विविध >> वीरों के वीर वीरों के वीरकिट्टू रेड्डी
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प्रस्तुत है भारतीय सेना के वीरों की गाथा
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
यह पुस्तक भारतीय सेना के वीरों की गाथा है। बहुत खेद की बात है कि इनमें
से अधिकांश पराक्रमी वीरों, जिनमें से कुछ ने तो देश के लिए अपने जीवन का
बलिदान कर दिया हैं, के बारे में सेना में भी कोई खास जानकारी नहीं है और
सामान्य जनता में तो शायद ही कोई जानता होगा।
विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय सेना के इन वीरों और शहीदों को सही पहचान मिल पाएगी; और यह पहचान भारतीय सेना के अफसरों एवं जवानों को प्रेरणा भी देगी। साथ ही यह भी आशा की जाती है कि राष्ट्र के लिए इन वीरों ने जो महान् कार्य किया है, उससे सेना की नई पीढ़ी में एक विश्वास पैदा होगा।
यह पुस्तक मुख्य रूप से युवा अफसरों और सिपाहियों के लिए लिखी गई है। यह इन्हें हमारी सैन्य संस्कृति की परंपराओं की याद दिलाएगी। साथ ही आम पाठकों में भी वीरोचित एवं साहसिक कार्यों के लिए यह प्रेरणा-दायक सिद्ध होगी।
विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय सेना के इन वीरों और शहीदों को सही पहचान मिल पाएगी; और यह पहचान भारतीय सेना के अफसरों एवं जवानों को प्रेरणा भी देगी। साथ ही यह भी आशा की जाती है कि राष्ट्र के लिए इन वीरों ने जो महान् कार्य किया है, उससे सेना की नई पीढ़ी में एक विश्वास पैदा होगा।
यह पुस्तक मुख्य रूप से युवा अफसरों और सिपाहियों के लिए लिखी गई है। यह इन्हें हमारी सैन्य संस्कृति की परंपराओं की याद दिलाएगी। साथ ही आम पाठकों में भी वीरोचित एवं साहसिक कार्यों के लिए यह प्रेरणा-दायक सिद्ध होगी।
प्राक्कथन
‘‘सवा लाख से एक लड़ाऊँ’’
श्री गुरु गोविन्दसिंह
सैन्य प्रेरणा (Military motivation) मनोवैज्ञानिक शक्ति को बहुत अधिक
बढ़ाती हैं; इस शक्ति पर शायद अभी हमारी सेना में पूरा जोर नहीं दिया गया
है। सेना की युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रेरणा को व्यवस्थित रूप से
और पूरी तरह विकसित एवं प्रयोग में लाना होता है, युद्ध में और अधिक अच्छे
परिणाम हासिल करने के लिए ‘प्रेरणा शक्ति’ बढ़ानेवाले प्रभावों को ‘प्रशिक्षण’ और
‘नेतृत्व’ द्वारा उत्पन्न ऐसे ही मनोवैज्ञानिक प्रभावों (Psychological effects) के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सेना ने उपलब्ध संसाधनों में से अधिक महत्त्वपूर्ण ‘मानव संसाधन’ की युद्ध शक्ति को बढ़ाने का समय पर निर्णय लिया है। एक सुप्रेरित तथा सप्रशिक्षित सैनिक और अधिकारी अच्छा नेतृत्व मिलने पर ‘अंतिम हथियार’ की तरह काम आता है।
युद्ध की प्रेरणा, जो एक मनोवैज्ञानिक शक्ति संवर्धक है, के विकास कार्यक्रम के एक हिस्से में यह पुस्तक मूलत: युवा अफसरों और सिपाहियों के लिखी गई है, जो उन्हें हमारी सैन्य संस्कृति की परंपराओं की याद दिलाएगी।
सेना ने उपलब्ध संसाधनों में से अधिक महत्त्वपूर्ण ‘मानव संसाधन’ की युद्ध शक्ति को बढ़ाने का समय पर निर्णय लिया है। एक सुप्रेरित तथा सप्रशिक्षित सैनिक और अधिकारी अच्छा नेतृत्व मिलने पर ‘अंतिम हथियार’ की तरह काम आता है।
