त्रिलोक सिंह ठकुरेला  की  मुकरियाँ

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कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी

आनन्द मंजरी

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1968
आईएसबीएन :9781613016664

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला  की  मुकरियाँ



अपनी बात

हिन्दी काव्य रूपों में ‘मुकरी’ का अपना महत्व है। मुकरी बहुत ही पुरातन एवं विरल काव्य विधा है। मुकरी को कह-मुकरी के नाम से भी जाना जाता है। कह-मुकरी अर्थात् कहकर मुकर जाना।

अधिकांश विद्वान मुकरी को पहेली का ही एक प्रकार मानते हैं। पहेली की ही तरह मुकरी भी श्रोता के बुद्धि विकास के साथ उसका मनोरंजन करती है। पुरातन मुकरियाँ देखने पर स्वतः स्पष्ट होता है कि मुकरी दो अंतरंग सखियों के बीच हुआ संवाद है, जिसमें पहली सखी अपनी दूसरी सखी के सामने अपनी बात कुछ इस प्रकार रखती है कि उसे अर्थ-भ्रम हो जाता है। श्रोता सखी ज्यों ही अर्थ-ग्रहण करना चाहती है, त्यों ही वक्ता सखी दूसरा अर्थ करके उसे हतप्रभ कर देती है। यद्यपि यह दो पुरुष मित्रों या स्त्री-पुरुष का संवाद भी हो सकता है।

मुकरी या कह-मुकरी चार पदों का सममात्रिक छंद है। मुकरी के प्रत्येक पद या चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार एक आदर्श मुकरी में कुल 64 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में 8वीं मात्रा पर यति होना उत्तम माना गया है। हालांकि कई मुकरीकारों ने अपवादस्वरूप उक्त विधान से इतर भी मुकरियाँ लिखी हैं किन्तु मुकरी में अपनी बात से मुकरने या नटने का भाव निहित होता है।

मुकरी ऐसी काव्य संरचना है, जिसमें प्रारम्भिक तीन चरणों में पहेली की तरह ‘बूझो तो जानें’ वाली बात छिपी होती है, जबकि अंतिम चरण में इसके दो उत्तर निहित होते हैं। मुकरी की विशेषता है कि इसमें श्रोता के पहले उत्तर से असहमति जताते हुए वक्ता द्वारा दूसरा उत्तर प्रस्तुत कर उसे सही ठहराया जाता हैं।

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