स्वास्थ्य-चिकित्सा >> घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खेसुरेश पोरवाल
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इसमें प्रत्येक रोग की पहचान उसके लक्षण,रोग पैदा होने के कारण व उनका उपचार करने की सरल विधि का वर्णन किया गया है.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आयुर्वेद ही एक ऐसा शास्त्र है,जिसमें
एक-एक रोग के लिए उपचार हेतु सैकड़ों औषधीय योगों (नुस्खों) का उल्लेख
मिलता है। यह चिकित्सा पद्धति राजा-महाराजा,अमीर-गरीब तथा दीन-दरिद्र सभी
वर्गों के लिए समान रूप से सुलभ है।
प्रस्तुत पुस्तक में अनेक रोगों में लाभकारी एवं आयुर्वेद की सरल व सहजता से उपलब्ध होने वाली औषधियों का समावेश किया गया है। इसके प्रयोग में लायी जाने वाली सामग्री एवं जड़ी-बूटियाँ तथा उनके अवयव अपने घर खेत,वनों के साथ-साथ बाजार एवं सामान्य पंसारियों की दुकान पर सस्ते दामों पर सरलता से उपलब्ध होती है।
इसमें प्रत्येक रोग प्रकरण में रोग की पहचान,उसके लक्षण,रोग पैदा होने के कारण के साथ-साथ उनका सहज उपचार,पथ्य-अपथ्य का पालन एवं बचाव सुस्पष्ट तथा सरल भाषा में बताये गये हैं।
हमें विश्वास है कि सभी आयु वर्ग के जनसामान्य चिकित्सा में अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर नीरोग एवं सुखद जीवन जिएँगे।
प्रस्तुत पुस्तक में अनेक रोगों में लाभकारी एवं आयुर्वेद की सरल व सहजता से उपलब्ध होने वाली औषधियों का समावेश किया गया है। इसके प्रयोग में लायी जाने वाली सामग्री एवं जड़ी-बूटियाँ तथा उनके अवयव अपने घर खेत,वनों के साथ-साथ बाजार एवं सामान्य पंसारियों की दुकान पर सस्ते दामों पर सरलता से उपलब्ध होती है।
इसमें प्रत्येक रोग प्रकरण में रोग की पहचान,उसके लक्षण,रोग पैदा होने के कारण के साथ-साथ उनका सहज उपचार,पथ्य-अपथ्य का पालन एवं बचाव सुस्पष्ट तथा सरल भाषा में बताये गये हैं।
हमें विश्वास है कि सभी आयु वर्ग के जनसामान्य चिकित्सा में अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर नीरोग एवं सुखद जीवन जिएँगे।
प्रस्तावना
आयुर्वेद का संबंध आयु से होता है। इसके द्वारा आयु से संबंधित ज्ञान
प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में-आयुर्वेद उस शास्त्र को कहते हैं, जो
आयु के हिताहित, अर्थात् रोग और उसके निदान तथा शमन-विधियों का ज्ञान
कराता है।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आयुर्वेद ही एक ऐसा शास्त्र है, जिसमें एक-एक रोग के अनुसार उपचार हेतु ऐसे सैकड़ों औषधीय योगों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें बहुधनराशि व्यय करके तथा कौड़ियों की लागत से भी तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार यह पद्धति राजा-महाराजा, अमीर-गरीब तथा दीन-दरिद्र आदि सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए एक समान अत्यंत उपयोगी है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट्ट के नाम उल्लिखित हैं, जैसे-महर्षि चरक द्वारा रचित ग्रंथ ‘चरक संहिता’, सुश्रुत द्वारा निर्मित ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ तथा वाग्भट्ट रचित ‘अष्टांग हृदय’ होते हुए भी ‘वाग्भट्ट संहिता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