युद्ध की प्रेरणा, जो एक मनोवैज्ञानिक शक्ति संवर्धक है, के विकास कार्यक्रम के एक हिस्से में यह पुस्तक मूलत: युवा अफसरों और सिपाहियों के लिखी गई है, जो उन्हें हमारी सैन्य संस्कृति की परंपराओं की याद दिलाएगी।
(एस
रायचौधरी)
जनरल
थलसेना अध्यक्ष
जनरल
थलसेना अध्यक्ष
प्रस्तावना
वर्ष 1993 की बात है, जब तत्कालीन सेनाध्यक्ष स्वर्गीय जनरल बी सी जोशी
(Gen BC joshi) ने भारतीय सेना के प्रेरणा स्तरों (Motivation levels) के
गहन अधययन में अपनी सहायता के लिए मुझे बुलाया था। सेना प्रशिक्षण कमान और
सैन्य प्रशिक्षण महानिदेशालय की मदद से हमने यह काम शुरु किया। जनरल बी सी
जोशी के आकस्मिक निधन के बाद यह काम जनरल शंकर रायचौधरी ने जारी रखा।
सेनाध्यक्ष कार्यभार सँभालने के कुछ ही महीनों के बाद, वर्ष 1995 के मध्य
उन्होंने मुझे भारतीय सेना के वीरों पर एक पुस्तक लिखने को कहा। यह बहुत
ही दुर्भाग्य की बात है कि इनमें से अधिकाँश पराक्रमी वीरों, जिनमें से
कुछ ने तो देश के लिए अपने जीवन का बलिदान भी दिया है, के बारे में सेना
में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है- आम लोगों में से तो शायद ही उनके बारे
में कोई जानता होगा।
विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय सेना के इन वीरों और शहीदों को सही पहचान मिल पाएगी और यह भारतीय सेना के अफसरों और जवानों को प्रेरणा प्रदान करेगी। साथ ही यह भी आशा की जाती है कि राष्ट्र के लिए ये वीर सैनिक जो महान् कार्य कर रहे हैं, यह पुस्तक उनमें एक नया विश्वास पैदा करेगी।
इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण ‘ब्रेवेस्ट ऑफ ब्रेव’ के नाम से 1997 में प्रकाशित हुआ, जिसका सैन्य जगत् में अच्छा स्वागत हुआ था। भारतीय सेना के सभी जवान इसे पढ़ सकें, इस उद्देश्य से इसका हिन्दी संस्करण प्रकाशित हो रहा है। मैं इस पुस्तक के हिन्दी अनुवादक श्री एस के त्रिपाठी व उसके पुनरीक्षण एवं सरलीकरण हेतु मेजर जनरल एम पी एस त्यागी का हृदय से आभारी हूँ।
विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय सेना के इन वीरों और शहीदों को सही पहचान मिल पाएगी और यह भारतीय सेना के अफसरों और जवानों को प्रेरणा प्रदान करेगी। साथ ही यह भी आशा की जाती है कि राष्ट्र के लिए ये वीर सैनिक जो महान् कार्य कर रहे हैं, यह पुस्तक उनमें एक नया विश्वास पैदा करेगी।
इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण ‘ब्रेवेस्ट ऑफ ब्रेव’ के नाम से 1997 में प्रकाशित हुआ, जिसका सैन्य जगत् में अच्छा स्वागत हुआ था। भारतीय सेना के सभी जवान इसे पढ़ सकें, इस उद्देश्य से इसका हिन्दी संस्करण प्रकाशित हो रहा है। मैं इस पुस्तक के हिन्दी अनुवादक श्री एस के त्रिपाठी व उसके पुनरीक्षण एवं सरलीकरण हेतु मेजर जनरल एम पी एस त्यागी का हृदय से आभारी हूँ।
किट्टू रेड्डी
आहवे तु हतं शूरं न सोचेत कथञ्चन।
अशोच्यो हि हत: शूर: स्वर्गलोके महीयते।।
अशोच्यो हि हत: शूर: स्वर्गलोके महीयते।।
युद्ध के मैदान में मारे गए वीर की मृत्यु का शोक न कर; क्योंकि जो युद्ध
