नाटक-एकाँकी >> माधवी माधवीभीष्म साहनी
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प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है
गालव : महत्त्वाकांक्षा का होना तो स्वाभाविक है, माधवी।
माधवी
: पर तुममें तो ऐसी महत्त्वाकांक्षा नहीं है ना, गालव ? तुम तो साधक हो,
अपना वचन निभाना चाहते हो । क्यों? गालव की ओर थोड़ी देर तक देखती रहती है
चलो, छोड़ो इन बातों को, हम केवल अपना-अपना कर्तव्य निभायेंगे, मैं अपने
पिता के प्रति, तुम अपने गुरु के प्रति ।' अश्वमेध के घोड़े कहाँ मिलेंगे?
किस राजा के पास? तुमने कभी अश्वमेधी घोड़ा देखा है?
गालव : नहीं, माधवी,
मैंने अभी तक नहीं देखा है।
माधवी : तुम्हें एक बात बताऊँ, गालव ?
गालव :
क्या, माधवी?
माधवी : बड़ी विचित्र बात है । मैंने तुम्हें अभी तक नहीं
बतायी है।
जिस दिन तुम आश्रम में आये थे, उस दिन मैं तुम्हें देखकर चकित रह गयी थी।
गालव : क्यों? माधवी : क्योंकि उसी रात मैंने एक विचित्र सपना देखा था।
गालव
: कैसा सपना, माधवी?
माधवी : मैंने देखा, घना जंगल है, दूर-दूर तक फैला
हुआ और उसमें तरह-तरह की आवाजें आ रही हैं--जानवरों की, पक्षियों की, और
इन्हीं आवाजों के बीच, सहसा भागते घोड़ों की टाप सुनायी देने लगती है। फिर
क्या देखती हूँ कि पेड़ों की धनी छाँव में से एक घोड़ा निकलकर आता है,
सफेद रंग का, फिर दो, फिर तीन, फिर कितने ही घोड़े, सभी सफेद रंग के, एक
पांत में आकर खड़े हो जाते हैं, एक पाँत, फिर एक और पांत 'सफेद घोड़ों की
पाँतें लगती जा रही थीं।
गालव : निकट आकर, मुस्कराते हुए
फिर ?
माधवी : फिर घोड़ों की पाँतों में से एक युवक निकलकर सामने आया,