बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"किंतु हमसे अलग, गांव में अकेले रहने के कारण किसी समय भीखन अपने परिवार समेत कठिनाई में पड़ सकता है।" सीता ने शंका की।
"कोई राक्षस भीखन के घर तक पहुंच जाए और हमें सूचना न हो, यह संभव नहीं है।" मुखर बोला, "हां, यदि आपका अभिप्राय ग्रामीण समाज की किसी कठिनाई से है, तो मैं कह नहीं सकता।"
"मेरा विचार है कि आश्रम से भीखन के घर, अतिथियों का आवागमन अधिक हो जाना चाहिए।" राम धीरे से बोले, "लक्ष्मण, मुखर अनिन्द्य तथा सीता भी-भीखन के घर, दिन में एक-आध बार अवश्य जाएं तथा कोई-न-कोई, दो जन-सैनिक बारी-बारी, अतिथि के रूप में उसके घर पर रहें। इससे भीखन के परिवार के साथ-साथ, ग्रामवासियों में भी सुरक्षा की भावना बढ़ेगी। ग्रामवासियों से हमारा संपर्क भी बढ़ेगा। सीता का आवगमन अधिक होगा, तो स्त्रियों का साहस भी जागेगा। आवश्यक होने पर, सुधा को भी कुछ दिनों के लिए यहां बुलाया जा सकता है। मेरा स्पष्ट मत है कि दूरी होने पर भी, अपनी गतिविधियों से हमें भीखन के घर को आश्रम का अंग बना लेना चाहिए।"
"यह ठीक है।" सबसे पहले भीखन ने ही सहमति प्रकट की।
"यदि भीखन भाई का निवासस्थान तय हो गया हो, तो एक सूचना मुझे भी देनी है।" अवसर पाते ही मुखर बोला।
"कहो! कहो!!" राम बोले, "तुम अपनी सूचना सबसे पहले कहा करो। शेष गतिविधियां तो तुम्हारी सूचनाओं पर ही निर्भर हैं।"
"कुछ अपरिचित लोगों को हमारी सूचना-सीमा के आस-पास मंडराते देखा गया है।" मुखर बोला, "और राक्षस-सेना की एक बड़ी टुकड़ी, जिसमें दो-ढाई सौ सैनिक होने चाहिएं, दक्षिण-पश्चिम की ओर से बढ़ रही है। किंतु, वह हमसे अभी बहुत दूर है और उसने अभी तक अपनी शीघ्रगामिता का कोई लक्षण नहीं दिखाया है!"
"अर्थात्, अभी कुछ समय लगेगा।" राम बोले, "लक्ष्मण, प्रशिक्षण समय बढ़ा दो और क्षिप्र शिक्षण आरंभ करो। अनिन्द्य, तुम भी अपने सैनिक के अभ्यास-काल में वुद्धि करो।" अंत में वे आनन्द सागर की ओर मुड़े, "मुनिवर, आप मुझे कम-से-कम पच्चीस ब्रह्मचारी ऐसे दें, जिनकी सैनिक-प्रशिक्षण में विशेष रुचि हो।"
"आज प्रातः आप पाँच ब्रह्मचारी भी मांगते तो कदाचित् मुझे निराशा प्रकट करनी पड़ती।" आनन्द सागर हंसे, "किंतु एक ही दिन के प्रशिक्षण से लोगों में इतना उत्साह भर आया है कि आप पचास ब्रह्मचारी भी मांगें तो कठिनाई नहीं होगी।"
"अच्छा, एक बात और है।" सहसा राम गंभीर हो गए, "भीखन तुम बता सकते हो कि साधारण ग्रामवासी के पास अन्न की क्या स्थिति है?"
"आपने अच्छा किया, यह पूछ लिया।" भीखन बोला, "मैं स्वयं सोच रहा था कि इस विषय में आपसे बात करूं।" राम उसे देखते रहे।
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