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नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126705405

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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


जान : एक घड़ी बनाने में तो उसके सत्रह बरस लग गए। अब कितनी और घड़ियाँ वह बना पाएगा? तुम बहुत बड़े डरपोक हो जी। जो घड़ी हाथ में है, उसे तो जाने दें, और अगली घड़ी के लिए वर्षों तक इन्तज़ार करें। तुम्हें व्यापारी किसने बनाया है?

शेवचेक : हम अपनी घड़ी को क्यों छोड़ दें?

टाबर : क्योंकि यह घड़ी आसानी से अब तुम्हें नहीं मिलेगी। घड़ी तो एक तरह से तुम्हारे हाथ से जा चुकी है।

जार्ज : नहीं। क्यों? अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। अगर घड़ी नगरपालिका पर लगेगी तो सारे नगर को, बल्कि सारी रियासत को इससे फ़ायदा होगा।

हुसाक : यह तो गिरजेवाले भी कह सकते हैं।

जार्ज : क्यों? यह शहर का मरकज़ है। शहर का सारा कारोबार यहाँ होता है। दिसावर से सैकड़ों व्यापारी लोग आते हैं। यहाँ घड़ी लगने पर लोग दूर-दूर से उसे देखने आया करेंगे। यात्रियों का तांता लगा रहेगा। अभी से लोगों को पता चल गया है कि कोई घड़ी बनी है, किसी कुफ़्लसाज़ ने घड़ी बनाई है।...मैं तुम्हें सच कहता हूँ, इस बात की बड़ी धूम-मचेगी। यूरोप-भर से लोग इसे देखने आया करेंगे। हमारे व्यापार को चार चाँद लग जाएँगे। जैसे भी हो, हमें घड़ी नगरपालिका पर ही लगवानी चाहिए। इसे किसी भी हालत में हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए।

जान : सुना तो मैंने भी है कि जगह-जगह से लोग पूछने आ रहे हैं। वेनिस से कोई हिसाबदान हानूश से मिलने आया है।

हुसाक : हानूश की क़िस्मत जाग गई है, कहाँ एक मामूली-सा कुफ़्लसाज़ और कहाँ अब-बहुत बड़ा ईज़ादकार बन गया है।

जार्ज : दुकानों के किराए बढ़ जाएँगे। यहाँ ज़मीन-जायदाद की क़ीमत बढ़ा जाएगी।

जान : (धीमी आवाज़ में, जार्ज से) तुम अभी से दो-एक दुकानें और ख़रीद लो, जार्ज, यह वक़्त अच्छा है।

जार्ज : और अगर घड़ी यहाँ पर न लगी तो? मेरा नुक़सान करवाओगे, हैं? मैं तुम्हारी रग-रग से वाकिफ़ हूँ। मैं एक और बात कहता हूँ। अगर लाट पादरी इस बात का इसरार कर रहा है कि घड़ी गिरजे पर लगे, तो हमें कहना चाहिए कि घड़ी बादशाह सलामत के महल पर लगे। न गिरजे पर लगे, न नगरपालिका पर लगे, घड़ी बादशाह सलामत के महल पर लगाई जाए।

जान : इससे क्या होगा?

जार्ज : इससे बादशाह सलामत के रुख का पता चल जाएगा कि उनका अपना इरादा क्या है?

जान : तुम सारा वक़्त बादशाह सलामत का रुख ही देखते रहते हो...अगर बादशाह सलामत के महल पर घड़ी लग गई तो? तुम्हारे हाथ से तो निकल जाएगी।

जार्ज : इससे कम-से-कम बादशाह सलामत को इस बात का ध्यान तो आएगा कि गिरजे के अलावा और भी जगह है जहाँ घड़ी लगाई जा सकती है।

टाबर : मैं अब भी कहूँगा कि इस घड़ी को भूल जाओ और जैसे भी हो, हानूश को अपने साथ मिलाओ। इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि यह घड़ी कहाँ पर लगाई जाती है।

जान : इससे क्या होगा?

टाबर : हानूश को अपने साथ रखो। नगरपालिका उसे एक बाड़ा बनवा दे, पाँच-छः दस्तकार उसके साथ काम करने के लिए रख दे। उसका वज़ीफ़ा बाँध दे और कहे कि लो भाई, तुम यहाँ चैन से बैठो और दूसरी घड़ी बनाओ।

जान : और अगर दूसरी घड़ी बनने पर भी वह नगरपालिका पर नहीं लग पाई तो?

टाबर : तो क्या, हम वह घड़ी दिसावर में बेच देंगे। यहाँ से घड़ी बनवाएँगे और दिसावर में अच्छे मुनाफ़े पर बेचेंगे। यूरोप के नगर-नगर में घड़ियों की माँग है। हम व्यापारी लोग हैं। हमें घड़ी की नुमाइश से नहीं, मुनाफ़े से मतलब है। और फिर जब दस आदमी घड़ियाँ बनाना सीख गए तो यहाँ पर भी घड़ी लगवा लेंगे। व्यापारी के लिए क्या मुश्किल है?

जान : एक घड़ी बनाने में तो उसे सत्रह बरस लग गए...

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