इन ग्रंथों के अतिरिक्त वंगसेन, माधवनिदान, भावप्रकाश, भैषज रत्नावली, वैद्यविनोद, चक्रदत्त, शार, वैद्यजीवन आदि हैं, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में सहयोग प्रदान करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में अनेक रोगों का हितकर या लाभकारी, आयुर्वेद की सरल एवं आसानी से उपलब्ध होने वाली औषधियों का समावेश किया गया है, जिनमें प्रयुक्त होनेवाले पदार्थ या वस्तु एवं सुलभ जड़ी-बूटियाँ अपने घर, खेत, बाजार एवं वनों के साथ-साथ पंसारियों की दुकान पर कम दाम में सरलता से उपलब्ध होती हैं।
इस पुस्तक में लिखे गये नुस्खों को अमीर व्यक्ति या गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी सरलता से अपना सकता है। प्रत्येक रोग प्रकरण में रोग की पहचान, किस कारण होता है, किन लक्षणों से इस रोग को जान सकें एवं उचित उपचार, पथ्य-अपथ्य का पालन और बचाव इस पुस्तक के अंग है। ये सभी घरेलू नुस्खे (योग) प्राचीन ग्रंथों के अनुसार अपने अनुभव एवं अध्ययन द्वारा रचित किए गए हैं। इसमें लिखे रोग रोजमर्रा के रोग हैं, जो सामान्य जीवन में होते रहते हैं।
इस पुस्तक में त्वरित चिकित्सा के अंतर्गत लिये गए नुस्खें हैं, जिनसे तुरंत उपचार किया जा सके। इसी आधार पर यह पुस्तक सरल भाषा में तैयार की गई है। जन-सामान्य इसको अपनाकर लाभ उठा सकता है, क्योंकि ये नुस्खे अनेक बार आजमाए हुए एवं परीक्षित हैं। इस पुस्तक में योग किसी को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं लिखे गए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में जिन ग्रंथों तथा अन्यान्य सूत्रों से सामग्री संचित की गई है, उन सभी के प्रति हम हृदय से आभारी हैं।
मुझे विश्वास है कि पाठकगण इसे स्नेहपूर्वक अपनाएँगे।
जय धन्वंतरि नम:।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आयुर्वेद ही एक ऐसा शास्त्र है, जिसमें एक-एक रोग के अनुसार उपचार हेतु ऐसे सैकड़ों औषधीय योगों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें बहुधनराशि व्यय करके तथा कौड़ियों की लागत से भी तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार यह पद्धति राजा-महाराजा, अमीर-गरीब तथा दीन-दरिद्र आदि सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए एक समान अत्यंत उपयोगी है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में चरक, सुश्रुत एवं वाग्भट्ट के नाम उल्लिखित हैं, जैसे-महर्षि चरक द्वारा रचित ग्रंथ ‘चरक संहिता’, सुश्रुत द्वारा निर्मित ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ तथा वाग्भट्ट रचित ‘अष्टांग हृदय’ होते हुए भी ‘वाग्भट्ट संहिता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
इन ग्रंथों के अतिरिक्त वंगसेन, माधवनिदान, भावप्रकाश, भैषज रत्नावली, वैद्यविनोद, चक्रदत्त, शार, वैद्यजीवन आदि हैं, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में सहयोग प्रदान करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में अनेक रोगों का हितकर या लाभकारी, आयुर्वेद की सरल एवं आसानी से उपलब्ध होने वाली औषधियों का समावेश किया गया है, जिनमें प्रयुक्त होनेवाले पदार्थ या वस्तु एवं सुलभ जड़ी-बूटियाँ अपने घर, खेत, बाजार एवं वनों के साथ-साथ पंसारियों की दुकान पर कम दाम में सरलता से उपलब्ध होती हैं।
इस पुस्तक में लिखे गये नुस्खों को अमीर व्यक्ति या गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी सरलता से अपना सकता है। प्रत्येक रोग प्रकरण में रोग की पहचान, किस कारण होता है, किन लक्षणों से इस रोग को जान सकें एवं उचित उपचार, पथ्य-अपथ्य का पालन और बचाव इस पुस्तक के अंग है। ये सभी घरेलू नुस्खे (योग) प्राचीन ग्रंथों के अनुसार अपने अनुभव एवं अध्ययन द्वारा रचित किए गए हैं। इसमें लिखे रोग रोजमर्रा के रोग हैं, जो सामान्य जीवन में होते रहते हैं।
