स्वास्थ्य-चिकित्सा >> प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य दूध,घी,दही प्रकृति द्वारा स्वास्थ्य दूध,घी,दहीराजीव शर्मा
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दूध घी दही के गुणों का वर्णन....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रकृति हम सबको सदा स्वस्थ बनाए रखना चाहती हैं और इसके लिए प्रकृति ने
अनेक प्रकार के फल, फूल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियाँ, अनाज,
दूध, दही, मसाले, शहद, जल एवं अन्य उपयोगी व गुणकारी वस्तुएँ
प्रदान
की हैं। इस उपयोगी पुस्तक माला में हमने इन्हीं उपयोगी वस्तुओं के गुणों
एवं उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा की है। आशा है यह पुस्तक आपके
समस्त परिवार को सदा स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे तुलसी-अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है-यह पुस्तक।
प्रकृति ने हमारे शरीर-संरचना एवं स्वभाव को ध्यान में रखकर ही औषधीय गुणों से युक्त पदार्थ बनाए हैं। शरीर की भिन्न-भिन्न व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं।
इन्हीं अमृततुल्य पदार्थों जैसे तुलसी-अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में जानकारी अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास है-यह पुस्तक।
प्रस्तावना
प्रकृति ने हमारे शरीर, गुण व स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी,
मसाले, द्रव्य आदि औषधीय गुणों से युक्त ‘‘घर के
वैद्यों’’ का भी उत्पादन किया है। शरीर की
भिन्न-भिन्न
व्याधियों के लिए उपयोगी ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ, अमृततुल्य हैं। ये
पदार्थ उपयोगी हैं, इस बात का प्रमाण प्राचीन आयुर्वेदिक व यूनानी ग्रंथों
में ही नहीं मिलता, वरन् आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इनके गुणों का बखान
करता नहीं थकता। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि फल, सब्जी,
मेवे, मसाले, दूध, दही आदि पदार्थ विटामिन, खनिज व कार्बोहाइड्रेट जैसे
शरीर के लिए आवश्यक तत्त्वों का भंडार हैं। ये प्राकृतिक भोज्य पदार्थ
शरीर को निरोगी बनाए रखने में तो सहायक हैं ही, साथ ही रोगों को भी ठीक
करने में पूरी तरह सक्षम है।
तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,
तुलसी, अदरक, हल्दी, आँवला, पपीता, बेल, प्याज, लहसुन, मूली, गाजर, नीबू, सेब, अमरूद, आम, विभिन्न सब्जियां मसाले व दूध, दही, शहद आदि के औषधीय गुणों व रोगों में इनके प्रयोग के बारे में अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास ‘मानव कल्याण’ व ‘सेवा भाव’ को ध्यान में रखकर किया गया है।
उम्मीद है, पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे।
सादर,
-डॉ. राजीव शर्मा
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दरशहर, उ.प्र.
आरोग्य ज्योति
320-322 टीचर्स कॉलोनी
बुलन्दरशहर, उ.प्र.
पुरानी व नई माप
8 रत्ती = 1 माशा,
12 माशा = 1 तोला
1 तोला = 12 ग्राम
5 तोला = 1 छटांक
16 छटांक = 1 कि.ग्रा.
1 छटांक = लगभग 60 ग्राम
8 रत्ती = 1 माशा,
12 माशा = 1 तोला
1 तोला = 12 ग्राम
5 तोला = 1 छटांक
16 छटांक = 1 कि.ग्रा.
