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श्रंगार - प्रेम >> कोरा कागज

कोरा कागज

समीर

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3506
आईएसबीएन :0000

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एक नया उपन्यास...

Kora Kagaj

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


जगदेव जैसे-तैसे ऑफिस से निकले...उनके चेहरे से और आंखों से बदहवासी झलक रही थी...एक रिक्शा सामने नजर आया...वह इसमें सवार होते-होते तेज सांसों के साथ जल्दी बोले-
‘‘मेडिकल कॉलेज।’’
रिक्शा तेज गति से दौड़ने लगा...जगदेव का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था...आंखों में रश्मि की मासूम सूरत घूम रही थी, पूरे शरीर में बेचैनी-सी लहरें बनकर दौड़ रही थी।
रिक्शा मेडिकल कॉलेज पहुंचा-जगदेव ने जल्दी से किराया चुकाया और मेनगेट से अंदर दाखिल हुए तो एक जूनियर डॉक्टर उन्हें देखकर ठिठक गया।
‘‘आप आ गए कोहली साहब !’’
‘‘कैसी है मेरी रश्मि ? क्या वह खतरे में है ?’’
‘‘नहीं, रश्मि की जिन्दगी को कोई खतरा नहीं है।’’
जगदेव ने सन्तोष का सांस लिया और बोले-‘‘मैं तो डर ही गया था। अभी डॉक्टर चावला का फोन ऑफिस में मिला था...वह कह रहे थे कि मैं फौरन यहां आ जाउं।’’
‘‘डॉक्टर चावला ऑफिस में हैं...आप ही का इन्तजार कर रहे हैं।’’
‘‘मैं पहले एक नजर रश्मि को देख लूं ?’’

‘‘देख लीजिए, वह सिर्फ कॉमा में है...और अब उसके होश में आने की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं।’’
फिर किसी नर्स ने जूनियर डॉक्टर को बुला लिया। जगदेव पहले तेज-तेज इमरजेंसी वार्ड की तरफ चल पड़े-अब उनके दिल में घबराहट नहीं थी..लेकिन फिर भी एक बेचैनी-सी परेशान कर रही थी।
वार्ड में पहुंचकर उन्होंने लोहे के बैड पर लेटी बेटी रश्मि को देखा जिसकी सांसें नॉर्मल चल रही थीं... लेकिन उसकी आंखें इस तरह बंद थीं जैसे वह गहरी नींद सो रही हो...उसकी नाक में वह नलकी पड़ी हुई थी जिससे उसे खुराक पहुंचाई जा रही थी।
खूबसूरत, गोरी...सुनहरे बालों वाली रश्मि की रंगत कुछ फीकी पड़ने लगी थी...जगदेव का दिल भर आया। आंखें छलक पड़ीं...उनकी कल्पना में वह हंसती-खेलती, चहकती नटखट लड़की घूम गई जो टीकाराम गर्ल्स कॉलेज की सबसे होनहार स्टूडेंट थी-अपने साथी लड़के-लड़कियों की हीरोइन और प्रोफेसरों, लेक्चररों की आंखों का तारा।
रश्मि अपने कॉलेज में बेस्ट स्पोर्टिंग गर्ल थी...स्पोर्ट के हर आइटम में वह टॉप करती-हॉकी, स्वीमिंग सौ मीटर की रेस, हाई जम्प, लांग जम्प कोई भी गेम ऐसी नहीं थी, लेकिन तु तु तु की चैम्पियन थी...और विदेश में जाकर ट्रॉफी जीतकर लायी थी।

