स्वास्थ्य-चिकित्सा >> मुँह, दाँत,नाक, कान व गला के रोग और उपचार मुँह, दाँत,नाक, कान व गला के रोग और उपचारराजीव शर्मा
|
11 पाठकों को प्रिय 141 पाठक हैं |
मुँह दांत नाक कान व गला के रोग तथा उनका उपचार....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मुंह, दांत, नाक, कान व गला चेहरे के ही अंग हैं लेकिन इन सभी अंगों की
कार्य प्रणाली अलग-अलग है। शरीर के सभी अंगों की तरह इनका अपना महत्त्व
है। इन अंगों से सारे शरीर की कार्य प्रणाली नियंत्रित होती है। अगर ये
स्वस्थ्य रहें तो शरीर भी स्वस्थ्य रहता है।
आज जहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा रोगी दाँत के पाये जाते हैं वहीं तम्बाकू, सिगरेट आदि के सेवन से दिन-प्रतिदिन गले व मुँह के कैंसर के रोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
ऐसी स्थिति में डॉ. राजीव शर्मा की लिखी पुस्तक मुंह, दांत, नाक, कान व गला के रोग और उनका उपचार आपको इन अंगों के प्रति सचेत तो करती ही है साथ ही साथ उनका आसान इलाज भी सुझाती है। सभी उपचार होम्योपैथिक, प्राकृतिक व आयुर्वेदिक चिकित्सा के अलावा दादी माँ के नुस्खे पर आधारित है।
आज जहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा रोगी दाँत के पाये जाते हैं वहीं तम्बाकू, सिगरेट आदि के सेवन से दिन-प्रतिदिन गले व मुँह के कैंसर के रोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
ऐसी स्थिति में डॉ. राजीव शर्मा की लिखी पुस्तक मुंह, दांत, नाक, कान व गला के रोग और उनका उपचार आपको इन अंगों के प्रति सचेत तो करती ही है साथ ही साथ उनका आसान इलाज भी सुझाती है। सभी उपचार होम्योपैथिक, प्राकृतिक व आयुर्वेदिक चिकित्सा के अलावा दादी माँ के नुस्खे पर आधारित है।
प्रस्तावना
मुंह, दांत, नाक, कान व गला शरीर के वे भाग हैं जिनका बोलने व
खाने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
इस पुस्तक में मुंह का संक्रमण, सांस की बदबू, दांतों की बनावट व बीमारियां, बच्चों की बीमारियाँ (दांत निकलने के दौरान) दांतों की शल्य क्रिया दांतों की शल्य क्रिया की आधुनिक तकनीकें, जबड़ा बनाने की विधि, दाढ़ भरना, ब्रश करने का तरीका, बोली दोष, टांसिल्स, मम्स व मुख कैंसर आदि अनेक बीमारियां व उनके उपचार के बारे में बताया गया है। इसके अतिरिक्त कान का बहना, कान में आवाजें सुनाई पड़ना, नाक का बंद हो जाना, नाक से खून आना आदि रोगों के बारे में भी बताया गया है।
पुस्तक मुख—दंत व नाक, कान, गला की देखभाल के लिए बहुत उपयोगी है।
इस पुस्तक में मुंह का संक्रमण, सांस की बदबू, दांतों की बनावट व बीमारियां, बच्चों की बीमारियाँ (दांत निकलने के दौरान) दांतों की शल्य क्रिया दांतों की शल्य क्रिया की आधुनिक तकनीकें, जबड़ा बनाने की विधि, दाढ़ भरना, ब्रश करने का तरीका, बोली दोष, टांसिल्स, मम्स व मुख कैंसर आदि अनेक बीमारियां व उनके उपचार के बारे में बताया गया है। इसके अतिरिक्त कान का बहना, कान में आवाजें सुनाई पड़ना, नाक का बंद हो जाना, नाक से खून आना आदि रोगों के बारे में भी बताया गया है।
पुस्तक मुख—दंत व नाक, कान, गला की देखभाल के लिए बहुत उपयोगी है।
डॉ. राजीव शर्मा