1 छटांक = लगभग 60 ग्राम
दूध-घी
सामान्य परिचय
संस्कृत में दूध के तीन मूल नाम मुख्यतः प्रचलित हैं—दुग्ध,
क्षीर
और पय। ‘दुग्धं क्षीरे पूरिते च’, ‘क्षीरं
पानीयदुग्ध
यो:’, ‘पयः क्षीरे च नीरे च’—इन
तीनों नामों की
व्युत्पुत्तियां संस्कृत में बहुप्रचलित हैं। इनके अलावा दूध के हजारों
नाम संसार की हर भाषा में प्रयोग में लाए जाते हैं। दक्षिण भारत की
प्राचीन बोली में इसे ‘पाल’ कहा जाता है। यही नाम
इसका तमिल
में भी है। अंग्रेजी में इसे ‘मिल्क’ कहते हैं। दूध
शब्द
संस्कृत के ‘दुग्ध’ का अपभ्रंश रूप है।
हिन्दू धर्मग्रन्थों में दूध के गुणों की अत्यधिक महिमा बखान की गई है। इसके अलावा बाइबिल, कुरान, अस्वेता इत्यादि प्राचीन ग्रंथ भी दूध देने वाले पशुओं के महत्व के गुण गान से भरे पड़े हैं।
हिन्दुओं में गाय का सर्वोपरि महत्त्व उसके दूध के कारण ही है। यहूदी और ईसाइयों में भेड़ और बकरी के दूध का प्रचलन है। अरब जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में ऊंटनी के दूध का उपयोग होता रहा है। भारत में गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध पुराने समय ही से उपयोगी माना जाता रहा है।
हिन्दुओं के पूज्य और संसार के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में गाय की पूज्यता उसके दुग्ध के कारण ही है। पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है—
धार्मिक महत्त्व
हिन्दू धर्मग्रन्थों में दूध के गुणों की अत्यधिक महिमा बखान की गई है। इसके अलावा बाइबिल, कुरान, अस्वेता इत्यादि प्राचीन ग्रंथ भी दूध देने वाले पशुओं के महत्व के गुण गान से भरे पड़े हैं।
हिन्दुओं में गाय का सर्वोपरि महत्त्व उसके दूध के कारण ही है। यहूदी और ईसाइयों में भेड़ और बकरी के दूध का प्रचलन है। अरब जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में ऊंटनी के दूध का उपयोग होता रहा है। भारत में गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध पुराने समय ही से उपयोगी माना जाता रहा है।
हिन्दुओं के पूज्य और संसार के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में गाय की पूज्यता उसके दुग्ध के कारण ही है। पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है—
गावो हि पूज्याः सततं सर्वेषां नात्र संशयः।
अर्थात् जो व्यक्ति स्वयं गाय का हनन करे या किसी अन्य से मरवाए, हरण करे
या हरण करवाए, उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए।
इसी प्रकार वेदों, पुराणों और अन्य धर्म शास्त्रों में भी गाय और उसके दूध का महत्व उसके गुणों के कारण विस्तारपूर्वक लिखा गया है।
हिन्दुओं में गाय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। पहले गोवध का प्रायश्चित मृत गाय की पूंछ लेकर एक वर्ष या तीन वर्ष इत्यादि समय तक भिक्षा मांगने पर पूर्ण होता था। आज भी गोवध को हिन्दुओं में अत्यंत घृणा से देखा जाता है। गाय को ‘माता’ का स्थान इसी कारण दिया गया है। क्योंकि माता ही ऐसी प्राणी है जो जीवन धारण करने के लिए दूध प्रदान करती है।
पूजा की थाली में घी का दीपक जलाकर रखना, देव-पूजन, यज्ञ-हवन इत्यादि में शुद्ध घी का प्रयोग करना, धार्मिक कृत्यों में दूध और घी का उपयोग करना आदि बातें इस बात की परिचायक हैं कि दूध और घी का महत्व मानव जीवन में सर्वोपरि है।
हिन्दुओं में शिवमूर्ति पर दूध चढ़ाना दूध की इसी महत्ता का परिचायक है जैन लोग भी अपनी देवमूर्तियों को दूध से ही स्नान कराते हैं। दूध से स्नान कराना पवित्रता और श्रेष्ठतम वस्तु की भावना प्रकट करता है।
घरों में गाय पालना एक पवित्र धर्म माना जाता है जो भारत में दूध-घी के सर्वोत्कृष्ट गुणों के कारण ही है। ऋषी-मुनिगण भी सदैव अपने आश्रमों में गाय पालते थे। गाय को सभी तीर्थों का वास माना गया है। शास्त्रों में तो यहाँ तक प्रतिपादित है कि गाय के शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित समस्त सैंतीस करोड़ देवता निवास करते हैं।
