स्वास्थ्य-चिकित्सा >> मधुमेह और स्वस्थ जीवन मधुमेह और स्वस्थ जीवनअशोक झिंगन
|
10 पाठकों को प्रिय 210 पाठक हैं |
इसमें मधुमेह रोग से संबंधित अनेक प्रश्न तथा प्रश्नों के जानकारीपरक उत्तर मिलेंगे....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मधुमेह की क्रूर छाया से आज करोड़ों लोग भयभीत हैं। विश्व में इस रोग से
पीड़ितों की संख्या लगभग सोलह करोड़ है। हमारे देश में ही दो करोड़ से
अधिक लोग इससे पीड़ित हैं, और लगभग एक करोड़ लोग तो ऐसे हैं जिन्हें यह ही
नहीं पता कि वे किस रोग का शिकार हैं।
‘मधुमेह और स्वस्थ जीवन’ में मधुमेह रोग से सम्बन्धित अनेक प्रश्न व अंतः प्रश्नों के जानकी परक उत्तर में हमें जानने को मिलेंगे, यथा-यह रोग क्यों और कैसे होता है, इसकी परीक्षण विधियाँ क्या हैं, इस रोग का शरीर के विभिन्न अंगों एवं रोगों से क्या संबंध होता है, इसका यौन समस्याओं, शराब, यात्रा से से क्या संबंध होता है आदि। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति में क्या करें, बच्चों, युवाओं व वृद्धों में मधुमेह, रोगियों के ध्यान रखने हेतु महत्त्वपूर्ण बातें, इस रोग में व्यायाम का महत्त्व तथा लाभकारी योगासन और मधुमेह को रोकने के सर्वोत्तम उपाय आदि शीर्षकों के अंतर्गत व्यवहारिक जानकारियाँ मिलती हैं।
यह पुस्तक पढ़ने के पश्चात् विश्वास है कि आप मधुमेह के बारे में बहुत कुछ जान ही लेंगे, इस रोग से बचाव एवं उपायों के बारे में भी अधिकाधिक जानकारी रखने वाले हो जाएँगे।
‘मधुमेह और स्वस्थ जीवन’ में मधुमेह रोग से सम्बन्धित अनेक प्रश्न व अंतः प्रश्नों के जानकी परक उत्तर में हमें जानने को मिलेंगे, यथा-यह रोग क्यों और कैसे होता है, इसकी परीक्षण विधियाँ क्या हैं, इस रोग का शरीर के विभिन्न अंगों एवं रोगों से क्या संबंध होता है, इसका यौन समस्याओं, शराब, यात्रा से से क्या संबंध होता है आदि। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति में क्या करें, बच्चों, युवाओं व वृद्धों में मधुमेह, रोगियों के ध्यान रखने हेतु महत्त्वपूर्ण बातें, इस रोग में व्यायाम का महत्त्व तथा लाभकारी योगासन और मधुमेह को रोकने के सर्वोत्तम उपाय आदि शीर्षकों के अंतर्गत व्यवहारिक जानकारियाँ मिलती हैं।
यह पुस्तक पढ़ने के पश्चात् विश्वास है कि आप मधुमेह के बारे में बहुत कुछ जान ही लेंगे, इस रोग से बचाव एवं उपायों के बारे में भी अधिकाधिक जानकारी रखने वाले हो जाएँगे।
मधुमेह या डायबिटीज मेलीटस
मधुमेग रोग के बारे में सदियों पहले भी लोगों को जानकारी थी। आयुर्वेद में
इसका विवरण ‘मधुमेह’ या ‘मीठा पेशाब’ के नाम से
मिलता है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों को इसका ज्ञान 3000 वर्ष पहले से ही था।
भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सकों-सुश्रुत एवं चरक- ने इस रोग के बारे में एवं
इसके प्रकारों के बारे में लिखा है-
‘स्थूल प्रमेही बलवानहि एक: कृक्षरतथेव परिदुर्वलक्ष्य।
संवृहणंतम कृशस्य कार्यम् संशोधन दोष बलाधिकस्य।।’
संवृहणंतम कृशस्य कार्यम् संशोधन दोष बलाधिकस्य।।’
चरक के अनुसार यह बीमारी दो प्रकार की होती है- एक तगड़े एवं बलवान लोगों
पर असर करती है, दूसरी तरह की बीमारी से पतले एवं कमजोर लोग प्रभावित होते
हैं। उस जमाने में जब किसी व्यक्ति को कमजोरी की शिकायत या फोड़े-फुंसियों
का होना एवं आलस्य की शिकायत और उसका यह बताना कि मैं जहाँ पेशाब करता हूँ
