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संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

सुतीक्ष्ण आश्रम से बहुत पहले ही, मुनि के शिष्य अगवानी के लिए राम के दल से आ मिले। राम, लक्ष्मण, सीता तथा मुखर के साथ, उन्हें सुतीक्ष्ण आश्रम तक पहुंचाने के लिए भीखन के गांव और आनन्द सागर आश्रम के लोग ही नहीं, धर्मभृत्य आश्रम, अनिन्द्य की बस्ती तथा ओगरू के ग्राम से भी जनसैनिक आए थे। राक्षसी आतंक के हट जाने से संचार-व्यवस्था विकसित हो गई थी, मार्ग सुगम हो गए थे। जनसैनिक अपने प्रशिक्षण तथा अभ्यास की प्रक्रिया में प्रायः सारा क्षेत्र घूमा करते थे, ताकि स्थानीय भूगोल से उनका परिचय हो जाए।

शस्त्रागार के परिवहन के लिए, पहले जैसी सावधानी की आवश्यकता अब नहीं रही थी; किंतु फिर भी, राम उस ओर से असावधान नहीं थे।...अब ऋषि के शिष्य भी आ मिले थे, अतः मार्ग में विशेष कठिनाई की संभावना नहीं थी। उन्हें ब्रह्मचारियों से ज्ञात हुआ कि सुतीक्ष्ण, ऋषि अगस्त्य के शिष्य रहे हैं।

"अगस्त्य के शिष्य सुतीक्ष्ण?" लक्ष्मण आश्चर्य से बोले, "असंभव! अगस्त्य संघर्षशील जुझारू ऋषि हैं। उनके विषय में जहां-जहां सुना; यही सुना कि वे राक्षसों सें भयभीत नहीं हुए। वे सदा उनसे जा टकराए और सुतीक्ष्ण मुनि तो शस्त्र से ही घबड़ाते हैं।"

"आपका कथन सत्य है, आर्य!" ब्रह्मचारी बोला, "गुरु में अनेक गुण होते हैं। आवश्यक नहीं कि शिष्य उन सारे गुणों को अंगीकार कर स्वयं में उनका विकास कर सके।...वैसे पिछले दिनों, कुलपति में अद्भुत

परिवर्तन हुआ है। वे अपने अध्यात्म तथा आत्मलीनता से बाहर निकलने लगे हैं। शस्त्रों की आवश्यकता और उनके प्रशिक्षण का चिंतन करने लगे हैं। उग्राग्नि भूधर तथा कर्कश की कथाएं, हमारे आश्रम में भी बहुप्रचारित हैं। कुलपति बहुत दिनों से गुरु अगस्त्य से भेंट करने भी नहीं गए थे-अब वे उनके पास जाने की भी योजना बना रहे हैं। संभवतः वे आपके साथ ही जाएं।"

"तो परिवेश बदल रहा है?" लक्ष्मण बोले।

"त्वरित गति से आर्य।"

"और तपस्वियों की हड्डियों का ढेर?" मुखर ने पूछा।

"उसकी ऊंचाई में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई है।" ब्रह्मचारी बोला।

"इसका अर्थ यह हुआ कि क्षेत्र में राक्षसों का अत्याचार समाप्त हो गया है।" सीता ने कहा।

"देवी का अनुमान सत्य है।" ब्रह्मचारी ने समर्थन किया, "स्फुट अत्याचार प्रायः समाप्त हैं।"

"स्फुट अत्याचार ही क्यों ब्रह्मचारी?" सहसा राम ने अपनी अन्यमनस्कता छोड़कर पूछा।

"कुलपति का विचार है कि इन स्फुट अत्याचारों को समाप्ति का कारण मात्र इतना ही है कि इधर-उधर बसने वाले इक्के-दुक्के राक्षस यहां से भाग खड़े हुए हैं; किंतु राक्षस सेनाएं तो अब भी अपने शिविरों में पड़ी हैं और कदाचित् पहले से अधिक संगठित एवं सजग-सचेत हैं।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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