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श्रंगार - प्रेम >> मरुभूमि

मरुभूमि

शंकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2320
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है सोमनाथ और कणा की कहानी...

Marubhoomi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आदमी की ज़िन्दगी मरुभूमि है !
नहीं, मरुभूमि नहीं है !
है या नहीं, यह प्रश्न आज तक हल नहीं हो सका। यह सच है कि आदमी मृगतृष्णा के सहारे ही, एक अतृप्त आशा में सारी ज़िन्दगी दौड़ने में बिता देता है।
लेकिन इस प्रश्न का उत्तर आज तक नहीं मिला।

सभी कहते थे कि सोमनाथ ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर सकता। वह कापुरुष है। लेकिन जब उसने कमर कस ली और वह ज़िन्दगी में कुछ करने को उद्यत हो उठा तब उसका जीवन बदल गया। उसे मरुभूमि लगने वाली दुनिया, हरे-भरे खेत जैसी बदल गयी।

अपने ही मित्र की सगी बहन को जीवन में सफलता पाने की सीढ़ी बनाकर सोमनाथ ने क्या-क्या नहीं किया ! लेकिन अन्ततः उसी से शादी करके गृहस्थी बसाने को विवश होना पड़ा ? अपने स्वार्थ के लिए जिस कणा को उसने गंदगी के कीचड़ में लपेटकर घृणित बनाया था, उसी को अपनी पत्नी बनाने के लिए वह क्यों बेचैन हो उठा ? क्यों ?

इस क्यों का उसके पास भी क्या उत्तर है ?
अपनी करनी के लिए यथेष्ट अनुतप्त हो चुकने के बाद उसे मरुभूमि की घुटन से तो उबरना ही था !
यही है सोमनाथ और कणा की कहानी।
मरुभूमि की कथा !     


 सुख- दुख के दैनन्दिन साथी
डॉक्टर शिशिर घोष
श्रीमती नन्दरानी घोष
के
कर-कमलों में !


मरुभूमि



आज बहुत दिनों के बाद धूप झुलसे कलकत्ते के आसमान में काले-काले बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। सूर्य डूबने के निश्वित समय के पहले से ही आकाश –पथ में अनगिनत गतिमान बादलों की छोटी-छोटी जमातों की शोभा-यात्रा निर्धारित गन्तव्य की ओर बढ़ती जा रही है। इस उदास आसमान को शहीद मीनार पर की  एक ऐतिहासिक जमात के आह्वान के कारण जो सफलता हासिल हुई है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। गगन के मुक्त आँगन में अभी कही तिल की भी जगह नहीं है।
गड़ियाहाट (साउथ) रोड के पच्छिम, पोस्ट ऑफिस  और तालाव पार करने के बाद, पार्क के दक्खिन-पच्छिम कोने में, पानी की टंकी के पास बनर्जी भवन में दोमंजिला पर सांध्य प्रदीप जलाने के लिए आने पर कमला भाभी एक क्षण के लिए ठिठककर खड़ी हो गयी। बहुत दिनों के अभ्यास के अनुसार कमला भाभी ने सांध्य स्नान के बाद माथे पर घूँघट डाल लिया है। अब वह गंगाजल से हाथ धो, गले में आँचल लपेटकर पूजाघर के शंख को पुजारिन की तरह विनम्रता के साथ हाथ में उठा लेंगी।  

लेकिन सीढ़ियां तय कर बालकनी में कदम रखते ही चिर विनम्र कमला भाभी की आँखें आसमान की ओर चली गयीं। मेघलोक के धूसर नागरिकों की ओर दृष्टि जाते ही कमला भाभी के स्तिग्ध शान्त मन में चंचलता की एक लहर खेल गयी। मध्यवयस्क मन की गहराई में बहुत दिनों से सोये दो-चार वर्षागीतों के बोल उनके संगीहीन वक्षस्थल में कसमसाने लगे।
कमला भाभी ठिठकर खड़ी हो गयीं, उसके बाद ढँकी हुई बालकनी के ग्रिलों को दोनों हाथों से पकड़ उत्तर दिशा के आकाश की ओर तनिक झुककर खड़ी हो गयीं। कमला भाभी की कोमल दृष्टि ने कुछ ही क्षणों के बीच पूरे आकाश की परिक्रमा पूरी कर ली- पूरब-पच्छिम, उत्तर-दक्खिन कहीं तिल-भर स्थान खाली नहीं है।
कमला भाभी कुछ क्षण तक आकाश की ओर ताकती रहीं, उसके बाद दूर दिगन्त की चपला की चकित कौंध ने उन्हें एक दूसरी ही बात की याद दिला दी। कमला भाभी को लगा, आकाश से जैसे आज पुनः आषाढ का संकेत मिल रहा है। हालाँकि आषाढ़ तो कुछ मास पूर्व ही विदा हो चुका है।

