लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर

संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

Like this Hindi book 15 पाठकों को प्रिय

43 पाठक हैं

राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

राम अपनी कुदाल भूमि पर रख, बैठे ही थे कि अनेक ग्रामवासी उनके निकट सरक आए। राम ने उन्हें देखा : वे लोग उन्हें घेरकर इस प्रकार खड़े थे जैसे कुछ कहना तो चाहते हों, किंतु कह नहीं पा रहे हों।

"क्या बात है?" राम उन्हें देखकर मुस्कराए।

भीड़ में अनेक लोगों की आंखें, एक-दूसरे की ओर उठीं।

अंत में एक व्यक्ति कुछ कहने की मुद्रा में आगे बढ़ आया। लगता था, किसी अत्यन्त साहसिक कार्य का संकल्प किए हुए हो।

"मैं भीखन का भाई माखन हूं।" वह अपनी थूक गटक, गले में फंसी किसी काल्पनिक वस्तु को नीचे धकेलकर बोला।

राम ने पहचान-भरी मुस्कान से उसका स्वागत किया।

"हम भी खेतों में काम करना चाहते हैं।"

लगा, जैसे भीड़ के सिर से बोझ टल गया-जैसे कोई भारी काम संपन्न हुआ हो। उनकी अनुकूलता का अहसास, राम को प्रातः से ही था; किंतु यह वाक्य उन्हें भी चाकित कर गया। क्या ये लोग एक ही दिन में अपने भय से मुक्ति पा गए हैं?

"अत्यन्त प्रसन्नता की बात है।" राम के मुख से अनायास ही निकला, "किंतु भीखन ने तो मुझसे कुछ कहा ही नहीं।"

"हमने भीखन भैया से कहा था।" माखन बोला, "पर उन्होंने कहा कि उन्हें हमारा कोई भरोसा नहीं है। हम लोग समय पर पीछे हट जाते हैं। इसलिए हम लोग सीधे आपसे ही बात करें।"

राम हंसे, "लगता है, भीखन तुमसे रुष्ट हो गया है। तुमने भाई होकर उसका पक्ष-समर्थन नहीं किया।"

"नहीं। वे इसलिऐ रुष्ट नहीं हैं।" माखन ने बताया, "उसका दूसरा कारण है।"

"क्या कारण है?"

"वे कहते हैं, भूमि गांव वालों की है। गांव वाले भूमि ले लें और उसमें खेती करें; किंतु हम लोग यह नहीं चाहते।"

"तुम लोग क्या चाहते हो।"

"हम लोग चाहते हैं कि भूमि आपकी ही रहे। हम लोग आपका काम कर दिया करें और आप हमें हमारा पारिश्रमिक दे दें।"

राम ने पुनः चकित होकर उन्हें देखा, ये कैसे कृषक थे, जिन्हें भूमि का लोभ नहीं था। उन्हें भूमि मिल रही थी और वे लपककर उसकी ओर बढ़ नहीं रहे थे।

"किंतु भूमि तुम्हारी है। तुम उसे लेना क्यों नहीं चाहते?"

माखन सकपकाया-सा चुप खड़ा रहा।

"क्या तुम्हें भूमि प्रिय नहीं है?" राम ने पूछा।

"बात यह है आर्य!" माखन अपने संकोच से लड़ता हुआ बोला, "भूमि भूधर और उसके बंधुओं की थी। भूधर तो मर गया; किंतु हमारा अनुमान है कि उसके भाई-बंधु अवश्य लौटेंगे। इस बार जब वे लौटेंगे उनके साथ राक्षस सेना भी होगी। निश्चित रूप से, जिनके पास उनकी भूमि होगी, उसे वे अपना शत्रु मानकर...।" वह रुक गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book