नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
हुसाक : (टाबर से) दस्तकारों के नुमाइंदे पहुँच गए? आप लोग इधर दीवार के साथ
आकर खड़े हो जाएँ। दरख्वास्त टाबर पेश करेगा।
[हॉल का कमरा भरता जा रहा है। टाबर जल्दी से आकर बाक़ी चार सदस्यों के आगे खड़ा
हो जाता है।]
यों नहीं टाबर, तुम पास में इनके साथ खड़े हो जाओ, इनके आगे नहीं। जब मैं
कहूँगा तब अपनी दरख्वास्त पेश करना। इससे पहले जहाँ खड़े हो, वहीं खड़े रहना।
[हानूश का प्रवेश। अन्दर आते ही हॉल के कमरे की चकाचौंध से ठिठककर एक ओर को
सिकुड़कर खड़ा हो जाता है। अटपटा महसूस करने के बावजूद बड़ा आकर्षक और
प्रभावशाली लग रहा है। बहुत-से लोग उससे हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ आते हैं। हर
एक को झुक-झुककर आदाब कर रहा है।]
हुसाक : (मंच पर से) महाराज अभी आने वाले हैं। अब सब भाई लोग अपनी-अपनी जगह पर
खड़े हो जाएँ। मत भूलें कि महाराज पहली बार नगरपालिका में पधार रहे हैं। ऐसी
कोई बात न हो जिसे वह बुरा मानें, समझे? हम दस्तकार हैं, हाथ से काम करनेवाले
लोग हैं। हम दरबारी नहीं हैं। दरबार के क़ायदे-क़ानून नहीं जानते, मगर जो काम
करेंगे, ढंग से करेंगे। शेवचेक कहाँ है? शेवचेक अभी तक नहीं पहुँचा?
जान : वह दस्तकारों को इकट्ठा करने गया हुआ है।
हुसाक : मगर यहाँ पर भी तो उसका रहना बहत ज़रूरी है। नुमाइंदगी की दरख्वास्त
उसे पेश करना है। कोई अपनी जगह से नहीं हिले। जब महाराज आएँ तो सभी लोग एक साथ
झुककर आदाब बजा लाएँ। कोई आदमी उस वक़्त बोले नहीं, खाँसे नहीं, छींक नहीं
लगाए, मूंछों को ताव नहीं दे-सुन लिया जान? तुम्हारी यह आदत बहुत बुरी है, या
तो तोंद पर हाथ फेरने लगते हो, या मूंछ सहलाने लगते हो। बस, इधर बिलकुल बुत की
माफ़िक खड़े रहो।
जार्ज : महाराज कोई सवाल करें, फिर भी बुत बना खड़ा रहूँ?
हुसाक : महाराज तुमसे कुछ नहीं पूछेगे, पूछने के लिए मैं जो मौजूद हूँ।
जार्ज : बेहतर।
[शेवचेक का प्रवेश]
हुसाक : तुम आ गए शेवचेक! दरख्वास्त तैयार है?
शेवचेक : यह रही।
हुसाक : तुम भी इन्हीं के साथ खड़े हो जाओ। दरख्वास्त हाथ में रखो। और जब
महाराज तशरीफ़ रखें, उस वक़्त भी तुम लोग खड़े रहो। जब मैं यों झुककर इशारा
करूँ, उस वक़्त बैठ जाओ। मगर ये पाँच आदमी-टाबर, शेवचेक और उनके साथी-
ज्यों-के-त्यों खड़े रहेंगे, और उधर हानूश कुफ़्लसाज़...किधर है हानूश?
हानूश : यह रहा, मालिक।
हुसाक : तुम्हें वहाँ खड़ा होने को किसने कहा है? वह तो महाराज के आने का
रास्ता है! तुम इधर, पाँच दरख्वास्तियों से थोड़ा हटकर खड़े हो जाओ। अब सब लोग
कान खोलकर सुन लो-सबसे पहले मैं महाराज का स्वागत करूँगा। इसके बाद महसूल चुंगी
का मसला टाबर पेश करेगा। टाबर अपनी दरख्वास्त आगे बढ़कर पेश करेगा। यह दूसरी
दरख्वास्त दरबार में हम दस्तकारों की नुमाइंदगी से ताल्लुक रखती है। यह
दरख्वास्त शेवचेक पेश करेगा। आख़िर में हानूश कुफ़्लसाज़ पेश होगा। अब याद रखो,
पहले मैं, फिर टाबर, उसके बाद शेवचेक, फिर हानूश कुफ़्लसाज़। और हानूश
कुफ़्लसाज़ ! जो सवाल महाराज पूछे, उनका
ठीक-ठीक जवाब दो। अगर किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकते तो मेरी तरफ़ देखो, उस
सवाल का जवाब मैं दूंगा। घबराने की कोई बात नहीं।
इजलास खत्म हो जाए, तो जब तक महाराज निकल नहीं जाएँ, सब लोग अपनी-अपनी जगह पर
खड़े रहें-अदब से। मैं और जान उन्हें नीचे तक छोड़ने जाएँगे।
जार्ज : तुम्हारे चले जाने पर भी सिर झुकाए खड़े रहें?
हुसाक : यह मज़ाक करने का वक़्त नहीं है। मैंने कहा है, अपनी जगह से नहीं हिलो।
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