ढ़ीठ हवा की शरारत से परेशान हो धैर्यशाली कमला भाभी ने शरमीले आंचल को अपने काबू में किया। आषाढ़ मास की समृति ने उनके संसारी मन को फिर से चंचल बना दिया।
आषाढ़ का मतलब ही है बहुत सारा काम-ऐसे-ऐसे काम जिनकी कमला भाभी उपेक्षा कर सकतीं। आषाढ़ का मतलब ही है इस तरह की जिम्मेदारियाँ जिन्हें कमला भाभी ने घर की बड़ी बहू के नाते बहुत दिन पहले ही सहर्ष स्वीकार लिया है।
आषाढ़ की स्मृति ने कमला भाभी को चिन्ता में डाल दिया। अभी तुरन्त सोमनाथ के कमरे में जाकर उससे मिलना जरूरी है। कमला भाभी के अलावा और किसी दूसरे व्यक्ति को आजकल सोमनाथ के कमरे में जाने की बेचैनी का अहसास होता है।

मँझले भाई अभिजित को पत्नी बुलबुल ने तो उस बार कमला भाभी से कह ही दिया था, ‘‘प्लीज मुझे कोई दूसरा काम करने का आदेश दें, पाँच सेकेण्ड में ही कर दूँगी; लेकिन दीदी, मुझे सोम के पास जान के लिए न कहें।’’
कमला ने कोई उत्तर देने के बजाय चेहरे पर मीठी मुस्कराहट लाकर बुलबुल की ओर देखा था।
उस मुस्कराहट को देखकर बुलबुल ने विस्मय के साथ कहा था, ‘‘आपको समझना मुश्किल है दीदी। अबकी दुर्गापुर अस्पताल के डाक्टर सेन से आपका थॉरो इन्वेस्टिशन करना होगा।’’
‘‘मुझे क्या हुआ है ?’’ रसीला कमला भाभी शान्त भाव से यह जानना चाहती हैं। ‘‘मझले बाबू ने तो बताया कि तुम्हारा वह बहुत कुछ इन्वेस्टिगेशन करा चुके हैं।’’ वह जाँच जननी-जठर से ही सम्बन्धित था और कमला इस बात से अपरिचित नहीं हैं।
बुलबुल ने तत्क्षण जवाब दिया था, ‘‘मेरे अन्दर तो हजारों तरह की बीमारियों का पता चला है। आपका दूसरा ही इन्वेस्टिगेशन किया जाएगा- हम जानना चाहते हैं कि आपके शरीर में क्रोध का वास कहाँ है। और यह भा कि क्रोध के बिना किसी मनुष्य की सृष्टि सम्भव कैसे हुई है।’’

कमला भाभी के गोरे मुखड़े पर हल्की-सी लाली दौड़ गयी थी। मगर फिर भी स्थिर स्वर में कहा था, ‘‘वह सब बातें जाने दो। हर मर्द अपनी-अपनी औरत के जिस्म की खोज खबर लेगा ही, जरूरत पड़ने पर डॉक्टर भी बुलवा भेजेगा। तुम अभी जरा सोम के पास चली जाओ, वह बेचारा बहुत ही एकाकीपन का अनुभव कर रहा है।’’
 बुलबुल ने कहा था, ‘‘प्लीज ! मैं कुछ क्षणों पूर्व यहां आयी हूँ, फिर अपना मूड बिगाड़ने वहाँ क्यों जाऊँ ?’’
‘‘अहा हा ! वह तो तुम्हारा क्लास-मेट रहा है,’’ कमला भाभी ने याद दिला दिया। ‘एक ही साथ तुम दोनों कॉलेज में पढ़ते थे, एक ही साथ पिकनिक पर गये थे, एक ही थियटर में मंच पर भी उतरे थे। भाभी के पद के लिए तुम्हारा चुनाव करने में सोम ने ही तो सबसे अधिक उत्साह दिखाया था।’’
बुलबुल की आँखें फैल गयी थीं। उत्तर दिया था, ‘‘मेरे पेट में कोई सेफ डिपॉजिट नहीं है दीदी कि बात को दबाकर रख लूँ। सारी बात जबान पर चली आती है। सोम के बारे में भी लाचार होकर सही बात बता रही हूँ। भूतपूर्व मित्र संयोगवश देवर हो जाएगा ऐसा किसने सोचा था, भूतपूर्व सहेली बाद में चलकर ननद हो गयी इसकी तो ढेंरों मिसालें हैं- लेकिन सहपाठी का देवर बनना एक नयी ही किस्म का तजुर्बा है।’’