वहाँ चीटियाँ या कीड़े इकट्ठे हो जाते हैं, उसे कहा जाता था कि तुम्हें
मधुमेह रोग है।
मधुमेह शब्द ग्रीक भाषा के ‘डाय़बिटोज’ शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है ‘सायफन’ यानी ‘बहना’ और मेलीटस का अर्थ है ‘मीठा’।
आज हमारे देश में करीब दो करोड़ लोग मधुमेह रोग से पीड़ित हैं और एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने इस रोग के बारे में पता ही नहीं है।
एक अनुमान के अनुसार विश्व में आज मधुमेह के लगभग 17.5 करोड़ रोगी हैं।
मधुमेह शब्द ग्रीक भाषा के ‘डाय़बिटोज’ शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है ‘सायफन’ यानी ‘बहना’ और मेलीटस का अर्थ है ‘मीठा’।
आज हमारे देश में करीब दो करोड़ लोग मधुमेह रोग से पीड़ित हैं और एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने इस रोग के बारे में पता ही नहीं है।
एक अनुमान के अनुसार विश्व में आज मधुमेह के लगभग 17.5 करोड़ रोगी हैं।
कारण
हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, चरबी, विटामिन, मिनरल एवं जल
मुख्य तत्त्व होते हैं। जो भी भोजन हम करते हैं, वह छोटी आँत द्वारा शोषित
होता है। पाचक एंजाइम्स, जो अमाशय, आँतों एवं पेंक्रियाज ग्रंथि से निकलते
हैं, वे खाने में मिलकर उसे पाचन लायक बनाते हैं। कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज
में परिवर्तित हो जाता है और छोटी आँत से सोखकर रक्त में पहुँचता है।
हर सामान्य व्यक्ति के रक्त में शुगर होती है। खाली पेट के समय रक्त में शुगर का स्तर 110 मि.ग्रा. से कम होता है।
पेंक्रियाज से इंसुलिन हारमोन निकलता है जो शरीर में शुगर की मात्रा को नियमित रखता है।
इस प्रकार से, अगर शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम होगी तो शुगर पर नियंत्रण नहीं होगा। यह तभी होगा जब पेंक्रियाज ग्रंथि, जो यह हारमोन पैदा करती है, काम करना बंद कर दे या कम काम करे।
अभी तक कोई ऐसा निश्चित कारण जिसमें पेंक्रियाज काम करना बंद कर दे, मालूम नहीं हुआ है।
हर सामान्य व्यक्ति के रक्त में शुगर होती है। खाली पेट के समय रक्त में शुगर का स्तर 110 मि.ग्रा. से कम होता है।
पेंक्रियाज से इंसुलिन हारमोन निकलता है जो शरीर में शुगर की मात्रा को नियमित रखता है।
इस प्रकार से, अगर शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम होगी तो शुगर पर नियंत्रण नहीं होगा। यह तभी होगा जब पेंक्रियाज ग्रंथि, जो यह हारमोन पैदा करती है, काम करना बंद कर दे या कम काम करे।
अभी तक कोई ऐसा निश्चित कारण जिसमें पेंक्रियाज काम करना बंद कर दे, मालूम नहीं हुआ है।
वंशानुगत पहलू (हेरीडिटरी)
मधुमेह परिवार में उन व्यक्तियों को अधिक प्रभावित करता है जिनके
माता-पिता मधुमेह के रोगी थे। कई व्यक्तियों में यह बीमारी बचपन से ही हो
जाती है और कुछ में उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है और इसके लक्षण
शुरू हो जाते हैं।
मोटापा
ऐसा माना गया है कि अगर आपके शरीर का वजन औसतन से 30 से 40 प्रतिशत अधिक
है तो इंसुलिन की कार्यक्षमता 30 से 35 प्रतिशत कम हो जाती है और ऐसे
व्यक्तियों को मधुमेह हो सकता है।
मधुमेह के प्रकार
मधुमेह रोग (डायबिटीज) दो प्रकार का होता है-
टाईप एक- इंसुलिन निर्भर मधुमेह (IDDM) एवं
टाईप दो- बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह (NIDDM)।
टाईप एक- इंसुलिन निर्भर मधुमेह (IDDM) एवं
टाईप दो- बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह (NIDDM)।
