लोगों की राय

भारतीय जीवन और दर्शन >> द्रष्टव्य जगत का यथार्थ - भाग 1

द्रष्टव्य जगत का यथार्थ - भाग 1

ओम प्रकाश पांडेय

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :287
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :81-7315-524-0

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

145 पाठक हैं

प्रस्तुत है भारत की कालजयी संस्कृति की निरंतता एवं उसकी पृष्ठभूमि....


रुद्र को भारतीय शास्त्रों में शाश्वत तथा अविनाशी माना गया है। वस्तुतः रुद्र का निर्गुण स्वरूप प्रकृति की मूल शक्ति से ही संबंधित है। अतः सृष्टि-स्थिति-विनाश के नियति-चक्र से सदैव ही अप्रभावित रहते हुए रुद्र नामक ऊर्जा इन तीनों ही स्थितियों को नियंत्रित करती रहती है। सौम्य तथा उग्र जैसी दो विपरीत ध्रुवोंवाली प्राणऊर्जाओं के अवचनीय मिश्रण के अतिरिक्त भारतीय शास्त्रों में रुद्र के सगुण रूप की भी चर्चा हुई है। पुराणों के अनुसार मानवी-ब्रह्मा (आदि-पुरुष) की सर्वप्रथम भेंट जिस नील-लोहित काया के बलिष्ठ अमैथुनीय मानव से हुई थी, उसे ही 'रुद्र' कहा गया है। इस प्रकार रुद्र का मानवी स्वरूप ब्रह्मा के पश्चात् या लगभग समकक्ष का ही प्रकट होता है। इसलिए ब्रह्मा के संदर्भ में चर्चा करने के पश्चात् ही इस पुस्तक में रुद्र का प्रसंग रखा गया है।

रुद्र के इन्हीं अवर्णनीय आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक स्वरूपों के साथ इनके प्राकृतिक तथा मानवी रूपकों, कृतित्वों एवं इनसे प्रसूत परंपराओं का यथासामर्थ्य वर्णन इस अध्याय में करने का प्रयास किया गया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book