दूध में पाए जाने वाले अनुपम गुणों के कारण ही इसे समस्त पदार्थों में सर्वोत्तम माना गया है। यह सबसे अच्छा और सुपाच्य पदार्थ है विभिन्न साग-सब्जियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों को पचाने में शरीर की जितनी ऊर्जा व्यय होती है, उससे आधी भी दूध को पचाने में व्यय नहीं करनी पड़ती। वास्तव में यह पचा-पचाया रस है जो अतिशीघ्र शारीरिक अवयवों में परिवर्तित हो जाता है। इसे न काटने की, न चबाने की जरूरत है और न ही इसके लिए आंतों को पचाने में कोई श्रम करना पड़ता है। इसे शरीर की समस्त धातुओं में वृद्धि करने वाला ‘मधुर रस’ कहा गया है।
दूध की इन्हीं विशेषताओं ने भारत में गाय को सर्वश्रेष्छ पशु का महत्व प्रदान किया है। यहां तक कि गाय को ‘गोमाता’ कहकर उसका सदैव सम्मान किया जाता है। उसे पौराणिक नाम ‘कामधेनु’ देने का अर्थ भी यही है कि ‘गाय’ ही एक मात्र पशु है जिसके संवर्द्धन से समस्त इच्छाएं पूर्ण की जा सकती हैं।
इसी प्रकार वेदों, पुराणों और अन्य धर्म शास्त्रों में भी गाय और उसके दूध का महत्व उसके गुणों के कारण विस्तारपूर्वक लिखा गया है।
हिन्दुओं में गाय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। पहले गोवध का प्रायश्चित मृत गाय की पूंछ लेकर एक वर्ष या तीन वर्ष इत्यादि समय तक भिक्षा मांगने पर पूर्ण होता था। आज भी गोवध को हिन्दुओं में अत्यंत घृणा से देखा जाता है। गाय को ‘माता’ का स्थान इसी कारण दिया गया है। क्योंकि माता ही ऐसी प्राणी है जो जीवन धारण करने के लिए दूध प्रदान करती है।
पूजा की थाली में घी का दीपक जलाकर रखना, देव-पूजन, यज्ञ-हवन इत्यादि में शुद्ध घी का प्रयोग करना, धार्मिक कृत्यों में दूध और घी का उपयोग करना आदि बातें इस बात की परिचायक हैं कि दूध और घी का महत्व मानव जीवन में सर्वोपरि है।
हिन्दुओं में शिवमूर्ति पर दूध चढ़ाना दूध की इसी महत्ता का परिचायक है जैन लोग भी अपनी देवमूर्तियों को दूध से ही स्नान कराते हैं। दूध से स्नान कराना पवित्रता और श्रेष्ठतम वस्तु की भावना प्रकट करता है।
घरों में गाय पालना एक पवित्र धर्म माना जाता है जो भारत में दूध-घी के सर्वोत्कृष्ट गुणों के कारण ही है। ऋषी-मुनिगण भी सदैव अपने आश्रमों में गाय पालते थे। गाय को सभी तीर्थों का वास माना गया है। शास्त्रों में तो यहाँ तक प्रतिपादित है कि गाय के शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित समस्त सैंतीस करोड़ देवता निवास करते हैं।
दूध में पाए जाने वाले अनुपम गुणों के कारण ही इसे समस्त पदार्थों में सर्वोत्तम माना गया है। यह सबसे अच्छा और सुपाच्य पदार्थ है विभिन्न साग-सब्जियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों को पचाने में शरीर की जितनी ऊर्जा व्यय होती है, उससे आधी भी दूध को पचाने में व्यय नहीं करनी पड़ती। वास्तव में यह पचा-पचाया रस है जो अतिशीघ्र शारीरिक अवयवों में परिवर्तित हो जाता है। इसे न काटने की, न चबाने की जरूरत है और न ही इसके लिए आंतों को पचाने में कोई श्रम करना पड़ता है। इसे शरीर की समस्त धातुओं में वृद्धि करने वाला ‘मधुर रस’ कहा गया है।
दूध की इन्हीं विशेषताओं ने भारत में गाय को सर्वश्रेष्छ पशु का महत्व प्रदान किया है। यहां तक कि गाय को ‘गोमाता’ कहकर उसका सदैव सम्मान किया जाता है। उसे पौराणिक नाम ‘कामधेनु’ देने का अर्थ भी यही है कि ‘गाय’ ही एक मात्र पशु है जिसके संवर्द्धन से समस्त इच्छाएं पूर्ण की जा सकती हैं।
दूध के अनमोल गुण
दूध अनमोल गुणों का खजाना है। प्राचीन भारतीय ऋषियों का आयुर्वेदिक मंत्र
और आशीर्वचन ‘जीवेम् शरदः शतम्’ दूध की शक्ति पर ही
आधारित
रहा है। दूध शरीर को मात्र शक्ति ही प्रदान नहीं करता, अपितु पुष्टि भी
देता है। इसके सेवन से शरीर के समस्त धातुओं में वृद्धि होती है। दूध
मनुष्य को ओज और तेज प्रदान करने का अनुपम साधन है।