इस पुस्तक में त्वरित चिकित्सा के अंतर्गत लिये गए नुस्खें हैं, जिनसे तुरंत उपचार किया जा सके। इसी आधार पर यह पुस्तक सरल भाषा में तैयार की गई है। जन-सामान्य इसको अपनाकर लाभ उठा सकता है, क्योंकि ये नुस्खे अनेक बार आजमाए हुए एवं परीक्षित हैं। इस पुस्तक में योग किसी को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं लिखे गए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में जिन ग्रंथों तथा अन्यान्य सूत्रों से सामग्री संचित की गई है, उन सभी के प्रति हम हृदय से आभारी हैं।
मुझे विश्वास है कि पाठकगण इसे स्नेहपूर्वक अपनाएँगे।
जय धन्वंतरि नम:।
-डॉ.सुरेश
पोरवाल
पाचन संस्थान के रोग
आरोचक
पहचान
आरोचक से तात्पर्य है कि भोजन को ग्रहण करने में ही रुचि न हो या यों कहें
कि भूख होते हुए भी व्यक्ति भोजन करने में असमर्थ हो, तो वह आरोचक या
‘मन न करना’ कहलाता है।
आरोचक का अर्थ सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो, फिर भी भोजन अच्छा न लगे और गले के नीचे न उतरे।
आरोचक का अर्थ सीधे-सीधे यह कह सकते हैं कि भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो, फिर भी भोजन अच्छा न लगे और गले के नीचे न उतरे।
कारण
चाय-कॉफी का अधिक सेवन, विषम ज्वर (मलेरिया) के बाद, शोक, भय, अतिलोभ,
क्रोध एवं गंध, छाती की जलन, मल साफ नहीं आना, कब्ज होना, बुखार होना,
लीवर तथा आमाशय की खराबी आदि।
लक्षण
खून की कमी, हृदय के समीप अतिशय जलन एवं प्यास की अधिकता, गले से नीचे
आहार के उतरने में असमर्थता, मुख में गरमी एवं दुर्गंध की उपस्थिति, चेहरा
मलिन एवं चमकहीन, किसी कार्य की इच्छा नहीं, अल्पश्रम से थकान आना, सूखी
डकारें आना, मानसिक विषमता से ग्रस्त होना, शरीर के वजन में दिन-ब-दिन कमी
होते जाना, कम खाने पर भी पेट भरा प्रतीत होना।
घरेलू योग
1. भोजन के एक घंटा पहले पंचसकार चूर्ण को
एक चम्मच गरम पानी के साथ लेने से भूख खुलकर लगती है।
2. रात में सोते समय आँवला 3 भाग, हरड़ 2 भाग तथा बहेड़ा 1 भाग-को बारीक चूर्ण करके एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से सुबह दस्त साफ आता है एवं भूख खुलकर लगती है।
3. भोजन में पतले एवं हलके व्यंजनों का प्रयोग करने से खाया हुआ जल्दी पच जाता है, जिससे जल्दी ही भूख लग जाती है।
4. खाना खाने के बाद अजवायन का चूर्ण थोड़े से गुड़ के साथ खाकर गुनगुना पानी पीने से खाया हुआ पचेगा, भूख लगेगी और खाने में रुचि पैदा होगी।
5. भोजन के बाद हिंग्वष्टक चूर्ण एक चम्मच खाने से पाचन-क्रिया ठीक होगी।
6. भोजन के बाद सुबह-शाम दो-दो चम्मच झंडु पंचासव सीरप लें, इससे खाया-पिया जल्दी पच जाएगा और खाने के प्रति रुचि जाग्रत् होगी।
7. हरे धनिए में हरी मिर्च, टमाटर, अदरक, हरा पुदीना, जीरा, हींग, नमक, काला नमक डालकर सिलबट्टे पर पीसकर बनाई चटनी खाने से भोजन की इच्छा फिर से उत्पन्न होती है।
8. भोजन करने के बाद थोड़ा सा अनारदाना या उसके बीज के चूर्ण में काला नमक एवं थोड़ी सी मिश्री पीसकर मिलाने के बाद पानी के साथ एक चम्मच खाने से भूख बढ़ती है।
9. एक गिलास छाछ में काला नमक, सादा नमक, पिसा जीरा मिलाकर पीने से पाचन-क्रिया तेज होकर आरोचकता दूर होती है।
आयुर्वेदिक योग
