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समन्वय

रोहित बावा अश्क

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 1996
पृष्ठ :101
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2944
आईएसबीएन :978-81-8465-233

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समन्वय एक कोशिश है अपने अलग अलग भावों को एक साथ देखने की, अपने रूप को तरह तरह के आयाम से महसूस करने की...

Samanvay - A Hindi Book - by Rohit Baba Ashk

समन्वय एक अभिव्यक्ति है जिसमें कभी आप ऐसे रूप पाएंगे जो खुद सा बात करता है और खुद को पाने की कोशिश करता है... कभी ऐसे भाव जो एक प्रेमी का, बेटे का, प्रकृति का, देशभक्त का, संवेदनशील व्यक्ति का है या जीवन चक्र समझने की कोशिश करता हम ही में से कोई। समन्वय आप में, मुझ में, हम सब में है—शायद आप देख सके जो आप सोचते हैं, इसी आशा के साथ आपके सामने प्रस्तुत करता हूं एक आम संवेदनशील व्यक्ति के भावों का समन्वय

लेखक के बारे में


अभी मैं विख्यात नहीं हूं इसलिए मेरे बारे में कोई कुछ नहीं लिखेगा, यह पुण्य मुझे खुद को ही कमाना पड़ेगा। वैसे देखा जाए तो मैं ठीक ही हूं, बहुत अच्छा होता तो कहीं और होता, बहुत खराब होता तो आप यह पढ़ न रहे होते...इसलिए ठीक ही हूं।
लिखना मेरे लिए शौक की बात है, मैंने जीवन के सारे रूप नहीं देखे हैं पर उनके बारे में लिखने की कोशिश की है—अपनी कल्पनाओं के सहारे मुझे यकीन है कि आप भी इन रूपों को महसूस कर पायेंगे—अनुभव या कल्पना के सहारे

भावहीन


कोई उम्मीद नहीं कोई चाह नहीं
कोई मंज़िल नहीं कोई राह नहीं
कोई मिला नहीं न जुदा हुआ
कोई खुशी नहीं कोई आह नहीं
तुझे देने को कुछ है नहीं
मैं फ़कीर नहीं मैं शाह नहीं
उड़ान है ऊंची डर लगता नहीं
चोट की भी अब परवाह नहीं
बेखौफ़ हूँ मैं बेफ़िक्र नहीं
खुद से भी अब तेरा ज़िक्र नहीं
बन्धन में क्या मैं आज़ाद क्या
मैं कैद नहीं मैं रिहा नहीं

नयन के सामने


शाम सवेरे यह नैन तेरे
मेरे नयन के सामने
फूल बिखेरे पथ पे मेरे
मेरे नयन के सामने
यह देख के अखियन मूंद ली
और श्वास की अन्तिम बूंद ली
जब छोड़ कर मुझे नैन तेरे,
चल दिये किसी और के संग
मेरे नयन के सामने
करता हूँ विनय मैं इतना
दुख दिया तूने मुझे जितना
विश्वास कर उसका भी भंग
लगा न लेना किसी और को अंग
उसके नयन के सामने
तुझ संग भी काश ऐसा ही हो
मेरे मुख से क्या निकला, अहो !
उड़ेल पानी तेरे सपनो में
खो न जाए कहीं वो अपनो में
छोड़ कर तुझको अकेला,
तेरे नयन के सामने

कशमकश


आंखें देखें तुझे पर बयां क्या करे
नज़र आता नहीं तो जुबान क्या करे
कैसे जानेगी दुनिया कि तू कौन है
अब तू ही बता यह जहां क्या करे
ऐसे बरसी महोब्बत जवां क्या करे
कौन कैसा कोई कब कहां क्या करे
ऐसा आए ना आलम किसी पे मगर
सूखी लकड़ी भी जल कर धुआं क्या करे
बदली है ऋतु तो समां क्या करे
न बरसे यह बादल आसमां क्या करे
दिल ने देखा मगर मैंने देखा नहीं
दिल ने देखा है तो वो बयां क्या करे
ख्याल यह भी तो खूबसूरत है
गुमां था कि महोब्बत है
तेरे साथ कि ज़रूरत है
पर तन्हा भी चल सकता हूँ
ख्याल यह भी तो खूबसूरत है
देखा तुझको सोचा तुझको
जब-जब भी मैंने महूर्त है
पर तन्हा चल सकता हूं
ख्याल यह भी तो खूबसूरत है
अब मैं हूँ और मंज़िल मेरी
और पथ भी बड़ा मुर्वत है
पर तन्हा भी चल सकता हूँ
ख्याल यह भी तो खूबसूरत है


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