जगदेव ने अपने आंसू पोंछे...फिर वह मुड़कर बाहर आ गए तो एक अधेड़ उम्र आदमी उन्हें देखकर चौंककर बोला-‘‘अरे...जगदेव।’’
जगदेव भी ठिठक गए और रुककर बोले-‘‘रतन लाल..तुम कहां थे इतने बरस ?’’
‘‘बेरोजगार फिर रहा था...दुबई की एक कन्स्ट्रक्शन कम्पनी में एक सुपरवाइजर की जरूरत थी जिसके लिए कम से कम इंजीनियर के डिप्लोमा होल्डर की जरूरत थी..भाग्य था कि इन्टरव्यू में सफल हो गया और पांच बरस के काट्रैक्ट पर वहां चला गया...अभी पिछले ही महीने लौटकर आया हूं-टर्म पूरी होने पर।’’
‘‘ओह...भाभी...लड़का..क्या नाम है ? हां...कैसे हैं ? कहां हैं ?’’
‘‘दोनों को दिल्ली में अर्चना के माता-पिता के पास छोड़ गया था। सुदर्शन तो बी.एस-सी करके कम्प्यूटर में एम.एस. ऑफिस का कोर्स कर रहा है-एक प्राइवेट फर्म में उसकी नौकरी भी लग गई है-पन्द्रह हजार से शुरूआत...रिहायश, गाड़ी..मगर उसकी मां झिझक रही है।’
‘‘क्यों ?’’
‘‘मुम्बई जाना पड़ेगा।’’

‘‘यह तो अच्छी बात है...इतनी अच्छी नौकरी को ठुकराना नहीं चाहिए...तुम तो बेरोजगारी का मजा चख चुके हो।’’
‘‘मैंने भी यही समझाया है...शायद हम लोग चले ही जाएं।’’
‘‘यही अच्छा है-इधर कैसे आ गए थे ?’’
‘‘अरे यार ! अब उम्र का भी तकाजा होता है...बी.पी. हाई रहने लगा है...वैसे भी इंडिया के पानी में यह असर है कि चालीस साल से ही गैस बनने लगती है...मगर तुम यहां कैसे ?’’
जगदेव का चेहरा उतर गया।
रतनलाल ने घबराकर कहा-‘‘खैरियत तो है ? भाभी कैसी हैं ?’’
‘‘उसे तो परलोक सिधारे तीन बरस हो गए।’’
‘‘ओ गॉड !’’
‘‘रश्मि रह गई थी, उसकी निशानी...तेज-तर्रार बी.एस.सी. की स्टूडेंट और नम्बर वन स्पोर्ट्स गर्ल...।’’
‘‘कहां है ?’’
‘‘यहीं, आई.सी.यू. में।’’
‘‘ह्वाट ! क्या हुआ उसे ?’’
‘‘तीन महीने से कॉमा में है।’’
‘‘अरे...नहीं....!’’ रतनलाल उछल पड़ा।

‘‘साइकिल से कॉलेज जाती थी...एक ट्रक ने टक्कर मार दी..कई गज उछलकर सिर के बल गिरी ...बस तब से कॉमा में है।’’
‘‘हे भगवान ! कहां है वह ?’’
‘‘इस वार्ड में।’’ जगदेव ने इशारे से बताया।
‘‘मैं देख लूं ?’’
‘‘क्यों नहीं।’’
ठीक उसी वक्त एक जूनियर डॉक्टर ने कहा-
‘‘मिस्टर कोहली ! डॉक्टर चावला आपकी राह देख रहे हैं।’’
‘‘अच्छा, अच्छा ।’’ जगदेव ने रतनलाल से कहा-‘‘तुम लॉबी में रुकना...मैं डॉक्टर से मिलकर आता हूं।’’
‘‘ठीक है...मैं लॉबी में ही मिलूंगा।’’
जगदेव जल्दी-जल्दी चलते हुए डॉक्टर चावला के ऑफिस में आए तो डॉक्टर चावला ने उन्हें देखते ही कहा-
‘‘आइए जगदेव जी..मैं आप ही का इन्तजार कर रहा था..बैठिए।’’
‘‘मैं तो डर ही गया था आपका फोन पाकर, लेकिन यहां आकर देखा तो रश्मि की हालत तो वही बेहोशी की है।’’
‘‘जी हां !’’ डॉक्टर चावला ने कहा-‘‘अभी कुछ बेहोशी जरूरी है, लेकिन जल्दी ही कॉमा से निकलने की सम्भावना बढ़ गई है।’’

