नई पुस्तकें >> जेहादन तथा अन्य कहानियाँ जेहादन तथा अन्य कहानियाँप्रदीप श्रीवास्तव
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प्रदीप जी मानव मन को झकझोरती कहानियाँ
फ़ाइनल डिसीज़न
आज वह फिर नस्लवादी कॉमेंट की बर्छियों से घायल होकर घर लौटी है। वह रास्ते भर कार ड्राइव करती हुई सोचती रही कि आख़िर ऐसे कॅरियर पैसे का क्या फ़ायदा जो सम्मान सुख-चैन छीन ले। क्या मैं गायनेकोलॉजिस्ट इसीलिए बनी, इसीलिए अपना देश भारत छोड़कर यहाँ ब्रिटेन आयी कि यहाँ नस्लवादियों, जेहादियों की नस्ली भेद-भाव पूर्ण अपमानजनक बातें, व्यवहार सुनूँ, बर्दाश्त करूँ, इनके हमलों का शिकार बनूँ।
देश में सुनती थी यह बातें तो विश्वास नहीं कर पाती थी। सोमेश्वर भी कहते थे, ‘छोटी-मोटी घटनाएँ हो जाती होंगीं, वह एक डेवलेप्ड कंट्री है, वेलकल्चर्ड लोग हैं। यह एक प्रोपेगंडा के सिवा और कुछ नहीं है।’ सचाई मालूम होती कि यहाँ वास्तविक स्थिति यह है तो अपना देश भारत, ससुराल, बेटी और माँ को छोड़कर कभी भी नहीं आती। सपने में भी नहीं सोचा था कि यहाँ आकर हस्बेंड से भी . . .। हस्बैंड का ध्यान आते ही उसके हृदय में एक सूई सी चुभ गई।
उसने रास्ते में किचन का कुछ सामान ख़रीदा। डिपार्टमेंटल स्टोर में हस्बेंड, बाक़ी बातें नेपथ्य में चली गईं। वह सामान लेती हुई सोचने लगी कि ‘यह रिकॉर्डतोड़ महँगाई सारी इनकम खींच ले रही है, मार्किट से सामान अलग ग़ायब हैं। ये गवर्नमेंट पता नहीं कब-तक यूक्रेन युद्ध की आड़ में अपना फैल्योर छिपाती रहेगी।’ उसकी ख़रीदारी पूरी भी नहीं हो पायी थी कि डॉक्टर मेघना शाह का फोन आ गया।
कुछ देर बात करने के बाद उसने कहा, “यह प्रॉब्लम तुम्हारे साथ ही नहीं, मेरे साथ भी है। बल्कि मुझे तो अब पूरा विश्वास हो गया है कि यह प्रॉब्लम यहाँ रह रहे सभी हिन्दुओं के साथ है। आज भी लंच हॉवर में मेरे साथ फिर ऐसा ही हुआ है। एनीवे मैं घर पहुँच कर बात करती हूँ।”
घर पहुँच कर उसने कॉफ़ी बनाई, कुछ भुने हुए काजू लिए और ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठ कर पीने लगी। उसने ग्लव्स उतार दिए थे। कॉफ़ी के मग को दोनों हाथों के बीच पकड़ा हुआ था, जिससे उन्हें कुछ गर्मी मिल सके। जनवरी महीने का दूसरा सप्ताह चल रहा था, लंदनवासी कड़ाके की ठंड झेल रहे थे। टेंपरेचर दो-तीन डिग्री हो रहा था। लेकिन उसे कड़ाके की ठंड से नहीं नस्लवादियों, जिहादियों की बातों, व्यवहार से तकलीफ़ हो रही थी। उसके दिमाग़ को अब भी डॉक्टर लिज़, डॉक्टर स्मिथ की उसके स्किन कलर, फ़िगर को लेकर किए गए अपमानजनक कॉमेंट पिघले शीशे की तरह झुलसा रहे थे।
वह सोच रही थी कि ‘क्या मैं इतनी गंदी भद्दी और बेडौल हूँ कि गोरी चमड़ी वाले या कोई भी मुझसे घृणा करे, अपमानजनक कॉमेंट करे। हमारे धर्म-संस्कृति की खिल्ली उड़ाए।’ कपड़े चेंज करते समय शीशे में उसने अपने पूरे बदन पर कई-कई बार दृष्टि डाली, दाएँ-बाएँ घूम-घूम कर हर एंगिल से जितना देख सकती थी, उसे ध्यान से देखा और मन ही मन कहा, ‘लिज़ ईर्ष्या के चलते तुम कितना भी झूठ बोलो, लेकिन यह मिरर मुझे हर बार सच दिखाता और बताता है। कहता है कि जो बातें तुम मुझे कहती हो एक्चुअली कम्प्लीटली तुम पर फ़िट होती हैं।
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