कहानी संग्रह >> रोमांचक विज्ञान कथाएँ रोमांचक विज्ञान कथाएँजयंत विष्णु नारलीकर
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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...
समूचा उत्तर भारत जबरदस्त शीत लहर की चपेट में है। पश्चिमी राजस्थान से बंगाल
की खाड़ी तक और हिमालय से लेकर सह्याद्रि की पहाड़ियों तक जबरदस्त बर्फ पड़ी
है। हताहतों की संख्या का अनुमान लगाना संभव नहीं है। हजारों की संख्या में
आप्रवासी पक्षियों के झुंड मृत पाए गए हैं, जिन्हें मौसम में आए इस अचानक
बदलाव का जरा भी अंदाजा नहीं था। ज्यादातर फसलें चौपट हो गई हैं।
सड़क और रेल संपर्क बुरी तरह बाधित हो गया है। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों
ने अपने-अपने क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया है। बर्फ की आपदा का सामना
करने के लिए प्रधानमंत्री ने विशेष कोष की घोषणा की है। सभी से इस कोष में
खुलकर दान करने की अपील की गई है।"
राजीव ने दूसरा स्टेशन लगाया, पर वहाँ भी यही समाचार बुलेटिन आ रहा था।
तभी कविता की उत्साह भरी चीख सुनाई पड़ी, “पापा, पापा! आओ, टी.वी. देखो।
देखो, इस पर सब जगह बर्फ की तसवीरें दिखा रहे हैं।"
टेलीविजन पर भी विशेष समाचार बुलेटिन आ रहे थे। समूचे उत्तर भारत में गिरी
बर्फ के दृश्यों के अलावा उन बुलेटिनों में और कुछ नहीं था। कम-से-कम तकनीकी
तो सूचना के प्रवाह को थामने में समर्थ थी। राजीव को रूसी फिल्म 'डॉ. जिवागो'
में दिखाए गए दृश्य याद आ गए। टेलीविजन पर देश के प्रमुख शहरों के तापमान
दिखा रहे थे-श्रीनगर -20 डिग्री, चंडीगढ़ -15 डिग्री, बीकानेर -15 डिग्री,
दिल्ली -12 डिग्री, वाराणसी -10 डिग्री, कोलकाता -3 डिग्री।
केवल मुंबई के दक्षिण में पारा 0 डिग्री के मनोवैज्ञानिक स्तर से ऊपर रहने
में कामयाब हो पाया था। मद्रास 3 डिग्री, बैंगलोर 2 डिग्री, त्रिवेंद्रम 7
डिग्री तापमान के साथ अपेक्षाकृत गरम लग रहे थे। तभी एक न्यूज फ्लैश आया--
राष्ट्रपति ने एक आपात बैठक बुलाई जिसमें उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,
मंत्रिमंडल के सदस्य, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य
न्यायाधीश और विपक्षी दलों के नेता शिरकत करेंगे। इस बैठक में फैसला लिया
जाएगा कि क्या राष्ट्रीय राजधानी को दिल्ली से मुंबई ले जाया जाए?