इंसुलिन निर्भर मधुमेह (IDDM)
इस प्रकार का मधुमेह बच्चों में सत्रह से बीस साल की उम्र तक होता है।
कभी-कभी वयस्क लोगों में भी पाया जाता है।
यह एक ऐसा रोग है जिसके कारण शरीर में इंसुलिन हारमोन बिलकुल नहीं होता है। इसलिए शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन के टीके की जरूरत पड़ती है (इसलिए इसे आई.डी.डी.एम. कहते हैं), नहीं तो मरीज बेहोश हो जाता है और कोमा में चला जाता है। यह स्थिति ‘डायबिटीक कोमा’ कहलाती है। इसका मूल कारण पता नहीं है, लेकिन ऐसा कहते हैं कि वायरस बीमारियों या अन्य कारणों (H.L.A. antigen) से पेंक्रियाज ग्रंथि नष्ट हो जाती है या कार्य करना बंद कर देती है।
यह एक ऐसा रोग है जिसके कारण शरीर में इंसुलिन हारमोन बिलकुल नहीं होता है। इसलिए शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन के टीके की जरूरत पड़ती है (इसलिए इसे आई.डी.डी.एम. कहते हैं), नहीं तो मरीज बेहोश हो जाता है और कोमा में चला जाता है। यह स्थिति ‘डायबिटीक कोमा’ कहलाती है। इसका मूल कारण पता नहीं है, लेकिन ऐसा कहते हैं कि वायरस बीमारियों या अन्य कारणों (H.L.A. antigen) से पेंक्रियाज ग्रंथि नष्ट हो जाती है या कार्य करना बंद कर देती है।
बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह (NIDDM)
यह बीमारी इंसुलिन निर्भर मधुमेह की तुलना में कम गंभीर होती है और वयस्क
लोगों में ही पाई जाती है। सब प्रकार के मधुमेह रोगियों में से दो-तिहाई
रोगी बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह के होते हैं। शरीर में इंसुलिन हारमोन तो
है, परंतु-
1. या तो कम मात्रा में है,
2. या आवश्यकता पड़ने पर उसकी मात्रा अधिक नहीं मिलती या इस हारमोन का असर ही नहीं होता। शरीर में पाई जाने वाली इंसुलिन इतनी मात्रा में तो होती है कि रोगी को मधुमेही बेहोशी (डायबिटीज कोमा) में नहीं जाने देती और जीवन रक्षा के लिए बाहर से इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं पड़ती। इसीलिए इसे नॉन-इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज या एन.आई.डी.डी. कहते हैं।
1. या तो कम मात्रा में है,
2. या आवश्यकता पड़ने पर उसकी मात्रा अधिक नहीं मिलती या इस हारमोन का असर ही नहीं होता। शरीर में पाई जाने वाली इंसुलिन इतनी मात्रा में तो होती है कि रोगी को मधुमेही बेहोशी (डायबिटीज कोमा) में नहीं जाने देती और जीवन रक्षा के लिए बाहर से इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं पड़ती। इसीलिए इसे नॉन-इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज या एन.आई.डी.डी. कहते हैं।
यह भी दो प्रकार की होती है-
1. वे व्यक्ति, जो मोटे हैं (Obese NIDDM),
2. वे व्यक्ति, जो मोटे नहीं हैं (Non-obese NIDDM)।
1. जो व्यक्ति मोटे नहीं होते, उनमें डायबिटीज को मैच्योरिटी ओनसेट डायबिटीज यानी परिपक्व अवस्था में मधुमेह करते हैं यह खान-पान पर नियंत्रण करने से या दवाई खाने से ठीक हो जाता है।
2.जो व्यक्ति मोटे हैं, उनके शरीर के अन्दर पैदा होनेवाली इंसुलिन का असर कम हो जाता है। इंसुलिन रेसिस्टेंस या इंसुलिन का असर न होना-ऐसे वयस्क लोगों में पाई जाती है जिनमें इंसुलिन तो बन रही है, परंतु उसका असर नहीं है। इन लोगों में चरबी पेट एवं कमर के आसपास जमा हो जाती है।
2. वे व्यक्ति, जो मोटे नहीं हैं (Non-obese NIDDM)।
