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नाटक-एकाँकी >> माधवी

माधवी

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2488
आईएसबीएन :9788171784585

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प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है



परिचारक का प्रवेश

परिचारक : महाराज, एक आगन्तुक आपसे मिलना चाहते हैं।

ययाति : आश्रम के द्वार तो सभी के लिए खुले हैं। अन्दर आने दो।

परिचारक का प्रस्थान
 
मुनिकुमार गालव का प्रवेश आगे बढ़कर बहत दिनों बाद किसी अतिथि ने हमारे आश्रम में पाँव रखे

गालव : मेरा नाम गालव है, महाराज, मैं ऋषि विश्वामित्र का शिष्य हूँ। अपनी शिक्षा समाप्त कर यहाँ आया हूँ।

ययाति : आसन ग्रहण करो, मुनिकुमार, लम्बी यात्रा करके आये हो, थक गये होंगे।

गालव : मैं बड़े संकट में हूँ, महाराज। घयाति : पहले आसन ग्रहण करो, मुनिकुमार, ऐसी जल्दी क्या है ?

गालव : मैं विवश होकर आपके द्वार पर आया हूँ, महाराज। आज्ञा हो तो मैं अपनी प्रार्थना आपके सम्मुख रखू ?

ययाति : मैं राज-पाट से निवृत्त हो चुका हूँ, एक साधारण आश्रमवासी हूँ। पर फिर भी, मुझसे जो बन पड़ेगा, तुम्हारी सहायता करूँगा।

गालव : महाराज, मैं बारह वर्ष तक ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में विद्या ग्रहण करता रहा हूँ। मैं बारह विद्याओं में पारंगत हुआ हूँ।

ययाति : जानकर प्रसन्नता हुई। कहो, आगे कहो।

गालव : शिक्षा-समाप्ति पर मैंने गुरुवर से प्रार्थना की कि वह गुरु-दक्षिणा में क्या लेना स्वीकार करेंगे। ययाति : गुरु-दक्षिणा देना शिष्य का पूण्य कर्तव्य है। कहो, उन्होंने कौन सी गुरु-दक्षिणा माँगी?

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