आयुर्वेद में दूध को ‘सवौषधीरसार’ अर्थात् समस्त औषधियों का सत्व कहा गया है। इसे समस्त रोगों की औषधि बताया गया है। यह ‘आयुवर्द्धक’ अर्थात् आयु बढ़ाने वाला, ‘अक्षि-ज्योति’ अर्थात् आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला ‘मेध्य अर्थात् मस्तिष्क की मेधा शक्ति में वृद्धि करने वाला, ‘हृद्य’ अर्थात् हृदय को बल प्रदान करने वाला, ‘देव्य’ अर्थात् देवयज्ञों में उपयोग होने वाला ‘अनिन्द्य’ अर्थात् कभी भी निन्दा के योग्य न माना जाने वाला, ‘वीर्यवान’ अर्थात् वीर्य में वृद्धि करने वाला ‘बल्य’ अर्थात् बल प्रदान करने वाला, सेव्य’ अर्थात् सेवन करने योग्य और ‘रसायन एवं रसोत्तम’ अर्थात् समस्त रसों में श्रेष्ठ रस तथा विभिन्न रसों का सार माना गया है।
आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार भी दूध सर्वोत्तम पेय पदार्थ है जिसे ‘संपूर्ण खाद्य’ माना जाता है। इसमें 85 प्रतिशत प्रोटीन होता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयोडीन, फॉस्फोरस, आयरन इत्यादि खनिज लवण और ‘ए’ विटामिन ‘सी’, विटामिन ‘डी’, विटामिन ‘एच’, विटामिन ‘बी’ जैसे अनेक विटामिन भी इसमें पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं। इससे प्राप्त वसा अर्थात् ‘फैट’ भी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है जो अत्यंत सुपाच्य और हल्की होती है। इसी प्रकार दूध एक ऐसा पदार्थ है जिसके सहारे मनुष्य अन्य खाद्य इत्यादि ग्रहण किए बिना भी संपूर्ण स्वस्थ जीवन बिता सकता है।
आयुर्वेद में दूध को ‘सवौषधीरसार’ अर्थात् समस्त औषधियों का सत्व कहा गया है। इसे समस्त रोगों की औषधि बताया गया है। यह ‘आयुवर्द्धक’ अर्थात् आयु बढ़ाने वाला, ‘अक्षि-ज्योति’ अर्थात् आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला ‘मेध्य अर्थात् मस्तिष्क की मेधा शक्ति में वृद्धि करने वाला, ‘हृद्य’ अर्थात् हृदय को बल प्रदान करने वाला, ‘देव्य’ अर्थात् देवयज्ञों में उपयोग होने वाला ‘अनिन्द्य’ अर्थात् कभी भी निन्दा के योग्य न माना जाने वाला, ‘वीर्यवान’ अर्थात् वीर्य में वृद्धि करने वाला ‘बल्य’ अर्थात् बल प्रदान करने वाला, सेव्य’ अर्थात् सेवन करने योग्य और ‘रसायन एवं रसोत्तम’ अर्थात् समस्त रसों में श्रेष्ठ रस तथा विभिन्न रसों का सार माना गया है।
आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार भी दूध सर्वोत्तम पेय पदार्थ है जिसे ‘संपूर्ण खाद्य’ माना जाता है। इसमें 85 प्रतिशत प्रोटीन होता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयोडीन, फॉस्फोरस, आयरन इत्यादि खनिज लवण और ‘ए’ विटामिन ‘सी’, विटामिन ‘डी’, विटामिन ‘एच’, विटामिन ‘बी’ जैसे अनेक विटामिन भी इसमें पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं। इससे प्राप्त वसा अर्थात् ‘फैट’ भी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है जो अत्यंत सुपाच्य और हल्की होती है। इसी प्रकार दूध एक ऐसा पदार्थ है जिसके सहारे मनुष्य अन्य खाद्य इत्यादि ग्रहण किए बिना भी संपूर्ण स्वस्थ जीवन बिता सकता है।
जीर्ण ज्वरे मनोरोगे शोध-मूर्च्छा
भ्रमेषुच, हितं एतद् उदाहृतम।
भ्रमेषुच, हितं एतद् उदाहृतम।
आयुर्वेद के इस श्लोक का अर्थ है कि पुराने से पुराना ज्वर, मानसिक
बीमारियों, सूजन, बेहोशी और भ्रम अर्थात् मस्तिष्क विकारों को दूर करने
में गाय का दूध-घी सर्वोत्तम हितकर है।
दूध-घी ‘आयुष्य’ अर्थात् आयु बढ़ाने वाला, ‘वृष्य’ अर्थात् पौरुष में वृद्धि करने वाला तथा ‘वयः स्थापन्द’ अर्थात् वय को सुस्थिर करने वाला है।
दूध-घी ‘आयुष्य’ अर्थात् आयु बढ़ाने वाला, ‘वृष्य’ अर्थात् पौरुष में वृद्धि करने वाला तथा ‘वयः स्थापन्द’ अर्थात् वय को सुस्थिर करने वाला है।
श्रमे क्लमे हितम् एतद्।
भाव प्रकाश निघण्टु के इस वाक्य से स्पष्ट है
कि दूध श्रम और थकान का नाश
करने वाला है।
घी के गुण
दूध प्रत्येक आयु वर्ग को पौष्टिकता प्रदान करता है। यह सारे संसार में
प्रयुक्त होने वाला प्रिय पदार्थ है। इसके साथ-साथ दूध अपने हर रूप में
उपयोगी है। इससे अन्य उत्पाद भी तैयार किये जाते हैं। जैसे—घी,
पनीर, मावा, दही, छाछ (मट्ठा), क्रीम, मक्खन इत्यादि। दूध इसी व्यापक
आवश्यकता के कारण इसका व्यवसाय विश्व में सर्वाधिक है।
घी क्या है ?
