संस्कृति >> वैदिक गणित गीता वैदिक गणित गीताकैलाशनाथ नेमानी
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दो सौ से अधिक अद्भुत,अनोखे,अनूठे व रोचक प्रश्नोत्तर तथा लम्बे प्रश्नों को तत्काल हल करने की सहज विधि...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वैदिक गणित गीता ने अपनी चिर-संचित अभिलाषा को पूर्ण करने का एक स्वर्णिम
अवसर प्रदान किया है। इसके सहयोग से आप किसी भी शताब्दी के, किसी भी ईस्वी
या सन् की, किसी भी तारीख का दिन कुछ ही पलों में बता सकते हैं। बड़े-बड़े
गुणा, लम्बे-जोड़, वर्ग, घन, कोई सी भी घात (पावर), किसी भी घात का मूल,
किसी के भी हाथ के ताश के सारे पत्ते आदि चुटकी बजाते बता सकते हैं। कैसे
भी जोड़, घटा, गुणा, भाग आदि को जांचना, कौन सी संख्या किस संख्या से
कटेगी आदि सारी बातें आपके लिए खेल के समान हो जाएँगी। यह पुस्तक
सर्वोपयोगी है।
वैदिक गणित गीता की उपलब्धियां
1. गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के सन्
1983 के संस्करण
के पृष्ठ 32 ‘ह्यूमैन कम्प्यूटर’ कॉलम में श्रीमती
शकुन्तला
देवी ने जून 18 सन् 1980 को इम्पीरियल कॉलेज लन्दन में 13 (तेरह अंकों) की
संख्या को तेरह अंकों की संख्या से मौखिक गुणा करके विश्व कीर्तिमान
स्थापित किया था। आप गणित गीता में रुचि लेकर तेरह से भी अधिक अंकों की
संख्या का गुणा मौखिक कर सकते हैं।
2. श्रीमती शकुन्तला देवी ने सन् 1976 में अमेरिका में 9 (नौ) अंकों की संख्या का धन मूल, मौखिक निकाला था। इसके अतिरिक्त शकुन्तला जी एवं कुछ जैन मुनि महेन्द्र मुनि, सुशील मुनि आदि मौखिक रूप से किसी भी ईस्वी सन् की तारीख का दिन, कई अंकों के जोड़ एक सौ एक अथवा कितनी भी समानान्तर संख्याओं का जोड़, किसी भी संख्या का कोई सा भी मूल आदि बताकर, अभी तक समस्त संसार को आश्चर्यचकित करते रहे हैं।
आप भी यह सब तथा इससे भी अधिक ज्ञान प्राप्त कर न केवल विश्व को चमत्कृत कर सकते हैं, बल्कि दैनिक जीवन यात्रा में, सफलता प्राप्त करने में भी, पूर्ण समर्थ हो सकते हैं आवश्यकता है केवल गणित गीता को रुचिपूर्वक पढ़ने की।
2. श्रीमती शकुन्तला देवी ने सन् 1976 में अमेरिका में 9 (नौ) अंकों की संख्या का धन मूल, मौखिक निकाला था। इसके अतिरिक्त शकुन्तला जी एवं कुछ जैन मुनि महेन्द्र मुनि, सुशील मुनि आदि मौखिक रूप से किसी भी ईस्वी सन् की तारीख का दिन, कई अंकों के जोड़ एक सौ एक अथवा कितनी भी समानान्तर संख्याओं का जोड़, किसी भी संख्या का कोई सा भी मूल आदि बताकर, अभी तक समस्त संसार को आश्चर्यचकित करते रहे हैं।
आप भी यह सब तथा इससे भी अधिक ज्ञान प्राप्त कर न केवल विश्व को चमत्कृत कर सकते हैं, बल्कि दैनिक जीवन यात्रा में, सफलता प्राप्त करने में भी, पूर्ण समर्थ हो सकते हैं आवश्यकता है केवल गणित गीता को रुचिपूर्वक पढ़ने की।
मानव संगणक बनना आपके लिये भी अति सहज
लम्बे प्रश्नों को तत्काल हल करने की सहज विधि
लम्बे प्रश्नों को तत्काल हल करने की सहज विधि
प्रस्तावना
गणित सृष्टि की श्रेष्ठतम विधा है, अनेक लोगों को यह भ्रम है कि गणित एक
