लोगों की राय

कहानी संग्रह >> किर्चियाँ

किर्चियाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

3465 पाठक हैं

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


सीढ़ियों से टनपर टातल्ले के टालान पर पाँव रखते हुए सात-आठ साल पहले वाली घटना उसके मानस में गूँज पैदा कर रही थी लेकिन...तभी उसका ध्यान मुकुन्द राय की पतोहू ने अपनी ओर खींचा और मुस्कराती हुई बोली, ''आओ ननद...चलो, तुम्हें इस बात की सुध तो आयी कि तुम्हारी कोई भावज भी है...यहाँ आकर भी एक बार हमारी तरफ रुख तक नहीं तुमने?''

''क्या बताऊँ, भौजी...यहाँ पिछले तनि दिनों से घूमती ही तो रही हूँ।...बस ले-देकर चार दिनों कें लिए आना हो पाया है। किसी से अच्छी तरह भेंट तक नहीं कर पायी।"

''बहाने मत बनाओ, बहना! इतने दिनों के वाद आयी हो...वो भी चार दिनों के लिए? अपने पति को चिट्ठी लिख भेजो कि इतने दिनों तक खूब मजे उड़ा लिये...अब कुछ दिन हमारे लिए भी रख छोड़े। और फिर वे तो दुनिया भर के कामों में फँसे रहते हैं, अपने कारावार में मस्त...फिर यह बीवी-बीवी की रट कैसी?''

''अरी इसी परेशानी के चलते तो आ नहीं पाती कभी! उनकी सारी देखभाल करनी पड़ती है। अकेले आदमी हैं!''

ऐसा कहते हुए पद्मा के होठों पर खिंच जाती उसके ऐश्वर्य और समृद्धि की रेखा...एक चमकीली मुस्कान बनकर।

थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद असली बात बहू की जुवान पर आ ही गयी, ''ननद जी, लगता है तुम देह पर कोई ज्यादा जेवर-जेवरात डालना पसन्द नहीं करती हो...है न...?''

सवाल सचमुच बहुत टेढ़ा था। और पद्मलता ने थोड़े-बहुत जो आभूषण पहन रखे थे वे उसकी पद-मर्यादा के मुकाबले कुछ कम थे। यह आपत्ति पिछले तीन दिनों में अब तक क्यों न उठायी गयी थी, सचमुच आश्चर्य की बात थी! चाँदी की उजली आभा में सोने का अभाव अब तक लोगों की आँखों में नहीं पड़ा था।

चाँदी की औकात को नीची निगाह से देखने पर वह सोने के मुकाबले अवश्य ही उापराधन बन जाती है। इस बात को सभी जानते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book