ब्रश व टूथपेस्ट का प्रयोग
जैसे-जैसे समाज में आधुनिकता व्याप्त होती जा रही है मनुष्य के सामाजिक
जीवन में भी बदलाव आता जा रहा है। समय की कमी, उपयुक्त वस्तुओं की
अनुपलब्धता ने मनुष्य को हर चीज का विकल्प खोजने पर मजबूर कर दिया है।
प्राकृतिक वनस्पतियों के लुप्तप्राय हो जाने के कारण शहरी जीवन में वह
नीम, बबूल व कीकर जैसी वन्य प्रजाति के पौधों की दातुन से भी
वंचित
होता जा रहा है इसकी जगह अब विभिन्न प्रकार के टूथब्रश ने ले ली है,
इस्तेमाल के लिए कैसा होना चाहिए टूथ ब्रश-आइए जानें—
ब्रश कैसा खरीदें
ब्रश खरीदते समय ब्रश की बनावट व रंग से भी अधिक महत्त्व इन बातों का होता
है—
ब्रश के रेशे मुलायम हों, सख्त नहीं।
सभी रेशे शीर्ष छोर पर समान सतह पर कटे हों।
अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ रेशों का ब्रश मसूड़ों को छील सकता है।
एक समान रेशे के हल्के से मुड़े हुए (अंदर की ओर) हैंडल वाले ब्रश अच्छे माने जाते हैं।
ब्रश साफ करके बंद डिब्बे में रखें व प्रयोग से पहले धो लें।
अच्छी कम्पनी का ब्रश ही खरीदें। यदि रेशे जरा भी कठोर लगें तो ब्रश बदल दें।
अधिक टेढ़े-मेढ़े दांत हों तो कई आकार के सिरे वाला ब्रश प्रयोग में लाया जा सकता है किंतु नर्म ही होने चाहिए।
ब्रश के रेशे मुलायम हों, सख्त नहीं।
सभी रेशे शीर्ष छोर पर समान सतह पर कटे हों।
अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ रेशों का ब्रश मसूड़ों को छील सकता है।
एक समान रेशे के हल्के से मुड़े हुए (अंदर की ओर) हैंडल वाले ब्रश अच्छे माने जाते हैं।
ब्रश साफ करके बंद डिब्बे में रखें व प्रयोग से पहले धो लें।
अच्छी कम्पनी का ब्रश ही खरीदें। यदि रेशे जरा भी कठोर लगें तो ब्रश बदल दें।
अधिक टेढ़े-मेढ़े दांत हों तो कई आकार के सिरे वाला ब्रश प्रयोग में लाया जा सकता है किंतु नर्म ही होने चाहिए।
ब्रश कैसे करें
यद्यपि बहुत दंत चिकित्सक हर भोजन के बाद ब्रश करने की सलाह देते हैं,
परन्तु व्यावहारिक रूप से यह सम्भव नहीं है—
प्रत्येक व्यक्ति खाना-पीना करने के बाद साफ पानी से कुल्ला ढंग से करें।
दांतों के बीच खाली जगह में अन्नकण फंसे नहीं रहने चाहिये। ऐसे अन्नकणों के निकालने के लिए टूथपिक का इस्तेमाल करें। मुलामम लकड़ी, तांबा, चांदी या सोने की साफ टूथपिक से अन्नकण निकालें।
भूलकर भी ऑलपीन, सूई या लोहे की किसी भी वस्तु से दांत न कुरेदें। जरा-सी लापरवाही से टिटनस का रोग हो सकता है, घाव हो सकते हैं, जख्म हो सकते हैं और मसूड़ों का रोग भी हो सकता है।
प्लाक 14 घंटे बाद बनना शुरू होता है। अतः दिन में दो बार प्रातःकाल शौच करने के बाद व रात्रि में सोते समय ब्रश अवश्य करना चाहिये।
याद रखें, प्रत्येक दांत को साफ करना है और उसकी सतह को भी।
पीछे की सतह को पहले साफ करें।
दांतों की चबाने वाली सतह जरूर साफ होनी चाहिए।
तालू तथा जीभ की भी, साफ, मुलामय जीभी से या हाथ की उंगलियों से सफाई अवश्य करें।
नीचे के जबड़े के बीच वाले (आगे के) दांतों के पीछे (जीभ वाली सतह पर) दंत पाषाण अधिक बनाता है क्योंकि लार का सर्वाधाकि स्राव भी यहीं से होता है। इस सतह की सफाई जरूर करें।
ऊपर के दांतों पर मसूड़ों से नीचे के दांतों पर मसूड़ों के ऊपर ब्रश अवश्य करना चाहिए।
