बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"राम, हम देख रहे थे कि राक्षस हमें नष्ट करने आए हैं।" तोरू बोला, "हम यह भी देख रहे थे कि आप हमारी रक्षा कर रहे हैं। यदि आप पराजित हो जाते तो हम पुनः राक्षसों के दास हो जाते। पिछले कुछ मास जो हमने आपके संरक्षण में स्वतंत्रता तथा सम्मान के साथ बिताए हैं-हमारे लिए स्वप्न हो जाते। यह सब हम समझ रहे थे और परस्पर इस प्रकार की बातचीत भी कर रहे थे; किंतु राक्षसों से लड़ जाने का साहस हम फिर भी नहीं जुटा पा रहे थे। फिर, वह शस्त्रों का युद्ध था। हम-जैसा कि अभी आपने कहा-निःशस्त्र थे। पर जब हमने देखा कि वे राक्षस उस अन्न को भी नष्ट कर देना चाहते थे,
जो हमारे जीवन का आधार था, तो स्थिति हमारे सामने स्पष्ट हो उठी। चुनाव स्वतंत्र जीवन और दासता के जीवन के बीच नहीं था चुनाव जीवन और मृत्यु के बीच था। हम युद्ध न करते तो भी हमें मरना ही था; तो लड़कर ही क्यों न मरा जाए। सबसे पहले माखन उठा था। उसने कहा था, 'मैंने आज तक भीखन भैया की बात नहीं मानी; किंतु अब रुक नहीं सकता। राक्षस हमारे खेत जला जाएं और हम अपने बच्चों को अकाल में भूख से तड़प-तड़पकर मरते हुए देखने के लिए, कायरों के समान खड़े रह जाएं-यह नहीं होगा। जो मौन खड़ा रहे, उस पर धिक्कार।' माखन कुदाल के साथ, राक्षसों की ओर भागा। तब हम कैसे पीछे रह सकते थे! आवेश का धक्का कायरता की जड़ता को तोड़ गया।"
"यह तो अच्छा हुआ।" राम बोले, "किंतु राक्षसों से निहत्थे भिड़ जाने का परिणाम अच्छा नहीं हुआ। मुझे भी तुम लोगों के इस अकुशल रण के कारण दंडक वन में पहला घाव मिला है।"
राम ने अपना दायां हाथ, बायें कंधे की पट्टी पर फेरा।
"हमें खेद है राम!..."
"मेरा अभिप्राय यह नहीं था।" राम बोले, "मैं तो केवल यह चाहता हूं कि आप लोग भी आश्रमवाहिनी के साथ-साथ, शस्त्र परिचालन का अभ्यास करें, ताकि भविष्य में इस प्रकार निहत्थे लड़ने का अवसर ही न आए।"
"नहीं, वह निश्चय तो कल ही हो चुका।" भीखन बोला, "अब सारा ग्राम शस्त्र-शिक्षा ग्रहण करेगा। किंतु राम, क्या उनसे फिर युद्ध की संभावना है?"
"युद्ध की संभावना जिस दिन समाप्त हो जाएगी, वह मानव-इतिहास के लिए गौरव का दिन होगा।" राम बोले, "किंतु अभी तुम्हारे लिए तो काफी संभावना है।"
"क्यों? हमने तो सारे राक्षस मार दिए।" तोरू बोला, "अब लड़ने कौन आएगा?"
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