1. जो व्यक्ति मोटे नहीं होते, उनमें डायबिटीज को मैच्योरिटी ओनसेट डायबिटीज यानी परिपक्व अवस्था में मधुमेह करते हैं यह खान-पान पर नियंत्रण करने से या दवाई खाने से ठीक हो जाता है।
2.जो व्यक्ति मोटे हैं, उनके शरीर के अन्दर पैदा होनेवाली इंसुलिन का असर कम हो जाता है। इंसुलिन रेसिस्टेंस या इंसुलिन का असर न होना-ऐसे वयस्क लोगों में पाई जाती है जिनमें इंसुलिन तो बन रही है, परंतु उसका असर नहीं है। इन लोगों में चरबी पेट एवं कमर के आसपास जमा हो जाती है।
मधुमेह (डायबिटीज) के लक्षण
मधुमेह के रोगी में निम्नलिखित लक्षण देखे जाते हैं-
1. भूख अधिक लगना।
2. वजन कम होना।
3. पेशाब बार-बार और अधिक मात्रा में आना।
4. थकान एवं शिथिलता।
5. खुजली-शरीर के अंदरवाले हिस्सों (जननांगों), जाँघों और पेशाब की जगह पर खुजली होना।
6. आँखों में धुँधला दिखाई देना और चश्में का नंबर बढ़ना।
7. फोड़े-फुंसियों का होना, पैर व टाँगों का सो जाना और चीटियाँ जैसी चलना।
8. पिंडलियों में दर्द होना, रात को सोते समय या दिन में चलते-चलते पिंडलियों में कढवल (बाँयटा) पड़ना-ये सभी लक्षण हैं जो मधुमेह रोग की संभावना दरसाते हैं।
9. कई बार ऐसा होता है कि पैर में कोई चोट लग जाए या जूतों ने काट लिया है और जख्म भरता नहीं है, तब पेशाब टेस्ट कराने पर पता चलता है कि उस व्यक्ति को मधुमेह रोग है।
10. कई बार जब किसी रोग के लिए सर्जरी (ऑपरेशन) की जरूरत होती है और खून तथा पेशाब की जाँच की जाती है, तब पता चलता है कि उस व्यक्ति को मधुमेह है।
11. डायबिटिक कोमा के रोगी, जिनको इंसुलिन निर्भर मधुमेह है या कभी-कभी बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह है, उसके मुख से अजीब सी बदबू आती है, ब्लड़ प्रेशर कम होता है, खड़े होने पर रोगी गिर जाता है व चक्कर आने लगते हैं। सारे शरीर में चरबी जमा हो जाने के निशान एवं कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ होता है। महिलाओं के जननांगों सूजन एवं फंगस इंफैक्शन के निशान होते हैं।
1. भूख अधिक लगना।
2. वजन कम होना।
3. पेशाब बार-बार और अधिक मात्रा में आना।
4. थकान एवं शिथिलता।
5. खुजली-शरीर के अंदरवाले हिस्सों (जननांगों), जाँघों और पेशाब की जगह पर खुजली होना।
6. आँखों में धुँधला दिखाई देना और चश्में का नंबर बढ़ना।
7. फोड़े-फुंसियों का होना, पैर व टाँगों का सो जाना और चीटियाँ जैसी चलना।
8. पिंडलियों में दर्द होना, रात को सोते समय या दिन में चलते-चलते पिंडलियों में कढवल (बाँयटा) पड़ना-ये सभी लक्षण हैं जो मधुमेह रोग की संभावना दरसाते हैं।
9. कई बार ऐसा होता है कि पैर में कोई चोट लग जाए या जूतों ने काट लिया है और जख्म भरता नहीं है, तब पेशाब टेस्ट कराने पर पता चलता है कि उस व्यक्ति को मधुमेह रोग है।
10. कई बार जब किसी रोग के लिए सर्जरी (ऑपरेशन) की जरूरत होती है और खून तथा पेशाब की जाँच की जाती है, तब पता चलता है कि उस व्यक्ति को मधुमेह है।
11. डायबिटिक कोमा के रोगी, जिनको इंसुलिन निर्भर मधुमेह है या कभी-कभी बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह है, उसके मुख से अजीब सी बदबू आती है, ब्लड़ प्रेशर कम होता है, खड़े होने पर रोगी गिर जाता है व चक्कर आने लगते हैं। सारे शरीर में चरबी जमा हो जाने के निशान एवं कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ होता है। महिलाओं के जननांगों सूजन एवं फंगस इंफैक्शन के निशान होते हैं।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book