‘‘तो फिर...आपका फोन...!’’
‘‘हम लोग एक गम्भीर समस्या से दो-चार हो गए हैं।’’
जगदेव के दिमाग में बेचैनी उभरी, उन्होंने चिन्ता भरे स्वर में डॉक्टर चावला को देखकर पूछा-
‘‘कैसी समस्या ? कहीं रश्मि अपनी याददाश्त तो नहीं खो बैठेंगी ?’’
‘‘जी नहीं ।’’
‘‘फिर क्या प्रॉब्लम है ?’’
‘‘कहते हुए शर्म आ रही है।’’
‘‘आखिर, ऐसी क्या बात है...डॉक्टर ?’’
‘‘देखिए..आप तो जानते ही हैं कि कॉमा की हालत में आदमी का दिमाग मर जाता है या गहरी नींद सो जाता है और कोई भी फंक्शन खराब नहीं होता।’’
‘‘जी !’’
‘‘इस कैफियत में इस वक्त रश्मि से...।’’ डॉक्टर चावला कहते-कहते रुक गए।
जगदेव ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए पूछा-‘‘मगर क्या हुआ ?’’
‘‘दरअसल रश्मि गर्भवती हो गई है।’’

‘‘नहीं...!’’
जगदेव को ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर कोई बहुत भारी चट्टान आकर गिर गई हो...उनका पूरा शरीर झनझना गया था...आंखें फटी रह गई थीं।
चावला ने कहा-‘‘कॉमा की हालत में उसके साथ किसी नीच घटिया आदमी ने बलात्कार किया है।’’
‘‘हे भगवान ! किस नीच ने की है यह अमानवीय हरकत ?’’
‘‘हम खुद नहीं जानते।’’
‘‘आपने पता करने की कोशिश की ?’’
‘‘पूरी कोशिश कर डाली...जिन नर्सों की ड्यूटी बदल-बदलकर लगती है उनसे पूछताछ की गई... जिन डॉक्टरों की ड्यूटी लगती है उनसे भी मालूम किया गया...लेकिन ड्यूटी डॉक्टर सभी जिम्मेदार लोग हैं-उनमें से किसी भी से ऐसी कमीनी हरकत की आशा नहीं की जा सकती।’’
‘‘मगर...वार्ड ....!’’

‘‘भला वार्ड में छिपकर कौन आ सकता है जबकि बाहर चपरासी भी रहता है ? मैं खुद उलझन में हूं...मगर ज्यादा सख्ती से इसलिए छानबीन नहीं की गई कि बात फैल न जाए...इसमें लड़की की बदनामी का भी खतरा है...फिर ऐसे मामले की भनक भी अगर पुलिस तक पहुंच जाए और प्रेस को मिल जाए तो वह रिपोर्टरों के साथ कैमरे लेकर अस्पताल पर धावा बोल देंगे...टी.वी. वाले देश भर में यह बात फैला देंगे...स्टाफ का तो मुंह काला होगा ही...लड़की भी बदनाम हो जाएगी।’’
‘‘हे भगवान ! क्या होगा अब ? मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी, हमेशा के लिए।’’
‘‘यह तो मुझे भी सदमा है।’’
‘‘आप फौरन राजदारी से गर्भपात करा दीजिए।’’
‘‘यह भी संभव नहीं है।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘ऐसी हालत में गर्भपात के ऑपरेशन से लड़की जान खतरे में पड़ सकती है।’’
‘‘नहीं...!’’
‘‘उसका दिल बहुत कमजोर है-कराहने से तकलीफ तो घट जाती है, लेकिन कॉमा की हालत में वह कराह भी नहीं सकती।’’
‘‘फिर क्या होगा ?’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आता...अभी मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका...दिमाग में कोई हल नहीं सूझ रहा।’’
‘‘उसे कब तक होश आने की संभावना है ?’’
‘‘महीने पन्द्रह दिन में।’’
‘‘उसके बाद गर्भपात हो सकता है ?’’
‘‘होश आने के बाद कम से कम दो महीने बाद उसका शरीर अपनी खोई हुई शक्ति प्राप्त कर सकेगा।’’
‘‘ओह !’’
‘‘तब तो एबॉर्शन का समय बीत चुका होगा।’’
‘‘हे भगावन अब क्या होगा ?’’
‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा है।’’
अचानक टेलीफोन की घंटी बजी। चावला ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोला-‘‘यस डॉक्टर चावला।’’
‘‘डॉक्टर खुराना स्पीकिंग।’’

