मनोरंजक कथाएँ >> ईश्वर की मिठाई ईश्वर की मिठाईशैलेश मटियानी
|
6 पाठकों को प्रिय 346 पाठक हैं |
प्रस्तुत है पुस्तक ईश्वर की मिठाई
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ईश्वर की मिठाई
एक था फसकियाराम। झाँसा देना उसका काम।
एक दिन वह सूखी लकड़ियाँ काटने वन में गया। लकड़ियां कहीं मिली नहीं। एक बहुत ऊँचे चीड़-वृक्ष की डालें सूखी हुई थीं।
फसकियाराम तेज कुल्हाडी लेकर, उस ऊँचे चीड़-वृक्ष पर चढ़ गया।
अपनी उमंग में, फसकियाराम ने सभी डालें काट तो डालीं, लेकिन यह भूल गया, कि अब पेड़ से नीचे उतरेगा कैसे ? डालों का सहारा ले-लेकर चढ़ा था, अब उतरे कैसे ?
उतरने के नाम पर अब गला सूखने लगा, हिया दुखने लगा, कि आज झसकिया की माँ का काला चरेवा (मंगल-सूत्र) टूटा ही समझूँ।
अब फसकियाराम को चुपड़ी रोटियाँ, छोंकी सब्जियाँ याद आने लगीं। स्यौंरी गाय का दूध, चौंरी भैंस का मट्ठा याद आने लगा। पूस की सर्दियाँ, जेठ की गर्मियाँ याद आने लगीं, कि अब कहाँ ठंड से ठिठुरना, घाम से तपना नसीब होगा !....
गाँव की मिट्टी, सरोवर का पानी याद आने लगा, किससे शरीर मटैला होगा, किससे प्यास बुझेगी ! अब फसकियाराम किसको ‘बौज्यू’ कहकर पुकारेगा ? अब किसे झसकियाराम की महतारी स्वामी कहेगी ?
जब नीचे उतरने की कोई राह न सूझी और पैर थक जाने से ज्यादा देर पेड़ पर रहना मुश्किल हो जाने से नीचे गिरने और मरने का भय उत्पन्न हो गया, तो फसकियाराम को गाई का दूध, जाई का फूल याद आने लगा।
एक दिन वह सूखी लकड़ियाँ काटने वन में गया। लकड़ियां कहीं मिली नहीं। एक बहुत ऊँचे चीड़-वृक्ष की डालें सूखी हुई थीं।
फसकियाराम तेज कुल्हाडी लेकर, उस ऊँचे चीड़-वृक्ष पर चढ़ गया।
अपनी उमंग में, फसकियाराम ने सभी डालें काट तो डालीं, लेकिन यह भूल गया, कि अब पेड़ से नीचे उतरेगा कैसे ? डालों का सहारा ले-लेकर चढ़ा था, अब उतरे कैसे ?
उतरने के नाम पर अब गला सूखने लगा, हिया दुखने लगा, कि आज झसकिया की माँ का काला चरेवा (मंगल-सूत्र) टूटा ही समझूँ।
अब फसकियाराम को चुपड़ी रोटियाँ, छोंकी सब्जियाँ याद आने लगीं। स्यौंरी गाय का दूध, चौंरी भैंस का मट्ठा याद आने लगा। पूस की सर्दियाँ, जेठ की गर्मियाँ याद आने लगीं, कि अब कहाँ ठंड से ठिठुरना, घाम से तपना नसीब होगा !....
गाँव की मिट्टी, सरोवर का पानी याद आने लगा, किससे शरीर मटैला होगा, किससे प्यास बुझेगी ! अब फसकियाराम किसको ‘बौज्यू’ कहकर पुकारेगा ? अब किसे झसकियाराम की महतारी स्वामी कहेगी ?
जब नीचे उतरने की कोई राह न सूझी और पैर थक जाने से ज्यादा देर पेड़ पर रहना मुश्किल हो जाने से नीचे गिरने और मरने का भय उत्पन्न हो गया, तो फसकियाराम को गाई का दूध, जाई का फूल याद आने लगा।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book