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नाटक एवं कविताएं >> देश के लिए

देश के लिए

मनोहर वर्मा

प्रकाशक : ज्योति प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2936
आईएसबीएन :0

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देशभक्ति से ओत-प्रोत बाल एकांकी

Desh Ke Liye A Hindi Book by Manohar Verma

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

देश के लिये

पात्र


राजन : आयु 14 वर्ष
दीपक : आयु 12 वर्ष
माँ : आयु 35 वर्ष

(परदा उठने पर-मंच पर हल्की-सी रोशनी है। राजन की माँ पलंग पर लेटी हुई है। कन्धे पर थैला लटकाये राजन का प्रवेश। राजन के आते ही उस ओर मुँह फेरकर लेटे-लेटे ही पूछती है।)
माँ : वैद्य जी के पास गया था बेटा ?

राजन : (थैला एक ओर पटकते हुए) किसलिए माँ ?
माँ : मेरी दवा लानी थी न राजे।
राजन : (माँ के करीब आते हुए) दुनिया भर के काम मैं करता हूँ माँ, दीपक क्या इतना-सा भी नहीं कर सकता ?
माँ :दीपक अभी बच्चा है बेटा ? उसके खाने-खेलने के दिन हैं।

राजन : (तनकते हुए) और मेरे कमाने के ? दिन भर तेली के बैल की तरह चलते रहने के ! क्यों ?
माँ : (फीकी-सी हँसी हँसते हुए) तू तो पागल है रे राजू। (दु:ख भरे स्वर में) मेरा बस चलता तो तुझे भी कुछ नहीं करने देती बेटा ! पर क्या करूँ ? (एक क्षण ठहरकर) चिमनी तो जला दे, कब से अँधेरे में पड़ी हूँ।
(राजन चिमनी जलाता है)

(मेरा देश जीतेगा-मेरा देश जीतेगा-गाता हुआ, उछलता-कूदता दीपक प्रवेश करता है। गोल चकरी घूमते हुए गाता हुआ माँ के पलंग पर जा पड़ता है)
(राजन दीपक के करीब आते हुए)
राजन : तुमसे माँ की दवा भी नहीं लाई जाती दीपू ?


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