पंचारिष्ट, कुमार्यासव, पंचासव दो-दो चम्मच भोजन के बाद पीना चाहिए। आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी या क्षुब्धानाशक वटी में से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम लें।
2. रात में सोते समय आँवला 3 भाग, हरड़ 2 भाग तथा बहेड़ा 1 भाग-को बारीक चूर्ण करके एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से सुबह दस्त साफ आता है एवं भूख खुलकर लगती है।
3. भोजन में पतले एवं हलके व्यंजनों का प्रयोग करने से खाया हुआ जल्दी पच जाता है, जिससे जल्दी ही भूख लग जाती है।
4. खाना खाने के बाद अजवायन का चूर्ण थोड़े से गुड़ के साथ खाकर गुनगुना पानी पीने से खाया हुआ पचेगा, भूख लगेगी और खाने में रुचि पैदा होगी।
5. भोजन के बाद हिंग्वष्टक चूर्ण एक चम्मच खाने से पाचन-क्रिया ठीक होगी।
6. भोजन के बाद सुबह-शाम दो-दो चम्मच झंडु पंचासव सीरप लें, इससे खाया-पिया जल्दी पच जाएगा और खाने के प्रति रुचि जाग्रत् होगी।
7. हरे धनिए में हरी मिर्च, टमाटर, अदरक, हरा पुदीना, जीरा, हींग, नमक, काला नमक डालकर सिलबट्टे पर पीसकर बनाई चटनी खाने से भोजन की इच्छा फिर से उत्पन्न होती है।
8. भोजन करने के बाद थोड़ा सा अनारदाना या उसके बीज के चूर्ण में काला नमक एवं थोड़ी सी मिश्री पीसकर मिलाने के बाद पानी के साथ एक चम्मच खाने से भूख बढ़ती है।
9. एक गिलास छाछ में काला नमक, सादा नमक, पिसा जीरा मिलाकर पीने से पाचन-क्रिया तेज होकर आरोचकता दूर होती है।
आयुर्वेदिक योग
पंचारिष्ट, कुमार्यासव, पंचासव दो-दो चम्मच भोजन के बाद पीना चाहिए। आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी या क्षुब्धानाशक वटी में से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम लें।
पथ्य
सलाद, पेय पदार्थ, छाछ, पाचक चूर्ण आदि लेना पथ्य है।
अपथ्य
चाय, कॉफी, बेसन, तेज मसाले एवं सूखी सब्जियाँ अपथ्य हैं।
बचाव
इस रोग से बचने का सबसे बढ़िया तरीका सुबह-शाम भोजन करके एक घंटा पैदल
घूमना एवं सलाद तथा हरी पत्तीदार सब्जियों का प्रयोग करना है।
अग्निमांद्य
पहचान
अल्प मात्रा में लिया गया आहार भी ठीक से न पचे, मस्तक और पेट में वजन
मालूम पड़े और शरीर में हड़फुटन हो तो समझिए कि अग्निमांद्य से पीड़ित हैं
अर्थात् पेट में भूख की अग्नि (तड़प) मंद हो रही है या पाचन-क्रिया की गति
कम हो गई है।
कारण
1. सामान्य कारण:- अजीर्ण होने पर भी भोजन
करना, परस्पर विरुद्ध आहार लेना, अपक्व (कच्चा) भोजन करना, द्रव पदार्थों
का अधिक सेवन करना, ज्यादा गरम तथा ज्यादा खट्टे पदार्थों का सेवन, भोजन
के बाद अथवा भोजन के बीच में पानी पीने का अभ्यास, कड़क चाय का अति सेवन
आदि।
2. विशिष्ट कारण:- खाने की नली की बनावट जन्म से ही विकृतमय होना, आँतपुच्छ में सूजन, खून की कमी, एस्प्रीन सैलीसिलेट्स आदि का अधिक सेवन।
2. विशिष्ट कारण:- खाने की नली की बनावट जन्म से ही विकृतमय होना, आँतपुच्छ में सूजन, खून की कमी, एस्प्रीन सैलीसिलेट्स आदि का अधिक सेवन।
लक्षण
इसका प्रमुख लक्षण खाने के बाद पेट भारी रहना है। मुँह सूखना, अफारा, जी
मिचलाना, भोजन के प्रति अरुचि, भूख न लगना, दुर्बलता, सिर में चक्कर खाना,
मुँह से धुँआँ जैसा निकलना, पसीना आना, शरीर में भारीपन होना, उलटी की
इच्छा, मुँह में दुर्गंध, मुँह में पानी भर आना, खट्टी डकारें आना आदि।
घरेलू योग
1. अग्निमांद्य में गरम पानी पीना चाहिए।
2. भोजन करने से पहले अदरक की कतरन में सेंधा नमक डालकर चबाने से भूख खुलती है एवं अग्निमांद्य नष्ट होता है।
