवी होमियोपैथिक चिकित्सक से सम्पर्क करें।

पागलपन


कारण—मन की स्वाभाविक अवस्था में गड़बड़ी हो जाने को ही उन्माद कहते हैं। बहुत ज्यादा परिश्रम या उद्वेग, ज्यादा खाना-पीना या इन्द्रिय-परिचालन, ज्यादा शराब या गांजा पीना, स्वास्थ्य भंग, निराशा और मिर्गी आदि इस बीमारी के मुख्य कारण हैं। पूर्वजों (पुरखों) को उन्माद रोग रहना, गर्मी रोग, मस्तिष्क या मेरुदण्ड की यान्त्रिक बीमारियां, शरीर में गहरी चोट लगना, अनुचित शिक्षा, हमेशा भयानक घटनाओं वाले उपन्यास पढ़ना आदि इसके गौंण कारण हैं। असफलता का कष्ट, अन्याय की सुनवाई न होने पर, घाटे से, बेकारी से, परिवार या समाज में महत्व न मिलने पर भी व्यक्ति पागल हो सकता है।

लक्षण—कपड़े फाड़ना, मारना, काटना, बेकार ही हाथ पैरों को चलाना या बोलना या चेहरा तथा आंखों की भाव-भंगिमा बदली हुई होना, गलत देखना, गलत सुनना या अंट-शंट बकना या बड़बड़ाना या चुप रहना, याद्दाश्त की कमी, बुद्धि का बिगड़ना, किसी काम में दिल न लगना, क्रोध, प्रसन्नता, शोक, रोना आदि मानसिक भावों की अधिकता, अपनी इच्छा-शक्ति को काबू में न रखना, आत्महत्या की इच्छा, प्रियजनों का अनादर करना, नींद न आना, सिरदर्द रहना, जननेन्द्रिय का काम रुक जाना, लगातार प्रलाप करना आदि इस रोग के लक्षण हैं।

उपचार
घरेलू आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों द्वारा


1.    पेठे के बीजों की गिरियां दो तोला, चीनी और शहद एक-एक तोला, इन्हें मिश्रित कर नित्य खाली पेट रोगी को दें, गिरियों को बारीक पीसकर और चीनी को मिला लें, एक महीने तक सेवन कराते रहने से पागलपन के बहुत से लक्षणों में कमी हो जायेगी, मल साफ होने लगेगा, खुश्की मिटकर थोड़ी नींद भी आने लगेगी।
2.    काशीफल (कद्दू) का हलवा खाने से मानसिक रोग दूर होता है। तनाव भी कम होता है।
3.    करीब 75 ग्राम सौंफ के तेल में पाव भर गरम चाय या दूध मिलाकर पिलाने से गर्मी से उत्पन्न पागलपन दूर हो जाता है।

4.    15 ग्राम अनार के पत्ते, 15 ग्राम गुलाब के ताजे फूल, 500 ग्राम पानी में उबालें। चौथाई पानी रहने पर छानकर 20 ग्राम देसी घी मिलाकर नित्य पियें। इससे पागलपन के दौरे में लाभ होगा।
5.    पित्त गर्मी के कारण पागलपन हो तो शाम को एक छटांग चने की दाल पानी में भिगो दें। प्रातः पीस लें। खाँड व पिसी दाल को एक गिलास पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
6.    चने की दाल भिगोकर उसका पानी पिलाने से उन्माद व वमन ठीक हो जाता है।
7.    12 काली मिर्च, तीन ग्राम ब्राह्मी की पत्तियां पीसकर आधा गिलास पानी में छानकर नित्य दो बार पियें।
बायोकैमिक होमियोपैथिक औषधियां—
बेलाडोना, हायोसायमस, स्ट्रामोनियम व काली फॉस इस रोग के लिए अच्छी औषधियां हैं, किंतु चिकित्सकीय देखरेख में ही लें।
 

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