• "Tales of Struggle: Echoes from Iran’s Soil and Souls"

  • "A Chronicle of Human Strife and Unity: Stories from a Shared Human Experience"

  • "Stories of Struggle and Hope: Bridging Cultures through Shared Humanity"

  • "In the Language of Stories: The Voice of Humanity and Layers of Struggle"

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  • "संघर्ष की कहानियाँ, जो ईरान की धरती और दिलों की गूंज सुनाती हैं"

  • "जिंदगी की जद्दोजहद और मानवीय एकता का दस्तावेज़"

  • "संघर्ष और सपनों की कहानी, एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संवेदनाओं का मिलन"

  • "कहानी की ज़ुबान में, मानवता की आवाज़ और संघर्ष की परतें"

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  • "Tales of Struggle: Echoes from Iran’s Soil and Souls"

  • "A Chronicle of Human Strife and Unity: Stories from a Shared Human Experience"

  • "Stories of Struggle and Hope: Bridging Cultures through Shared Humanity"

  • "In the Language of Stories: The Voice of Humanity and Layers of Struggle"

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    नई पुस्तकें >> संगसार

    संगसार

    नासिरा शर्मा

    प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
    पृष्ठ :179
    मुखपृष्ठ : पेपरबैक
    पुस्तक क्रमांक : 17168
    आईएसबीएन :9789387330207

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    • "अभिलाषाओं और संघर्ष की गहराई में, एक साझा मानवता की खोज"

    • "संघर्ष की कहानियाँ, जो ईरान की धरती और दिलों की गूंज सुनाती हैं"

    • "जिंदगी की जद्दोजहद और मानवीय एकता का दस्तावेज़"

    • "संघर्ष और सपनों की कहानी, एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संवेदनाओं का मिलन"

    • "कहानी की ज़ुबान में, मानवता की आवाज़ और संघर्ष की परतें"

    दो शब्द

    ये कहानियाँ इनसानों की अभिलाषाओं, इच्छाओं और सपनों की दस्तावेज़ मात्र हैं, किसी धर्म, विचार, मत की अच्छाई और बुराई को बताने का रोज़नामचा नहीं; बल्कि ये उन बनदसीब शहीदों के पंचनामे हैं जिन्होंने अपने वतन को सायेदार दरख़्तों से ढँकना चाहा, खेत और कारख़ानों से सजाना चाहा, इनसान को हर तरह के भय से आज़ाद कर उसकी गुलामी की ज़ंजीरें काटनी चाही, उसके फैले हाथों और ख़ली पेट पर रोटी का सूरज रखना चाहा, मगर मौत उन्हें रास्ते में ही चील की तरह झपट्टा मार कर निगल गई।

    ये रचनाएँ उसी अधूरे कशमकश की सनद हैं, जो मानवीय संघर्ष के सफ़र में मील का पत्थर साबित होकर आधारशिला की मजबूती की सूचना देती हैं कि आनेवाली नस्‍लें इन बीहड़ रास्तों को सुगम बनाने में लगातार शामिल होती रहें; आखिर मुक्ति का रास्ता इतना आसान नहीं जो कम्प्यूटर के रिज़ल्ट की तरह पल-भर में हाथ लग जाए, बल्कि नस्‍लों को इस आतशकदे में होम होना पड़ता है।

    ये कहानियाँ ईरान की उन सारी जगहों को, जहाँ इनसानी खून की बूँदें धरती की प्यास बन कर उमर ख़्य्याम की रुबाइयों के दर्शन में ढलीं कि यह मिट्टी बुजुर्गों, पूर्वजों के वजूद के अंश से लबरेज़ हम से हर शै में हम-कलाम होती हैं, ख़ामोश संवाद का एक न समाप्त होनेवाला सिलसिला बनाती हैं; वहीं पर एक ज़िम्मेदारी का अहसास भी उस धरती पर साँस लेनेवाले ज़िन्दा लोगों के सामने रखती हैं कि क्या इनसानों के बीच संवाद स्थापित करने का सेतु केवल राजनीति जैसा संकीर्ण माध्यम है या मानवीय परम्पराएँ हैं ? दायरों, धर्मों, विचारों और मठों में बँट जाना ही जीवन का लक्ष्य है या फिर मानव जाति के लिए कुछ करना और उसे एकता में बाँध कर समस्याओं को सुलझाना बेहतर है ?