में अपने जीवन का बलिदान दे देते हैं उनका स्वर्ग में भी सम्मान होता है।
वीरता-भारतीय संस्कृति का एक अनिवार्य अंग
विश्व इस बात को मानता है कि भारतीय सभ्यता है और इसके अभाव से व्यक्ति के
हर पहलू- मानसिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, बौद्धिक, नैतिक तथा कलात्मक- का
उत्कृष्ट विकास होता है। इसके परिणाम स्वरूप हमारी संस्कृति में बहुत अधिक
उदारता और गांभीर्य का समावेश हो गया है। हम यह भी कह सकते हैं कि यह केवल
एक महान् सभ्यता ही नहीं अपितु छह महानतम सभ्यताओं, जिनमें हम जी रहे हैं,
में से एक है।
कई लोग ऐसे हैं जो मानसिक और बौद्धिक स्तर पर भारत की उपलब्धियों की महानता को स्वीकार करते हैं। परन्तु लोगों द्वारा भी यह महसूस किया जाता है कि यह देश आम जीवन में असफल रहा है और इसकी संस्कृति से जीवन बहुत सशक्त, सफल और विकसित नहीं हो पाया है जैसाकि पश्चिम देशों में हुआ है।
हमारा पक्का दावा है कि इस क्षेत्र में भी भारत असफल नहीं रहा है। यह सच है कि अन्य सभ्यताओं की तरह इसका भी उत्थान और पतन हुआ है, परन्तु ऐसा जीवन के प्रति नजरअंदाजी या निराशा के कारण नहीं हुआ। कोई भी निर्जीव संस्कृति इतने लंबे समय तक सशक्त होकर बची नहीं रह सकती जैसाकि भारतीय संस्कृति रही है। वास्तव में हम देखे तो भारतीय संस्कृति में मानव अस्तित्व के सभी पहलुओं की पूरी और स्पष्ट पहचान तथा परख की गई है। इस संस्कृति में एक सशक्त सजीव शक्ति और ऊर्जा विद्यमान रही है, जिसके कारण यह संस्कृति पाँच हजार वर्षों से भी अधिक समय में अखंड बनी हुई है। उच्च आध्यात्मिक आकांक्षाएँ और विशुद्ध बौद्धिक एवं कलात्मक अनुभूतियाँ रखना ही काफी नहीं है, इन श्रेष्ठ एवं सुंदर वस्तुओं को अभिव्यक्त करने के लिए सशक्त, सजीव और ठोस आधारों का होना भी नितांत अनिवार्य है। भारत में इन सबका भी विकास हुआ है और इससे ही जीवन को सही दिशा देने के लिए स्पष्ट, अच्छे और उत्तम विचार मिले हैं।
भारतीय संस्कृति ने उन्नति और विकास के लिए हमेशा संघर्ष किए हैं; परन्तु उन्नति और विकास के लिए इसका दृष्टिकोण समग्रता का रहा है, अर्थात् इसने आध्यात्मिक और भौतिक दोनों रूप में उन्नति की है।
सैद्धांतिक रूप से भारतीयों के लिए उन्नति और विकास का अर्थ हमेशा एक प्रयास अथवा उत्थान और अपराजित रहना रहा है। आदर्श व्यक्ति वह है जो हमेशा संघर्ष करता रहता है और मनुष्य की प्रगति में बाधक उन सभी तत्त्वों, जो चाहे आंतरिक हों या बाहरी, पर विजय प्राप्त कर लेता है। आत्म विजय ही उसके स्वभाव का प्रथम नियम है। आत्म कौशल की उसकी आत्म विजय का उद्देश्य है। अत: अपने गुणों से वह जो कुछ भी पाता है उसे खोता नहीं, अपितु उसे अपने पास रखता है और उसका पूर्ण विश्वास करता है। वह हमेशा एक कार्यकर्ता और योद्धा होता है। ऊँचाइयों को पाने के लिए अथवा शारीरिक परिश्रम से नहीं डरता। उसे कोई भी मुश्किल नहीं होती, न ही उसे थकान महसूस होती है। वह हमेशा अपने अंदर और बाहर के साम्राज्य को हासिल करने के लिए लड़ता है।
