बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"बात यह है ओगरू", राम बोले, "तुम खान-स्वामी नहीं हो, भू-स्वामी नहीं हो; तुम दूसरों का शोषण नहीं करते, अपने श्रम की रोटी खाते हो। ...इन्हें देख रहे हो?" राम ने उपस्थित लोगों की ओर संकेत, किया, "ये सब, तुम्हारे ही समान अपने श्रम पर जीवित रहने वाले लोग हैं। फिर तुम उस राक्षस कर्कश का पक्ष लेकर, न्याय के समर्थक अपने ही वर्ग के लोगों के विरुद्ध क्यों लड़ रहे हो?"
"वह हमारा स्वामी है।" ओगरू पूरी निष्ठा के साथ बोला।
"उसे तुम्हारा स्वामी किसने बनाया?"
"देवी ने!"
राम ने चौंककर उसे देखा, "किस देवी ने?"
ओगरू थोड़ी देर तक चुपचाप खड़ा कुछ सोचता रहा; फिर बोला, "पहले कर्कश भी हमारे समान साधारण श्रमिक था।...एक दिन उसने सारे ग्राम के लोगों को एकत्र कर बताया कि रात को उसे देवी ने स्वप्न में दर्शन दिए हैं। स्वप्न में देवी ने उससे कहा कि वह गांव के तालाब में बायें कोने में बंदिनी पड़ी हैं। यदि कर्कश वहां से देवी का उद्धार कर देगा, तो वह कर्कश को गांव का स्वामी बना देंगी। ...हम सब लोग कर्कश के साथ तालाब पर गए। उसने हमारे सामने तालाब के बायें कोने में घुसकर, पानी के भीतर से देवी की दो हाथ ऊंची मूर्ति का उद्धार किया। उस मूर्ति को लाकर ग्राम में स्थापित किया गया। ग्राम वालों ने वहां मंदिर बनाया और कर्कश को देवी का पुजारी बना दिया। उस दिन से कर्कश पर, देवी की कृपा है। मंदिर में खूब चढ़ावा चढ़ता है। कर्कश ने एक-एक कर गांव के सारे खेत खरीद लिये हैं। एक-एक कर, लोग ऋण के कारण उसके दास हो गए हैं। वह हमारा स्वामी है, राजा है, पुरोहित है। हम उसकी बात कैसे टाल सकते हैं?"
आसपास बैठे लोगों में दृष्टियों का आदान-प्रदान हुआ।
"अर्थात् एक धूर्त व्यक्ति भोले देहातियों को मूर्ख बना रहा है।" सीता धीरे से बोलीं। ओगरू ने सीता का वाक्य सुन लिया।
"नहीं!" वह चीत्कारपूर्ण स्वर में बोला, "वह देवी का भक्त है। उस पर देवी की कृपा है।"
"कौन-सी देवी? कैसी देवी?" सहसा राम का तेजस्वी स्वर गूंजा, "ओगरू, मैं तुम्हारी और तुम्हारे ग्राम के लोगों की भावना का अपमान नहीं करना चाहता; किंतु तुम स्वयं सोचकर बताओ कि वह कैसी देवी है, जिसे तुम ईश्वर की शक्ति मानते हो, और वह पत्थर की एक मूर्ति में बंदिनी है; उस मूर्ति में, जो गांव के तालाब में दो हाथ पानी के नीचे डूबी हुई है और देवी स्वयं को वहां से बाहर नहीं निकाल सकती तथा इतने से कार्य के लिए कर्कश से सहायता मांगती है।"
ओगरू तनिक भी हतप्रभ नहीं हुआ। वह तर्क पर उतर आया, "तो कर्कश को ग्राम का स्वामी किसने बनाया?"
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