घी दूध से प्राप्त होने वाला अद्भुत रसायन है जो प्राचीन भारत के
बुद्धिमान और मनीषी ऋषियों की देन है। यूरोप और पश्चिमी देशों में अंग्रेज
जाति के पूर्वज दूध से केवल मक्खन बनाने की कला ही जानते थे जबकि भारत में
इससे अधिक सूक्ष्म और पौष्टिक पदार्थ घी का आविष्कार किया गया। घी वस्तुतः
दूध में निहित वसा और विटामिनों का मिश्रण है।
दूध में कितना घी
प्राचीन आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार, गाय के एक द्रोण दूध में से एक
प्रस्थ घी निकलना चाहिए अर्थात् एक सेर दूध में से एक छटांक घी निकलता है
जबकि भैंस के एक द्रोण शुद्ध दूध में पांच भाग घी अधिक निकलता है अर्थात्
एक सेर दूध में एक छटांक और पांचवा भाग (लगभग 70 ग्राम) घी निकलेगा। भेड़
तथा बकरी के एक सेर दूध में डेढ़ छटांक (लगभग 90 ग्राम) घी निकलेगा। किसी
भी दूध को मथकर उसमें से निकलने वाले घी की मात्रा से दूध की शुद्धता की
जांच आसानी से की जा सकती है।
घी के गुण
घी दूध का पौष्टिक और ठोस रूप है। इसमें दूध की तुलना में सूक्ष्म और
भारी—दोनों गुण होते हैं। गाय के दूध की भांति गाय का घी भी
आयुर्वेद में अमृत का रूप माना गया है, क्योंकि यह दूध का ही सत्व होता
है। घी के गुणों को अनिर्वचनीय माना गया है। इसी कारण प्रत्येक यज्ञ में,
संस्कार में अथवा प्रातः—सायंकालीन हवन में घी की आहुति दी जाती
है।
पूजा में घी का दीपक ही शुभ होता है। घी वातावरण में शुद्धि उत्पन्न करता
है। यह पर्यावरण का महान रक्षक है। आयुर्वेद के अनुसार गाय का घी किसी भी
प्रकार के विष का प्रभाव नष्ट करने में सक्षम है। यह अनेक औषधियों का आधार
है जिसमें विलीन होकर ही वे अपना प्रभाव दिखाती हैं। वास्तव में
घी,
वीर्य, पुष्टि और शक्ति का आद्भुत स्रोत है।
सिर के रोग
इन रोगों में मुख्यतः माइग्रेन (आधासीसी दर्द), अनिंद्रा (नींद न आना),
सिर दर्द, स्नायु-दौर्बल्य, उन्माद भ्रम आदि रोग भी शामिल हैं। यह सभी रोग
कमजोर मस्तिष्क के लोगों को अधिक होते हैं।
माइग्रेन (आधासीसी दर्द)
सिर के आधे भाग में रक्त-संचार में रुकावट हो जाना इस रोग का मुख्य कारण
है। स्त्रियों को यह रोग अधिक घेरता है जो उनके मासिक—चक्र,
गर्भावस्था इत्यादि के कारण होता है। दिमागी काम की अधिकता, मानसिक
चिन्ताएं और तनाव, वायु प्रकोप, प्रदूषणजन्य वातावरण में काम करना इत्यादि
इस रोग के अन्य कारण हैं।
इसमें सूर्योदय होने के साथ ही सिर के आधे भाग में दर्द शुरू हो जाता है। यद दर्द सूर्यास्त तक बना रहता है। कभी-कभी अत्यंत तीव्र दर्द होता है। सर्दी लगना, चक्कर आना, मन्दाग्नि हो जाना, उल्टी होना अथवा प्रकाश की असहनीयता जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
इसमें सूर्योदय होने के साथ ही सिर के आधे भाग में दर्द शुरू हो जाता है। यद दर्द सूर्यास्त तक बना रहता है। कभी-कभी अत्यंत तीव्र दर्द होता है। सर्दी लगना, चक्कर आना, मन्दाग्नि हो जाना, उल्टी होना अथवा प्रकाश की असहनीयता जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
उपचार—
250 मि.ली. गाय के दूध में 250 मि.ली. पानी मिलाएं। अब 5
लौंग, 5 टुकड़े दालचीनी और 2 टुकड़े पिप्पली-तीनों को पीसकर दूध-पानी में
मिलाकर गुनगुना ही घूंट-घूंट करके सेवन करें और कंबल लपेटकर सो जाएं।
सुबह–शाम दो बार यह प्रयोग कुछ दिन तक करें।