‘‘ठीक ऐसा ही तो हुआ भी। सोम तो हमेशा तुमसे-ठिठोली कर वातावरण को जीवान्त बनाए रखता था।’
कमला के मुँह पर ही बुलबुल ने कह  दिया था, ‘‘वह वन्स आपॉन ए टाइम की बात है दीदी। उस समय सोमनाथ बैनर्जी अनएम्प्लॉएड यंगमैन था। नौकरी न मिलने पर भी तबीयत खुश थी। कॉलेज की छोटी –मोटी स्मृति ले इस बुलबुल के साथ शिशु सुलभ कलह करने का भी सोमनाथ के पास वक्त था- कब किस युवक ने मेरी ओर तिरछी निगाहों से देखा था। कब किसने मुझे दर्द-भरी चिट्ठी लिखी थी और उसका ड्राफ्ट दो-चार मित्रों से संशोधित कराया था, कब कॉलेज स्ट्रीम के काफी-हाउस ऑफ लॉडर्स में किसके साथ मुझे कॉफी पीते देखा था।’’ यही सब दोहरा कर वह अपनी तबीयत बहलाता था।

कमला भाभी ने तो सीधी लड़की की तरह कहा, ‘‘अरे कॉफी-हाउस वाली वो बात ! सो तो सुन चुकी हूँ। मगर तुमने तो बताया था कि वह तुम्हारे मौसेरे भाई थे।’’
बुलबुल बोली बातूनी सोमनाथ के मुँह पर तब लगाम न थी। मुझ पर दोषारोपण करते हुए कहा थाः वह सब बात मुझे मालूम है। पकड़े जाने पर सभी मौसेरे भाई का ही बहाना बनाती है।’’
‘‘मैंने कहा थाः ऊल-जलूल न बका करो सोम। यह बहुत ही गम्भीर बात है। मेरे मौसेरे भाई नेवी में काम करते हैं। अबकी कलकत्ता आने पर निमन्त्रण देकर बुलाऊँगी और तभी सुनी और आँखों देखी बात का फैसला कराऊंगी।’’
‘‘सोम उस समय भी ऐसा ही फक्कड़ था कि उसने कहा थाः बहुत पहले जो हो चुका रहने दो- अब निमन्त्रण की नहर खोदकर मौसेरे भाई रूपी घड़ियाल को घर लाने की कोई जरूरत नहीं।’’

बुलबुल जरा रुक, उसकी आँखें छलछला आयी हैं, व्यतीत की बातों का स्मरण करते हुए उसने कहा, ‘‘वे दिन कहाँ चले गये ! सोम भले मेरे पीछे पड़ा रहता था, झग़ड़ा-टण्टा भी करता था मगर वह सब बुरा भी तो नहीं लगता था।’’
बुलबुल को सब तरह की बातें याद आ रही हैं। बुलबुल ने तर्क करने की झोंक में ईंट का जवाब पत्थर से दिया था, ‘‘तुम्हारा भैया भी दूध के धुले हुए नहीं थे। मेरी ममेरी बहन की सहेली के सेफ कस्टडी में अब भी उनके द्वारा लिखे गये प्रेम-पत्र ढेरों मौजूद हैं। जरूरत पड़े तो एक दिन के लिए माँगकर ला सकती हूँ और दिखा सकती हूँ।’’
‘‘यह तो एक बारगी ही दूसरा ही पॉएन्ट हो गया  बुलबल,’’ सोमनाथ ने मुसकराकर अनुभवी विविधत्ता की तरह सवाल किया था। ‘‘सीता के तथा कथित मौसेरे भैया के बारे में विशेष रूप से खोज-पड़ताल चल रही है, ठीक है उसी समय राम के अतीत के  बारे में गवाह पेश करने से क्या होगा ? क्रडिबिलिटी शेक करने का इरादा है क्या ?’’
बहस में हार जाने पर बुलबुल ने गुस्से में जवाब दिया था।’’ पॉएन्ट बिलकुल सिम्पल है। हम लोगों की निगाह में ‘नोन डे विल इज दैन अननोन एंजिल वाली बात थी। दूसरे मुहल्ले की अनजान मैना से अपने मुहल्ले की गोरैया कही निरापद लगी और  हमने चारा डाल दिया।’’

