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धर्म एवं दर्शन >> गृहस्थ धर्म

गृहस्थ धर्म

प्रबोध कुमार मजुमदार

प्रकाशक : भुवन वाणी ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :76
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2841
आईएसबीएन :00-0000-00-0

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इसमें स्वामी रामतीर्थ के भाषणों के संकलनों का वर्णन है...

Grahasth Dharm

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


कर्म का विद्यान कर्मण्यता, क्रियाशीलता तथा शक्तिमय जीवन का प्रचार करता है। यह न तो पूर्व निर्णित भाग्य, न आलस्य या निष्कर्मता का प्रचार करता है। कर्म शब्द का अर्थ है क्रिया, तेज एवँ प्राण। राम ने यह प्रमाणित किया है कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वामी है, वह किसी प्रकार की दासता या गुलामी के आधीन नहीं  है, बल्कि वह अपनी स्थिति का प्रभु है। तब ऐसे मामलों में  अपना-दखल-अन्दाजी क्यों नहीं करते, ऐसे मामलों में आपको अपना कार्य अवश्य करना चाहिए चाहे संसार उसे स्वीकार करे या न करे। लोगों को अपने कर्तव्य के प्रति ध्यान देना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को यह मालूम है कि उपरोक्त बातें सत्य हैं तो इसे इस मामले में जरूर दखल देना चाहिए।

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