    उस समय ईरान अपनी निष्ठा एवं बलिदान की पराकाष्ठा पर पहुँचा हुआ था मगर वह जज्बा सामूहिक प्रयत्न का न हो कर अपनी-अपनी सीमा तक बँधा था। जिसने अपनों से मोहब्बत करने के बजाय नफ़रत करना सिखाया। उसका इल्ज़ाम कभी शाह, कभी इसलाम, कभी साम्यवाद को दिया जा सकता है। यह  अपने-अपने दृष्टिकोण पर निर्भर है, मगर कुल मिला कर ध्यान देने की बात यह है-कोई भी धर्म या व्यवस्था तभी नकारी जाती है जब उसमें तानाशाहीं किसी भी रूप में मौजूद हो और इनसानों से उनके जीने के सारे सहज अधिकार और बुनियादी सुविधाएँ छीन ली जाएँ। ऐसा ही कुछ ईरान में बरसों से होता चला आया है।

    ईरान में एक सन्तुलित समाज की इच्छा वहाँ के हर नागरिक के मन में है और वही जज्बा इस संग्रह की कहानियों के माध्यम से व्यक्त हुआ है।

    इन कृतियों से गुजरते हुए सहज ही पाठकों के मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि विदेश की पृष्ठभूमि पर लिखी इन कहानियों द्वारा मैं क्या साबित करना चाहती हूँ, जबकि हमारे सरोकार अपने देश तक सीमित होने चाहिए। दूसरे देश से हमारा सम्बन्ध केवल कूटनीति, व्यापार एवं पर्यावरण तक सीमित होना चाहिए या फिर केवल धन कमाने के लिए घर से कदम निकालना उचित एवं तर्कसंगत लगता है मगर एक लेखक की संवेदनाएँ, उसके अनुभवों का दायरा इन बन्दिशों को तोड़ कर आम इनसानों के दुःख-दर्द से जुड़ जाता है। उसके सरोकार विराट मानव समाज से जुड़ कर दुनिया को देखते हैं उसके लिए कोई अपना या पराया नहीं होता है ऐसा ही कुछ मेरे साथ घटा कि मेरी क़लम यात्रा संस्मरण की सीमा को लाँघ कर आम इनसान के दिल-ओ-दिमाग में प्रवेश पा गई। फ़ारसी भाषा जानने के कारण उनकी जीवनगाथा सुनने का नहीं बल्कि देखने और समझने का जो अवसर मिला उसने इन रचनाओं को जन्म दिया।

    ये कहानियाँ १९८० और १९९२ के बीच में लिखी गई थीं। ऐसी पत्रिकाएँ (शेष, लहर, विचारबोध, साप्ताहिक इत्यादि) इन्हें छापती रहीं जो स्वयं अब छपना बन्द हो चुकी है। आशा है पाठक अपनी तरह के दिल व दिमाग़ रखनेवाले दूसरे इनसानों की कहानियाँ पढ़ कर अपनी साझा मानवीय विरासत के आईने में उनके दुःख-सुख में अपना चेहरा देख पाएँगे। जो दूसरे देश में रह कर भी हमारी तरह एक दिल, एक दिमाग़, दो आँख, दो कान, दो हाथ-पैर रखनेवाले इनसान हैं।

    क़ब्र में सोए उन कर्मठ, निष्ठावानों को जो आज भी दिलों के चिराग़ बन गरमी और रोशनी देते हैं । उन्हें श्रद्धा भरा सलाम।

    अनुक्रम

    तारीखी सनद               9
    पहली रात               13
    दरवाज़-ए-क़ज़विन               21
    दीवार-दर-दीवार               32
    गुंचा दहन               40
    दिल की किताब               56
    यहूदी सरगर्दान               64
    ज़रा-सी बात               75
    उड़ान की शर्त               80
    भूख               94
    ख़लिश               98
    झूठा पर्वत               111
    संगसार               116
    नमक का घर               138
    अजनबी शहर               142
    मँगा आसमान               146
    लबादा               156
    आख़िरी पहर               169
    तुम्हारे बिना               179

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