त्रिलोक सिंह ठकुरेला  की  मुकरियाँ

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आनन्द मंजरी

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1968
आईएसबीएन :9781613016664

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला  की  मुकरियाँ


मुकरी के आविष्कार का श्रेय अमीर खुसरो को दिया गया हैं। कालान्तर में भारतेन्दु, नागार्जुन, विजेता मुद्गलपुरी दिनेश तपन, हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, सुधीर कुमार ‘प्रोग्रामर’, आमोद कुमार मिश्र, रामविलास प्रभृति ने इसे गति और ऊर्जा प्रदान की।

अमीर खुसरो तथा अन्य मुकरीकारों ने परंपरित शैली का प्रयोग किया है। इसमें वक्ता-श्रोता की भूमिका में स्त्रियाँ ही होती हैं। किन्तु, विजेता मुदगलपुरी प्रभृति कुछ मुकरीकारों ने इस परंपरा को तोड़ा है। उनकी मुकरियां में स्त्री-पुरुष दोनों होते हैं। एक महत्वपूर्ण परिवर्तन इस रूप में देखा जा सकता है कि आज के दौर में लिखी जा रही मुकरियों में श्रृंगारिक विषय के अलावा देश-विदेश की विभिन्न समस्याएँ भी स्थान पा रही हैं। यद्यपि इसकी शुरूआत भारतेन्दु और नागार्जुन ने ही कर रखी थी, यथा - महँगाई, बेरोजगारी, पुलिसिया, दमन इत्यादि। जहाँ तक ठकुरेला जी की मुकरियों के ‘विषय-चयन और शैलीगत प्रयोग’ का प्रश्न है, शैली की दृष्टि से जहाँ इन्होंने परंपरा का दामन पकड़ रखा है, वहाँ विषय की दृष्टि से लीक छोड़ना ही उचित समझा। इनकी मुकरियों में वक्ता-श्रोता दोनों की भूमिका का निर्वाह दो सखियाँ करती हैं। यहाँ किसी पुरुष मित्र के प्रवेश की अनुमति नहीं है। और जहाँ तक विषय का प्रश्न है तो इन्होंने बयासी-तिरासी विषयों को आधार बनाकर मुकरियाँ रची हैं, यथा - डंडा (3 बार), तोता (3 बार), चंदा, ताला, माला, झुमका, मच्छर, दर्पण, साड़ी, सोना, भौर, पैसा, हाथी, सपना, सावन इत्यादि दो-दो बार विषय बने हैं। इन विषयों को कई श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। उदाहरणार्थ - (क) प्राकृतिक विषयाधारित मुकरियाँ, (ख) जीव-जगत से संबंधित, (ग) स्त्री के श्रृंगार और परिधान से संबंधित, (घ) रसोई और खान-पान से संबंधित, (ड़) राजनीति से संबंधित तथा (च)अन्य।

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