सिर दर्द
सिर दर्द होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं। बुखार, सर्दी, वात रोग,
अत्यधिक गरमी, नेत्र क्षीणता, मधुमेह आदि सिर दर्द के प्रधान कारण हैं।
भूख के कारण भी सिर में दर्द होता है। व्यक्ति को किसी वस्तु विशेष जैसे
बीड़ी-सिगरेट-तम्बाकू, चाय—कॉफी—मदिरा इत्यादि की लत
होने पर
उस वस्तु के न मिलने से भी सिर में दर्द हो जाता है।
इसके अलावा कार्य की अधिकता या एक ही काम को निरंतर कई घंटे तक करते रहने पर भी सिर दर्द हो सकता है। अत्यधिक चिंता, किसी विषय पर लगातार सोचना, मानसिक आवेग इत्यादि कारणों से सिर में दर्द होने लगता है।
सिर का दर्द हल्का या तेज हो सकता है। तेज सिर दर्द में सिर फटने-सा लगता है। माथे में तीव्र गरमी, पसीना, सुइयां चुभने जैसा अनुभव इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं। बेचैनी महसूस होती है। सब काम—धाम छोड़कर भाग जाने की इच्छा होती है।
इसके अलावा कार्य की अधिकता या एक ही काम को निरंतर कई घंटे तक करते रहने पर भी सिर दर्द हो सकता है। अत्यधिक चिंता, किसी विषय पर लगातार सोचना, मानसिक आवेग इत्यादि कारणों से सिर में दर्द होने लगता है।
सिर का दर्द हल्का या तेज हो सकता है। तेज सिर दर्द में सिर फटने-सा लगता है। माथे में तीव्र गरमी, पसीना, सुइयां चुभने जैसा अनुभव इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं। बेचैनी महसूस होती है। सब काम—धाम छोड़कर भाग जाने की इच्छा होती है।
उपचार—
गाय का शुद्ध घी माथे, कनपटियों तथा पैर के तलवों पर लेप
कर
मालिश करें। सर्दियों में घी गुनगुना कर लें। सिर दर्द में आराम आ जाएगा।
गाय के गरम दूध के साथ चुटकी भर फिटकरी भस्म और चुटकी भर सोना गेरू पीस कर सेवन करें। सिर का दर्द दूर हो जाएगा।
गाय के गरम दूध के साथ चुटकी भर फिटकरी भस्म और चुटकी भर सोना गेरू पीस कर सेवन करें। सिर का दर्द दूर हो जाएगा।
स्नायु-दौर्बल्य
अत्यधिक चिंता, अत्यदिक परिश्रम, किसी लंबी बीमारी अथवा अत्यधिक
मैथुन—कर्म इत्यादि कारणों से स्नायु—दौर्बल्य का रोग
हो जाता
है। वायु और कब्ज की उपेक्षा से भी इस रोग का जन्म हो सकता है।
जल्दी थकान का अनुभव होना, शारीरिक कमजोरी, मानसिक शिथिलता (नर्वस) अनुभव करना इत्यादि की शिकायत हो जाती है। सिर में दर्द, सिर में चक्कर, स्फूर्ति की कमी, अनिद्रा, बात-बात में उत्तेजना, भोजन में अरुचि, रक्ताल्पता, शारीरिक भार में ह्रास, हृदय की धड़कनों में वृद्धि हो जाना इत्यादि अन्य लक्षण भी स्नायु-दुर्बलता में दिखाई देते हैं।
जल्दी थकान का अनुभव होना, शारीरिक कमजोरी, मानसिक शिथिलता (नर्वस) अनुभव करना इत्यादि की शिकायत हो जाती है। सिर में दर्द, सिर में चक्कर, स्फूर्ति की कमी, अनिद्रा, बात-बात में उत्तेजना, भोजन में अरुचि, रक्ताल्पता, शारीरिक भार में ह्रास, हृदय की धड़कनों में वृद्धि हो जाना इत्यादि अन्य लक्षण भी स्नायु-दुर्बलता में दिखाई देते हैं।
उपचार—
मुर्गी का अण्डा उबालकर अण्डे की पीली जर्दी निकाल लें।
फिर इसे दूध व चीनी के साथ नित्य प्रतिदिन सुबह सेवन करें।
पिस्ता, बादाम और किशमिश—तीनों 15-15 नग लेकर खरल में घोट लें। फिर उसे गुनगुने दूध के साथ सेवन करें।