‘‘कॉमा की पेशेंट लड़की के बारे में कुछ मालूम हुआ ?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘मगर अंदाजे से यह गर्भ कितने दिन का है ?’’
‘‘लगभग दो महीने का।’’
‘‘दो महीने पहले के रजिस्टर चैक करके पता लगाइए, कौन-सी नर्स की ड्यूटी रात में लग रही थी ?’’
‘‘ओह !’’
‘‘जिन नर्सों की ड्यूटी हो, उन्हें लेकर मेरे पास आ जाइए।’’
‘‘बेहतर है।’’
डॉक्टर चावला ने रिसीवर रखकर जगदेव को बताया कि डॉक्टर खुराना से क्या बात हुई है...फिर उसने घंटी बजाकर चपरासी को बताया और दो महीने पहले से एक हफ्ते तक के ड्यूटी रजिस्टर मंगवाए।
कुछ देर बाद वह रजिस्टर पर झुका हुआ था...साथ ही उसने जगदेव से भी कहा-‘‘आज कुछ पता चल सकता है..आप चाहें तो घंटा-दो घंटा कहीं गुजारकर आ जाएं।’’
‘‘मेरा एक पुराना दोस्त मिल गया है।’’ जगदेव उठते हुए बोले-‘‘मैं लॉबी में उसके साथ हूं।’’
‘‘ठीक है।’’
जगदेव बाहर आ गए...उनकी आंखों में गहरी बेचैनी थी जिससे भीतर का दुःख झलक रहा था।

डॉक्टर चावला ने चौथी नर्स को अन्दर बुलाया...वह थोड़ी नर्वस नजर आ रही थी..ऐसे लगता था कि वह अपने-आपको सम्भालने की कोशिश कर रही है।’’
डॉक्टर चावला ने सामने वाली कुर्सी की तरफ इशारा करके नम्र स्वर में कहा-‘‘बैठिए।’’
‘‘थ...थैंक्यू !’’
नर्स बैठ गई...डॉक्टर चावला ने कहा-‘‘आप ही मिस मार्गन हैं ?’’
‘‘यस सर !’’
‘‘दो महीना पहले छब्बीस दिसम्बर की रात को आपकी ड्यूटी आई.सी.यू. नम्बर ग्यारह पर थी ?’’
‘‘जी !’’
‘‘आठ बजे रात से चार बजे सुबह तक।’’
‘‘जी हां।’’
‘‘उस वार्ड में कौन लड़की है ? आपको याद है ?’’

‘‘यस सर ! मिल रश्मि कोहली..वह कॉमा की पेशेंट...उन दिनों ही नई दाखिल हुई थी।’’
‘‘आपको उस रात की कोई खास बात याद है ?’’
‘‘मैं समझी नहीं।’’
‘‘एक मिनट..आपके ड्यूटी आवर्स कब से कब तक...आठ बजे रात से चार बजे सुबह तक रही।’’
‘‘सिर्फ एक हफ्ता।’’
‘‘सिर्फ एक हफ्ता ही क्यों ?’’
‘‘एक सीरियस केस आ गया था...ऑपरेशन का...एक घायल की खोपड़ी का ऑपरेशन करके हड्डियों के टुकड़े निकाले गए थे...मेरी ड्यूटी उसकी देखभाल पर लगा दी गई...एक हफ्ता बाद वह मर गया था।’’
‘‘उसके बाद ?’’
‘‘मेरी ड्यूटी दिन की हो गई थी।’’
‘‘तो ग्यारह नम्बर वार्ड में आप एक हफ्ता ही रही थीं ?’’
‘‘जी हां !’’
‘‘उसी एक हफ्ते में कोई खास बात आपको याद है ?’’
‘‘यस सर...जनरल वार्ड नम्बर पांच से एक जच्चा ने तीन सिरों वाले बच्चे को जन्म दिया था...शहर के बहुत सारे लोग, साइंस के स्टूडेंट लड़के लड़कियां और पत्रकार...टी.वी..वालों ने भी शॉट लिए थे।’’
‘‘ज्यादा भीड़ जनरल वार्ड नम्बर पांच पर रही थी इसलिए बाकी सारे वार्ड लगभग सुनसान-से रहे थे।’’
‘‘यस सर !’’
‘‘क्या आप भी उस बच्ची को देखने गई थी ?’’
‘‘यस सर !’’



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