3. सिरका और अदरक बराबर-बराबर मिलाकर भोजन से पहले नित्य खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
4. घी से युक्त खिचड़ी के प्रथम निवाले के साथ हिंग्वष्टक चूर्ण खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
5. लवणभास्कर चूर्ण को गाय के दूध की छाछ के साथ नित्य लेने से अग्निमाद्य नष्ट होता है।
6. बथुए का रायता नित्य सेवन करने से भोजन में रुचि बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
7. दोनों समय के भोजन के बीच पाँच घंटे का फासला रखकर दोपहर का भोजन 10 बजे एवं शाम का भोजन 5 बजे तक कर लें। भोजन के पहले एवं बाद में पानी नहीं पीने से खाया हजम होकर भूख खुलेगी, जिससे अग्निमांद्य दूर होगा।
8. भोजन में कद्दू एवं लौकी का रायता खाने से खाना जल्दी पचता है।
9. दिन भर में केवल एक बार ही भोजन करने से एवं एक समय फलाहार लेने से भी अग्निमांद्य नष्ट होता है।
10. भूख से कम एवं खूब चबा-चबाकर खाने से भोजन जल्दी पच जाएगा एवं भूख की मंद अग्नि दूर होगी।
2. भोजन करने से पहले अदरक की कतरन में सेंधा नमक डालकर चबाने से भूख खुलती है एवं अग्निमांद्य नष्ट होता है।
3. सिरका और अदरक बराबर-बराबर मिलाकर भोजन से पहले नित्य खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
4. घी से युक्त खिचड़ी के प्रथम निवाले के साथ हिंग्वष्टक चूर्ण खाने से अग्निमांद्य दूर होगा।
5. लवणभास्कर चूर्ण को गाय के दूध की छाछ के साथ नित्य लेने से अग्निमाद्य नष्ट होता है।
6. बथुए का रायता नित्य सेवन करने से भोजन में रुचि बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
7. दोनों समय के भोजन के बीच पाँच घंटे का फासला रखकर दोपहर का भोजन 10 बजे एवं शाम का भोजन 5 बजे तक कर लें। भोजन के पहले एवं बाद में पानी नहीं पीने से खाया हजम होकर भूख खुलेगी, जिससे अग्निमांद्य दूर होगा।
8. भोजन में कद्दू एवं लौकी का रायता खाने से खाना जल्दी पचता है।
9. दिन भर में केवल एक बार ही भोजन करने से एवं एक समय फलाहार लेने से भी अग्निमांद्य नष्ट होता है।
10. भूख से कम एवं खूब चबा-चबाकर खाने से भोजन जल्दी पच जाएगा एवं भूख की मंद अग्नि दूर होगी।
आयुर्वेदिक योग
1. पंचारिष्ट या पंचासव सीरप- किसी एक की
दो-दो चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद लें।
2. आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी, गैसेक्स, यूनीइंजाम-इनमें से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम छाछ के साथ लें।
3. लवणभास्कर चूर्ण, पंचसकार चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण में से कोई भी एक चम्मच पाचक चूर्ण गरम पानी के साथ लें।
2. आरोग्यवर्दिनी वटी, गैसांतक वटी, गैसेक्स, यूनीइंजाम-इनमें से किसी एक की दो-दो वटी भोजन के बाद सुबह-शाम छाछ के साथ लें।
3. लवणभास्कर चूर्ण, पंचसकार चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण में से कोई भी एक चम्मच पाचक चूर्ण गरम पानी के साथ लें।
पथ्य
सलाद, छाछ, खिचड़ी, हरी सब्जियाँ एवं रसेदार पदार्थ खाना पथ्य है।
अपथ्य
भूख नहीं लगने पर भी भोजन करना, चाय-कॉफी अधिक मात्रा में लेना, बासी खाना
अपथ्य है।
बचाव
भोजन करके दिन या रात में तुरंत नहीं सोना चाहिए।
अम्लपित्त
पहचान
अम्लपित्त से आशय ‘आहार-नली एवं आमाशय में तीव्र जलन’
होता है। यह जलन खाना पचने के बाद महसूस होती है। अम्लपित्त का सीधा सा