रोगी को अति श्रम से दूर रखें और मैथुन-कर्म वर्जित करें। सुबह-शाम स्वास्थ्यकारी वातावरण में टहलें। कब्ज या दस्त न होने दें। मानसिक आवेगों से बचें। इन उपायों से स्नायु-दौर्बल्य समाप्त हो जाता है।
पिस्ता, बादाम और किशमिश—तीनों 15-15 नग लेकर खरल में घोट लें। फिर उसे गुनगुने दूध के साथ सेवन करें।
रोगी को अति श्रम से दूर रखें और मैथुन-कर्म वर्जित करें। सुबह-शाम स्वास्थ्यकारी वातावरण में टहलें। कब्ज या दस्त न होने दें। मानसिक आवेगों से बचें। इन उपायों से स्नायु-दौर्बल्य समाप्त हो जाता है।
उन्माद
अत्यधिक परिश्रम, अत्यधिक गरम और उत्तेजक आहार, मांस—मदिरा का
अधिक
सेवन, निरंतर मानसिक परेशानियां तथा मस्तिष्क में उद्वेग की अधिकता
इत्यादि कारणों से उन्माद रोग उपजता है। शरीर में या सिर पर गहरी चोट लगने
अथवा अत्यधिक गरमी के कारण भी उन्माद रोग हो सकता है। भारी नुकसान,
प्रतिद्वंद्वी से हार जाने अथवा निराशा के कारण भी यह रोग हो जाता है।
जन्मजात उन्माद रोग का उपचार संभव नहीं है, परंतु युवावस्था के पश्चात्
होने वाले रोग अथवा अल्पकालीन रोग के रोगी उपचार द्वारा ठीक हो जाते हैं।
अनिद्रा, अपच, स्मृति-नाश, बुद्धि-भ्रम, स्वेच्छा से बिना किसी तारतम्य की बातें कहना, आंखों की भाव-भंगिमा में परिवर्तन हो जाना, मानसिक भावनाओं को अधिक प्रकट करना, इच्छाओं पर काबू न रह जाना, तेज बोलना या अचानक चुप हो जाना इत्यादि लक्षण इस रोग में दिखाई देते हैं। रोगी आत्महत्या के विचार से भी ग्रस्त हो सकता है।
अनिद्रा, अपच, स्मृति-नाश, बुद्धि-भ्रम, स्वेच्छा से बिना किसी तारतम्य की बातें कहना, आंखों की भाव-भंगिमा में परिवर्तन हो जाना, मानसिक भावनाओं को अधिक प्रकट करना, इच्छाओं पर काबू न रह जाना, तेज बोलना या अचानक चुप हो जाना इत्यादि लक्षण इस रोग में दिखाई देते हैं। रोगी आत्महत्या के विचार से भी ग्रस्त हो सकता है।
उपचार—
ब्राह्मी बूटी को गाय के घी में भली भांति पकाएं।
ब्राह्मी
बूटी न मिलने पर किसी प्रसिद्ध आयुर्वेदिक संस्थान का
‘ब्राह्मीघृत’ खरीद लाएं और एक गिलास गाय के दूध में
10 ग्राम
यह घी डालकर एक उबाल दें। फिर इसे हल्का सा फेंटकर गुनगुना रह जाने पर 25
ग्राम शहद घोलकर घूंट-घूंट सेवन करें। एक माह के नियमित प्रयोग से यह रोग
दूर हो जाएगा।
सर्पगंधा तथा जटामांसी का चूर्ण 4-4 ग्राम लेकर 2 ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।
भोजन में धारोष्ण दूध, ताजे घी, कच्चे नारियल आदि की अधिकता रखें। मानसिक उत्तेजना से रोगी को बचाएं। भरपूर नींद लेने दें। हल्के-फुल्के कार्यों में ही रोगी को लगाएं। स्वच्छ और उत्फुल्ल प्राकृतिक वातावरण में सुबह-शाम भ्रमण करना काफी लाभदायक होता है।
सर्पगंधा तथा जटामांसी का चूर्ण 4-4 ग्राम लेकर 2 ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।
भोजन में धारोष्ण दूध, ताजे घी, कच्चे नारियल आदि की अधिकता रखें। मानसिक उत्तेजना से रोगी को बचाएं। भरपूर नींद लेने दें। हल्के-फुल्के कार्यों में ही रोगी को लगाएं। स्वच्छ और उत्फुल्ल प्राकृतिक वातावरण में सुबह-शाम भ्रमण करना काफी लाभदायक होता है।
मस्तिष्क-भ्रम
अत्यधिक मानसिक परिश्रम, मानसिक उद्वेग, चिंता, भय, शोक, निराशा जैसे
भावों की अधिकता, लगातार एक ही कार्य करते रहना, आंखों पर अधिक जोर डालना,
अंधेरे और तेज रोशनी वाले परिवर्तनीय कार्य इत्यादि कारणों से यह रोग हो
जाता है।