'तुम्हें अपनी राजधानी वाशिंगटन से होनोलूलू ले जानी पड़ सकती है।' राजीव को
पाँच साल पहले वसंत के कहे गए शब्द याद आ गए, जो उन्होंने अमरीकी खबरनवीस से
कहे थे। अगर भारत जैसे गरम देश में बर्फ ने इतना कहर बरपा दिया है तो यूरोप
और रूस जैसे ठंडे मुल्कों का क्या हाल होगा? वहाँ का हाल जानने के लिए उसने
बी.बी.सी. वर्ल्ड चैनल लगाया।
सचमुच चारों ओर भारी तबाही और बरबादी का आलम था। तापमान 20 से 30 डिग्री तक
गिर चुका था। चूँकि कनाडा, यूरोप और रूस ठंडे मौसम के अभ्यस्त थे, इसलिए
उन्हें इस बदलाव से कुछ विशेष फर्क नहीं पड़ा जितना कि भारत में, जहाँ भगदड़
मच गई थी।
अचानक ही राजीव को अपनी मुलाकात का खयाल आ गया। घड़ी में सुबह के 9 बजकर 5
मिनट हो रहे थे। सूरज अपनी पूरी क्षमता से चमकने का प्रयास कर रहा था, लेकिन
उसकी चमक किसी ग्रह या चाँद से ज्यादा नहीं थी।
कविता और प्रमोद मानकर बैठे थे कि उनका स्कूल आज बंद रहेगा, इसलिए वे दोनों
आराम से टेलीविजन देख रहे थे। उन्हें इस बात का भी सुकून था कि उनकी माँ अपने
मित्र की बेटी के विवाह में शरीक होने के लिए पुणे गई हुई थीं। वरना वह
उन्हें काम पर काम बताती रहतीं।
राजीव ने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया और गैराज से अपनी कार बाहर निकाली। कार भी
ठंडी पड़ चुकी थी और बहुत माथा-पच्ची करने के बाद स्टार्ट हो सकी।
सड़क पर निकलने के बाद असली मुसीबत से सामना होने लगा। बर्फ से ढकी सड़क पर
कार बार-बार फिसल रही थी। पर चूँकि राजीव विदेशों में ऐसी सड़कों पर कार चला
चुका था, इसलिए थोड़ी-बहुत दिक्कत के बाद वह कार पर नियंत्रण रखने में सफल हो
गया। लेकिन मुंबई के ज्यादातर ड्राइवरों के साथ ऐसा नहीं था।
डकर रोड पर लावारिस पड़ी या टकराई हुई कारों और बसों को देखकर तो यही लगता था
कि मुंबईवालों को बर्फ पर चलने का अभ्यास नहीं है।
"हम हिंदुस्तानी भी खामख्वाह अपने आपको फन्ने खाँ ड्राइवर समझते हैं। भले ही
हमें केवल ब्रेक और एक्सलरेटर से ज्यादा कुछ और पता न हो।" राजीव बड़बड़ाया
और अपनी कार को कीचड़ व मलबे के बीच सावधानी से चलाने लगा।
उसे महसूस हुआ कि कोलाबा पहुँचने में उसे आज कुछ ज्यादा वक्त लगेगा, हालाँकि
वहाँ पहुँचने में आमतौर पर 40-45 मिनट ही लगते हैं। खैर, उसके पास अभी डेढ़
घंटे का समय था।
आइए पत्रकार साहब! आप एक घंटा लेट हैं। क्या आपको रास्ते में साक्षात्कार के
लिए कोई और शिकार मिल गया था?" दफ्तर में घुसते ही वसंत ने उसका स्वागत किया।
"मुझे खेद है प्रो. चिटनिस। अगर इस गड़बड़-झाले के बीच कार चलाने की बजाय मैं
पैदल आया होता तो शायद यहाँ जल्दी पहुँच जाता।" राजीव आरामकुरसी पर पसर गया।
वसंत भी उसके सामने अपने ओहदे के अनुसार रिवॉल्विंग चेयर पर बैठ गया।
पहले मेरी बधाइयाँ स्वीकार करें प्रोफेसर, उस दिन आपने क्या सटीक भविष्यवाणी
की थी! बिलकुल सही निशाना लगा। पर हम पत्रकार और कुछ चाहे न हों, वहमी जरूर
होते हैं। कृपया मेरा वहम दूर करें कि आपने ऐसी सटीक भविष्यवाणी की कैसे? और
यह क्यों कहा कि अब इसे प्रकाशित करने का कोई फायदा नहीं होगा?"
'आपको अपने सवालों के जवाब इन कागजात में जरूर मिल जाएँगे।"
यह कहते हुए वसंत ने एक फाइल राजीव के सामने रख दी।
उस फाइल में अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में छप चुके आलेखों की टाइप की हुई
प्रतिलिपियाँ तथा हाथ से लिखे कागजों का पुलिंदा था। पर उस विषय में अनभिज्ञ
होने के कारण राजीव उनका सिर-पैर कुछ समझ नहीं पाया, वह केवल उनके शीर्षकों
और निचोड़ों को ही नोट कर सका।
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