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संकल्प काल

अटल बिहारी वाजपेयी

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1722
आईएसबीएन :81-7315-300-0

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प्रस्तुत है प्रधानमंत्री के रूप में दिये गये महत्वपूर्ण भाषण....

Sankalp Kaal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

श्री अटल बिहारी बाजपेयी के चिंतन और चिंता का विषय हमेशा ही संपूर्ण राष्ट्र रहा है। भारत और भारतीयता की संप्रभुता और संवर्धन की कामना उनके एजेंडे में सर्वोपरि रही है। यह भावना और कामना कभी संसद में विपक्ष के सांसद के रूप में प्रकट होती रही, कभी कवि और पत्रकार के रूप में, कभी सांस्कृतिक मंचों से एक सुलझे हुए प्रखर वक्ता के रूप में और 1996 में से भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अभिव्यक्ति हो रही है।

श्री वाजपेयी ने देश की सत्ता की बागडोर का दायित्व एक ट्रस्टी के रूप में ग्रहण किया। राष्ट्र के सम्मान और श्रीवृद्धि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। न किसी दबाव को आड़े आने दिया, न किसी प्रलोभन को। न किसी संकट से विचलित हुए, न किसी स्वार्थ से। फिर चाहे परमाणु हो, कारगिल समस्या हो, लाहौर-ढाका हो या कोई और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा।
इसी तरह राष्ट्रीय मुद्दों पर भी दो टूक और राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानते हुए निर्णय लिये—चाहे वह कावेरी विवाद हो या कोंकण रेलवे लाइन का मसला, संरचनात्मक ढाँचे का विकास हो या सॉफ्टवेयर के लिए सूचना और प्रौद्योगिकी कार्यदल की स्थापना, केंद्रीय बिजली नियंत्रण आयोग का गठन हो या राष्ट्रीय राजमार्गों और हवाई अड्डों का विकास, नई टेलीकॉम नीति हो या आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने का सवाल, ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर जुटाने का मामला है या विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए बीमा योजना।

संप्रति अपने प्रधानमंत्रित्व काल में श्री वाजपेयी ने जो उपलब्धियाँ हासिल की हैं उन्हें दो शब्दों में कहा जा सकता है—जो कहा वह कर दिखाया। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद भी उनकी कथनी और करनी एक ही बनी रही—इसका प्रमाण हैं इस ‘संकल्प-काल’ में संकलित वे महत्त्वपूर्ण भाषण जो श्री वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में विभिन्न मंचों से दिए। अपनी बात को स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में कहना अटलजी जैसे निर्भय और सर्वमान्य व्यक्ति के लिए सहज और संभव रहा है। लाल किले से लाहौर तक, संसद से संयुक्त राष्ट्र महासभा तक विस्तृत विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों से दिए गए भाषणों से बार-बार एक ही सत्य एवं तथ्य प्रमाणित और ध्वनित होता है—श्री वाजपेयी के स्वर और शब्दों में भारत राष्ट्र राज्य के एक अरब लोगों का मौन समर्थन और भावना समाहित है।
प्रभात प्रकाशन से प्रकाशिक ‘मेरी संसदीय यात्रा’ (चार भाग) के बाद ‘संकल्प-काल’ का प्रकाशन अटलजी के पाठकों और उनके विचारों के संग्रहकों के लिए एक और उपलब्धि है।

दिन जाते देर नहीं लगती,
देखते-देखते एक वर्ष बीत गया;
लंबी प्रतीक्षा का वर्ष,
कठिन परीक्षा का वर्ष;
आपका विश्वास, हमारे प्रयास;
कालिमा छँटने लगी है,
निराश मन में नई आशा जगी है;
सभी सपने साकार करना है,
मिलकर रास्ता पार करना है;
आइए,
संकल्प दोहराएँ,
नई सदी को भारत की सदी बनाएँ।


श्री अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी

एक परिचय


भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारीवाजपेयी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता हैं, जो सार्वजनिक जीवन में अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए सुविख्यात हैं।
आपका जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। आपके पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी था। एक भरे-पूरे परिवार के सदस्य अटल बिहारी वाजपेयी ने विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाईः कॉलेज, ग्वालियर और डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर में अपनी पढ़ाई पूरी की। आपने राजनीतिशास्त्र से एम.ए. तक की पढ़ाई की है। आप 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में गिरफ्तार हुए थे और कुछ दिन जेल में रहे थे। आपने एक पत्रकार के रूप में अपना जीवन शुरू किया। आपने 1947-50 के दौरान ‘राष्ट्र धर्म’, 1948-50 के दौरान ‘पाञ्चजन्य’ (साप्ताहिक), 1949-50 के दौरान ‘स्वदेश’ (दैनिक) तथा 1950-52 के दौरान ‘वीर अर्जुन’ (दैनिक तथा साप्ताहिक) के संपादक के पदों को सुशोभित किया।