अत: यह देखा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत को अनुभव किया है तथा वीरता एवं साहस के महत्त्व और उसकी आवश्यकता को पहचाना है।
साथ-ही-साथ भारतीय संसकृति ने जीवन को यथार्थ रूप में देखा है तथा नया उन्नत निर्माण करने के लिए अटल ईमानदार और जबरदस्त साहस बनाए रखा है।
कई लोग ऐसे हैं जो मानसिक और बौद्धिक स्तर पर भारत की उपलब्धियों की महानता को स्वीकार करते हैं। परन्तु लोगों द्वारा भी यह महसूस किया जाता है कि यह देश आम जीवन में असफल रहा है और इसकी संस्कृति से जीवन बहुत सशक्त, सफल और विकसित नहीं हो पाया है जैसाकि पश्चिम देशों में हुआ है।
हमारा पक्का दावा है कि इस क्षेत्र में भी भारत असफल नहीं रहा है। यह सच है कि अन्य सभ्यताओं की तरह इसका भी उत्थान और पतन हुआ है, परन्तु ऐसा जीवन के प्रति नजरअंदाजी या निराशा के कारण नहीं हुआ। कोई भी निर्जीव संस्कृति इतने लंबे समय तक सशक्त होकर बची नहीं रह सकती जैसाकि भारतीय संस्कृति रही है। वास्तव में हम देखे तो भारतीय संस्कृति में मानव अस्तित्व के सभी पहलुओं की पूरी और स्पष्ट पहचान तथा परख की गई है। इस संस्कृति में एक सशक्त सजीव शक्ति और ऊर्जा विद्यमान रही है, जिसके कारण यह संस्कृति पाँच हजार वर्षों से भी अधिक समय में अखंड बनी हुई है। उच्च आध्यात्मिक आकांक्षाएँ और विशुद्ध बौद्धिक एवं कलात्मक अनुभूतियाँ रखना ही काफी नहीं है, इन श्रेष्ठ एवं सुंदर वस्तुओं को अभिव्यक्त करने के लिए सशक्त, सजीव और ठोस आधारों का होना भी नितांत अनिवार्य है। भारत में इन सबका भी विकास हुआ है और इससे ही जीवन को सही दिशा देने के लिए स्पष्ट, अच्छे और उत्तम विचार मिले हैं।
भारतीय संस्कृति ने उन्नति और विकास के लिए हमेशा संघर्ष किए हैं; परन्तु उन्नति और विकास के लिए इसका दृष्टिकोण समग्रता का रहा है, अर्थात् इसने आध्यात्मिक और भौतिक दोनों रूप में उन्नति की है।
सैद्धांतिक रूप से भारतीयों के लिए उन्नति और विकास का अर्थ हमेशा एक प्रयास अथवा उत्थान और अपराजित रहना रहा है। आदर्श व्यक्ति वह है जो हमेशा संघर्ष करता रहता है और मनुष्य की प्रगति में बाधक उन सभी तत्त्वों, जो चाहे आंतरिक हों या बाहरी, पर विजय प्राप्त कर लेता है। आत्म विजय ही उसके स्वभाव का प्रथम नियम है। आत्म कौशल की उसकी आत्म विजय का उद्देश्य है। अत: अपने गुणों से वह जो कुछ भी पाता है उसे खोता नहीं, अपितु उसे अपने पास रखता है और उसका पूर्ण विश्वास करता है। वह हमेशा एक कार्यकर्ता और योद्धा होता है। ऊँचाइयों को पाने के लिए अथवा शारीरिक परिश्रम से नहीं डरता। उसे कोई भी मुश्किल नहीं होती, न ही उसे थकान महसूस होती है। वह हमेशा अपने अंदर और बाहर के साम्राज्य को हासिल करने के लिए लड़ता है।
अत: यह देखा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत को अनुभव किया है तथा वीरता एवं साहस के महत्त्व और उसकी आवश्यकता को पहचाना है।
साथ-ही-साथ भारतीय संसकृति ने जीवन को यथार्थ रूप में देखा है तथा नया उन्नत निर्माण करने के लिए अटल ईमानदार और जबरदस्त साहस बनाए रखा है।
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लोगों की राय
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