अर्थ है-हृदय प्रदेश में जलन। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे पेट में जलन
या गले की नार (नली) जलना कहते हैं। अंग्रेजी में इसे
‘एसीडिटी’ कहते हैं।
कारण
अधिक मात्रा में मिर्च-मसाले खाना, चाय-कॉफी का अधिक सेवन करना, आमाशय
(खाने की थैली) में छाले होना, ज्यादा गरम एवं गरिष्ठ वस्तुओं का ज्यादा
प्रयोग करना; बेसन चिकने एवं मीठे या वातकारक खाद्य पदार्थों का सेवन
करना, शराब एवं मांस-मछली का नित्य सेवन करना।
लक्षण
इस रोग का सबसे प्रमुख लक्षण छाती में जलन होती है, जिसे अपने आप महसूस
किया जाता है। अन्य कारणों में रात में सोते समय जलन के कारण अचानक नींद
खुलना, हृदय प्रदेश में जलन, जी मिचलाना, खारा पानी मुँह में आना, भोजन
पचते ही जलन प्रारंभ होना, पेट में गुड़गुड़ाहट मालूम होना, कभी-कभी दस्त
लगना, जलन के कारण आमाशय में मरोड़ आना, आमाशय में दर्द मालूम होना आदि।
घरेलू योग
1. निसौत एवं आँवला शहद के साथ चाटें तो
अम्लपित्त मिट जाएगा।
2. मैनफल एवं सेंधा नमक शहद के साथ चाटने से उलटी होगी, जिससे अम्लपित्त दब जाएगा।
3. विरेचन देने से अम्लपित्त दब जाता है।
4. जौ, गेहूँ या चावल का सत्तू मिश्री के साथ सेवन करें तो अम्लपित्त शांत होगा।
5. भोजन के पश्चात् आँवले का रस पीने से अम्लपित्त शांत होता है।
6. जौ, अडूसा, आँवला, तज, पत्रज और इलायची का काढ़ा शहद के साथ पिएँ तो अम्लपित्त दूर होगा।
7. गुर्च, निंबछाल एवं पटोल का काढ़ा मधु (शहद) के साथ पिएँ तो अम्लपित्त दूर होगा।
8. अडूसा, गुर्च, पित्तपापड़ा, चिरायता, नीम की छाल, जलभांगरा, त्रिफला और कुलथी के काढ़े में शहद डालकर पिएँ, अम्लपित्त दूर होगा।
9. द्राक्षादिगुटिका की एक गोली नित्य खाने से अम्लपित्त रोग दूर हो जाता है।
10. 8 ग्राम अविपतिक चूर्ण का सेवन ठंडे पानी के साथ करने से अम्लपित्त रोग दूर होता है।
11. सुत शेखर रस या आमदोषांतक कैप्सूल की दो-दो की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से अम्लपित्त रोग नष्ट होता है।
12. कामसुधा रस की दो-दो गोली नित्य लेने से अम्लपित्त दूर होगा।
2. मैनफल एवं सेंधा नमक शहद के साथ चाटने से उलटी होगी, जिससे अम्लपित्त दब जाएगा।
3. विरेचन देने से अम्लपित्त दब जाता है।
4. जौ, गेहूँ या चावल का सत्तू मिश्री के साथ सेवन करें तो अम्लपित्त शांत होगा।
5. भोजन के पश्चात् आँवले का रस पीने से अम्लपित्त शांत होता है।
6. जौ, अडूसा, आँवला, तज, पत्रज और इलायची का काढ़ा शहद के साथ पिएँ तो अम्लपित्त दूर होगा।
7. गुर्च, निंबछाल एवं पटोल का काढ़ा मधु (शहद) के साथ पिएँ तो अम्लपित्त दूर होगा।
8. अडूसा, गुर्च, पित्तपापड़ा, चिरायता, नीम की छाल, जलभांगरा, त्रिफला और कुलथी के काढ़े में शहद डालकर पिएँ, अम्लपित्त दूर होगा।
9. द्राक्षादिगुटिका की एक गोली नित्य खाने से अम्लपित्त रोग दूर हो जाता है।
10. 8 ग्राम अविपतिक चूर्ण का सेवन ठंडे पानी के साथ करने से अम्लपित्त रोग दूर होता है।
11. सुत शेखर रस या आमदोषांतक कैप्सूल की दो-दो की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से अम्लपित्त रोग नष्ट होता है।
12. कामसुधा रस की दो-दो गोली नित्य लेने से अम्लपित्त दूर होगा।
पथ्य
शहद, केला, अदरक, धनिया आदि पथ्य हैं।
अपथ्य
तली वस्तुएँ, वातकारक पदार्थ एवं मांस-मछली अपथ्य हैं।
संग्रहणी
पहचान
मंदाग्नि के कारण भोजन न पचने पर अजीर्ण होकर दस्त लगते लगते हैं तो यही
दस्त संग्रहणी कहलाती है। अर्थात् खाना खाने के बाद तुरंत ही शौच होना या