मीठी वस्तुएं जैसे बर्फी, रसगुल्ले, आइसक्रीम, चॉकलेट, टॉफी, शकरकंदी, गन्ना आदि खाने के बाद कुल्ला अवश्य करें।
भोजन के अंत में सलाद कच्ची सब्जी, फल जैसे सेब आदि खाना स्वास्थ्य व दांतों के लिए लाभकारी रहता है। इनमें छिपे/फसें हुए अन्नकण भी निकल जाते हैं। बाद में सादे पानी से कुल्ला कर लें।
यदि प्रत्येक नास्ते एवं भोजन के बाद नमक पानी मिले या फिटकरी के पानी का कुल्ला करें तो दांतों की सेहत के लिए अच्छा रहता है।
प्रातःकाल ब्रश करने के बाद नमक के गुनगुने पानी से गरारे करने से गले के साथ-साथ दांतों की भी सफाई हो जाती है।
सप्ताह में एक दिन एक चाय का चम्मच पिसे हुए नमक में दस-बारह बूंद शुद्ध पीली सरसों के तेल को मिलाकर, दांतों व मशूढों की उंगली से मालिश करें आठ-दस मिनट हल्के-हल्के मालिश करते रहें।
नित्यप्रति (एक बार में) कम से कम तीन मिनट तक ब्रश अवश्य करना चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति खाना-पीना करने के बाद साफ पानी से कुल्ला ढंग से करें।
दांतों के बीच खाली जगह में अन्नकण फंसे नहीं रहने चाहिये। ऐसे अन्नकणों के निकालने के लिए टूथपिक का इस्तेमाल करें। मुलामम लकड़ी, तांबा, चांदी या सोने की साफ टूथपिक से अन्नकण निकालें।
भूलकर भी ऑलपीन, सूई या लोहे की किसी भी वस्तु से दांत न कुरेदें। जरा-सी लापरवाही से टिटनस का रोग हो सकता है, घाव हो सकते हैं, जख्म हो सकते हैं और मसूड़ों का रोग भी हो सकता है।
प्लाक 14 घंटे बाद बनना शुरू होता है। अतः दिन में दो बार प्रातःकाल शौच करने के बाद व रात्रि में सोते समय ब्रश अवश्य करना चाहिये।
याद रखें, प्रत्येक दांत को साफ करना है और उसकी सतह को भी।
पीछे की सतह को पहले साफ करें।
दांतों की चबाने वाली सतह जरूर साफ होनी चाहिए।
तालू तथा जीभ की भी, साफ, मुलामय जीभी से या हाथ की उंगलियों से सफाई अवश्य करें।
नीचे के जबड़े के बीच वाले (आगे के) दांतों के पीछे (जीभ वाली सतह पर) दंत पाषाण अधिक बनाता है क्योंकि लार का सर्वाधाकि स्राव भी यहीं से होता है। इस सतह की सफाई जरूर करें।
ऊपर के दांतों पर मसूड़ों से नीचे के दांतों पर मसूड़ों के ऊपर ब्रश अवश्य करना चाहिए।
मीठी वस्तुएं जैसे बर्फी, रसगुल्ले, आइसक्रीम, चॉकलेट, टॉफी, शकरकंदी, गन्ना आदि खाने के बाद कुल्ला अवश्य करें।
भोजन के अंत में सलाद कच्ची सब्जी, फल जैसे सेब आदि खाना स्वास्थ्य व दांतों के लिए लाभकारी रहता है। इनमें छिपे/फसें हुए अन्नकण भी निकल जाते हैं। बाद में सादे पानी से कुल्ला कर लें।
यदि प्रत्येक नास्ते एवं भोजन के बाद नमक पानी मिले या फिटकरी के पानी का कुल्ला करें तो दांतों की सेहत के लिए अच्छा रहता है।
प्रातःकाल ब्रश करने के बाद नमक के गुनगुने पानी से गरारे करने से गले के साथ-साथ दांतों की भी सफाई हो जाती है।
सप्ताह में एक दिन एक चाय का चम्मच पिसे हुए नमक में दस-बारह बूंद शुद्ध पीली सरसों के तेल को मिलाकर, दांतों व मशूढों की उंगली से मालिश करें आठ-दस मिनट हल्के-हल्के मालिश करते रहें।
नित्यप्रति (एक बार में) कम से कम तीन मिनट तक ब्रश अवश्य करना चाहिए।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book