1951 में आप जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से थे। जनता पार्टी की सरकार में 1977-79 की अवधि के दौरान अपने विदेश मंत्री के पद को सुशोभित किया। आप 1980 में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे तथा 1980-86 के बीच आप इसके अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। आप 1980-84 तथा 1986-91 में भारतीय जनता पार्टी के संसदी दल के नेता थे। लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य के रूप में आप 1957 से लगातार संसद सदस्य रहे हैं। 1991-96, दसवीं लोकसभा में आप नेता प्रतिपक्ष रहे। ग्यारहवीं लोकसभा के गठन के तुरंत बाद आप 16 मई, 1996 से 28 मई, 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। जून 1996 से फरवरी 1998 तक ग्यारहवीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। मार्च 1998 में बारहवीं लोकसभा के गठन के बाद आप पुनः भारत के प्रधानमंत्री हैं। सन् 1985 को छोड़कर आप पिछले 41 वर्ष के लंबे कालखंड में संसद के किसी-न-किसी सदन के सदस्य रहे। चार दशकों से भारतीय संसद में अपनी गौरवपूर्ण उपस्थिति से आप देश और संसद की गरिमा की श्रीवृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देते रहे हैं।

श्री वाजपेयी 1966-67 के दौरान सरकारी आश्वासन संबंधी समिति के, 1969-70 और 1991-92 के दौरान लोक लेखा समिति तथा 1990-91 के दौरान याचिका-समिति के अध्यक्ष रहे। 1965 में पूर्वी अफ्रीका गए संसदीय सद्भावना मिशन के, 1986 में यूरोपीय संसद में संसदीय शिष्टमंदल के; कनाडा (1966), जांबिया (1980), आइल ऑफ मैन (1984) में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के संसदीय शिष्टमंडल के; जापान (1974), श्रीलंका (1975), स्विट्जरलैंड (1984) में आयोजित अंतर संसदीय यूनियन में भारतीय शिष्टटमंडल के तथा 1988, 89,90, 91, 92, 93, 94, और 96 में संयुक्त राष्ट्र महासंघ महासभा में भारतीय शिष्टमंडल के आप सदस्य रहे हैं। अनेक अवसरों पर आप राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य रह चुके हैं। फरवरी 1994 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वी.पी.नरसिंह राव के विशेष आग्रह पर आपने जेनेवा में मानवाधिकारों के सम्मेलन में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया अपितु प्रतिरक्षा के नेता द्वारा सरकार का पक्ष प्रस्तुत किए जाने की यह घटना अपने आपमें वहीं उपस्थित सभी राष्ट्र प्रमुखों के लिए आश्चर्य और भारत के लोकतंत्र के प्रति निष्ठा और विश्वास कर अवसर बनी।

1995 में संयुक्त राष्ट्र की 50वीं वर्षगांठ के लिए आयोजित विशेष सत्र में भी वाजपेयी जी ने देश के दल का नेतृत्व किया। विदेश मामलों की समिति के चेयरमैन के रूप में भी वाजपेयी जी ने 1997 में बहरीन, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। 1942 में आपको ब्रिटिश हुक्मरानो ने जेल भेजा। आपातकाल के पूरे दौर में 1975 से 77 तक आप जेल में रहे। राष्ट्र के प्रति आपकी समर्पित सेवाओं के लिए राष्ट्रपति ने 1992 में ‘पद्मविभूषण’ से विभूषित किया। 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने फिलॉसफी में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। 1994 में ‘लोकमान्य तिलक’ पुरस्कार दिया गया। 1994 में ‘सर्वश्रेष्ठ संसद’ चुना गया और ‘गोविंद बल्लभ पंत’ पुरस्कार से सम्मानिक किया गया। 26 नवंबर, 1998 को सुलभ इंटरनेशनस फाउंडेशन ने वर्ष ’97 के सबसे ईमानदार व्यक्ति के रूप में चुना। उपराष्ट्रपति (श्री कृष्णकांत ने इस पुरस्कार से सम्मानित किया