खाने के बाद थोड़ी देर में अधपचा या अपरिपक्व मल निकलना संग्रहणी कही जाती
है। इस रोग के कारण अन्न कभी पचकर, कभी बिना पचे, कभी पतला, कभी गाढ़ा
कष्ट या दुर्गंध के साथ शौच के रूप में निकलता है। शरीर में दुर्बलता आ
जाती है।
कारण
इस रोग का प्रमुख कारण विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, सी एवं कैल्सियम की कमी
होना है।
वातज संग्रहणी:- जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे, मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न होती है।
पित्तज संग्रहणी:- जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है।
कफज संग्रहणी:- जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को नष्ट कर देता है।
वातज संग्रहणी:- जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे, मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न होती है।
पित्तज संग्रहणी:- जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है।
कफज संग्रहणी:- जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को नष्ट कर देता है।
लक्षण
वातज:- खाया हुआ आहार कष्ट से पचे, कंठ सूखे, भूख न लगे, प्यास अधिक लगे,
कानों में भन-भन होना, जाँघों व नाभि में पीड़ा होना आदि।
पित्तज:- कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी डकारें आना।
कफज:- अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस, गरिष्ठता और मीठी डकारें आना।
पित्तज:- कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी डकारें आना।
कफज:- अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस, गरिष्ठता और मीठी डकारें आना।
घरेलू योग
1. सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य एवं चित्रक
का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पिएँ, ऊपर से दो-चार
बार और भी छाछ पिएँ तो वात संग्रहणी दूर होगी।
2. 8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2 या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है।
3. जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन, वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी।
4. रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट होगी।
5. हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ, चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी दूर होगी।
2. 8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2 या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है।
3. जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन, वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर, वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी।
4. रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट होगी।
5. हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ, चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी दूर होगी।
आयुर्वेदिक योग
अभ्रक गुटिका, संग्रहणी कटक रस, हिमालय की डॉयरेक्स-इनमें से किसी एक की
दो-दो गोली सुबह-शाम छाछ के साथ लें।
पथ्य
संग्रहणी के रोगी को हमेशा हलका एवं पाचक भोजन ही करना चाहिए।
अपथ्य
भारी, आमोत्पादक, क्षुधानाशक, चिकना पदार्थ, अधिक परिश्रम अति मैथुन और
चिंता से दूर रहे।
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लोगों की राय
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