नाटक-एकाँकी >> बिना दीवारों के घर बिना दीवारों के घरमन्नू भंडारी
|
19 पाठकों को प्रिय 180 पाठक हैं |
स्त्री-पुरुष के बीच परिस्थितिजन्य उभर जाने वाली गाँठों की परत-दर परत पड़ताल करने वाली नाट्य-कृति.....
जयन्त : अच्छा ही हूँ। मीना : लग तो नहीं रहे। देख रही हूँ, पहले से बहुत दुबले
हो गए हो।
जयन्त : दुबला? (हँसता है) शायद तुम्हारी आँखों का फेर है। बल्कि यह बात तो
मुझे तुमसे कहनी चाहिए थी। (कुछ रुककर) अच्छा, यह बताओ तुम्हारा काम कैसा चल
रहा है? कितने परिवारों का उद्धार किया, कितनी औरतों को मुक्ति दिलवाई?
मीना : देख रही हूँ, आज भी मुझ पर तुम्हारी नाराज़गी ज्यों-की-त्यों बनी हुई
है।
जयन्त : नाराजगी? मैं तो कभी भी तुम पर नाराज नहीं था।
मीना : रग्घू कैसा है? कभी मुझे भी याद करता है या नहीं?
जयन्त : कई बार! (सिगरेट का पैकेट जेब में टटोलते हुए) ऐतराज़ न हो तो सिगरेट
पी लूँ? (मीना स्वीकृति में सिर हिलाती है।) अब तो सिगरेट के धुएँ से परेशान
करने वाला शायद कोई न होगा, क्यों?
मीना : (बुझे-से स्वर में) हाँ, कोई नहीं करता। कभी-कभी मन करता है कि कोई करे
तब भी कोई नहीं करता।
(जयन्त सिगरेट को होठों से लगाकर जेब में लाइटर ढूँढ़ता है। मीना बीच मेज़ से
दियासलाई उठाकर जयन्त की सिगरेट जलाने उसके पास पहुँच जाती है। सींक की रोशनी
में एक क्षण तक दोनों एक-दूसरे को देखते हैं। शोभा का प्रवेश। दोनों को इस रूप
में देखकर ठिठक जाती है।)
शोभा : बुरे मौके पर घुस आई क्या?
मीना : (सिगरेट जलाकर माचिस फेंकते हुए) नहीं-नहीं, आओ न! (शोभा चाय के बर्तन
रखकर चाय बनाती है।)
शोभा : देखो जयन्त मीना ज़िद कर रही है कि कल शाम को इनके समारोह में जाऊँ। अब
तुम्हीं बताओ, आजकल रियाज़ कहाँ कर पाती हूँ?
मीना : तुम सिफ़ारिश कर दो न जयन्त! सुना है तुम्हारे कहने से यह रेडियो में तो
गा ही देती हैं।
जयन्त : गाती क्यों नहीं शोभा? कौन वहाँ बड़ा इम्तिहान हो रहा है जो
लम्बे-चौड़े रियाज़ की ज़रूरत है।
शोभा : तुम कुछ देर ठहर जाओ मीना, ये आते ही होंगे, तुम कहोगी तो कभी मना नहीं
करेंगे।
जयन्त : हाँ, तो यों कहो न कि अजित का डर लग रहा है। रियाज़ का बहाना क्यों बना
रही हो?
मीना : शोभा, ठहर तो नहीं पाऊँगी...हाँ, तुम कहो तो फ़ोन कर दूं दस-साढ़े दस
बजे के बीच। पर गाना तुमको हर हालत में पड़ेगा, मैं अभी से कहे देती हूँ।
जयन्त : तुम्हारे कहने से क्या होता है? अजित इजाज़त देगा तो गाएँगी। (शोभा से)
एक बार मैं तुम्हारे कॉलेज आकर देखना चाहता हूँ कि तुम लड़कियों को कैसे
सम्हालती हो। बिना पूछे एक गाना गाने की हिम्मत तुममें है नहीं!
(जीजी का प्रवेश)
शोभा : अरे आप आ गईं जीजी! यह मीना।
(मीना नमस्कार करती है। जीजी भी करती हैं और बड़े गौर से उसे देखती हैं। जयन्त
कुछ अटपटा-सा महसूस करता है।)
मीना : बैठिए। जीजी : (बैठते हुए) इस समय तो बस में आने से प्राण ही निकल जाते
हैं!
शोभा : आप बस में घुस कैसे लेती हैं इस समय, मुझे तो इसी में आश्चर्य होता है।
आप शाम को क्यों नहीं जातीं सत्संग में।
|