श्री वाजपेयी 1950-70 के दौरान अखिल भारतीय स्टेशन मास्टर्स एंड असिस्टेंस स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन के तथा 1968-84 के दौरान पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति के अध्यक्ष पद को शोभायमान कर रहे हैं।
श्री वाजपेयी को ‘कैदी कविराज की कुंडलिया’, ‘न्यू डाइमेंशंस ऑफ एशियन फॉरेन पॉलिसी’, ‘मृत्यु या हत्या’, ‘जनसंघ और मुसलमान’ और ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ नामक पुस्तकें लिखने का श्रेय प्राप्त है। 1992 में प्रकाशित ‘संसद में तीन दशक’ के तीन खंडों को समाहित करते हुए और उनमें सम्मिलित होने से रह गए और उसके बाद आपने सन् ’57 से अब तक लोकसभा और राज्यसभा में जितने भी महत्त्वपूर्ण भाषण दिए हैं, ‘मेरी संसदीय यात्रा’ के इन चार खंडों के प्रकाशन के साथ ही पुस्तक रूप में पाठकों तक आ चुके हैं। ‘अटलजी आह्वान’ नाम से मराठी में आपके सार्वजनिक मंचों, सदन और पार्टी बैठकों के चुनिंदा संभाषणों का संग्रह कई वर्ष पहले प्रकाशित हो चुका है।

भूमिका


श्रीअटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री हैं। जिस संयम, पर दृढ़ता से उन्होंने कारगिल संकट का सामना किया, उसने उन्हें दुनिया के शीर्ष राजनेताओं में शुमार कर दिया है। उन्होने पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसी देशों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। लेकिन साथ ही परमाणु शक्ति परीक्षण देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-II और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए दृढ़ कदम भी उठाए। अब पूरा विश्व समझ गया है कि भारत शांति चाहने वाला एक जिम्मेदार देश है। यह किसी भी मापदंड से अनुल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है।

श्री वाजपेयी ने सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया; संरचनात्मक ढाँचे के लिए कार्यदल; सॉफ्टेवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल; केन्द्रीय बिजली नियंत्रण आयोग आदि का गठन किया, साथ ही राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोंकण रेलवे की शुरुआत आदि के माध्यम से बुनियादी संरचनात्मक ढ़ाँचें को मजबूत करने वाले कदम उठाए। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं। इनके अलावा उन्होंने आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया, उड़ीसा के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र के लिए सात सूत्री गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया, आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया तथा ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए बीमा योजना शुरू की।

वह अल्पभाषी हैं और अब यह भी सिद्ध हो गया कि अक्सर मिलने पर वह उपलब्धियाँ भी हासिल करते हैं। आज वह भारतीय राजनीति के सर्वाधिक लोकप्रिय व आदमकद व्यक्तित्व हैं। भारत की अधिकांश जनता महसूस करती है कि श्री वाजपेयी के जिम्मेदार हाथों में देश सुरक्षित है।
यह पुस्तक भारत व उसके लोगों, जिन्हें वह प्यार करते हैं, के लिए उनकी चिंता को दर्शाती है। इसके कालक्रमानुसार देश की स्थिति, अर्थ व्यवस्था, समाज, संस्कृति, विदेश नीति एवं संसद में दिए गए उनके भाषणों को विभिन्न अध्यायों में व्यवस्थित किया गया है।

यह प्रधानमंत्री के रूप में दिए गए उनके भाषणों का नहीं, बल्कि सभी अति महत्त्वपूर्ण भाषणों का संकलन है
वास्तव में यह पुस्तक प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित श्री वाजपेयी की बृहद् पुस्तक ‘मेरी संसदीय यात्रा’ का विस्तार भी है। उक्त पुस्तक में मैं अपनी विस्तृत भूमिका में अटल जी के बहुआयामी व्यक्तित्व और सन् 1957 से उनके साथ अपने साहचर्य एवं उपाख्यानों की विस्तार से चर्चा कर चुका हूँ इसलिए यहाँ इतना कह कर यह पुस्तक अटलजी के विचारवान् पाठकों को समर्पित करता हूँ।

इस पुस्तक के प्रकाशन में श्री वीरेंद्र जैन ने जो श्रम किया है उसके लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूँ। अल्प समय में भाषण और फोटो उपलब्ध कराने के लिए मैं श्री अशोक टंडन और श्री ओ.पी. तनेजा का ऋणी हूँ।

यह कहना अनावश्यक है कि पुस्तक में किसी भी त्रुटि या भूल के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार हूँ।

-ना.मा. घटाटे



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