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गुलिस्ताँ की कहानियाँ

शेख सदी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2938
आईएसबीएन :0

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दो फकीर थे। उनकी आपस में गहरी दोस्ती थी। पर दोनों की शक्ल-सूरत और खान-पान में बड़ा अन्तर था। एक मोटा-मुस्टंड़ा था

Gulista Ki Kahaniyan A Hindi Book by Shek Sadi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो फकीर

दो फकीर थे। उनकी आपस में गहरी दोस्ती थी। पर दोनों की शक्ल-सूरत और खान-पान में बड़ा अन्तर था। एक मोटा-मुस्टंड़ा था और दिन में कई-कई बार खाने पर हाथ साफ करता था। पर दूसरा कई-कई दिन उपवास करता था, इसलिए वह दुबला-पतला हो गया था।

एक बार राजा के लोगों को इन फकीरों पर शक हुआ- ये तो हमारे किसी वैरी बादशाह के जासूस हैं। बस, फिर क्या था ? दोनों को पकड़ लिया गया और जेल की काल-कोठरी में डाल दिया गया।
कई दिनों बाद जेल के दरवाज़े खुले।

जेल के अधिकारियों ने देखा-दोनों कैदी धरती पर लुढ़के पड़े थे। उन्होंने पास जाकर देखा कि मोटा-तगड़ा कैदी तो दम तोड़ चुका था, पर दूसरा दुबला-पतला कैदी आँखें मूँदें पड़ा था। और कदमों की आहट पाकर उठ बैठा था।
लोगों की हैरानी का ठिकाना ना था।

सबको हैरान देखकर एक समझदार आदमी ने कहा- ‘‘ठीक तो है। मोटा-तगड़ा फकीर देखने में ही तगड़ा था। असल में उसमें सहने की ताकत दूसरे से कम थी। वह दिन में कई बार खाता था। पर जब उसको कई दिन तक खाने को कुछ न मिला तो वह कैसे जिंदा रहता ? हाँ, यह जो बचा है, इसने कई बार फाके किये होंगे। इसने भूख को रोक सकने की आदत डाल रखी थी जो इस कठिनाई में काम आई।’’

अपनी भूख और लालसाओं को वश में करने से सचमुच ताकत बहुत बढ़ जाती है।

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