योग >> दिव्यशक्ति कुण्डलिनी द्वारा स्वगृहयात्रा दिव्यशक्ति कुण्डलिनी द्वारा स्वगृहयात्रास्वामी रवीन्द्रानन्द
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यह पुस्तक कुण्डलिनी द्वारा अद्भुत सिद्धि प्राप्त कर असाध्य कार्य सरल बनाने का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम है।
Divyashakti Kundalini Dwara Sawagrahyatra by Swami Ravindranand
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक विशेष प्रकार की उर्जा होती है। कुछ व्यक्तियों में वह सोई रहती है, तो कुछ में धीरे-धीरे विकसित होती रहती है, जबकि कुछ में वह पूर्ण रूप से जाग्रत है। भारतीय दर्शन में इस उर्जा को कुण्डलिनी के नाम से पुकारा जाता है।
कुण्ड शब्द का तात्पर्य गहरे स्थान से है। मानव मस्तिष्क में खोखले स्थान जहां कि उसका मस्तिष्क रहता है, में साढ़े तीन फेरे लगाये कुण्डल मारे सोती हुई सर्पिणी के समान है, इसे ही कुण्डलिनी कहा गया है। पुरुषों में यह गुदा और उपस्थ के मध्य स्थित होती है और महिलाओं में गर्भाशय के मूल में स्थित होती है। एक सोई हुई नागिन जो साढ़े तीन फेरे लगाकर कुण्डल मारे हुए बैठी हुई है और सुषुम्ना नाड़ी को अपने मुख से मेरुदण्ड के केन्द्र में नीचे बन्द किए हुए है।
यह शक्ति जब नियमानुसार जाग्रत होती है और साधक के नियंत्रण में रहती है, तो यह उस शक्ति का उपयोग अपने उपयोगी और असाध्य कार्यों हेतु कर सकता है और उस शक्ति के कारण वह शक्तिमान हो जाता है, तब यह शक्ति कुण्डलिनी देवी के रूप में होती है, जो अवचेतन से बहुत ही सूक्ष्म, सौम्य और दयावान आकार में प्रकट होती है।
जिनका हृदय बलवान है उनके लिए भक्तियोग, जिनका मस्तिष्क बलवान है उनके लिए ज्ञानयोग तथा जो लोग बिना फल की कामना के कर्म करते हैं उनके लिए कर्मयोग की रचना वेदों ने की। किन्तु यह सारे उपाय पूरा जीवन या उससे भी अधिक कई जीवन काल के बाद परिणाम देते हैं। चूंकि शरीर और मन अणुओं से बना है। यह उपाय आणविक कहलाता है। तीव्र गति का उपाय है शात्तोपाय जिसमें गुरु के शक्ति देने से शिष्य को परिणाम अति शीघ्र प्राप्त होते हैं। भगवान राम को गुरु वशिष्ठ ने 7 वर्ष की आयु में शक्ति प्रदान की थी जिसके द्वारा उनकी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत हुई और वे विलक्षण शक्तियों के स्वामी बने। यह प्रथा गोपनीय रूप से भारत में प्रचलित रही है। स्वामी रवीन्द्रानन्द ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया है। इसका लाभ जन-सामान्य उठा सके, इसलिए इस पुस्तक की रचना की गई। तो आइये पढ़े कुण्डलिनी की जागरण की गोपनीय जानकारी और शक्ति जागरण से अपने भौतिक, मानसिक और भावनात्मक व्यक्तित्व को निखारें।
कुण्ड शब्द का तात्पर्य गहरे स्थान से है। मानव मस्तिष्क में खोखले स्थान जहां कि उसका मस्तिष्क रहता है, में साढ़े तीन फेरे लगाये कुण्डल मारे सोती हुई सर्पिणी के समान है, इसे ही कुण्डलिनी कहा गया है। पुरुषों में यह गुदा और उपस्थ के मध्य स्थित होती है और महिलाओं में गर्भाशय के मूल में स्थित होती है। एक सोई हुई नागिन जो साढ़े तीन फेरे लगाकर कुण्डल मारे हुए बैठी हुई है और सुषुम्ना नाड़ी को अपने मुख से मेरुदण्ड के केन्द्र में नीचे बन्द किए हुए है।
यह शक्ति जब नियमानुसार जाग्रत होती है और साधक के नियंत्रण में रहती है, तो यह उस शक्ति का उपयोग अपने उपयोगी और असाध्य कार्यों हेतु कर सकता है और उस शक्ति के कारण वह शक्तिमान हो जाता है, तब यह शक्ति कुण्डलिनी देवी के रूप में होती है, जो अवचेतन से बहुत ही सूक्ष्म, सौम्य और दयावान आकार में प्रकट होती है।
जिनका हृदय बलवान है उनके लिए भक्तियोग, जिनका मस्तिष्क बलवान है उनके लिए ज्ञानयोग तथा जो लोग बिना फल की कामना के कर्म करते हैं उनके लिए कर्मयोग की रचना वेदों ने की। किन्तु यह सारे उपाय पूरा जीवन या उससे भी अधिक कई जीवन काल के बाद परिणाम देते हैं। चूंकि शरीर और मन अणुओं से बना है। यह उपाय आणविक कहलाता है। तीव्र गति का उपाय है शात्तोपाय जिसमें गुरु के शक्ति देने से शिष्य को परिणाम अति शीघ्र प्राप्त होते हैं। भगवान राम को गुरु वशिष्ठ ने 7 वर्ष की आयु में शक्ति प्रदान की थी जिसके द्वारा उनकी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत हुई और वे विलक्षण शक्तियों के स्वामी बने। यह प्रथा गोपनीय रूप से भारत में प्रचलित रही है। स्वामी रवीन्द्रानन्द ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया है। इसका लाभ जन-सामान्य उठा सके, इसलिए इस पुस्तक की रचना की गई। तो आइये पढ़े कुण्डलिनी की जागरण की गोपनीय जानकारी और शक्ति जागरण से अपने भौतिक, मानसिक और भावनात्मक व्यक्तित्व को निखारें।
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