अमर चित्र कथा हिन्दी >> नल-दमयन्ती नल-दमयन्तीअनन्त पई
|
7 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
नल और दमयन्ती की कथा.....
Nal Damyanti A Hindi Book by Anant Pai
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नल दमयन्ती
नल और दमयन्ती की कथा भारत के महाकाव्य, महाभारत में आती है। युधिष्ठिर को जुए में अपना सब-कुछ गँवा कर अपने भाइयों के साथ बनवास करना पड़ा। वहीं एक ऋषि ने उन्हें नल और दमयन्ती की कथा सुनायी। नल बड़े वीर थे और सुन्दर भी।
शस्त्र-विद्या तथा अश्व-संचालन में वे निपुण थे। दमयन्ती विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र) नरेश की मात्र पुत्री थी। वह भी बहुत सुन्दर और गुणवान थी। नल उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर उससे प्रेम करने लगा। उनके प्रेम का सन्देश दमयन्ती के पास बड़ी कुशलता से पहुंचाया एक हंस ने। और दमयन्ती भी अपने उस अनजान प्रेमी की विरह में जलने लगी।
इस कथा में प्रेम और पीड़ा का ऐसा प्रभावशाली पुट है कि भारत के ही नहीं देश विदेश के लेखक व कवि भी इससे आकर्षित हुए बिना न रह सके। बोप लैटिन में तथा डीन मिलमैन ने अंग्रेजी कविता में अनुवाद करके पश्चिम को भी इस कथा से भली भांति परिचित कराया है।
शस्त्र-विद्या तथा अश्व-संचालन में वे निपुण थे। दमयन्ती विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र) नरेश की मात्र पुत्री थी। वह भी बहुत सुन्दर और गुणवान थी। नल उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर उससे प्रेम करने लगा। उनके प्रेम का सन्देश दमयन्ती के पास बड़ी कुशलता से पहुंचाया एक हंस ने। और दमयन्ती भी अपने उस अनजान प्रेमी की विरह में जलने लगी।
इस कथा में प्रेम और पीड़ा का ऐसा प्रभावशाली पुट है कि भारत के ही नहीं देश विदेश के लेखक व कवि भी इससे आकर्षित हुए बिना न रह सके। बोप लैटिन में तथा डीन मिलमैन ने अंग्रेजी कविता में अनुवाद करके पश्चिम को भी इस कथा से भली भांति परिचित कराया है।
नल दमयन्ती
हज़ारों वर्ष हुए निषद देश में राजा नल राज्य करते थे। वे बड़े दयालु और सज्जन थे। उनकी प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी। परन्तु वे हमेशा उदास रहते थे। उनके पिता ईश्वर-भजन करने के लिए सन्यासी बन कर बनवासी हो गये थे।
नल का चचेरा भाई, पुष्कर नल से जलता था और राज्य छोड़कर जाने लगा ।
नल, मैं ऊब गया हूँ और यहां से जा रहा हूँ।
नल को सब सूना-सूना लगता था और वे जगह-जगह घूमते रहते थे। एक दिन-
अरे-यह झील मैंने आज ही देखी है कैसे सुन्दर हंस हैं।
नल का चचेरा भाई, पुष्कर नल से जलता था और राज्य छोड़कर जाने लगा ।
नल, मैं ऊब गया हूँ और यहां से जा रहा हूँ।
नल को सब सूना-सूना लगता था और वे जगह-जगह घूमते रहते थे। एक दिन-
अरे-यह झील मैंने आज ही देखी है कैसे सुन्दर हंस हैं।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book