कठिन विषय है, किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं, यदि गणित में रुचि उत्पन्न हो
जाय तो उससे सुन्दर, सरल व रुचिकर विषय भी दूसरा कोई नहीं है, जिस प्रकार
परम पिता परमात्मा की यह सृष्टि, एक निश्चित क्रम, लय व ताल पर चलती है,
वैसे ही गणित का भी एक निश्चित क्रम है, वह क्रम जैसे-जैसे समझ में आता
जाता है, रोचकता बढ़ती जाती है तथा विषय को सहज, सरल व सुखकर बनाती जाती
है, मूल सिद्धान्त है कि हर प्रश्न का उत्तर, उस प्रश्न में ही छिपा होता
है, अत: प्रश्न को बार-बार पढ़ना चाहिए, जितनी बार हम प्रश्न को पढेंगे
तथा उसकी गहराई में जायेंगे, उतना ही स्पष्ट होता जायेगा। मैंने इस पुस्तक
को शिशु से लेकर महानतम् विद्वान तक के लिए उपयोग एवं रोचक बनाने का
प्रयास किया गया है।
इस पुस्तक के द्वितीय भाग ‘‘विलक्षण बुद्धि विनोद’’, ‘‘दो सौ से अधिक रोचक प्रश्नोत्तर’’ में अद्भुत प्रश्न देकर, सुविज्ञ पाठकों की रुचि जागृत करने तथा उसे बढ़ने का भी प्रयास किया है। इसके प्रश्न ‘‘वज्रादपि कठोर एवं कुसुमादपि कोमल’’ हैं जिनको देख व सुनकर बड़े-बड़े विद्वान चकरा जायें तथा अपढ़ अशिक्षित व बच्चे भी सरलता से उत्तर दे सकें। अनेक नये प्रयोग भी इन पुस्तकों में पाठकों को मिलेंगे। मेरी इच्छा है कि इनके माध्यम से अशिक्षित भाषियों को भी हिन्दी भाषा व अंक शास्त्र सीखने की प्रेरणा प्राप्त हो, मेरा पूर्ण विश्वास है कि आप को पसन्द आयेगी। मेरी आप सबसे से प्रार्थना है कि अपने अमूल्य सुझाव व नये-नये प्रश्न भेजकर तथा त्रुटियों की ओर संकेत कर, इनको और अधिक उपयोगी बनाया जाये।
मेरा दावा है कि कोई भी गणित में रुचि रखने वाला व्यक्ति, स्वयं या किसी सुयोग्य अध्यापक की देख-रेख में अथवा मेरे मार्ग दर्शन में, इस पुस्तक के सहयोग से, दो माह में, नित्य एक घंटे तक के अभ्यास से गणित में पांरगत हो सकता है।
इस पुस्तक के द्वितीय भाग ‘‘विलक्षण बुद्धि विनोद’’, ‘‘दो सौ से अधिक रोचक प्रश्नोत्तर’’ में अद्भुत प्रश्न देकर, सुविज्ञ पाठकों की रुचि जागृत करने तथा उसे बढ़ने का भी प्रयास किया है। इसके प्रश्न ‘‘वज्रादपि कठोर एवं कुसुमादपि कोमल’’ हैं जिनको देख व सुनकर बड़े-बड़े विद्वान चकरा जायें तथा अपढ़ अशिक्षित व बच्चे भी सरलता से उत्तर दे सकें। अनेक नये प्रयोग भी इन पुस्तकों में पाठकों को मिलेंगे। मेरी इच्छा है कि इनके माध्यम से अशिक्षित भाषियों को भी हिन्दी भाषा व अंक शास्त्र सीखने की प्रेरणा प्राप्त हो, मेरा पूर्ण विश्वास है कि आप को पसन्द आयेगी। मेरी आप सबसे से प्रार्थना है कि अपने अमूल्य सुझाव व नये-नये प्रश्न भेजकर तथा त्रुटियों की ओर संकेत कर, इनको और अधिक उपयोगी बनाया जाये।
मेरा दावा है कि कोई भी गणित में रुचि रखने वाला व्यक्ति, स्वयं या किसी सुयोग्य अध्यापक की देख-रेख में अथवा मेरे मार्ग दर्शन में, इस पुस्तक के सहयोग से, दो माह में, नित्य एक घंटे तक के अभ्यास से गणित में पांरगत हो सकता है।
कैलाश नाथ नेमानी
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