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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...

10

एक विदेशी भुजा


"टिल्लू, तुम्हें कितनी बार कहा गया है कि उस तरफ मत जाया करो!" लेकिन फिर पापा उस तरफ रोजाना क्यों जाते हैं ?" क्योंकि यह उनका काम है, टिल्लू!"

उस तरफ एक भूमिगत गलियारा था। टिल्लू के पापा रोजाना उस गलियारे से होकर अपने काम पर जाते थे और रोजाना उसी दिशा से वापस भी आते थे। उस रास्ते के अंत में क्या है, जिस पर जाने की भी मनाही है? यह जानने की जिज्ञासा न केवल टिल्लू को थी बल्कि उनकी बस्ती के बहुत से अन्य लोगों को भी थी। टिल्लू के पापा उन गिने-चुने लोगों में से थे जिन्हें उस रास्ते से गुजरने की अनुमति थी। और जब कभी टिल्लू अपने पापा के पीछे-पीछे जाने की जिद करता तो उसकी अपनी मम्मी के साथ इस तरह की नोक-झोंक अकसर हो जाया करती थी।

पर आज तो टिल्लू की मुराद पूरी हो गई। उसके पापा दोपहर का खाना खाकर घर पर मीठी नींद ले रहे थे। उनका सिक्यूरिटी कार्ड टिल्लू के हाथ लग गया। अपनी मम्मी की चौकन्नी नजरों से बचकर वह गलियारे की ओर बढ़ गया, जहाँ सबका जाना मना था।

रास्ते में फौलाद का एक मजबूत दरवाजा था। टिल्लू अकसर देखता था कि उसके पापा अपने जादुई कार्ड को एक खाँचे में डाल देते थे, जिससे दरवाजा तुरंत खुल जाता। उसने भी वैसा ही किया और दरवाजा बिना कोई शोर किए खुल गया। अंदर रोशनी में नहाया एक गलियारा उसे अपनी ओर बुला रहा था। दीवार में एक खाँचे से बाहर निकले कार्ड को फुरती से पकड़ता हुआ

टिल्लू बेधड़क गलियारे में घुस गया। आगे रास्ता कुछ ऊँचा होता जा रहा था। वह गलियारा जमीन के नीचे बसी बस्ती से ऊपर ग्रह की सतह तक जाता था। टिल्लू को उम्मीद थी कि अगर ऊपर दिन हुआ तो सूर्य दिखेगा और रात हुई तो तारे नजर आएँगे, जिनके बारे में वह काफी कुछ पढ़ चुका था।

पर अफसोस, ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। सुरक्षा व्यवस्था टिल्लू की उम्मीद से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी। छिपे हुए उपकरणों ने पहले ही पता लगा लिया था कि कोई नन्हा घुसपैठिया सुरंग में घुस आया है। उन्होंने उसकी तसवीर भी उतारकर केंद्रीय ब्यूरो को भेज दी, जहाँ उसकी पूरी जाँच-पड़ताल हुई। वह मुश्किल से दस कदम ही चला होगा कि एक मजबूत हाथ ने उसके कंधे को थाम लिया और फिर सुरक्षाकर्मियों ने सख्ती-नरमी बरतते हुए उसे घर तक पहुँचा दिया, जहाँ माँ बेचैनी से उसकी राह देख रही थी, साथ ही नाराज भी थी।

और जब माँ की डाँट-डपट जारी थी तब टिल्लू को अप्रत्याशित रूप से पापा की मदद मिली।

"प्रिये, मुझे उसे समझाने दो।" पापा ने कहा, जो उसी वक्त सोकर उठे थे। "अगर इसे अच्छी तरह समझाया जाए तो यह ऐसा काम दोबारा कभी नहीं करेगा।' इतना कहकर पापा ने समझाना शुरू किया, "सुनो टिल्लू! मैं वहाँ ऊपर सतह पर काम करता हूँ, जहाँ कोई साधारण आदमी जिंदा नहीं रह सकता है, क्योंकि वहाँ की हवा साँस लेने के लिए बेहद विरल है और वहाँ का तापमान इतना कम है कि तुम उसमें जम जाओगे।"

"लेकिन पापा, फिर आप जिंदा कैसे रहते हैं?"

"क्योंकि मैं वहाँ पर एक विशेष प्रकार का सूट पहनकर और ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर जाता हूँ। इस तरह मैं अपने को गरम रख सकता हूँ। और मेरे विशेष प्रकार से डिजाइन किए गए जूते ऊपर की सतह पर चलने में मेरी मदद करते हैं। इन सबसे बढ़कर मुझे ऐसी सतह पर जीवित रहने और काम करने का प्रशिक्षण भी मिला है।

"एक वक्त था जब हमारे पुरखे सतह पर प्राकृतिक तौर पर रहते थे। दरअसल, वे करोड़ों वर्षों तक ऊपर की सतह पर रहे। फिर वक्त बदलने लगा। वही सूर्य, जो हम सबको जीवन देता था, अचानक ही हमसे प्रतिकूल होने लगा। हालाँकि उसमें मामूली सा बदलाव ही आया, लेकिन उतना बदलाव ही हमारे ग्रह पर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने के लिए काफी था।

"सबसे पहले पक्षी विलुप्त हो गए। उनके बाद जानवर और मछलियाँ भी उस बदलाव को झेल नहीं सकीं। हम इनसान भी केवल इसलिए बच सके, क्योंकि हमारे पास बेहतर तकनीकी थी। लेकिन हमें भी जमीन के नीचे बसने को मजबूर होना पड़ा। भला हो सौर ऊर्जा का, जिसकी मदद से हम कृत्रिम परिस्थितियों में भी अपने जीवन को सुखमय बना सके। लेकिन जो मशीनें हमारे जीवन को सुखमय बनाती हैं, उन्हें हमेशा अच्छी तथा चालू हालत में रहना चाहिए। उनमें से कुछ मशीनें ऊपरी सतह पर हैं और मैं उस दल में हूँ जो इन मशीनों की देख-रेख करने और उन्हें दुरुस्त रखने के लिए जिम्मेदार है।"

पापा! क्या मैं भी बड़ा होने पर इस दल में शामिल हो सकता हूँ?" "जरूर, अगर तुम चाहो तो।" पापा ने कहा, "लेकिन इसके लिए तुम्हें पहले अच्छा लड़का बनना चाहिए और माता-पिता का कहना मानना चाहिए।" हमेशा की तरह मम्मी ने बात पूरी की।

अगले दिन जब टिल्लू के पापा काम पर पहुँचे तो कंट्रोल-रूम में अच्छा- खासा उत्साह था। सभी लोग बड़े से टी.वी. स्क्रीन के चारों ओर जमा थे। काले परदे पर केवल एक चमकदार बिंदु दिख रहा था।

पिछली पाली के सुपरवाइजर ने बताया कि "यह कोई सितारा नहीं है- क्योंकि इसकी स्थिति बदल रही है। हमारे कंप्यूटर ने इस 'चीज' का मार्ग बताया है। यह सीधे हमारी ओर आ रही है।"

"कोई अंतरिक्ष यान है?" टिल्लू के पापा ने पूछा।
अब तक नई पाली के सदस्य भी वहाँ इकट्ठा हो गए थे।
"हम भी यही सोचते हैं; परंतु इस पर नजर रखने की जरूरत है।"

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