किसी काम में मन न लगना, चंचल रहना, हृदय की धड़कन बढ़ना, अनिद्रा, किसी वस्तु के कारण या लक्षण का भ्रम हो जाना, उत्तेजना, शोर या तेज रोशनी सहन न होना, भोजन से अरुचि इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं।
किसी काम में मन न लगना, चंचल रहना, हृदय की धड़कन बढ़ना, अनिद्रा, किसी वस्तु के कारण या लक्षण का भ्रम हो जाना, उत्तेजना, शोर या तेज रोशनी सहन न होना, भोजन से अरुचि इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं।
उपचार—
प्रतिदिन ब्राह्मीघृत लेकर चाटें और ऊपर से गाय का दूध का
सेवन करें।
नित्य प्रातः 5 खजूर खाकर एक गिलास गुनगुना गाय का दूध पिएं।
गाय के दूध की मलाई व ब्राह्मी बूटी का ½ चम्मच रस एक चम्मच शहद मिलाकर एक माह तक नियमित रूप से सेवन करने से मस्तिष्क भ्रम का रोग दूर हो जाता है।
नित्य प्रातः 5 खजूर खाकर एक गिलास गुनगुना गाय का दूध पिएं।
गाय के दूध की मलाई व ब्राह्मी बूटी का ½ चम्मच रस एक चम्मच शहद मिलाकर एक माह तक नियमित रूप से सेवन करने से मस्तिष्क भ्रम का रोग दूर हो जाता है।
अनिद्रा (नींद न आना)
यह रोग प्रायः मानसिक कारणों से होता है। मानसिक परेशानियां, चिंताएं,
शोक, तनाव, डर, निराशा आदि के कारण, अत्यधिक थकान होने के कारण, दिन में
सोने, शारीरिक परिश्रम की कमी, अधिक भोजन, ध्वनि—प्रदूषण,
उत्तेजक
पदार्थों के अधिक सेवन इत्यादि कारणों से भी अनिद्रा रोग हो जाता है।
नींद न आना इस रोग का प्रमुख लक्षण है। बेचैनी, सिर में लगातार भारीपन, कभी-कभी सिर दर्द होना, आंखों में जलन होना, शरीर में स्फूर्ति का ह्रास इत्यादि लक्षण भी दिखाई देते हैं।
नींद न आना इस रोग का प्रमुख लक्षण है। बेचैनी, सिर में लगातार भारीपन, कभी-कभी सिर दर्द होना, आंखों में जलन होना, शरीर में स्फूर्ति का ह्रास इत्यादि लक्षण भी दिखाई देते हैं।
उपचार—
एक गिलास गाय/भैंस का दूध देर तक पकाकर गुनगुना रहने पर
रात
को सोने से पूर्व पीएं। कुछ ही दिनों के नियमित प्रयोग से अनिद्रा रोग दूर
हो जाएगा।
बकरी का दूध उबालकर उसमें चुटकी भर नमक डालें। इस दूध से हाथों में कुहनियों तक हथेलियों पर तथा पैरों की पिंडलियों एवं तलुओं पर हल्की-हल्की मालिश करें। मालिश करने के पश्चात् गुनगुने पानी से दूध की चिपचिपाहट धो डालें। उसे धोने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करें। रोग दूर हो जाएगा।
रात्रि को सोने से पूर्व मानसिक आवेगों—चिंता, निराशा, शोक, आशंका, भय इत्यादि से बचने का प्रयास करें। साथ ही सूर्यास्त के बाद तंबाकू, कॉफी, मदिरा आदि पदार्थों का सेवन न करें। हाथ-मुंह-पैर धोकर ही सोने के लिए लेटें।
बकरी का दूध उबालकर उसमें चुटकी भर नमक डालें। इस दूध से हाथों में कुहनियों तक हथेलियों पर तथा पैरों की पिंडलियों एवं तलुओं पर हल्की-हल्की मालिश करें। मालिश करने के पश्चात् गुनगुने पानी से दूध की चिपचिपाहट धो डालें। उसे धोने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करें। रोग दूर हो जाएगा।
रात्रि को सोने से पूर्व मानसिक आवेगों—चिंता, निराशा, शोक, आशंका, भय इत्यादि से बचने का प्रयास करें। साथ ही सूर्यास्त के बाद तंबाकू, कॉफी, मदिरा आदि पदार्थों का सेवन न करें। हाथ-मुंह-पैर धोकर ही सोने के लिए लेटें।
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