वही सोमनाथ धीरे-धीरे कैसा तो हो गया,’’ बुलबुल ने शिकायत की थी। ‘‘शुरू में फ्रेण्ड बाद में देवर-उसके बाद फिर क्या कहूँगा ?’’
‘‘जेठ !’’ कमला भाभी ने मजाक किया था।
‘‘आपने तो सौ में एक सौ दस प्रतिशत सही उत्तर दिया है दीदी। दरअसल जेठ के सामने भी मुझे उतनी बैचैनी का अहसास नहीं होता है।’’ बुलबुल ने अपनी मनोभाव को दबाकर रखा था।
उसके बाद बुलबुल कई दिनों के लिए अपने पति के पास दुर्गापुर चली गई थी। आजकल वह पति के साथ दुर्गापुर में रहना ही ज्यादा पसन्द करती है।

दुर्गापुर में किसी तरह की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है। चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट अभिजित बैनर्जी को किसी खास समस्या के निदान के लिये अचानक मुख्यलय से दुर्गापुर का कारखाने भेज दिया गया है। लगता है, समस्या को सही रास्ते पर लाने में कुछेक महीने लग जायेंगे। सप्ताहान्त में अभिजित बैनर्जी कतलकत्ता चला आता था मगर आजकल बुलबुल ही दुर्गापुर जाकर हाजिर हो जाती है।

इसमें ज्यादा झमेला भी नहीं है। बुलबुल ने कहा था, ‘‘गेस्ट- हाउस में डल्ल बेड है। ब्यॉय, बावर्जी हर वक्त हाजिर रहते हैं- किसी चीज का ऑर्डर दो तो पाँच मिनट में मिल जायेगा। फिर बिल का भी कोई सवाल पैदा ही नहीं होता। बस, गेस्ट-हाउस के खाते में हस्ताक्षर करके लिख दो-ऑफिसियल।’’
कमला भाभी को इतनी पैचीदी बात समझ में नहीं आती उन्हें आश्चर्य हुआ था।, ‘‘बाप रे ! फिर पर्सनल कौन-सी चीज रह जाती है। पत्नी को खाना खिलाना भी ऑफिसियल काम समझा जाता है ?’’  
बुलबुल आयात किये गये सिगरेट लाइटर की तरह  झठ से लहक उठी थी।

‘‘जरूर ! एक नहीं, सौ बार। अग्नि को साक्षी बनाकर ब्याही हुई पत्नी कहीं अन-ऑफिसियल हो सकती है ?’’
पत्नी के मामले में ऑफिसियल नॉन-ऑफिसियल जैसी चलने वाली बातों ने भाभी को बेचैनी में डाल दिया। ‘‘बाप रे, दफ्तर के मामले में पत्नी को खींचने  की जरूरत ही क्या है ?’’
बुलबुल ने मीठी झि़कियाँ सुनायी थीं। ‘‘उफ दीदी, आपको समझ सकना मुश्किल है। भैया भी तो बड़े अफसर नामी कम्पनी के ईस्टर्न रीजिनल मैनेजर। मगर सीनियर अक्जीक्यूटिव के साथ इतने दिनों  तक गृहस्थी चलाने के बावजूद आप ऑफिस की कोई बात समझने की कोशिश नहीं करतीं। आप तो बिलकुल क्लर्क की पत्नी जैसी ही रह गयीं। एकदम घरेलू।
सीधी-सादी कमला ने अब प्रतिवाद करने की कोशिश की। ‘‘नहीं बहिन, पत्नी कभी ऑफिशियल नहीं हो सकती। नौकरी न रहेगी तो भी पत्नी तो पत्नी ही रहेगी।  


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