नाटक एवं कविताएं >> तस्वीर के रंग तस्वीर के रंगउषा यादव
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प्रस्तुत है उषा यादव का नाटक तस्वीर के रंग ....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
तस्वीर के रंग
पात्र
समीर : आयु नौ वर्ष
अमन, सुहास, गीता और नेहा : लगभग छ: से नौ वर्ष की आयु के बच्चे-बच्चियाँ।
माँ : समीर की माँ
अमन, सुहास, गीता और नेहा : लगभग छ: से नौ वर्ष की आयु के बच्चे-बच्चियाँ।
माँ : समीर की माँ
स्थान व समय
(समीर की दीदी शिल्पा का कमरा एक कोने में मेज-कुर्सी, दीवार पर
ब्लैकबोर्ड, मेज पर रंगीन चाकों का डिब्बा रखा है। मेज पर कुछ किताबें सजी
हुई हैं। शाम के लगभग चार-पाँच बजे का समय है।)
परदा खुलते ही मंच पर ब्लैकबोर्ड के सामने खड़ा समीर दिखाई देता है। ब्लैकबोर्ड पर सफेद चाक से भारत माता का चित्र बना है। समीर के हाथ में चाक है, जिससे वह चित्र को सँवारता दिखाई दे रहा है। साथ ही तन्मय होकर गुनगुनाता जा रहा है-सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ऽ ऽ ....
माँ : (प्रवेश करते हुए) समीर तुम्हारे दोस्त आए हैं। तुम्हें खेलने के लिए बुला रहे हैं।
समीर : (सिर उठाते हुए) माँ, इस समय मैं बहुत जरूरी काम में लगा हूँ। प्लीज, उन्हें जाने को कह दो।
माँ : मैं मना करूंगी तो अच्छा नहीं लगेगा। उन्हें यहीं भेज दे रही हूँ। जो इच्छा हो, तुम खुद कह देना।
(माँ लौट जाती है।)
समीर : (गुनगुनाते हुए) हिन्दोस्ताँ हमारा ऽ ऽ हमारा ऽ ऽ सारे जहाँ से अच्छा ......
(आपस में हँसते-बोलते हुए अमन, सुहास, नेहा और गीता आकर द्वार पर खड़े हो जाते हैं। )
नेहा : (शिकायती स्वर से) समीर, तुम आज खेलने नहीं आए ?
समीर : देखती नहीं, मैं भारत माता का चित्र बना रहा हूँ।
नेहा : वह तो ठीक है, पर यह हमारा खेलने का समय है न !
परदा खुलते ही मंच पर ब्लैकबोर्ड के सामने खड़ा समीर दिखाई देता है। ब्लैकबोर्ड पर सफेद चाक से भारत माता का चित्र बना है। समीर के हाथ में चाक है, जिससे वह चित्र को सँवारता दिखाई दे रहा है। साथ ही तन्मय होकर गुनगुनाता जा रहा है-सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ऽ ऽ ....
माँ : (प्रवेश करते हुए) समीर तुम्हारे दोस्त आए हैं। तुम्हें खेलने के लिए बुला रहे हैं।
समीर : (सिर उठाते हुए) माँ, इस समय मैं बहुत जरूरी काम में लगा हूँ। प्लीज, उन्हें जाने को कह दो।
माँ : मैं मना करूंगी तो अच्छा नहीं लगेगा। उन्हें यहीं भेज दे रही हूँ। जो इच्छा हो, तुम खुद कह देना।
(माँ लौट जाती है।)
समीर : (गुनगुनाते हुए) हिन्दोस्ताँ हमारा ऽ ऽ हमारा ऽ ऽ सारे जहाँ से अच्छा ......
(आपस में हँसते-बोलते हुए अमन, सुहास, नेहा और गीता आकर द्वार पर खड़े हो जाते हैं। )
नेहा : (शिकायती स्वर से) समीर, तुम आज खेलने नहीं आए ?
समीर : देखती नहीं, मैं भारत माता का चित्र बना रहा हूँ।
नेहा : वह तो ठीक है, पर यह हमारा खेलने का समय है न !
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